Tuesday 31 March 2020

कोरोना संकट में यदि सरकार हारेगी तो जनता जीतेगी नहीं

If a government loses in the Corona crisis, the public will not win.

#Corona #COVID #DelhiCoronaScare




दोस्तो, एक अंतर है। गौर करिये। 

जब चुनाव में कोई सरकार हारती है तो जनता जीतती है। 

जब किसी आंदोलन से कोई सरकार हारती है तो जनता जीतती है। 

लेकिन कोरोना संकट ऐसा है जिसमें यदि कोई सरकार हारेगी तो जनता जीतेगी नहीं।

इस संकट में या तो दोनों ही जीतेंगे या फिर दोनों ही हारेंगे। और इस बार कोई एक सरकार हमारे सामने नहीं है। यह सरकार नरेेंद्र मोदी की तो है ही, लेकिन यह सरकार अमरिंदर सिंह की भी है और योगी की भी है। 

यह सरकार केजरीवाल की भी है और नवीन पटनायक की भी है। यह ममता बनर्जी की भी है और चंद्रशेखर राव की भी है। 

यह नीतीश कुमार, जगनमोहन रेड्डी, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और पिनराई विजयन की भी है। 

इसलिए चुनाव में या आंदोलन में जो मन करे करना, लेकिन फिलहाल सरकारों को जिताने के सिवाय हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। सरकारें जीतेंगी, तभी जनता की जीत होगी। और सरकारें जनता के सहयोग से ही जीत सकेंगी।


जब आप अब साथ नहीं दे रहे तो जनवरी-फरवरी में कैसे देते?How do you support in January-February when you are not supporting now?


कोरोना के खिलाफ भारत की जंग के समानांतर एक बहस निरंतर चल रही है कि जनवरी-फरवरी में सरकार क्या कर रही थी। एक खेमा कोरोना संकट को हल करने में कोई योगदान देने के बजाय निरंतर इस बहस को चला रहा है। हालांकि इस खेमे की आवाज ऊंची इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश विशेषज्ञों ने और संस्थानों ने सरकार के प्रयासों की आलोचना नहीं की है, बल्कि सरकार को बेहद सक्रिय बताया है।

तो इसका फैसला कैसे होगा कि जनवरी-फरवरी में सरकार क्या कर रही थी? इसका फैसला अभी नहीं होगा। यह तब होगा जब कोरोना काल बीत जाएगा। सरकार ने चाहे जितना अच्छा किया हो या जितना बुरा किया हो, इसका फैसला इस बात से होगा कि भारत अंततः कोरोना से कैसे लड़ा और कोरोना से भारत ने कितनी जानें गंवाईं। चीन जितनी, इटली जितनी, इनसे भी ज्यादा या फिर इनसे बहुत कम।

सरकार से तो सवाल होंगे ही, होते रहेंगे, लेकिन युद्ध के बीच फैसला चाहने वाले लोगों को स्वयं भी तो अपने अंदर झांकना चाहिए कि फरवरी में वे क्या कर रहे थे। फरवरी के अंत और मार्च के शुरू तक तो वे इस संकट को सीएए के खिलाफ आंदोलन से ध्यान हटाने की कोशिश बता रहे थे। फरवरी में तो उनका यह नैरेटिव चल रहा था कि कोरोना से खतरनाक तो फलां-फलां बीमारियां हैं। कोरोना से क्या डरना। ममता बनर्जी के बयान देखिए। अन्य नेताओं के बयान देखिए। आरफा खानम तो कल 29 मार्च तक कह रही हैं कि एक आंदोलन (सीएए के खिलाफ) को प्राकृतिक आपदा से दबा दिया गया। कई बुद्धिजीवी अभी भी लॉकडाउन का विरोध कर रहे हैं। साथ में यह बात फैलाने से भी नहीं चूक रहे कि यह (लॉकडाउन) लंबा चलेगा। स्वयं राहुल गांधी लॉकडाउन को गलत बता रहे हैं। एक बहुत बड़ी आबादी तो 24 मार्च तक गंभीर नहीं थी और अब भी नहीं है। ..तो भाई जब आप अब साथ नहीं दे रहे तो जनवरी-फरवरी में कैसे साथ देते?

