Saturday 29 August 2020

विकिपीडिया में आजकल इतनी त्रुटियां क्यों हो रही हैं?

Why are so many errors happening today in Wikipedia?



भारत में सोशल मीडिया पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के समर्थक या फिर यूं कहें कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थक और उसके विरोधी हर समय आपस में भिड़े रहते हैं। ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। लेकिन इस जुबानी या वैचारिक संघर्ष में यदि विकिपीडिया जैसे प्रतिष्ठित, तटस्थ और प्रतिष्ठित मंच भी खुद को शामिल कर लें तो हैरानी होना स्वाभाविक है। विकिपीडिया पर क्या कुछ होने लगा है, सबसे पहले उसकी बानगी के रूप में एक स्क्रीन शॉट देखिए। यह विकिपीडिया के एक पेज का स्क्रीन शॉट है, जो 29 अगस्त 2020 को लिया गया है।




आपको ऊपर दिए गए टेक्स्ट में कुछ नजर आया। दरअसल 29 अगस्त 2020 को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर उनके बारे में पढ़ने के लिए विकिपीडिया का पेज खोला तो उसकी शुरूआत में यह टेक्स्ट दिखाई दिया। ध्यान से देखें, इसमें विकीपीडिया ने भारतीय जनता पार्टी को भारतीय जुमला पार्टी लिख रखा है। लिखा ही नहीं है बल्कि उसे बाकायदा लाल रंग से भी रंगा गया है। यानी यह कोई चूक नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया कार्य है।

निश्चित ही इसे पढ़कर भाजपा के विरोधियों को बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन विकिपीडिया जैसे ज्ञान की प्यास बुझाने वाले और निष्पक्ष व तटस्थ समझे जाने वाले मंच पर इस तरह की हल्की बातें बिल्कुल भी शोभा नहीं देतीं। इससे न केवल विकिपीडिया की गरिमा को धक्का लगेगा बल्कि लगातार ऐसा होने पर विकिपीडिया पर दी गई सूचना को भी लोग कम गंभीरता से लेने लगेंगे। 

पिछले कुछ अरसे से विकिपीडिया पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि वहां पर वामपंथी झुकाव वाले लोगों का दबदबा है और कई मामलों में विकिपीडिया की सामग्री में संतुलन नहीं बरता जा रहा है। पिछले दिनों बेंगलुरू में मुस्लिम समूहों द्वारा की गई हिंसा को विकिपीडिया के पेज पर मात्र 'टकराव' लिखकर उसकी गंभीरता को कम करने की कोशिश की गई थी। 

गूगल पर जब हम कोई चीज खोजते हैं तो उसके मुख्य पेज पर मुख्ततः विकिपीडिया के निष्कर्ष ही दिखाई देते हैं। पिछले दिनों यह खुलासा हुआ कि जब गूगल पर मुंबई हमलों से जुड़े आतंकवादी अजमल कसाब को सर्च किया या तो गूगल पर उसकी मृत्यु का कारण आत्महत्या लिखा हुआ है, जबकि सभी जानते हैं कि अजमल कसाब को फांसी पर लटकाया गया था।

स्पष्ट है कि विकिपीडिया जैसे प्रतिष्ठित मंच के लिए ऐसी गडबड़ियां उसके भविष्य के लिए सही नहीं हैं, क्योंकि इससे उसकी विश्वसनीयता पर बेहद नकारात्मक असर होगा। यह ठीक है कि विकिपीडिया पर काम करने वाले लोगों  की कोई विचारधारा हो सकती है। हर व्यक्ति की कोई न कोई विचारधारा होती है, लेकिन हमें सूचना देने के काम में अपनी विचारधारा को हावी नहीं होने देना चाहिए।

विकिपीडिया को चाहिए कि यदि वह किसी पक्ष या पार्टी विशेष के खिलाफ लिखना चाहता है तो बाकायदा लेखक के नाम से लेखों का एक अलग सेक्शन बनाए और फिर उसमें लेखक चाहे किसी को भारतीय जुमला पार्टी लिखे या कुछ और, तब कम से कम पाठकों को यह तो पता होगा कि यह किसी की राय है, न कि कोई सूचना।

विकिपीडिया के चित्र पर लिखा रहता है- 'एक मुक्त ज्ञानकोश'। ऐसे में क्या विकिपीडिया को अपने इस स्लोगन की रक्षा नहीं करनी चाहिए और उसे राजनीतिक दलों की गंदी राजनीति से स्वयं को  दूर नहीं रखना चाहिए?

