Monday 26 October 2020

आईपीएल : करीब 100 खिलाड़ी बाहर बैठे हैं, जिनमें से कई अपने देश के स्टार क्रिकेटर हैं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के मध्य पड़ाव पर 13 अक्टूबर को ऐसे करीब 100 खिलाड़ियों की सूची जारी हुई है जिनमें से अधिकांश यूएई में खेले जा रहे आईपीएल के दौरान एक भी मैच नहीं खेल पाए हैं। ये सूची इसलिए जारी हुई है कि यदि कोई टीम इनमें से किसी खिलाड़ी को खरीदना चाहे तो वह मिड सीजन ट्रांसफर विंडो के जरिये उसे खरीद सकती है।

खास बात यह है कि इनमें ऐसे दिग्गज खिलाड़ी भी शामिल हैं जो अपनी राष्ट्रीय टीम का अनिवार्य रूप से हिस्सा होते हैं, लेकिन आईपीएल में उनकी कोई पूछ ही नहीं है और वे बाहर बैठे मक्खियां मारने पर मजबूर हैं। इन्हीं में कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो पहले अपनी आईपीएल टीम के लिए शानदार प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन अब उन्हें टीम में स्थान नहीं मिल रहा है।

इसका एक कारण तो यह है कि हर टीम में काफी अतिरिक्त खिलाड़ी खरीदे जाते हैं तो ऐसे में जाहिर है कि यदि किसी टीम में 20 खिलाड़ी होंगे तो खेलने का मौका तो 11 को ही मिलेगा।

दूसरा कारण यह हो सकता है कि खिलाड़ी का प्रदर्शन ही अच्छा न हो। जैसे कि रॉयल चैलेंजर बंगलुरू में डेल स्टेन और उमेश यादव शुरुआत में खेले लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा जिससे उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। उनकी जगह टीम में आए क्रिस मोरिस और उड़ाना जिस प्रकार की गेंदबाजी कर रहे हैं, उससे नहीं लगता कि अब डेल स्टेन या उमेश यादव को टीम में जगह मिलेगी।

तीसरा कारण किसी खिलाड़ी का टीम की योजना में फिट नहीं होना बताया जाता है, जो कि सबसे लचर कारण नजर आता है। चेन्नई सुपर किंग्स अपने स्टार स्पिनर इमरान ताहिर को इसीलिए नहीं खिला रही है कि वे उसकी योजना में फिट नहीं बैठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यदि आईपीएल भारत में होता तो इमरान ताहिर जरूर सीएसके की टीम में होते। यूएई में ऐसी क्या बात है? कहा जा रहा है कि वहां पर तेज गेंदबाज सफल हो रहे हैं। लेकिन यह तथ्य सही नहीं है।

आरसीबी में यजुवेंद्र चहल और सनराइजर्स हैदराबाद में राशिद खान मैच विजेता गेंदबाज बने हुए हैं। आरसीबी में वाशिंगटन सुंदर ने अपनी स्पिन गेंदबाजी से टीम में जगह पक्की कर ली है। दिल्ली कैपिटल में चोटिल होने से पहले मिश्रा टीम का हिस्सा थे। अश्विन वहां हैं ही और साथ में अक्षर पटेल जैसे साधारण स्पिन गेंदबाज भी सफल हो रहे हैं। मुंबई इंडियन में राहुल चाहर ने अपनी स्पिन गेंदबाजी के कारण ही टीम में जगह पक्की कर रखी है, वरना वहां एक से बढ़कर एक खिलाड़ी भरे हुए हैं।

सीएसके में यदि पीयूष चावला को कई खिलाकर बाहर किया जा सकता है और फिर से अंतिम 11 में लिया जा सकता है तो ऐसे में इमरान ताहिर को क्यों नहीं खिलाया जा सकता है? ऐसी योजना समझ से परे हैं कि आपकी टीम का प्रदर्शन भी कमजोर हो लेकिन आपकी योजना में कोई कमी नहीं हो।

