Wednesday 4 March 2020

क्या दंगे की शुरुआत करने वालों को अदालतों के बाहर कभी दोषी नहीं कहा जाएगा?

Will the initiators of the riots never be called convicted outside the courts?





पहले छुटकू ने शांत बैठे बड़कू पर हाथ चला दिया और भाग लिया। चोट से तिलमिलाया बड़कू पीछे भागा तो छुटकू ने शोर मचा दिया। पापा-मम्मी दौड़ते हुए आए। क्या देखते हैं कि बड़कू, छुटकू के कान उमेठ रहा है। छुटकू रो रहा है। बस फिर क्या था, बड़कू को मार तो पड़ी ही, साथ में झगड़ा करने के लिए बुरी तरह फटकारा भी गया।

झगड़ना हमेशा बुरा कहा गया है, बुरा कहा जाना चाहिए। इसमें किसी का भला नहीं है, लेकिन अक्सर यही देखा गया है कि झगड़े की शुरुआत करने वाले को भुला दिया जाता है और उस व्यक्ति को ज्यादा दोष मिलता है जिसने बाद में एक्शन लिया होता है या वह घटना हमारे जहन में ज्यादा रहती है जो बाद में घटित होती है।

हमें शुरू की चीज याद रहती ही नहीं। अब देखिए ना, कहीं भी शरजील इमाम के भारत को तोड़ने वाले बयान, सीएए विरोध के दौरान राजनीतिक नेताओं व मौलानाओं द्वारा कही गईं बेहद भड़काऊ व आपत्तिजनक बातें, प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को मारने की बातें, देश के खिलाफ की गई बातें आदि किसी को याद नहीं हैं। अब हमें केवल अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा याद हैं। खासकर कपिल मिश्रा। हमारी स्मृतियां इतनी कमजोर हो गई हैं कि कई लोग तो दिल्ली दंगे से पहले तक सीएए के विरोध में हुए आंदोलन को भी शांतिपूर्ण आंदोलन बता रहे हैं जबकि विभिन्न प्रदेशों में सीएए विरोध के दौरान उपद्रव में 25 से ज्यादा लोगों की जान गई थी और सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया था।

इसी तरह अधिकांश लोग गुजरात के गोधरा कांड (#GodhraRiots) की बात या तो कम करते हैं या करते ही नहीं, लेकिन इस कांड के बाद हुए गुजरात दंगों (#GujaratRiots2002) की बात अवश्य करते हैं। निश्चित ही बाद के दंगों में जान-माल का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ और इसकी निंदा होनी ही चाहिए, लेकिन यदि ट्रेन में आग लगाकर 50 से ज्यादा कारसेवकों को जिंदा न जलाया गया होता तो गुजरात के दंगे भी नहीं होते। आप एक पक्ष की तरफ लाशों के ढेर लगा दें और फिर उसके तुरंत बाद शांति की उम्मीद करें तो यह हकीकत से मुंह चुराने जैसी बात होगी। 

हालांकि कानून यह सब नहीं देखता और वह सभी दोषियों को सजा देता है, लेकिन राजनीति के कारण कुछ लोग इसे स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होते। राजनीति के ही कारण बहुत से लोग गोधरा कांड को तत्कालीन गुजरात सरकार की साजिश कहते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि यदि ऐसा होता तो गोधरा के दर्जनों मुस्लिमों को अदालत से मृत्युदंड और उम्र कैद की सजा नहीं मिलती।

गुजरात के दंगों से पहले देश में हुए ज्यादातर दंगों में यही रवैया देखा गया। दिल्ली के दंगों (#DelhiRiots) में भी यही हो रहा है। किसने शुरूआत की, इस पर कोई बात नहीं कर रहा है। किसने पुलिस वालों को मारा? किसने उन पर तेजाब फेंका? किसने सड़क पर पुलिस पर पिस्टल तानी? किसने हिंसा की शुरुआत की? किसके यहां दंगों का पूरा साजो-सामान मौजूद था? किसने दंगों की तैयारी पहले से करके रखी थी? इन सारे सवालों को कुछ लोग भूल जाना चाहते हैं। उन्हें बस इससे मतलब है कि प्रतिक्रिया में दूसरे पक्ष ने क्या किया और क्यों किया। इसके बजाय होना यह चाहिए कि हम हर तरफ के दंगाइयों की निंदा करें और उन्हें दंड दिलाने में सहयोग करें। 

दंगे की शुरुआत करने वालों की उपेक्षा करने के इसी रवैये के कारण गुजरात के दंगों की तरह ही दिल्ली के दंगों की भी हमें एकतरफा रिपोर्टिंग देखने को मिल रही है। लेकिन 2002 और 2020 में एक अंतर है। अब सोशल मीडिया (#SocialMedia) मजबूत रूप में हमारे सामने उपस्थित है, इसलिए जो भी दंगे की एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहा है, उसकी कलई तुरंत खुल रही है। फिर चाहे वह किसी भी पक्ष का मीडिया हो।