यहां बताते चलें कि 15 जनवरी 2001 को विकिपीडिया की स्थापना हुई थी। स्वयं विकिपीडिया के पेज के अनुसार लैरी सेंगर और जिम्मी वेल्स विकिपीडिया के संस्थापक हैं। जहां एक ओर वेल्स को सार्वजनिक रूप से संपादन योग्य विश्व कोष के निर्माण के उद्देश्य को परिभाषित करने का श्रेय दिया जाता है, वहीं सेंगर को इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए रणनीति का उपयोग करने का श्रेय दिया जाता है।

विकिपीडिया नाम दो शब्दों को मिलाकर रखा गया है। इसमें एक है हवाई शब्द 'विकी' जिसका अर्थ होता है जल्दी और दूसरा है 'एनसाइक्लोपीडिया' जिसका अर्थ विश्व कोष माना जाता है।


- लव कुमार सिंह

#Wikipedia #Media #Neutrality #searchengine #internet #BJP


Friday 28 August 2020

राष्ट्रीय खेल दिवस : जब ध्यानचंद की हिटलर से हुई मुलाकात तो क्या हुई बात

National Sports Day : What happened when Dhyanchand met Hitler


राष्ट्रीय खेल दिवस : जब ध्यानचंद की हिटलर से हुई मुलाकात तो क्या हुई बात 




ये 1936 का वर्ष था। उस वर्ष के ओलंपिक जर्मनी के बर्लिन शहर में हो रहे थे। वो जर्मनी जिस पर उस समय तानाशाह एडोल्फ हिटलर का राज था। ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम के कप्तान ध्यानचंद बनाए गए थे। वे इससे पहले 1932 के लास एंजिल्स और 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में भी भारतीय टीम में खेल चुके थे और टीम को स्वर्ण पदक जिता चुके थे। इन पदकों की बदौलत ध्यानचंद सेना में लांस नायक के पद तक पहुंच चुके थे। सूबेदार, लेफ्टीनेंट, कैप्टन और मेजर वे बाद में बने।

जर्मनी की टीम ने इस ओलंपिक के लिए जबरदस्त तैयारी की थी। यह इससे पता चल गया कि ध्यानचंद की कप्तानी वाली और दो बार की ओलंपिक विजेता भारतीय टीम अभ्यास मैच में जर्मनी से 1-4 से हार गई। इससे भारतीय टीम बहुत निराश हुई और जर्मनी का हौसला सातवें आसमान पर पहुंच गया। बहरहाल, भारतीयों ने स्वयं को संभाला, रणनीति बदली और ओलंपिक के मैचों में हंगरी को 4-0 से, अमेरिका को 7-0 से और जापान को 9-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया। सेमीफाइनल में ध्यानचंद और उनके साथियों ने फ्रांस को 10-0 से हराया। अब फाइनल जर्मनी के साथ था जो भारत को अभ्यास मैच में हरा चुका था।

हिटलर और जर्मनवासियों को पूरी उम्मीद थी कि उनकी टीम भारतीय टीम को हरा देगी। हिटलर तो वैसे भी नस्लीय भेदभाव को मानने वाला व्यक्ति था और वह जर्मनी और उसकी टीम को सर्वश्रेष्ठ मानता था।

हिटलर ने इससे पहले भारतीय टीम यानी ध्यानचंद का कोई मैच नहीं देखा था। यदि बारिश से मैदान गीला होने के कारण फाइनल मैच स्थगित नहीं होता तो हिटलर हॉकी के फाइनल मैच में नहीं होता। लेकिन एक बार स्थगित होने के बाद मैच ओलंपिक के अंतिम दिन मुख्य स्टेडियम में हुआ, जहां हिटलर भी मौजूद था। हालांकि भारतीय टीम का खेल देखकर वह हाफ टाइम में स्टेडियम से चला गया क्योंकि वह जर्मनी की हार का गवाह नहीं बनना चाहता था। हालांकि बाद में वह मेडल वितरण समारोह में शामिल होने के लिए लौट आया। यहां बताते चलें कि भारतीय टीम दुनिया की उन कुछ टीमों में शामिल थीं जिन्होंने हिटलर को ‘नाजी सैल्यूट’ नहीं किया था। बाकी सभी टीम हिटलर के मौजूद होने पर उसे नाजी सैल्यूट करती थीं।