अगर बाहर बैठे 100 खिलाड़ियों की सूची को देखें तो मुंबई इंडियन में क्रिस लिन जैसे हिटर का खेलना बनता है। चेन्नई सुपर किंग्स में इमरान ताहिर और सेंटनर का खेलना बनता है। सेंटनर न्यूजीलैंड के शीर्ष गेंदबाज हैं और भारतीय खिलाड़ी और प्रशंसक जानते हैं कि सेंटनर के कारण कई बार भारत की टीम अंतराष्ट्रीय स्तर पर पराजित हुई है।

चेन्नई में ही जोश हेजलवुड का भी खेलना बनता है, जो आस्ट्रेलिया के शीर्ष तेज गेंदबाज हैं। सनराइजर्स हैदराबाद में बासिल थम्पी का मौका बनता है जो कि पहले बढ़िया प्रदर्शन कर चुके हैं। दिल्ली कैपिटल्स में कीमो पॉल और लामिछाने, किंग्स इलेवन पंजाब में क्रिस गेल का खेलना बनता है। किंग्स इलेवन वैसे भी सबसे नीचे चल रही है इसलिए गेल को मौका दिया जाना जरूरी है। केकेआर में लॉकी फर्ग्यूसन पूर्व में बढ़िया प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन फिलहाल अंतिम 11 से दूर हैं। राजस्थान रॉयल्स में मयंक मार्कंडेय को मौका दिया जाना चाहिए। आरसीबी में पार्थिव पटेल का भी उपयोग होना चाहिए।

करीब सौ खिलाड़ी बाहर बैठे हैं तो क्या ये खिलाड़ी उपेक्षित महसूस नहीं करते होंगे? शायद 'हां' क्योंकि नए खिलाड़ियों को छोड़ दें तो कई दिग्गज खिलाड़ियों का उनके देश की टीम में बहुत नाम और सम्मान है। शायद 'ना' भी क्योंकि इन खिलाड़ियों को बिना खेले खूब सारा पैसा तो मिल ही रहा है, फिर किस बात की चिंता है।

उपेक्षा से ख्याल आता है गौतम गंभीर का, जिनका आज यानी 14 अक्टूबर को जन्मदिन भी है। केकेआर में गौतम गंभीर का क्या जलवा था। वहां उन्होंने अपनी टीम को खिताब भी दिलवाया था। फिर पता नहीं क्यों वे दिल्ली की टीम में आ गए और दिल्ली की कप्तानी की। फिर एक दिन हमने देखा कि दिल्ली का कप्तान ही बदल गया और गौतम गंभीर को अंतिम 11 में भी जगह नहीं मिली। कुछ दिन गंभीर ने बाहर बैठकर मैच देखा और फिर वे क्रिकेट से ही बाहर हो गए।

ये सब देखकर लगता है कि आईपीएल में पैसा भी बहुत है और यहां खिलाड़ियों को चमकने का मौका भी मिलता है, लेकिन यहां पर पुराने खिलाड़ियों की साख और सम्मान भी दांव पर लगा होता है। स्टार खिलाड़ियों को बाहर निराश भाव से बैठा हुआ देखकर बड़ी तकलीफ होती है। इससे अच्छा तो व्यवस्था यह होनी चाहिए कि हर टीम में केवल 13-14 खिलाड़ी हों और यदि टीम में कोई खिलाड़ी घायल होता है और उसका रिप्लेसमेंट नहीं मिलता है तो टीम को बाहर से कोई भी खिलाड़ी खरीदने की मंजूरी मिलनी चाहिए।

- लव कुमार सिंह

वे बदलाव जो टी-ट्वेंटी/आईपीएल के रोमांच को शिखर पर ले जा सकते हैं?