ये देश केवल नरेंद्र मोदी और उनके पिताजी का नहीं है। यह हम सबका है। यह लड़ाई हम सबको मिलकर लड़नी है।

- लव कुमार सिंह 

हमारी जनसंख्या ज्यादा है तो आज इसका फायदा भी देश को दिला दीजिए

If our population is more, then let the country also benefit from this


#PMCaresFunds #PMCARES #COVID #Corona #DelhiCoronaScare



501 रुपये में क्या दिखाने का है? लेकिन फिर भी दिखा रहा हूं। किसने क्या दिया, किसने नहीं दिया, किसने क्यों नहीं दिया, यह सब छोड़िये और अपने अंदर झांकिये। आम आदमी की ताकत को पहचानिये। हम जनसंख्या में ज्यादा हैं तो आज इसका फायदा भी देश को दिला दीजिए और दुनिया को दिखा दीजिए। आम निम्न मध्यम या मध्यम वर्ग के व्यक्ति के लिए किसी लंबी-चौड़ी राशि की जरूरत नहीं है। 100-200 रुपये से लेकर 500 तक जो भी आपकी सामर्थ्य बने, पीएम केयर फंड में दे डालिए।

मैंने 501 रुपये की मामूली सी रकम पीएम केयर फंड में दे दी है, बावजूद इसके कि जहां शिक्षण कार्य कर रहा था वहां से फरवरी का मेहनताना नहीं मिला है। जिनके लिए किताबें लिखी थीं, वहां से महीनों से भुगतान नहीं मिला है। जिनके लिए लेख लिखे थे, वहां से भी अभी दूर-दूर तक भुगतान के संकेत नहीं हैं। जिनके लिए अनुवाद किया था, वे भी न देने के मूड में लगते हैं।

बहुत ही मामूली रकम है, लेकिन मैंने इस मामूली रकम से किसी एक रकम को हजारों करोड़ की संभावित रकम बनाने का काम जरूर किया है। आपको भी यह बस इसीलिए बता रहा हूं जिससे आप भी अपनी मामूली या बेशकीमती राशि जोड़कर इस राशि को हैरान कर देने वाला मुद्रा भंडार बना सकते हैं।

अगर आप भी कुछ योगदान करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए फोटो को देखकर कर सकते हैं। यह बैंक शाखा में जाकर भी किया जा सकता है और ऑनलाइन भी।


फेसबुक पर भी एक मित्र का बहुत अच्छा सुझाव आया है। इस बार के नवरात्रों में कोरोना के चलते शायद ही कोई कंजक बैठा पाए। फिर क्यों न ऐसा करें कि आप 11/× 11= 121 रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष में कोरोना पीड़ित जरूरतमंदों के लिए जमा करवा दें। जरा सोचो 130 करोड़ की आबादी में से सिर्फ 2 करोड़ लोग भी यदि ऐसा करते हैं तो 121×2,00,00,000= 242,00,00,000/-(242करोड़) रुपये की मदद हो सकेगी। फिर इस खास कदम के बाद दूसरे वर्गों में होने वाले सामूहिक आयोजनों को रद्द कर उस पर होने वाले खर्च की राशि को भी प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करने की परंपरा शुरू करने की पहल की जानी चाहिए।
- लव कुमार सिंह

Thursday 26 March 2020

दोस्तो, सहमत हों तो पत्रकारिता में थोड़ा बदलाव करिए, वरना तो कोई बात ही नहीं है

If you agree, make some changes in journalism, otherwise there is no problem


#XijinpingVirus #Day3 #ShareTheLoad #Covid19usa #COVID2019 #journalism #media


......
मैं दिल्ली में एक बड़े चैनल या अखबार का रिपोर्टर हूं। मैं पिछले दिन या आज ही अपने चैनल या अखबार में दिल्ली के 200 से ज्यादा रैन बसेरों के पते/फोन नंबर, शासन-प्रशासन के अनेक हेल्पलाइन नंबर, गरीबों को मुफ्त में खाना खिलाने वाली समाजसेवी संस्थाओं के नंबर/पते आदि छापकर या प्रसारित करके आया हूं। या फिर इन सबके बारे में मुझे जानकारी है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रभावशाली अधिकारियों, पुलिस वालों और मंत्रियों के नंबर मेरे फोन में दर्ज हैं। जब मुझे जरूरत होती है या कुछ काम निकलवाना होता है तो मैं आसानी से उन तक अपनी पहुंच बना लेता हूं। मुझे देश-दुनिया की जानकारी है। मुझे पता है कि जो लोग शहरों से अपने गांव लौट रहे हैं, उन्हें गांव के बाहर ही रोका जा रहा है। उनका वहां विरोध हो रहा है और अलग रहने को कहा जा रहा है।

इन सब सूचनाओं से लैस मैं हाईवे पर अपनी गाड़ी में जा रहा हूं, जहां मैं देखता हूं कि देश की राजधानी से अनेक लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने गांवों के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं। मेरे मन में तुरंत स्टोरी का आइडिया कौंध जाता है।

एक महिला अपने पति के साथ मुंबई से दिल्ली आई और अब दिल्ली से नेपाल के लिए पैदल ही निकल पड़ी है। उसकी गोद में एक बच्चा है।
सारी जानकारी लेकर मैं उस महिला से पूछता/पूछती हूं- “तुम्हारे बच्चे को दूध मिला?”
महिला बोली- “नहीं।”
मैं फिर पूछता हूं- “अब तुम क्या करोगी?”
महिला निरुत्तर हो जाती है।
ऐसे ही सवाल मैं अन्य लोगों से भी पूछता हूं और इसके बाद कैमरे की तरफ मुंह करके और बड़े-बड़े आदर्श वाक्य बोलकर अपनी स्टोरी समाप्त कर देता हूं।