एनडीटीवी (#NDTV) पर रवीश कुमार (#RavishKumar) ने पुलिस पर पिस्टल तानने वाले शाहरूख को अनुराग मिश्रा साबित करना चाहा लेकिन सोशल मीडिया के कारण वे ऐसा करने में विफल रहे। ‘वायर’ (#Wire) और ‘एनडीटीवी’ ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में राजधानी स्कूल और उसके निकट ही स्थित दूसरे स्कूल के मालिकों को मुस्लिम बताया लेकिन तुरंत ही खुलासा हो गया कि राजधानी स्कूल, जिसकी छत पर बड़ी गुलेल फिट मिली, उसका मालिक मुस्लिम है, जबकि दूसरे स्कूल का मालिक हिंदू है। राजधानी स्कूल में हल्की तोड़फोड़ व आगजनी हुई है जबकि दूसरे स्कूल में भारी नुकसान हुआ है, जबकि वायर व एनडीटीवी ने इसे एकतरफा रंग दे दिया।

पत्रकारों में भी विदेशी मीडिया के लिए लिखने वाले भारतीय पत्रकार एकतरफा रिपोर्टिंग का काम खुलेआम कर रहे हैं। उन्हें इसके लिए बहुत अच्छा मेहनताना मिल रहा है। ‘पायनियर’ के एक वरिष्ठ पत्रकार ने खुलासा किया है कि कैसे उनके पास एक विदेशी मीडिया संस्थान का फोन आया और उन्हें एक लाख 10 हजार रुपये में दिल्ली दंगों पर एक खबर लिखने के लिए कहा गया। साथ ही खबर का एंगल भी बताया गया। एंगल यही था कि उन्हें अपनी खबर में यह साबित करना था कि इन दंगों में अल्पसंख्यकों ने कुछ नहीं किया है और बहुसंख्यकों ने अल्पसंख्यकों पर भारी अत्याचार किया है।

लेकिन अनेक भारतीय पत्रकार ऐसे ऑफर को स्वीकार कर रहे हैं। तभी तो सीएनएन पर फऱीद जकारिया के कार्यक्रम में भारतीय पत्रकार राणा अयूब ने खुल्लमखुल्ला दिल्ली दंगों में केवल मुसलमानों के नुकसान की बात कही। इसी प्रकार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भारतीय पत्रकार के हवाले से ही लिख दिया कि आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या हिंदू भीड़ ने की है।

तो क्या दंगों की शुरुआत करने वाला अदालतों के बाहर कभी दोषी नहीं कहा जाएगा? क्या एक पक्ष की जान जाना सामान्य बात होगी और दूसरे पक्ष की जान हंगामे का कारण बनेगी? क्या हमें हर हत्या पर दुखी नहीं होना चाहिए? क्या हमें हर हत्यारे को दंड की मांग नहीं करनी चाहिए? जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, तब तक अमन की बात करना या अमन की उम्मीद करना बेमानी होगा।

आतंकी हमले का खतरा


स्तंभकार और पटकथाकार अद्वैता काला लिखती हैं कि कुछ भारतीय पत्रकारों के साथ मिलकर पश्चिमी मीडिया जिस प्रकार दिल्ली के दंगों को मुस्लिम विरोधी दंगों के रूप में चित्रित कर रहा है उससे देश पर आतंकी हमले का खतरा बढ़ गया है। अद्वैता काला ने आईएस (इस्लामिक स्टेट) पर लिखने वाली पत्रकार रुक्मिणी कलिमाछी की रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि पश्चिमी मीडिया के इस दुष्प्रचार भरे विमर्श को आईएस ने 'विलायत-ए-हिंद' (भारत) में जवाबी हिंसा को जायज ठहराने वाले पोस्टर का हिस्सा बनाया है। आईएस ने अपने खलीफाई शासन में भारत को 'विलायत-ए-हिंद' नाम ही दिया है। इससे यह स्पष्ट है कि कुछ भारतीय पत्रकारों की मदद से पश्चिमी मीडिया की एकतरफा कवरेज ने भारत को आतंकी संगठनों के निशाने पर ला दिया है। अगर ऐसा होता है तो यह देश की सुरक्षा के साथ-साथ समुदायों के बीच सौहार्द की भावना के लिए सही नहीं होगा।

Latest Development


इकॉनोमिक टाइम्स के अनुसार जुलाई 2020 में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‘Analytical Support and Sanctions Monitoring Team’ की 26वीं रिपोर्ट के अनुसार केरल और कर्नाटक में आईएसआईएस (#ISIS) के अनेक आतंकी सक्रिय हैं। साथ ही इस रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अलकायदा की भारतीय उपमहाद्वीपीय यूनिट एक्यूआईएस भी इस क्षेत्र में हमले की साजिश रच रही है। ये संगठन तालिबान के बैनर तले सक्रिय है। उल्लेखनीय है कि Analytical Support and Sanctions Monitoring Team को आईएसआईएस समेत अन्य आतंकी संगठनों पर नजर रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बनाया गया है। रिपोर्ट मे खुलासा किया गया है कि ISIL की भारतीय यूनिट ‘हिन्दू विलायाह’ के भी कम से कम 180 से लेकर 200 तक आतंकी सक्रिय हैं। 

- लव कुमार सिंह


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