 भारत और शेष दुनिया के क्रिकेट के प्रशंसक इस समय इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का आनंद ले रहे हैं। लेकिन क्या टी-ट्वेंटी क्रिकेट या आईपीएल के वर्तमान नियम खिलाड़ियों को इस खेल को खेलने और दर्शकों को इस खेल को देखने का पूरा आनंद दे रहे हैं? अगर बिल्कुल हाल-फिलहाल की कुछ प्रतिक्रियाओं पर नजर डालें तो उत्तर ‘ना’ में मिलता है।

ये प्रतिक्रियाएं कुछ इस प्रकार हैं-

  • किंग्स इलेविन पंजाब के कप्तान के.एल. राहुल ने कहा है कि 100 मीटर से बड़ा छक्का लगाने पर खिलाड़ी को अतिरिक्त रन मिलने चाहिए।
  • विराट कोहली कह रहे हैं कि वाइड और नो बॉल के मामले में भी कप्तानों को रिव्यू लेने का विकल्प मिले।
  • स्टार स्पोर्ट्स के कमेंट्री पैनल पर एक दिन चर्चा हो रही थी कि यदि कोई गेंदबाज 2 विकेट ले ले तो उस मैच में कप्तान को यह छूट मिलनी चाहिए कि वह उस गेंदबाज से कुछ अतिरिक्त ओवर फिंकवा सके।
  • हर्षा भोगले कह रहे हैं कि गेंदबाजों को इस खेल में वापस लेकर आइए। तब ये खेल और भी समृद्ध हो जाएगा। उनका कहना है कि इस खेल से गेंदबाजों को कभी भी बाहर मत ले जाइए।

इसका अर्थ है कि खेल को रोमांच के शिखर पर ले जाने के लिए वर्तमान नियमों में अभी भी कहीं न कहीं कुछ कमी है। इस खेल के बल्लेबाजों के पक्ष में झुके होने के आरोप तो पहले से ही लगते रहे हैं, लेकिन और भी कई बातें ऐसी हैं जिन पर विचार करके इस खेल को और भी रोचक और मजेदार बनाया जा सकता है। तो चलिए यहां हाजिर हैं कुछ सुझाव जो यह बताते हैं कि टी-ट्वेंटी या आईपीएल में ऐसे क्या बदलाव हो सकते हैं जिससे इस खेल में रोमांच अपने चरम पर पहुंच जाए।

 

बदलाव 1

 

नियमों में एक बदलाव यह होना चाहिए फील्डिंग कर रही टीम का हर खिलाड़ी (विकेटकीपर को छोड़कर) 1 ओवर जरूर फेंकेगा। लेकिन कप्तान को यह छूट भी मिलेगी कि वह बाकी बचे 10 ओवर अपने किन्हीं भी पसंदीदा गेंदबाजों से पूरा करा सकेगा।

इस नियम से खेल का रोमांच बहुत बढ़ जाएगा क्योंकि यह नियम खेल की संपूर्णता को दर्शाएगा और दर्शकों को खेल के तीनों क्षेत्रों (बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग) में खिलाड़ियों के कौशल को देखने का मौका मिलेगा। दर्शकों को विराट कोहली, रोहित शर्मा, एबी डिविलियर्स, डेविड वार्नर जैसे खिलाड़ियों को गेंदबाजी करते देखकर बहुत मजा आएगा।

इस नियम से बल्लेबाजी कर रही टीम को यह फायदा होगा कि वह उन 5 ओवरों में काफी रन बनाने की कोशिश करेगी जिन्हें अनियमित गेंदबाज फेंकेंगे। दूसरी तरफ गेंदबाजी टीम को यह फायदा होगा कि वह बाकी के 10 ओवर उन गेंदबाजों से करवा सकते हैं जो उनके सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज हैं। हालांकि नियम के लागू होने के कुछ समय बाद कथित अनियमित गेंदबाज भी पहले जैसे नहीं रह जाएंगे क्योंकि फिर वे भी गेंदबाजी में कुछ अच्छा करने के लिए पर्याप्त अभ्यास करेंगे।

 