क्या मुझे ये सवाल पूछने के साथ ही उस महिला और ऐसे ही पैदल जाने वाले व्यक्तियों को यह नहीं बताना चाहिए था कि आप सब यहीं रुकिये। ये पैदल यात्रा आप सबको बहुत मुश्किल में डाल देगी। क्या मुझे उन्हें यह नहीं बताना चाहिए कि गांवों में भी अब बाहर से आने वालों का विरोध हो रहा है। क्या मुझे उन्हें दिल्ली के रैन बसेरों का पता नहीं बताना चाहिए जहां दोनों वक्त मुफ्त भोजन मिल रहा है। क्या मुझे अपनी जानकारियों का इस्तेमाल करके ऐसे लोगों के लिए आश्रयस्थल और भोजन-पानी का इंतजाम नहीं करना चाहिए था। क्या मुझे इन परेशान लोगों का इंतजाम करने के लिए उन अधिकारियों, मंत्रियों को फोन नहीं लगाना चाहिए था, जिन्हें मैं अपने काम के लिए दिन में कई बार फोन लगाता रहता हूं। इससे उन अधिकारियों और मंत्रियों की भी परीक्षा हो जाती कि वे इस संकट की घड़ी में कैसा रिस्पांस देते हैं। इससे स्टोरी भी मजबूत होती और लोगों की समस्या भी हल हो जाती। कुल मिलाकर मेरी स्टोरी तो हो गई, लेकिन मेरा ज्ञान किसी काम नहीं आया और न ही ऐसे लोगों की समस्या हल हुई। वे पैदल चलते हुए आगे निकल गए।

तो क्यों नहीं आगे से ऐसा किया जाए कि स्टोरी की स्टोरी हो जाए, सरकार की टांग भी खड़ी हो जाए और समस्या भी हल हो जाए।
- लव कुमार सिंह

Wednesday 25 March 2020

तो क्या 'कोरोना कांड' के बाद दुनिया में बम-बारूद के धमाके होंगे और बंदूकें गरजेंगी?

So, after the 'Corona Scandal', there will be bomb explosions and guns will roar in the world ?



कोरोना महामारी के बीच पूरी दुनिया में इस वक्त चीन की चर्चा है। स्थिति यह है कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस से परेशान है और इस बीच चीन फिर से उठकर खड़ा हो गया है। उसने न केवल बीमारी पर नियंत्रण पा लिया है, बल्कि वहां जनजीवन सामान्य हो रहा है।

दुनिया के अनेक कोनों से यह बात की जा रही है कि यह चीन द्वारा पैदा किया गया वायरस है और चीन को इसका इलाज भी पता है लेकिन बता नहीं रहा है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि चीन के मित्र रूस के राष्ट्रपति पुतिन कोरोना के मामले में इतने बेफिक्र क्यों हैं? चीन का मित्र उत्तर कोरिया कोरोना से अछूता क्यों है? खुद चीन की राजधानी और अन्य हिस्से कोरोना से अछूते कैसे रह गए? मांग उठ रही है कि इस मामले में चीन को दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन चीन को दंडित कौन करेगा?

अमेरिका में संपूर्ण लॉकडाउन के प्रति डोनाल्ड ट्रंप की हिचकिचाहट का सबसे बड़ा कारण वहां की नंबर वन अर्थव्यवस्था और चीन का फिर से उठ खड़ा होना ही था। भारत ने अर्थव्यवस्था की कीमत पर अपने नागरिकों को बचाने का फैसला किया है, जो भारत की प्रकृति के अनुरूप ही है, लेकिन अमेरिका के लिए यह फैसला करना आसान नहीं था। दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका देख रहा था कि चीन खुद घाव खाकर, लेकिन उससे ज्यादा घाव दुनिया को देकर फिर से उठ खड़ा हुआ है। ऐसे में अमेरिका अपनी नंबर वन अर्थव्यवस्था को दांव पर लगाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। स्थिति यह हो गई कि इटली, ईरान और अन्य देशों की मदद चीन कर रहा था लेकिन अमेरिका इसमें असमर्थ था।

चीन मेडिकल उपकरणों, मास्क आदि का सबसे बड़ा निर्माता है। बीमारी भी उसी के यहां से निकली है, इसलिए सारी दुनिया को न केवल उपकरणों की जरूरत है बल्कि कोरोना के डाटा की भी जरूरत है। यानी चीन की अर्थव्यवस्था फिर से उठ खड़ी होगी। आसार ऐसे लग रहे हैं कि जैसे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन को पीछे करके अमेरिका दुनिया का दारोगा बन गया था, उसी प्रकार कोरोना संकट हल होने के बाद चीन यह रुतबा पा लेगा। 

लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया का दारोगा कैसे बना? क्या बिना भीषण युद्ध और परमाणु बम के हमले के यह संभव हो पाया था? जी नहीं। तो फिर यदि कोरोना संकट के दौरान या इसके बीतने के बाद अमेरिका को यह लगेगा कि दुनिया में उसकी साख बुरी तरह मिट्टी में मिल गई है तो क्या वह चुप बैठेगा? क्या वह अपने असंख्य विध्वंसक हथियारों को खामोश रहने देगा? ये हथियार उसने ऐसे ही किसी समय के लिए तो बनाए हैं। कोरोना से अमेरिका को भारी जनहानि हो चुकी है। अगर यह और भयंकर रूप लेती है तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन को सबक सिखाने के लिए अमेरिका हरसंभव कोशिश करेगा। फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन जैसे यूरोपीय देश उसके साथ होंगे। यदि ऐसा होगा तो रूस, चीन के साथ खड़ा दिखाई देगा। तो क्या 'कोरोना कांड' के बाद दुनिया में बम-बारूद के धमाके होंगे और बंदूकें गरजेंगी?

लेकिन फिर ये भी लगता है कि क्या चीन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई इतनी आसान होगी? चीन कोई दूसरे विश्व युद्ध वाला जापान तो है नहीं। वह भी परमाणु क्षमता वाला देश है। रूस उसका साथ देगा ही। क्या यूरोप उस चीन के खिलाफ खड़ा होगा, जो आज स्वयं चीन से मदद ले रहा है? क्या भारत जैसे विकाशसील देश चीन के खिलाफ खड़े हो पाएंगे जो स्वयं अपनी अर्थव्यवस्था को उबारने में जुटे होंगे? अमेरिका निश्चित ही अकेला पड़ जाएगा और वह भी तभी कुछ कर सकेगा जब उसकी अर्थव्यवस्था नंबर वन बनी रहेगी। तो चीन दंडित होगा या पुरस्कृत, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तय है कि कोरोना काल बीतने के बाद दुनिया बहुत बदली हुई नजर आएगी। या तो हथियार चलेंगे और यदि हथियार नहीं चले तो आर्थिक हथियार चलेंगे।

- लव कुमार सिंह





#Coronavirus #Lockdown #ChineseWuhanVirus #CoronavirusOutbreak #Coronafighters #CoronaVillains

Tuesday 17 March 2020

हर संकट के हल का, इक इलाज सुनिये

To solve every crisis, Hear a way

#KeysToStayAwayFromCorona #CoronavirusOutbreak #COVID2019 #ChineseVirus #Corona #CoronaVirusUpdate #courage #selfconfidence

.........

हर संकट के हल का
इक इलाज सुनिये
हिम्मत की एक पुड़िया
बस अपने पास रखिये
और हौसले के पानी से
रोज लेते रहिये।
.......

कमम से रामबाण है ये
सस्ता-सुलभ भी भइये
गर यकीं नहीं है आता
तो डॉक्टर की बात सुनिये
दवा से ठीक वे हुए
जो हिम्मत के बने बलिये।
........

विल पावर या इच्छाशक्ति
चाहे जिस नाम से समझिये
येन केन प्रकारेण
इन्हें खुद में पैदा करिये
ये हैं तो आप जिंदा
वरना मिट्टी ही समझिये।
........

देखा है ना आत्मविश्वास?
उसे इन्हीं का भ्राता कहिये
बाहर से नहीं लाना
अंदर से भरते रहिये
फिर सब कुछ संभव है
डटे मोर्चे पर रहिये।
.........

...तो जो कर रहे हैं आप
वो सब भी करते रहिये
पर हिम्मत की एक पुड़िया
अपने पास रखिये
और हौसले के पानी से
रोज लेते रहिये।

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-लव कुमार सिंह

कोरोना वायरस को यह नाम क्यों मिला? क्वारंटाइन क्या है?

Why did the corona virus get this name? What is quarantine?

कोरोना से जुड़ी शब्दावली

#CoronavirusOutbreak #COVID2019 #ChineseVirus #Corona #CoronaVirusUpdate

क्वारंटाइन क्या है?
What is quarantine?


