Wednesday 25 March 2020

तो क्या 'कोरोना कांड' के बाद दुनिया में बम-बारूद के धमाके होंगे और बंदूकें गरजेंगी?

So, after the 'Corona Scandal', there will be bomb explosions and guns will roar in the world ?



कोरोना महामारी के बीच पूरी दुनिया में इस वक्त चीन की चर्चा है। स्थिति यह है कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस से परेशान है और इस बीच चीन फिर से उठकर खड़ा हो गया है। उसने न केवल बीमारी पर नियंत्रण पा लिया है, बल्कि वहां जनजीवन सामान्य हो रहा है।

दुनिया के अनेक कोनों से यह बात की जा रही है कि यह चीन द्वारा पैदा किया गया वायरस है और चीन को इसका इलाज भी पता है लेकिन बता नहीं रहा है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि चीन के मित्र रूस के राष्ट्रपति पुतिन कोरोना के मामले में इतने बेफिक्र क्यों हैं? चीन का मित्र उत्तर कोरिया कोरोना से अछूता क्यों है? खुद चीन की राजधानी और अन्य हिस्से कोरोना से अछूते कैसे रह गए? मांग उठ रही है कि इस मामले में चीन को दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन चीन को दंडित कौन करेगा?

अमेरिका में संपूर्ण लॉकडाउन के प्रति डोनाल्ड ट्रंप की हिचकिचाहट का सबसे बड़ा कारण वहां की नंबर वन अर्थव्यवस्था और चीन का फिर से उठ खड़ा होना ही था। भारत ने अर्थव्यवस्था की कीमत पर अपने नागरिकों को बचाने का फैसला किया है, जो भारत की प्रकृति के अनुरूप ही है, लेकिन अमेरिका के लिए यह फैसला करना आसान नहीं था। दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका देख रहा था कि चीन खुद घाव खाकर, लेकिन उससे ज्यादा घाव दुनिया को देकर फिर से उठ खड़ा हुआ है। ऐसे में अमेरिका अपनी नंबर वन अर्थव्यवस्था को दांव पर लगाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। स्थिति यह हो गई कि इटली, ईरान और अन्य देशों की मदद चीन कर रहा था लेकिन अमेरिका इसमें असमर्थ था।

चीन मेडिकल उपकरणों, मास्क आदि का सबसे बड़ा निर्माता है। बीमारी भी उसी के यहां से निकली है, इसलिए सारी दुनिया को न केवल उपकरणों की जरूरत है बल्कि कोरोना के डाटा की भी जरूरत है। यानी चीन की अर्थव्यवस्था फिर से उठ खड़ी होगी। आसार ऐसे लग रहे हैं कि जैसे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन को पीछे करके अमेरिका दुनिया का दारोगा बन गया था, उसी प्रकार कोरोना संकट हल होने के बाद चीन यह रुतबा पा लेगा। 

लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया का दारोगा कैसे बना? क्या बिना भीषण युद्ध और परमाणु बम के हमले के यह संभव हो पाया था? जी नहीं। तो फिर यदि कोरोना संकट के दौरान या इसके बीतने के बाद अमेरिका को यह लगेगा कि दुनिया में उसकी साख बुरी तरह मिट्टी में मिल गई है तो क्या वह चुप बैठेगा? क्या वह अपने असंख्य विध्वंसक हथियारों को खामोश रहने देगा? ये हथियार उसने ऐसे ही किसी समय के लिए तो बनाए हैं। कोरोना से अमेरिका को भारी जनहानि हो चुकी है। अगर यह और भयंकर रूप लेती है तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन को सबक सिखाने के लिए अमेरिका हरसंभव कोशिश करेगा। फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन जैसे यूरोपीय देश उसके साथ होंगे। यदि ऐसा होगा तो रूस, चीन के साथ खड़ा दिखाई देगा। तो क्या 'कोरोना कांड' के बाद दुनिया में बम-बारूद के धमाके होंगे और बंदूकें गरजेंगी?

लेकिन फिर ये भी लगता है कि क्या चीन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई इतनी आसान होगी? चीन कोई दूसरे विश्व युद्ध वाला जापान तो है नहीं। वह भी परमाणु क्षमता वाला देश है। रूस उसका साथ देगा ही। क्या यूरोप उस चीन के खिलाफ खड़ा होगा, जो आज स्वयं चीन से मदद ले रहा है? क्या भारत जैसे विकाशसील देश चीन के खिलाफ खड़े हो पाएंगे जो स्वयं अपनी अर्थव्यवस्था को उबारने में जुटे होंगे? अमेरिका निश्चित ही अकेला पड़ जाएगा और वह भी तभी कुछ कर सकेगा जब उसकी अर्थव्यवस्था नंबर वन बनी रहेगी। तो चीन दंडित होगा या पुरस्कृत, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तय है कि कोरोना काल बीतने के बाद दुनिया बहुत बदली हुई नजर आएगी। या तो हथियार चलेंगे और यदि हथियार नहीं चले तो आर्थिक हथियार चलेंगे।

- लव कुमार सिंह





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