बदलाव 2

एक नियम यह बने कि बाउंड्री के पार एक तय दूरी तक गेंद का टप्पा लगने पर 6 रन होंगे, जो अभी भी मिलते हैं, लेकिन उस दूरी के बाद जैसे-जैसे छक्के का टप्पा दूर होता जाएगा, रन बढ़ते (7, 8,9 और 10) जाएंगे। उदाहरण के लिए मान लिया कि 80 मीटर की बाउंड्री है। अब गेंद का टप्पा 80 से 85 मीटर के बीच लगा तो 6 रन, लेकिन 85 से 90 मीटर के बीच टप्पा होने पर 7 रन, 90 से 95 मीटर पर 8 रन, 95 से 100 मीटर पर 9 रन और 100 मीटर के पार टप्पा जाने पर 10 रन दिए जाएंगे। बाउड्री 80 मीटर से छोटी है तो उसी के अनुसार नियम बन सकता है।

 

यह नियम खेल के रोमांच को उच्च स्तर पर ले जाने में सफल होगा। ऐसा होने से अच्छी टाइमिंग और ताकत का प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को इसका पुरस्कार भी मिलेगा। यह नियम वन-डे और टेस्ट क्रिकेट में भी होना चाहिए।

बदलाव 3

एक नियम यह होना चाहिए कि बल्लेबाजी करने वाली टीम को प्रत्येक 5 ओवर के अंदर 1 चौका या छक्का लगाना होगा। यदि टीम ऐसा करने में विफल रहती है तो उसके स्कोर से 5 रन घटा दिए जाएंगे। लेकिन यदि टीम 5 ओवर में 5 चौके लगा देती है तो इन पांच चौकों के लिए मिले 20 रन के अलावा टीम को 5 रन और भी मिलेंगे।

इस नियम से खेल में काफी तेजी आएगी और रोमांच भी बढ़ जाएगा। यह नियम वन-डे और टेस्ट क्रिकेट में भी होना चाहिए।

बदलाव 4

एक नियम यह हो कि यदि बल्ले से गेंद का संपर्क होता है और ऐसे 5 संपर्कों के बाद बल्लेबाज एक रन भी नहीं बना पाता है तो उस बल्लेबाज के स्कोर में से हर बार ऐसे 5 निष्क्रिय संपर्कों के बाद 1 रन कम कर दिया जाएगा। इसी के साथ-साथ टीम के योग में से भी 1 रन घटा दिया जाएगा।

हो सकता है कि तब तक बल्लेबाज ने कोई रन ही न बनाया हो। ऐसी स्थिति में केवल टीम के स्कोर से 1 रन कम होगा और बल्लेबाज के स्कोर से रन तब घटेगा जब वह कोई रन बना लेगा। यदि बल्लेबाज गेंद-बल्ले के 5 बार संपर्क के बावजूद शून्य पर आउट होता है तो केवल टीम के स्कोर से 1 रन कम होगा।

 

यह नियम वैसे तो टेस्ट और वन-डे क्रिकेट के लिए बहुत उपयोगी होगा, लेकिन यदि टी-ट्वेंटी में भी लागू हो तो इससे खेल का रोमांच बढ़ेगा।

बदलाव 5

इसी के साथ यह नियम हो कि यदि कोई बल्लेबाज ऊपर बदलाव 4 में बताए गए गेंद-बल्ले के ऐसे निष्क्रिय संपर्कों के जरिये अपने और टीम के 10 रन कम करता है तो वह आउट माना जाएगा। इस प्रकार से आउट हुआ खिलाड़ी तभी दोबारा बल्लेबाजी कर सकेगा, जबकि शेष बचे बल्लेबाज किसी एक ओवर में कम से कम 20 रन बनाएंगे।

निश्चित ही कोई बल्लेबाज इस प्रकार आउट नहीं होना चाहेगा। ऐसे में अब के मुकाबले तेज खेल देखने को मिलेगा। गेंदबाजी करने वाली टीम को बल्लेबाज को आउट करने का एक नया तरीका मिलेगा। इस प्रकार आउट हुए बल्लेबाज को पुनः जीवित करने के लिए बाकी खिलाड़ी एक ओवर में 20 रन बनाने का प्रयास करेंगे तो रोमांच चरम पर होगा।