क्वारंटाइन लैटिन भाषा का शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ चालीस (40) है। पुराने समय में यह शब्द चालीस दिनों के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था, जबकि अब यह कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों को आइसोलेशन में रखने के लिए प्रयोग किया जा रहा है। 

पुराने समय में जिन जहाजों में किसी यात्री के रोगी होने का पता चलता था या उस जहाज पर लदे माल में रोग प्रसारक कीटाणु होने का संदेह होता था तो उस जहाज को बंदरगाह पर नहीं आने दिया जाता था। ऐसे में उस जहाज को बंदरगाह से दूर 40 दिन तक अलग ठहरना पड़ता था। जहाज के 40 दिन तक अलग ठहरने की यह व्यवस्था ही क्वारंटाइन कही जाती थी।

ग्रेट ब्रिटेन में 17वीं शताब्दी में प्लेग को रोकने के लिए क्वारंटाइन नाम की इस व्यवस्था का प्रयोग किया गया। अब कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के दौरान एक बार फिर से रोगियों को स्वस्थ व्यक्ति से अलग-थलग रखने की व्यवस्था की जा रही है और इसके लिए लिए आइसोलेशन के साथ ही क्वारंटाइन शब्द का प्रयोग किया जा रहा है।

कोरोना वायरस को यह नाम क्यों मिला?
Why did the corona virus get this name?



आप यह चित्र देख रहे हैं ना? यह सार्स-कोव-2 (सेवियर एक्यूट रेस्पाइरेटरी सिंड्रोम-कोरोना वायरस-2) की माइक्रोस्कोपिक इमेज है। आप देख रहे हैं कि  वायरस कणों के बाहरी किनारे पर निकली स्पाइक्स (कीलें) एक मुकुट जैसा आभास देती है। इस चित्र को देखकर सूर्य जैसा आभास भी होता है। इसीलिए इस वायरस को कोरोना नाम दिया गया। अंग्रेजी में कोरोना का शाब्दिक अर्थ होता है- चमकदार शरीर के चारों ओर प्रकाश का एक चक्र। कोरोना का अर्थ  aureole भी है। यानी सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी क्षेत्र, जो सूर्यग्रहण के दौरान हल्के (मद्धम) प्रभामंडल के रूप में दिखाई देता है।

कोरोना वायरस के अन्य नाम
Other names for Corona virus

  • 2019 एन कोव एक्यूट रेसपाइरेटरी डिजीज
  • नोवल कोरोना वायरस निमोनिया
  • वुहान कोरोनावायरस
  • वुहान वायरस
  • वुहान निमोनिया
  • वुहान फ्लू
  • सेवियर एक्यूट रेस्पारेटरी सिंड्रोम (सार्स)- कोव-2
  • कुंग फ्लू
- लव कुमार सिंह

कोरोना का बड़ा साइड इफेक्ट तनाव भी है


Corona's major side effect is stress


#covidindia #COVID2019 #COVID #KeysToStayAwayFromCorona #CoronavirusOutbreak #Coronafighters #StayAtHomeChallenge



कोरोना वायरस के खौफ में टेलीविजन न्यूज चैनल अच्छी-खासी वृद्धि कर रहे हैं। अब न तो किसी चुनाव का नतीजा आ रहा है, न कोई बड़ा खेल आयोजन हो रहा है और न ही कोई दंगा हो रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद न्यूज चैनल के एंकर पुराने अंदाज में ही खबरें पेश कर रहे हैं। टीवी पर खबरों के प्रस्तुतिकरण से लोग और डर रहे हैं। इसीलिए कल यानी 17 मार्च को मैंने अपने फेसबुक पेज पर यह लिख डाला-

फेसबुक पर सक्रिय टीवी न्यूज मीडिया के बंधुओं से अनुरोध है कि कृपया अपने दफ्तर में होने वाली बैठकों में हमारा यह अनुरोध पहुंचा दें कि कोरोना वायरस से उपजे हालातों पर नियंत्रण होने तक एंकर खबरों को चुनाव परिणाम के अंदाज में देना बंद कर दें। कोरोना वायरस का संक्रमण जब होगा, तब होगा, लेकिन इससे पहले टीवी पर खबरें सुनकर लोगों में तनाव बढ़ रहा है। जब सामान्य रूप से अपनी बात कहता हुआ एंकर अचानक आवाज में अतिरिक्त जोश लाकर कहता/कहती है- "और कोरोना वायरस को लेकर बहुत बड़ी खबर नोएडा से आ रही है कि..." तो कई सुनने वालों को दिल बैठ जा रहा है। कई न्यूज चैनल अपने कार्यक्रम में कोरोना से संबंधित स्टोरी के साथ बैकग्राउंड में सनसनी महसूस कराने वाला या डराने वाला म्यूजिक चला रहे हैं। प्रस्तुतिकरण में थोड़ा बदलाव हो जाए तो बेहतर होगा। लोगों को डराने के बजाय उनकी हिम्मत बढ़ाई जाए तो बेहतर होगा। देश-विदेश से खबरें आ रही हैं कि कोरोना का खौफ लोगों में तनाव बढ़ा रहा है। उनका किसी काम में मन नहीं लग रहा है।


इस पोस्ट पर 30 से ज्यादा प्रतिक्रियाएं आईं, जिनमें ज्यादातर लोगों ने यह माना कि कोरोना की सनसनीखेज खबरें तनाव बढ़ाने का काम कर रही हैं।

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सलेक्टेड आइसोलेशन क्यों? Why Selected Isolation?


