A lot of things are worth learning from Atalji's thoughts, his life and work, but in his last years, the warning is also hidden
एक परिचित बुजुर्ग की रक्त वाहिनियों में खून के आवागमन में रुकावट की रिपोर्ट थी। डॉक्टर ने फिलहाल समस्या सुलझा दी थी, लेकिन दवाइयों के साथ ही परहेज करने की भी सख्त हिदायत दी थी। भोजन के शौकीन बुजुर्ग को बस दो-चार दिन ही डॉक्टर की सलाह याद रही, उसके बाद उन्होंने उस सलाह को कूड़ेदान में डाल दिया।
जब भी परिजन उन बुजुर्ग को डॉक्टर का कहा याद दिलाने की कोशिश करते तो उनका जवाब होता, "अरे ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, चार-पांच साल कम जी लूंगा। जाना तो सभी को है। कोई थोड़ा पहले चला जाता है, कोई दो-चार साल बाद जाता है।" उनकी बात में दम था। सभी को एक दिन जाना ही है। इस प्रकार सामने वाले को निरुत्तर करके वह स्वयं को विजयी समझते और तरह-तरह से अपने पेट की पूजा में लग जाते।
खाने में अनुशासन न हो और शारीरिक सक्रियता भी न हो तो अच्छे से अच्छे आदमी की हालत खराब हो जाती है। फिर वे तो पहले से मरीज थे। कुछ ही दिन बाद उन बुजुर्ग को लकवा मार गया। मृत्यु तो नहीं आई पर अपने से भी भयंकर आफत को उसने भेज दिया।
अब हालत यह है उन बुजुर्ग के शरीर का आधा हिस्सा काम नहीं करता है। नित्य क्रियाएं किसी परिजन ने करा दीं तो ठीक वरना सब कुछ बिस्तर पर ही होता है। न मुंह से ठीक से बोल पाते हैं और न ही ठीक से कुछ खा पाते हैं। परिजनों ने भी कुछ दिन तक तो देखभाल की, लेकिन बाद में वे भी थक गए। अब वे बुजुर्ग ईश्वर से मृत्यु मांगते हैं और मृत्यु है कि आती ही नहीं।
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भारत के प्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी के अंतिम वर्ष भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मृत्यु बड़ी समस्या नहीं हैं। वह तो एक झटके में आती है। इसी के साथ आदमी खत्म और उसके सारे झंझट खत्म। असल समस्या तो जीते जी है।
अटल जी की एक कविता में भी मृत्यु की उम्र कुछ पल की बताई गई है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी श्रृद्धांजलि में किया है, लेकिन कैसी विडंबना है कि अटल जी के जीवन में मृत्यु की उम्र कुछ पल की नहीं रही। उन्हें मृत्यु ने भले ही 94 वर्ष की उम्र में गले लगाया, लेकिन मृत्यु ने अपनी बहन 'अपंगता' को काफी पहले उनके पास भेज दिया था, जिसने निश्चय ही अटल जी के अंतिम वर्षों में उन्हें मृत्यु से भी बुरा अनुभव दिया होगा।
अटल जी भी खाने के शौकीन थे। मिठाइयां उनकी कमजोरी थीं। उनके निकट रहे लोगों ने मीडिया में बताया है कि प्रधानमंत्री रहने के दौरान सुबह से दोपहर तक उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता था। इस दौरान मिलने वालों को रसगुल्ला, गुलाब जामुन, समोसे आदि परोसे जाते थे। जाहिर है ये सब चीजें देखकर अटल जी का भी हाथ नहीं रुकता था। तभी तो बाद में उनकी देखभाल में लगे अधिकारियों को यह निर्देश देना पड़ा कि इन चीजों को साहब से दूर रखा जाए।
कमाल की बात है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले पीवी नरसिम्हा राव बीमार से लगते थे और जब वे प्रधानमंत्री बने तो उनके शरीर की रंगत लौट आई थी, लेकिन अटल जी प्रधानमंत्री बनने के बाद ही अपना स्वास्थ्य खराब कर बैठे।
बहरहाल, अटल जी के विचारों से, उनके जीवन और कार्यों से काफी बातें सीखने लायक हैं, लेकिन उनके अंतिम वर्षों में सीख के साथ चेतावनी भी छिपी है। चेतावनी यही है कि भाई भोजन संतुलित ही करो और यदि भोजन पर नियंत्रण नहीं कर सकते तो शारीरिक सक्रियता बढ़ाओ। अटल जी तो पूर्व प्रधानमंत्री थे। डॉक्टर हर समय दरवाजे पर रहते थे। एक आम आदमी आठ-दस वर्ष बिस्तर पर पड़ा रहे तो उसके परिवार का तो दिवाला ही निकल जाए। मानसिक, शारीरिक और आर्थिक, हर प्रकार से।
आज की जीवनशैली में मृत्यु तो बहुत बाद की समस्या है। उससे पहले की समस्याएं, मृत्यु से भी ज्यादा विकट और खतरनाक हैं। उनसे बचने का प्रयास तो हम कर ही सकते हैं।
- लव कुमार सिंह
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