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अंत में विराट कोहली की उस मांग में दम है कि वाइड या कमर से ऊपर टप्पे वाली नो बॉल के मामले में भी रिव्यू लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। इन दोनों मामलों में मैदानी अंपायरों से काफी गड़बड़ियां हो रही हैं।

एक और विवादास्पद चीज ‘अंपायर कॉल’ है। एलबीडब्लू के मामले में यदि रिव्यू लेने पर गेंद बिना बल्ले को छुए विकेट पर लगती दिख रही हो तो बल्लेबाज को आउट दिया जाना चाहिए, फिर चाहे गेंद का टप्पा कहीं पर भी पड़ा हो और ‘अंपायर कॉल’ कुछ भी हो।

- लव कुमार सिंह

 

 

आईपीएल के मौसम में टीवी हुआ खराब तो एक नई दुनिया से रूबरू हुआ जनाब

पिछले दिनों अपना टेलीविजन सेट खराब हो गया। आईपीएल में चौके-छक्कों की बरसात वाले मौसम में जैसे अकाल सा पड़ गया। दिन में टीवी सेट को बाजार में ठीक कराने ले गया तो मिस्त्री ने कहा कि यह सेट आज नहीं बल्कि कल ठीक होगा। उसकी बात सुनकर दिल बैठ गया। अब शाम को क्रिकेट मैच कैसे देखा जाएगा? शाम होते-होते मन और भी उदास हो गया। बेटा बोला, ‘पापा हॉट स्टार का सब्सक्रिप्शन ले लो।’ लेकिन अपनी जेब इन दिनों कुछ तंग चल रही थी। फिर एक दिन बाद तो टीवी आ ही जाना था, लिहाजा हॉट स्टार का प्लान रद्द हो गया। मैं उदास बैठा ही था कि बेटे ने मोबाइल फोन में कोई यू-ट्यूब चैनल चला दिया जिस पर रेडियो की तरह क्रिकेट की कमेंट्री आ रही थी। सुनकर मेरा दिल उछल पड़ा। बस फिर क्या था, अपनी पूरी शाम और रात यू-ट्यूब चैनल पर क्रिकेट की कमेंट्री सुनते ही अच्छी बीत गई।

मैंने देखा कि यू-ट्यूब पर एक नहीं बल्कि अनेक बंदे चैनल खोलकर और टीवी के सामने बैठकर आईपीएल के मैचों की रनिंग कमेंट्री कर रहे थे। किसी चैनल पर स्क्रीन पर केवल स्कोर बोर्ड था और बैकग्राउंड से कमेंट्री की आवाज आ रही थी। किसी चैनल पर स्कोर बोर्ड और कमेंट्री करने वालों का बोलते हुए चेहरा भी था। किसी चैनल पर एक ही बंदा धाराप्रवाह लगा हुआ था तो किसी चैनल पर दो तो किसी पर तीन-तीन लोग मिलकर कमेंट्री के साथ हंसी-मजाक भी कर रहे थे। किसी चैनल पर कमेंट्री के साथ मैदान की गतिविधियों को एनिमेशन के जरिये दिखाया जा रहा था।

हालांकि सभी बंदों का कमेंट्री का स्तर बहुत अच्छा नहीं था। कोई बंदा लगातार बोले ही जा रहा था और पॉज ही नहीं ले रहा था, जिससे कानों को राहत नहीं मिल रही थी। कोई कमेंटेटर यह कम बता रहा था कि मैदान पर क्या हो रहा है बल्कि उसकी रुचि इस बात में ज्यादा थी कि सुनने वाले उसके वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लाइक करें। कहीं एक से ज्यादा कमेंटेटर थे तो वे आपस में ही हंसी-मजाक में लगे हुए थे। इस सबके बावजूद मैच की ताजा जानकारी सुनने को मिल रही थी और यह अपने लिए काफी था।