एक चीज और समझ में नहीं आ रही है कि विदेश से जिन लोगों को सरकार स्वयं ला रही है, उन्हें तो 14 दिन तक आइसोलेशन में रख रही है, लेकिन जो लोग खुद आ रहे हैं, उन्हें बस माथे पर पिचकारी मारकर (थर्मल स्क्रीनिंग) छोड़ दे रही है। जैसे आज ही पता चला कि मेरठ में विदेश से आए 131 यात्रियों की नई सूची आई है। अब प्रशासन इन्हें ढूंढ रहा है। इन्हें ढूंढने की कसरत करने के बजाय यदि इन्हें हवाई अड्डे से ही 14 दिन की आइसोलेशन में रखा जाता तो हालात और भी ज्यादा नियंत्रण में होते। इजराइल ने अपने यहां ऐसा ही किया है। जो भी बाहर से आ रहा है, वह 14 दिन के लिए आइसोलेशन में जा रहा है।

- लव कुमार सिंह

Monday 16 March 2020

न्यूटन ने लॉकडाउन के दौरान ही गति के नियम खोजे थे, इसलिए आप भी खिन्नता के बजाय इस समय को रचनात्मकता के साथ बिताएं

Newton discovered the laws of motion during lockdown so you too spend this time with creativity instead of frustration

#CoronavirusOutbreak #Coronafighters #chinesevirus #StayAtHomeChallenge



वैज्ञानिक न्यूटन द्वारा पेड़ से गिरते सेब को देखकर गुरुत्वाकर्षण और गति के नियम बनाने के बारे में तो पढ़ा था लेकिन यह नहीं पढ़ा था कि ये नियम उन्होंने किन परिस्थितियों में बनाए थे। अब जबकि कोरोना का खौफ दुनिया में छाया हुआ है और लोग घरों में कैद होकर परेशान हो रहे हैं तो पता चला है कि न्यूटन भी एक समय ऐसी ही परिस्थितियों से घिरे थे लेकिन उन्होंने उस समय को भी सकारात्मक तरीके से लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे दुनिया को विज्ञान के ऐसे नियम देने में सफल हुए जो आधुनिक दुनिया के संचालन में मदद कर रहे हैं।

दरअसल साल 1665 में लंदन में प्लेग की महामारी फैली थी और लंदन में इसी तरह का लॉकडाउन हो गया था जैसा कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण पहले चीन और फिर इटली में देखने को मिला है। लंदन का कैंब्रिज विश्वविद्यालय भी बंद हो गया था। इससे वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन को भी घर पर बैठना पड़ गया था। लेकिन न्यूटन ने घर पर मिले इस अतिरिक्त समय का उपयोग स्वयं का गुस्सा बढ़ाने या खिन्न होने के लिए नहीं किया बल्कि इस दौरान भी वह अपने को रचनात्मक रूप से सक्रिय किए रखा।

इसका नतीजा यह रहा कि इसी लॉकडाउन की अवधि के दौरान न्यूटन कैलकुलस और प्रकाशमिति के नियमों की खोज करने में सफल रहे। इसी दौरान जब वह अपने बगीचे में बैठे थे तो  उन्होंने पेड़ से गिरते हुए सेब को देखा और इससे उन्हें गुरुत्वाकर्षण को समझने तथा गति के नियम बनाने में मदद मिली।

इन्हीं तथ्यों को फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने 16 मार्च 2020 को सोशल मीडिया पर साझा किया और लिखा कि घर पर बैठने के इस समय में आपके पास दो विकल्प हैं। एक- अपने दिमाग का उपयोग करें और दूसरा- अपना आपा खोएं। शिल्पा का कहना है कि यह समय सहज रचनाओं का समय है।

आप भी शिल्पा शेट्टी की इस बात को अमल में लाएं और घर पर बैठकर खिन्न होने के बजाय इस समय को सकारात्मकता के साथ बिताएं। घर पर ही कुछ नया करें, रचें।

जर्मनी में फंसे विश्वनाथन आनंद कैसे बिता रहे हैं समय
How is Viswanathan Anand spending time in Germany?