करीब 40 हजार दर्शकों के बीच हुए फाइनल मैच में भारतीय टीम हाफ टाइम तक 1 गोल से आगे थी। इसके बाद जर्मनी की टीम बुरे बर्ताव पर उतर आई। ध्यानचंद के चारों ओर कई खिलाड़ी लगा दिए गए। इसी दौरान गलत तरीके से टेकल करने के कारण ध्यानचंद का एक दांत भी टूट गया। यह भी बताया जाता है कि इस मैच में ध्यानचंद और उनके साथियों ने अपने जूते उतार दिए थे और वे पहले नंगे पैर और फिर रबर के स्लीपर पहनकर भी खेले थे।

हाफ टाइम के बाद भारत ने सात गोल और किए। इनमें ध्यानचंद के लगातार तीन गोल (हैट्रिक) भी शामिल थे। जर्मनी की टीम केवल एक गोल कर सकी, जो पूरे ओलंपिक में भारतीय टीम के खिलाफ हुआ एकमात्र गोल था। इस प्रकार भारत ने यह मैच 8-1 से जीतकर तीसरी बार ओलंपिक स्वर्ण अपने नाम कर लिया।

इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद को संदेशा भिजवाया कि वे उससे आकर मिलें। हिटलर एक क्रूर शासक था। जर्मनी में यहूदियों के साथ बहुत बुरा सुलूक हो रहा था। पूरी दुनिया हिटलर के नाम से डरती थी। ध्यानचंद ने यह भी सुन रखा था कि हिटलर अपने सामने ही लोगों को गोली से मरवा देता है। इसलिए जब ध्यानचंद को यह पता चला कि हिटलर उनसे मिलना चाहता है तो उनका शरीर जैसे सुन्न सा हो गया।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हिटलर स्टेडियम में ही अपनी निजी बॉक्स में ध्यानचंद से मिला, जबकि कुछ अन्य रिपोर्ट्स कहती हैं कि यह मुलाकात हॉकी फाइनल के अगले दिन हुई थी।

बहरहाल, ध्यानचंद हिटलर से मिलने गए। इस मुलाकात का जिक्र उस समय भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर रहे स्वामी जगन नाथ ने कई बार मीडिया के सामने किया है। इसके अलावा ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ में भी इसका जिक्र है।

हिटलर ने ध्यानचंद का स्वागत किया। उसने सबसे पहले ध्यानचंद के बहुत ही साधारण से कैनवास के जूतों पर एक नजर डाली और उनसे पूछा- 

जब तुम हॉकी नहीं खेल रहे होते हो तो क्या करते हो?

ध्यानचंद ने कहा- मैं भारतीय सेना में हूं।

हिटलर ने सवाल दागा- तुम्हारा रैंक क्या है?

ध्यानचंद ने जवाब दिया- मैं लांस नायक हूं।

अब हिटलर ने प्रस्ताव रखते हुए कहा- जर्मनी आ जाओ। मैं तुम्हें फील्ड मार्शल बनाऊंगा।

ध्यानचंद एकदम से कुछ समझ नहीं पाए। दरअसल वे यह सोचकर भ्रमित हो गए कि यह हिटलर का आदेश था या अनुरोध। लेकिन फिर वे संभले और विनम्रता से कहा- भारत मेरा देश है। मेरा परिवार वहां रहता है और मैं वहां ठीक हूं।

अब हिटलर बोला- जैसा तुम ठीक समझो।

इसी के साथ यह मुलाकात खत्म हो गई।

उल्लेखनीय है कि ‘हॉकी के जादूगर’ कहे गए ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। पांच फुट सात इंच लंबे ध्यानचंद 1921 में सेना में भर्ती हुए और अपने जादुई खेल के बल पर मेजर के पद तक पहुंचे। 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के लिए स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से ज्यादा गोल किए। 1956 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 3 दिसंबर 1979 को 74 वर्ष की आयु में दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई। उनके जन्मदिवस को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

- लव कुमार सिंह

#NationalSportsDay #MajorDhyanChand #Hockey #Olympic #राष्ट्रीय_खेल_दिवस


Monday 24 August 2020

कांग्रेस के वर्तमान संकट का हल

Solution to the current crisis of congress




कांग्रेस को इक अदद, ‘मन-मोहन’ चाहिए

जो होकर भी न हो, अध्यक्ष ऐसा चाहिए

परिवार दिखे बाहर, मगर पावर उसके अंदर

जो ‘आला’ तो हो पर जिसे, ‘कमान’ नहीं चाहिए।

           कांग्रेस को इक अदद ‘मन-मोहन’ चाहिए...