मैं सोच रहा था कि टीवी पर लाइव प्रसारण के जमाने में इन्हें कौन सुनता होगा, लेकिन आश्चर्य की बात थी कि हजारों लोग उन्हें सुन रहे थे और उनमें मैं भी शामिल था। सभी कमेंट्री चैनलों पर जबरदस्त लाइक और प्रतिक्रियाएं भी आ रही थीं। कमेंट्री करने वाले बीच-बीच में अपने सुनने वालों की प्रतिक्रियाएं भी ले रहे थे। एक चैनल कह रहा था कि आज के मैच में उसका 10 हजार लाइक का लक्ष्य है तो दूसरा चैनल सुनने वालों से आग्रह कर रहा था कि उसके लाइक को 3 हजार के पार पहुंचा दो।

इन कमेंट्री चैनल पर आने वाली प्रतिक्रियाएं सुनीं और फिर विचार किया तो पाया कि दफ्तरों में रात में काम करने वाले, बसों-ट्रेनों में चलने वाले, सुरक्षा बलों में दूरदराज के क्षेत्रों में तैनात जवान समेत हजारों-लाखों लोग इस रनिंग कमेंट्रीज को विभिन्न चैनलों पर सुन रहे थे। अर्थात टीवी पर लाइव मैच के जमाने में भी रेडियो जैसी कमेंट्री न केवल जारी है बल्कि उसके ग्राहक भी काफी संख्या में हैं। यह देखकर अच्छा लगा कि इससे कई लोग यू-ट्यूब चैनल पर अपनी रोजी-रोटी भी कमा रहे हैं।

अगले दिन टीवी ठीक करने की दुकान पर गया तो उसने फिर से एक दिन का समय मांग लिया। इस प्रकार उस दिन की शाम और रात भी मैच नहीं देख पाया और कमेंट्री सुनकर ही काम चलाना पड़ा। खैर, तीसरे दिन टीवी ठीक होकर आ गया और हम फिर से शाम होते ही उसके सामने जमने लगे, लेकिन दो दिन घर में टीवी न होने से जो अनुभव हुआ वह भी कमाल का था। इस दौरान पता चला कि रनिंग कमेंट्री जिंदा है। टीवी का सजीव प्रसारण उसे खा नहीं पाया है। किसी ने सही कहा है कि ये दुनिया बहुत बड़ी है। सबको सबका हिस्सा देती है।

आगे से यदि आपका टीवी भी खराब हो जाए तो फिकर नॉट। कुछ दिन किसी चैनल पर कमेंट्री सुनिए। जायका बदल जाएगा। और अगर आप क्रिकेट के थोड़े जानकार भी हैं और अपनी बात कहने की क्षमता रखते हैं तो तो शर्तियां कहता हूं कि आपका भी मन कर जाएगा कि क्यों न एक यू-ट्यूब चैनल खोलकर क्रिकेट की कमेंट्री शुरू कर दी जाए। मेरा मन भी कुछ ऐसा ही सोच रहा है। मैच का मैच देखो और कमेंट्री की कमेंट्री करो।

- लव कुमार सिंह  

ऑनलाइन क्लास : कुछ अनूठे अनुभव और कुछ फायदे-नुकसान

 इन दिनों ऑनलाइन कक्षाओं के बड़े चर्चे हैं। इन ऑनलाइन कक्षाओं के भी कई वर्ग हैं। एक वर्ग वह है जिसमें छात्र-छात्राएं भारी फीस भरते हैं और कक्षा में या कंप्यूटर पर ऑनलाइन खूब ध्यान लगाकर पढ़ाई करते हैं, जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते छात्र या बाइजूस जैसी ऑनलाइन कक्षाओं में पढ़ते छात्र। दूसरा वर्ग उन ऑनलाइन कक्षाओं का है जिन्हें हम सरकारी वर्ग भी कह सकते हैं। इनमें छात्र-छात्राएं मामूली सी फीस भरकर किसी कोर्स में प्रवेश लेते हैं और फिर कभी-कभी कक्षाओं में टहलने चले जाते हैं। यहां ऐसे ही वर्ग वाली ऑनलाइन कक्षाओं की झांकी प्रस्तुत की जा रही है।