भारत के दिग्गत शतंरज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद को कोरोना वायरस के खौफ के बीच जर्मनी में रुकना पड़ा है। जर्मनी में उन्होंने अपने को सेल्फ आइसोलेशन में रखा हुआ है। उनकी पत्नी और बच्चे चेन्नई में हैं। 50 वर्षीय आनंद को जीवन में पहली बार इस तरह अलग-थलग रहना पड़ रहा है। उन्होंने स्वयं कहा है कि यह उनक लिए बहुत ही असामान्य बात है। लेकिन वह पूरी तरह सकारात्मक हैं। वह अपनी पत्नी और बच्चों से वीडियो चैट करते हैं। साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं। इंटरनेट पर दोस्तों से बात करते हैं और रोजाना लंबी सैर पर निकल जाते हैं। इस दौरान वह लोगों के निकट नहीं जाते हैं। वे मार्च के अंत तक भारत लौटेंगे।

दीपिका पादुकोण इस खाली मिले समय में अपनी अलमारी की सफाई कर रही हैं। कई फिल्मी सितारे अपने परिवार के साथ समय बिता रहे हैं जो सामान्य दिनों में बिल्कुल भी संभव नहीं हो पाता था। आप भी तो अनेक बार यह चाहते थे कि काश काम से छुट्टी मिल जाती और घर पर शांति के साथ कुछ समय बिताया जाता। अब जब आपकी यह ख्वाहिश पूरी हो रही है तो परेशान होने के बजाय इसका लाभ उठाएं।
- लव कुमार सिंह 
  

Sunday 15 March 2020

यो-यो हनी सिंह की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी

Yo-Yo Honey Singh's tail remained crooked

नए गाने 'मखना' में भी औरतखोर बनने से बाज नहीं आए

vulgarity in Honey Singh's songs

Yo Yo Honey Singh 'Makhna' song



#yoyohoneysingh #BollywoodSong #rapper #SONGS



पंजाब के एक गायक हैं यो यो हनी सिंह। उनके ‘मैं हूं बलात्कारी और अन्य बेहद अश्लील और हैरतंगेज बोलों वाले गानों को सुनकर एक समय पंजाब हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई थी कि ऐसे गायक पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

हनी सिंह के गाने लड़की या औरत को बिस्तर के अलावा कहीं और देखने को राजी नहीं होते। वे अपने गानों के खुद ही लेखक भी होते हैं। हनी सिंह मना करते हैं कि मैं हूं बलात्कारी’  उनका नहीं हैलेकिन उन्होंने स्वीकार किया है कि वे पहले गंदे गाने गाते थेलेकिन अब वे साफ-सुथरे गाने गाते हैं।

एक समय हनी सिंह की लुटिया इसी प्रकार के बेहद अश्लील गानों और खुद की ही अन्य कारस्तानियों से लगभग डूब चुकी थीलेकिन केवल नोटों पर नजर गड़ाए रहने वाले बॉलीवुड वालों ने उन्हें न्योता दे दिया। अक्षय कुमार ने न्योता दिया। अन्य कई बड़े निर्माता-निर्देशकों ने न्योता दिया और डूबते को तिनके का सहारा मिल गया।

हनी सिंह बीच-बीच में डिप्रेशन में चले जाते हैं। उस दौरान गानों की दुनिया अश्लीलता रूपी डायन से थोड़ी बची रहती है। डिप्रेशन से निकलकर हनी सिंह ने अब एक बार फिर ‘मखना’ नामक गाने से वापसी की है। इस गाने के ट्रेलर को इंटरनेट पर करोड़ों लोग देख चुके हैं, लेकिन जहां तक गाने के बोलों का सवाल है तो हनी सिंह बदलने को तैयार नहीं दिखाई देते। उनकी अश्लीलता रूपी पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी ही है। वह सीधा होने का नाम ही नहीं लेती।

हनी सिंह के नए गाने ‘मखना’ के कुछ बोलों पर नजर डालते हैं-

मैं और मेरे कलाकार
सब बैठ के करें चिल
पर मैं हूं वूमेनाइजर
मुझे अकेले में मत मिल।

सिलिकॉन वाली लड़कियों को मैं पकड़ता नहीं
ब्राउन गर्ल से मेरा दिल भरता नहीं
गोरी गोरी स्किन के लिए मैं मरता नहीं
क्यूंकि मैं हूं शेर घास चरता नहीं।

तू है पतली सी नारी
पर मेरा वेट हो गया थोड़ा भारी
तू है जानती मैं हूं शिकारी
तुझे खा जाऊंगा सारी की सारी।

- लव कुमार सिंह

Saturday 14 March 2020

पैरों में आग सी निकलती महसूस होती है तो इन रोगों की संभावना हो सकती है


If there is a feeling of fire going on in the legs, then these diseases are likely to occur


बहुत से लोगों को उम्र बढ़ने के साथ पैरों में आग सी निकलती महसूस होती है। इसी के साथ पैर लाल भी हो जाते हैं, उनमें सूजन भी आ सकती है और जलन होने के कारण पैरों का तापमान भी बढ़ जाता है।

यदि ऐसी स्थिति लगातार रहती है तो चिकित्सकों के अनुसार ऐसे लक्षण निम्नलिखित बीमारियों के संकेत हो सकते हैं।