.....................


कितने सुहाने दिन थे वे, दस साल यूं ही कट गए

जब काम का झंझट न था, मगर मजा पूरा चाहिए

अच्छा सब ‘परिवार’ का, और बुरा सब ‘सरदार’ का

इस बार भी फिर से, कुछ ऐसा ही होना चाहिए।

          कांग्रेस को इक अदद ‘मन-मोहन’ चाहिए....


........... 


‘रागा’ के लिए भी अच्छा, रहेगा यही

चढ़ाने को बांह, फाड़ने को बिल, कोई सबब तो होना चाहिए

चुनाव में पराजय की, कोई चिंता नहीं रहेगी

क्योंकि फोड़ने को ठीकरा, कोई सर तो होना चाहिए।

         कांग्रेस को इक अदद ‘मन-मोहन’ चाहिए.....


..........


जो पहले थे ‘सरदार’, वे अब स्वस्थ नहीं हैं

तो सोनिया जी को विज्ञापन, निकलवाना चाहिए

कांग्रेसियों से न कहें कि तलाशो मेरा विकल्प

बस पार्टी में शिद्दत से, तलाशे मन-मोहन होनी चाहिए।

          कांग्रेस को इक अदद ‘मन-मोहन’ चाहिए....


..............


गहलोत, रणदीप, अमरिंदर, चिदंबरम या कोई और

जिसे भी कांग्रेस का अध्यक्ष पद चाहिए

बस एक बार कहे अंदर जाके- मन-मोहन हूं मैं

उसके सिर पर ताज में फिर, देरी न होनी चाहिए।

         कांग्रेस को इक अदद ‘मन-मोहन’ चाहिए.....


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- लव कुमार सिंह

#Congress #CongressLeadershipCrisis #RahulGandhi #SoniaGandhi #CWCMeet #UditRajForCongressPresident #Manmohansingh

Saturday 22 August 2020

मीठा-मीठा गप गप, कड़वा-कड़वा थू

Mitha-Mitha Gup Gup, Kadwa-Kadwa Thoo



मोहे वे जज साहब बहुत ही भाए

जब वे चारों प्रेस कॉन्फ्रेंस करने को आए

बहुत ही प्यारे, क्रांतिकारी नजर आए

लोकतंत्र के रक्षक वे कहलाए।


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पर अब मोहे वे फूटी आंख न सुहाए

वे तो दूसरे पाले में चले गए हाए

उनका फैसले हमें पसंद न आए

लोकतंत्र की नींव ही दिए ढहाए।


.........


'जमात' पर फैसले से दिल बाग-बाग हुआ जाए

पर 'शहरी नक्सल' में पक्की गड़बड़ नजर आए

हमरी दलीलों के सामने कोई तर्क न चल पाए

हम लोकतंत्र के रक्षक यूं ही नहीं कहलाए।


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जो हमरी पसंद का फैसला दे जाए 

वो ही सबसे अच्छा जज कहलाए 

जो हमरी बात न मानी जाए

तो खतरे में लोकतंत्र हो जाए।


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मीठा-मीठा गप गप हो जाए

कड़वा-कड़वा थूका ही जाए

बड़े सयानों ने कहावत दी बनाए

सो हम वही रवायत रहे निभाए।


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फैसला हमरे पक्ष में न आए

तो लाखों की फीस कौन दे जाए

हमरे बच्चों का ख्याल किया जाए

हमरी दुकान न बंद हो जाए।

 