गेस्ट लेक्चरर के रूप में इन दिनों मैं जो ऑनलाइन कक्षाएं ले रहा हूं वे स्नातक (ग्रेजुएशन) और परास्नातक (पोस्ट ग्रेजुएशन) छात्रों की कक्षाएं हैं। विषय पत्रकारिता है। करीब 3 महीने पढ़ाते हुए हो गए हैं, लेकिन अधिकांश छात्र हैं कि इन वर्चुअल कक्षाओं में आने को तैयार ही नहीं हैं। स्नातक वर्ग में छात्रों की संख्या 6-7 रहती है या कभी-कभी 10 हो जाती है, जबकि परास्नातक में शुरुआत में ही मात्र 3 छात्र थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद यह संख्या 1 रह गई।

ऐसा नहीं है कि ये इन कक्षाओं के छात्र-छात्राएं ऑनलाइन नहीं जुड़े हैं। वे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा आदि पर खूब सक्रिय हैं, लेकिन जैसे वास्तविक कक्षाओं में नहीं आते थे, वैसे ही वर्चुअल कक्षा से जुड़ने से भी परहेज करते हैं। हां, जब परीक्षा का समय नजदीक आता है तो ये सभी छात्र ‘सर-सर’ करते हुए नोट्स के लिए पीछे पड़ जाते हैं।

 

ऑनलाइन कक्षा शुरू होने से पहले संस्थान की ओर से थोड़ा तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया था, लेकिन जब वास्तविक रूप से ऑनलाइन कक्षा लेने का समय आया तो काफी चीजें बदल गईं या बदलनी पड़ीं।

 

एक तो यह हुआ कि जैसे ही छात्र-छात्राएं दिए गए लिंक के अनुसार मुझसे जुड़े तो कानों में इतना ज्यादा शोरगुल सुनाई दिया कि कुछ भी सुनना असंभव हो गया। पता चला कि सभी छात्र-छात्राओं के माइक ओपन थे जिसकी वजह से यह शोर पैदा हो रहा था। सबके माइक बंद कराए गए। सिर्फ मेरा माइक ऑन रहा।

 

इसके बाद कक्षा शुरू होते ही मैंने देखा कि सभी छात्र-छात्राओं ने अपने कैमरे भी बंद कर दिए हैं। उनकी केवल स्टेटस इमेज ही वहां दिखाई दे रही थी। एक-दो दिन तो मैंने जोर देकर कहा कि भई अपना कैमरा ऑन करो और अपने चेहरे तो दिखाओ, लेकिन फिर यह सोचकर मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया क्योंकि मैंने महसूस किया कि लड़कियां इस तरह से क्लोज अप में लगातार अपने चेहरे को देखकर असहज महसूस कर रही थीं।

 

फिर मैं भी यह नहीं देखना चाहता था कि कौन छात्र किस मुद्रा में कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बैठा है, क्योंकि जब एकाध बार देखा तो पाया कि कोई बिस्तर पर पसरा हुआ था तो किसी के घर का पूरा नजारा दिखाई दे रहा था।

 

नतीजतन, अब होता यह है कि कक्षा शुरू होती है, छात्र-छात्राएं जुड़ते हैं। उनके माइक और कैमरे बंद रहते हैं। केवल मेरा माइक और कैमरा खुला रहता है। लेक्चर शुरू होता है। मैं विषय पर बोलता रहता हूं। उन्हें नोट्स लिखाता हूं। वे लिख रहे हैं या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए मैं बीच-बीच में उनसे पूछता भी रहता हूं। हालांकि जो भी कक्षा में मौजूद रहते हैं, वे लिखते हैं क्योंकि कई बार नेटवर्क में गड़बड़ी से जब मेरी आवाज चली जाती है तो वे अपना माइक ओपन करके बताते हैं कि उनका यह पैराग्राफ या वाक्य छूट गया है।