नसों में कमजोरी आना

पैरों में आग सी निकलने (Feeling of fire in the legs) पर ज्यादा संभावना इस बात की होती है कि उस व्यक्ति की नसों अर्थात तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) में कमजोरी (Nerve impairment) आ गई है।

मधुमेह या डायबिटीज

यदि किसी व्यक्ति को डायबिटीज (Diabetes) की बीमारी हो जाती है तो उसे भी अपने पैरों में जलन और आग सी निकलती महूसस होती है। शरीर में ब्लड शुगर (Blood Sugar) के कमजोर नियंत्रण के कारण ऐसा होता है।

नसों को जरूरी खुराक नहीं मिलना

हमारे शरीर की नसों की सेहत के लिए विटामिन बी-12 (Vitamin B-12) जिम्मेदार होता  है। यदि शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी-12 नहीं मिल पाता है तो भी पैरों में आग जैसी निकलना महसूस हो सकता है। तंत्रिका तंत्र की मजबूती के अलावा विटामिन दिल, त्वचा, खून की कमी और कई प्रकार के कैंसर रोगों से भी शरीर का बचाव करता है। विटामिन बी-12 दूध, बादाम, दही, सोयाबीन, सोया दूध,  अंडा, पनीर, मछली और चिकन में प्रमुख रूप से पाया जाता है।

थायरॉयड हार्मोन की कमी

पैरों में जलन का कारण शरीर में थायरॉयड हार्मोन की कमी भी हो सकता है। थायरॉयड हार्मोन की कमी को हाइपोथायराडिज्म (Hypothyroidism) कहा जाता है। इस हार्मोन की कमी से शरीर की सभी क्रियाएं धीमी हो जाती हैं। इससे पैरों तक खून का सामान्य प्रवाह नहीं हो पाता है। पानी जमा होने सूजन आ जाती है और नसों पर दबाव पड़ने से पैरों में दर्द व जलन होती है।

उच्च रक्तचाप

पैरों में जलन का होना उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) का भी संकेत हो सकता है। उच्च रक्तचाप के कारण खून का प्रवाह सुचारू तरीके से नहीं हो पाता है। इससे त्वचा का रंग बदल सकता है और पैरों की पल्स रेट में कमी आ सकती है, जिस कारण पैरों में जलन महसूस होती है।

लव कुमार सिंह

Thursday 12 March 2020

कोरोना पर कविता

Poem on Corona Virus



कोरोना जा..जा..जा / कलमुंहे जा
हमें ना भाए तेरा चेहरा / कलमुंहे जा.....2

जानलेवा /तेरी फितरत
कातिलाना / तेरी सेहत
प्रलयकारी /तेरी शोहबत
सत्यानाशी / तेरी उल्फत
पास आके /मौत लाके 
इस दुनिया को/ अब तू ना यूं डरा
कोरोना जा..जा..जा /कलमुंहे जा
हमें ना भाए तेरा चेहरा /कलमुंहे जा।
......
कोई भी कार्ड / ना था छपा
निमंत्रण भी / ना था बंटा
कोई आह्वान / ना था हुआ
इशारा भी / ना था किया
फिर क्यूं आया / बिन बुलाया
जैसे आया / वैसे ही निकल जा
कोरोना जा..जा..जा /कलमुंहे जा
हमें ना भाए तेरा चेहरा /कलमुंहे जा।
.......
स्वाइन फ्लू / हमने झेला
बर्ड फ्लू / हमनें पाला
वायरल फीवर / रोज देखा
कोल्ड-कफ को / गले डाला
इतने सारे / शत्रु हमारे
कोटा अब ना / किसी  बैरी का बचा
कोरोना जा..जा..जा /कलमुंहे जा
हमें ना भाए तेरा चेहरा /कलमुंहे जा।
........
प्याज-तुलसी / खा रहे हैं
हाथ नियमित / धो रहे हैं
बूंदे होम्यो / ले रहे हैं
नुस्खे देशी / पी रहे हैं
डर जा भाई / ओ कसाई
सबके मुंहे से हैं / निकले बद्दुआ
कोरोना जा..जा..जा /कलमुंहे जा
हमें ना भाए तेरा चेहरा /कलमुंहे जा।
.......
कहर जो तू / ढा रहा है
जान जो तू / खा रहा है
जल्दी टीका / आ रहा है
वक्त तेरा / जा रहा है
ले के बिस्तर / रख के सिर पर
अब नौ दो ग्यारह / जल्दी से हो जा
कोरोना जा..जा..जा /कलमुंहे जा
हमें ना भाए तेरा चेहरा /कलमुंहे जा।

यह कविता सुनने में और ज्यादा अच्छी लगेगी। इसे आप नीचे दिए लिंक पर जाकर सुन सकते हैं-
- लव कुमार सिंह



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