Alas! Kapil Dev would still be in the Indian cricket team
काश! कपिल देव आज भी भारतीय क्रिकेट टीम में होते
किशोरावस्था और जवानी में मुझे कपिल देव और उनका खेल बहुत
अच्छा लगता था। कपिल देव के रहते भारत के हर मैच में एक श्रोता और दर्शक के तौर पर
मन और शरीर में अजीब सा जोश रहता। कपिल देव के योगदान के बिना टीम को मिली जीत, जीत ही नहीं महसूस होती
थी। जब टीम को जरूरत होती, कपिल विकेट चटकाते और जब वह बल्लेबाजी कर रहे होते तो रन गति का
बढ़ना निश्चित माना जाता था।
हमें याद है रेडियो पर कमेंट्री के दौरान
कमेंटेटर कहते- “...और अब कपिलदेव अगली गेंद
लेकर आगे बढ़ते हुए.....” कमेंटेटर के आगे कुछ कहने से पहले कमेंट्री सुन रहे पिताजी कहते- “और ये आउट”। कुछ ही क्षण बाद
कमेंटेटर की उत्साहित आवाज गूंजती- “क्लीन बोल्ड।” ऐसा कई बार हुआ जब कमेंटेटर से पहले पिताजी ने
कपिलदेव की गेंदबाजी के दौरान ‘आउट’
कहा और
फिर कपिल के गेंद फेंकने के बाद कमेंटेटर ने भी आउट ही बोला। फिर तो पिताजी की देखादेखी हमने भी जरूरत पड़ने पर ऐसा ही कहना शुरू कर दिया और कपिलदेव ने हमें भी निराश नहीं किया।
हमें नहीं लगता कि
प्रिंट मीडिया में आज तक किसी गेंदबाज का गेंदबाजी एक्शन इतना छपा होगा जितना उन
दिनों कपिल देव का छपता था। विकेट पर उनकी वो उछाल...हाथों का एक्शन....टेढ़ी
गर्दन मगर नजर विकेट पर....सब बहुत कमाल का था।
कपिल देव बल्लेबाज भी कमाल के थे। वे पिंच हिटर
थे। जब वे क्रीज पर आते तो रन गति का बढ़ना तय माना जाता था। उनके पांच-दस मिनट तक
क्रीज पर रहने के दौरान ही भारत का स्कोर बहुत तेजी से बढ़ जाता था। हमें बल्लेबाजी के दौरान
कपिल देव का कोई डिफेंसिव शॉट याद नहीं आता। उनकी कोशिश हर गेंद पर रन लेने की
होती थी। डिफेंस करना तो वे जानते ही नहीं थे। कपिल देव ने पहली बार भारत को विश्व
विजेता बनाया। इसके अतिरिक्त भी उन्होंने अकेले दम पर भारत को अनगिनत मैच जिताए। सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी के दौरान एक बार कहा था कि काश भारतीय टीम में हमारे पास कपिलदेव जैसा कोई एक खिलाड़ी होता तो हम भारतीय टीम को और भी ऊंचाइयों पर ले जाते।
...और गांगुली ही क्यों, आज जब भारतीय टीम ने इंग्लैंड में न्यूजीलैंड के हाथों विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में मात खाई है तो 'कपिलदेव' (एक उम्दा ऑलराउंडर) जैसे खिलाड़ी की कमी बहुत शिद्दत से महसूस की जा रही है। विश्व विजेता बनने के लिए भारत को एक 'कपिलदेव' की जरूरत हमेशा रहेगी।
बहरहाल, पीछे लौटते हैं। रोमांचभरे उन दिनों के बाद फिर एक दिन ऐसा भी आया
जब कपिलदेव स्वयं की छाया नजर आने लगे। बल्लेबाजी में उनका धमाका जारी था, लेकिन टीम उनसे विकेट
चाहती थी। वे विकेट लेते, लेकिन उतने नहीं जितनी उनसे उम्मीदें होतीं। वे धीमे हो गए थे।
फिर हमने देखा वे विकेट के काफी पास से गेंदबाजी
करने लगे। हमारा दिल यह देखकर रो उठा। कपिल देव पर संन्यास लेने का दबाव बढ़ रहा
था। कई युवा खिलाड़ी टीम के दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे। हकीकत जानते हुए भी हम
नहीं चाहते थे कि कपिल देव संन्यास लें। हम चाहते थे कि वह और खेलें, सालों साल खेलें। यह जानते
हुए भी कि कपिल देव टीम के नंबर वन गेंदबाज हैं, हम तर्क देते कि देखो कपिल देव बल्लेबाजी कितनी अच्छी कर रहे हैं।
उन्हें अभी टीम में होना चाहिए।
लेकिन वास्तव में हम हकीकत को झुठला रहे थे। हम
भावनाओं में बह रहे थे। कपिल देव करीब 20 साल से प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेल रहे थे।
भारतीय टीम में आने के बाद वह विरले ही प्लेइंग इलेविन से बाहर रहे थे। उन्होंने
बिना चोटिल हुए लगातार क्रिकेट खेला था। वह अपना सर्वश्रेष्ठ दे चुके थे। वे अब थक
चुके थे। समय की मांग थी कि उन्हें जाना ही था, भले ही हमारा दिल इसके लिए तैयार नहीं था। हमें तब भी लगता था कि
कपिल में अभी बहुत क्रिकेट बाकी है।
शायद यही फैंस की पहचान होती है कि वे जानते-समझते हुए भी सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाते और अपने पसंदीदा सितारे को समर्थन देते रहते हैं। महेंद्र सिंह धोनी के मामले में भी यही हुआ। धोनी अपना सर्वश्रेष्ठ दे चुके थे और भारत के लिए कई विश्व खिताब भी जीत चुके थे, लेकिन फैंस मानने को तैयार ही नहीं थे कि धोनी में अब वो बात नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। बहरहाल, मुझे तो अब भी यही लगता है कि काश कपिलदेव आज भी भारतीय टीम में खेल रहे होते। मुझे तो कई बार ऐसे सपने भी आए हैं जिनमें कपिलदेव भारतीय टीम में वापसी कर रहे हैं, लेकिन सपने तो सपने ही होते हैं। बीते हुए दिन लौटकर नहीं आते।
- लव कुमार सिंह
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