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एक और नमूना


राणा अयूब ने गुजरात फाइल्सलिखी- 

वाह-वाह बहुत अच्छे


तीस्ता शीतलवाड़ ने द मेकिंग ऑफ ए ट्रेजडीलिखी- 

वाह-वाह बहुत अच्छे


जिया उर असलम ने शाहीन बागलिखी- 

वाह-वाह बहुत अच्छे


मोनिका अरोड़ा ने दिल्ली राइट्स 2020’ लिखी- 

कैसे लिख दी? थू-थू-थू


- लव कुमार सिंह


#PrashantBhushan #RE1 #SupremeCourtOfIndia #DelhiRiotsTheUntoldStory #GujaratFiles #FreedomOfExpression #HumDekhenge

दलेर मेहंदी छठी फेल और मीका सिंह पांचवीं फेल...कपिल शर्मा शो में स्वयं मीका सिंह ने किया खुलासा

Daler Mehndi VI Fail and Mika Singh Fifth Fail


Mica Singh himself revealed in Kapil Sharma show



कपिल शर्मा शो के 22 अगस्त 2020 को प्रकाशित एपिसोड के मेहमान गायक मीका सिंह थे। उनके साथ कपिल शर्मा की बातचीत से एक दिलचस्प तथ्य का पता चला और वो यह कि गायक मीका सिंह केवल पांचवीं कक्षा तक पढ़े हैं और उसे भी वह पास नहीं कर पाए। यानी वे पांचवीं फेल हैं।

इसी बातचीत में हंसी के ठहाकों के बीच मीका सिंह ने बताया कि उनके बड़े भाई दलेर मेहंदी छठी कक्षा तक पढ़े हैं और वह भी उस कक्षा को पास नहीं कर पाए यानी दलेर मेहंदी भी छठी फेल हैं। ये बातें सुनकर हालांकि शो में तो कोई चौंका नहीं बल्कि वहां हंसी की धारा ही बह रही थी, लेकिन इस तथ्य ने टीवी देख रहे दर्शकों को जरूर चौंका दिया।

जब हम विकीपीडिया पर जाते हैं तो पता चलता है कि दलेर मेहंदी का जन्म बिहार के पटना में हुआ था और उनका नाम भी उनके माता-पिता ने उस समय के कुख्यात डाकू 'डाकू दलेर सिंह' के नाम पर रखा था। बाद में इस नाम में मेहंदी भी जोड़ा गया जो उस जमाने के प्रसिद्ध गायक परवेज मेहंदी के नाम से लिया गया।

दलेर मेहंदी की स्कूली पढ़ाई न होने का सबसे बड़ा कारण भी शायद संगीत ही रहा, क्योंकि उनके खानदान में सात पीढ़ियों से संगीत का शौक परवान चढ़ रहा था। उनके पिता अजमेर सिंह गुरु कीर्तन करते थे और शास्त्रीय संगीत के अच्छे जानकार थे। 11 साल की उम्र में दलेर मेहंदी संगीत सीखने के लिए घर से निकल गए और गोरखपुर के उस्ताद राहत अली खां से प्रशिक्षण लेकर 13 साल की उम्र में स्टेज पर गाने लगे।

भास्कर डॉट कॉम की खबर के अनुसार दलेर मेहंदी के बेटे गुरदीप मेहंदी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता दलेर मेहंदी छठी या सातवीं तक पढ़े हैं और चाचा मीका सिंह नौवीं तक पढ़े हैं, लेकिन कपिल शर्मा शो में खुद मीका सिंह ने कहा कि दलेर मेहंदी छठी फेल हैं और खुद मीका सिंह पांचवीं फेल हैं।

मीका सिंह ने अभी शादी नहीं की है। उन्होंने कपिल शर्मा के शो में यह खुलासा भी किया कि उनका कभी किसी लड़की से ब्रेकअप नहीं हुआ क्योंकि वे कभी किसी गंभीर रिश्ते में पड़े ही नहीं। इसका अर्थ यह निकलता है कि लड़कियों के साथ मीका के संबंध अभी तक मौजमस्ती वाले ही रहे हैं। स्वयं उनके अनुसार उनके रिश्ते किसी लड़की से एक-दो साल तक ही रहते हैं। उसके बाद उनकी राह अलग और लड़की की राह अलग। मीका सिंह ने यह खुलासा भी किया कि वे उस एक लड़की की शादी में नाचे भी हैं, जिसके साथ उनका कभी संबंध रहा था।


Who is Daler Mehndi married to?