हालांकि कई शिक्षकों ने बताया और स्वयं छात्रों से भी पता चला कि कई छात्र ऑनलाइन जुड़ने के बाद कैमरा और माइक ऑफ कर देते हैं और फिर अपने किसी अन्य काम में जुटे रहते हैं और हाजिरी लगाने के समय फिर हाजिर हो जाते हैं।

 

जर्मनी में मास्टर डिग्री के लिए पढ़ रही मेरी पुत्री ने बताया कि वहां भी स्थिति इससे कोई बहुत अलग नहीं है। पुत्री के अनुसार अगर दोपहर का समय होता है और ऑनलाइन लेक्चर चल रहा होता है तो बिल्कुल नजदीक ही बिस्तर होने के कारण कई बार ऐसा मन करता है कि फोन का माइक और कैमरा तो बंद है ही तो क्यों नहीं कुछ देर बिस्तर पर लेटकर ही लेक्चर सुना जाए।

 

कुल मिलाकर ऑनलाइन कक्षा (उस वर्ग की जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया ) एक प्रकार का एकालाप है, जिसमें अगर मैं अपना कैमरा भी बंद कर दूं तो इस प्रकार का एहसास होता है जैसे मैं कमरे में अकेला स्वयं से बात कर रहा हूं। अपना कैमरा ऑन रखने से मन में यह बात रहती है कि छात्र-छात्राएं मुझे देख रहे हैं, इसलिए मन और तन सचेत रहता है।

 

मैंने यह भी महसूस किया है कि ऑनलाइन क्लास में शिक्षक को वास्तविक कक्षा के मुकाबले ज्यादा बोलना पड़ता है। इसकी एक वजह तो यह है कि ज्यादातर समय केवल शिक्षक ही बोल रहा होता है। दूसरे, शिक्षक को एक ही वाक्य कई-कई बार और धीरे-धीरे बोलना पड़ता है ताकि छात्र उसे ठीक से समझ सकें और नोट भी कर सकें। इस लिहाज से ऑनलाइन क्लास के बाद ऊर्जा कुछ ज्यादा खर्च हुई महसूस होती है।

हां, एक फायदा जरूर है। प्रत्यक्ष यानी क्लासरूम वाली पढ़ाई के दौरान कक्षा में शांति बनाए रखने के लिए शिक्षक को बहुत प्रयास करना पड़ता है। शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिख रहा होता है तो उसकी पीठ पीछे छात्र-छात्राओं में खुसर-पुसर शुरू हो जाती है। वहां पर छात्र-छात्राएं एक-दूसरे से बात किए बिना रह ही नहीं पाते। ऑनलाइन कक्षा में शिक्षक को इसकी टेंशन नहीं होती। वह बड़े मजे से अपनी बात कहता है और पाता है कि उसकी बात के दौरान कहीं किसी प्रकार का व्यवधान नहीं है।

ऑनलाइन कक्षाओं से छात्र-छात्राओं का मोबाइल या कंप्यूटर पर बीतने वाला समय काफी बढ़ गया है। पहले वे पढ़ाई करने के लिए मोबाइल/कप्यूटर पर जाते हैं और इसके बाद अपने मनोरंजन के लिए वहां पर रहते हैं। ध्यान रहे कि वे इस दूसरे काम के लिए पहले से ही मोबाइल/कंप्यूटर पर काफी समय बिताते थे। अगर यह चीज लंबी चलती है तो इससे बच्चों और युवाओं के सामने स्वास्थ्य संबंधी कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

कुल मिलाकर ऑनलाइन कक्षाएं, प्रत्यक्ष कक्षाओं का विकल्प नहीं हैं, लेकिन फिलहाल किया भी क्या जा सकता है? दुष्ट कोरोना ने इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी तो नहीं छोड़ा है।

- लव कुमार सिंह