यहां बताते चलें कि दलेर मेहंदी की दो शादियां हुई हैं। उनकी पहली शादी अमरजीत मेहंदी से हुई। दलेर मेहंदी ने दूसरी शादी गायिका तरनप्रीत उर्फ निक्की मेहंदी से की थी। दलेर मेहंदी के चार बच्चे हैं गुरदीप मेहंदी, अजित कौर मेहंदी, प्रभजोत कौर मेहंदी और रबाब कौर मेहंदी। अजित कौर की शादी गायक और सांसद हंसराज हंस के बेटे से हुई है। गुरदीप मेहंदी ने अभिनेत्री जेसिका सिंह से शादी की है।


कबूतरबाजी में दोषी भी पाए गए


Why did Daler Mehndi get arrested?

दलेर मेहंदी के खिलाफ 2003 में कबूतरबाजी यानी मानव तस्करी के मामले में केस दर्ज किया गया था। यह मामला 1998-99 का था लेकिन दलेर मेहंदी के प्रभाव के कारण केस 2003 में जाकर दर्ज हो सका। दलेर मेहंदी पर आरोप लगा कि वह अपने एक और भाई शमशेर सिंह के साथ मिलकर अवैध इमिग्रेशन ग्रुप चलाते हैं। उन पर आरोप लगा कि इस ग्रुप के जरिये उन्होंने 1998 और 1999 में अमेरिका के दो दौरे किए। वह 10 लोगों को अपना क्रू मेंबर (गायक दल के सदस्य) बताकर साथ ले गए और फिर उन्हें अमेरिका में ही छोड़कर लौट आए। अमेरिका में छोड़े गए इन लोगों में कई लड़कियां भी शामिल थीं।

दलेर मेहंदी के खिलाफ बख्शीश सिंह नाम के व्यक्ति ने पटियाला में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद 35 और लोग सामने आ गए जिनका आरोप था कि दलेर मेहंदी ने उनसे अमेरिका भेजने के पैसे लिए लेकिन भेजा नहीं। इस केस की जांच के दौरान पटियाला पुलिस ने दलेर मेहंदी के दिल्ली स्थित घर पर छापा भी मारा था और कई अहम दस्तावेज बरामद किए थे। 2003 में दलेर मेहंदी गिरफ्तार हुए, लेकिन उन्हें जमानत मिल गई थी। हालांकि पंजाब पुलिस ने 2006 में दलेर मेहंदी को क्लीन चिट की तैयारी कर ली थी, लेकिन कोर्ट ने इसे नहीं माना और जांच जारी रखने को कहा।

मामला अदालत में चला और स्थानीय अदालत ने मार्च 2018 में दलेर महेंदी को दो साल की सजा भी सुनाई। इस पर पुलिस  ने तुरंत दलेर मेहंदी को हिरासत में ले लिया था। हालांकि कुछ ही मिनट बाद उन्हें जमानत भी मिल गई थी और वह बाहर आ गए। दलेर मेहंदी के भाई शमशेर सिंह की अक्टूबर 2017 में मृत्यु हो चुकी है।

दलेर मेहंदी का पहला एल्बम 'बोलो ता रा-रा' था जिसने उन्हें पॉप स्टार के रूप में स्थापित कर दिया था। इस एल्बम की उस समय करीब 2 करोड़ कॉपियां बिकी थीं। इसके बाद दलेर मेहंदी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

- लव कुमार सिंह 

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Friday 21 August 2020

जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें?

How to apply for Birth and Death Certificate online?


आज के समय में भविष्य की अनेक परेशानियों से बचने के लिए यह जरूरी हो गया है कि यदि घर में किसी बच्चे का जन्म हुआ है या किसी की मृत्यु हुई है तो उसके लिए जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा लिया जाए। ये दोनों ही प्रमाणपत्र बाद में बहुत काम आते हैं।

जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए अब सरकार ने ऑनलाइन आसान व्यवस्था कर दी है। इसके लिए आपको एक सरकारी वेबसाइट पर जाना होगा जिसका नाम है- crsorgi.gov.in यानी सीआरएसओआरजीआई डॉट गव डॉट इन। लेकिन ध्यान रखें कि इस बच्चे के जन्म या किसी की मृत्यु होने प 21 दिन के अंदर इस वेबसाइट पर आवेदन करना होता है। अगर 21 दिन से ज्यादा की देरी होती है तो फिर आपको अपने यहां के नगर निगम के दफ्तर में जाना होगा। वहां लेट फीस देनी होगी और देरी का कारण भी बताना होगा। इसके बाद वह अधिकारी ही आपकी तरफ से ऑनलाइन आवेदन कर सकेगा, जिसमें काफी झंझट का सामना करना पड़ता है।

इसीलिए यदि घर में किसी बच्चे का जन्म हो  या किसी मृत्यु हो तो 21 दिन के अंदर इस वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर दें।


आवेदन के लिए जरूरी प्रमाणपत्र


बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए- 

जन्म प्रमाण पत्र के लिए अस्पताल से जारी प्रमाणपत्र, घर पर जन्म होने पर इलाके के पार्षद का पत्र और सफाई व खाद्य निरीक्षक की जांच रिपोर्ट, आधार कार्ड और वोटर आई कार्ड की जरूरत पड़ती है। यदि आप लेट हो जाते हैं और एक वर्ष बाद प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करते हैं तो फिर सिटी मजिस्ट्रेट का प्रमाणपत्र और आयु प्रमाण पत्र लगाना जरूरी होता है।

मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए

मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए आवेदक की फोटो, मृतक की फोटो, मृतक का पहचान पत्र, घर पर मृत्यु होने पर इलाके के पार्षद का पत्र, श्मशान स्थल पर दिया जाने वाला मृत्यु प्रमाणपत्र और सफाई एवं खाद्य निरीक्षक की जांच रिपोर्ट, अस्पताल में मृत्यु होने पर अस्पताल का प्रमाणपत्र आदि लगाने की जरूरत होती है।

अब पूरे देश में जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए एक समान व्यवस्था कर दी गई है। इसलिए अच्छा यही है कि बाद के झंझटों से बचने के लिए जन्म या मृत्यु होने पर 21 दिन के अंदर सरकार की वेबसाइट पर प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कर दें।

- लव कुमार सिंह


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Thursday 6 August 2020

यूपीएससी द्वारा चुने गए आईएएस/आईपीएस के लिए एक आह्वान


दोस्तों,

हाल ही में यूपीएससी (#UPSC संघ लोक सेवा आयोग) की परीक्षा का रिजल्ट निकला है। सैकड़ों युवा इस परीक्षा में सफल हुए हैं। मेरी उन सभी को शुभकामनाएं। 

मेरा मानना है कि इस देश को पीएम या सीएम नहीं बल्कि आईएएस या आईपीएस ही चलाते हैं। अगर वे ईमानदारी से काम करें तो देश की तस्वीर बदल सकती है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पा रहा है। 

इसलिए मेरी यह कविता उन आईएएस, आईपीएस से मुखातिब है जो देश और समाज की सेवा का प्रण तो लेते हैं, मगर जल्दी ही इस प्रण को भूल जाते हैं। आप भी गौर फरमाएं-

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चाहता हूं मैं करना, सेवा समाज की

यूपीएससी के इंटरव्यू मेंसबने ये आवाज दी

बोर्ड के सदस्य, इस आह्वान से हुए विभोर

आईएएसआईपीएस की पट्टी उनके नाम की।

पर सफल हुए युवा जब, मैदान में आने लगे

बोलियां ऐसे लगीं, जैसे मंडी में माल की

अधिकांश सेवा भूल गए, मेवा के फेर में

वे नोट छापने लगे, हुई दुर्गति समाज की।


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हे युवा लोक-सेवकों, एक बात कहनी है तुम्हें

चाहो तुम तो समस्याएं, दिखें दूर भागती

तुम ही सीएम, तुम ही पीएम, जनता के सब तुम ही हो

इंसान बनो, काम करो, बात सुनो इस समाज की।

गरीबी और भ्रष्टाचार , न रहेंगे इस देश में

न्याय सभी को मिले, बस मांग तेरे साथ की

हालात बदलें, देश बदले, विकास ही विकास हो

गर इंटरव्यू में जो कहा, रखो लाज उस बात की।


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यह गीत आपको सुनने में और भी अच्छा लगेगा। नीचे के चित्र पर क्लिक करें और सुनें---



- लव कुमार सिंह

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