Friday, 28 August 2020

राष्ट्रीय खेल दिवस : जब ध्यानचंद की हिटलर से हुई मुलाकात तो क्या हुई बात

National Sports Day : What happened when Dhyanchand met Hitler


राष्ट्रीय खेल दिवस : जब ध्यानचंद की हिटलर से हुई मुलाकात तो क्या हुई बात 




ये 1936 का वर्ष था। उस वर्ष के ओलंपिक जर्मनी के बर्लिन शहर में हो रहे थे। वो जर्मनी जिस पर उस समय तानाशाह एडोल्फ हिटलर का राज था। ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम के कप्तान ध्यानचंद बनाए गए थे। वे इससे पहले 1932 के लास एंजिल्स और 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में भी भारतीय टीम में खेल चुके थे और टीम को स्वर्ण पदक जिता चुके थे। इन पदकों की बदौलत ध्यानचंद सेना में लांस नायक के पद तक पहुंच चुके थे। सूबेदार, लेफ्टीनेंट, कैप्टन और मेजर वे बाद में बने।

जर्मनी की टीम ने इस ओलंपिक के लिए जबरदस्त तैयारी की थी। यह इससे पता चल गया कि ध्यानचंद की कप्तानी वाली और दो बार की ओलंपिक विजेता भारतीय टीम अभ्यास मैच में जर्मनी से 1-4 से हार गई। इससे भारतीय टीम बहुत निराश हुई और जर्मनी का हौसला सातवें आसमान पर पहुंच गया। बहरहाल, भारतीयों ने स्वयं को संभाला, रणनीति बदली और ओलंपिक के मैचों में हंगरी को 4-0 से, अमेरिका को 7-0 से और जापान को 9-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया। सेमीफाइनल में ध्यानचंद और उनके साथियों ने फ्रांस को 10-0 से हराया। अब फाइनल जर्मनी के साथ था जो भारत को अभ्यास मैच में हरा चुका था।

हिटलर और जर्मनवासियों को पूरी उम्मीद थी कि उनकी टीम भारतीय टीम को हरा देगी। हिटलर तो वैसे भी नस्लीय भेदभाव को मानने वाला व्यक्ति था और वह जर्मनी और उसकी टीम को सर्वश्रेष्ठ मानता था।

हिटलर ने इससे पहले भारतीय टीम यानी ध्यानचंद का कोई मैच नहीं देखा था। यदि बारिश से मैदान गीला होने के कारण फाइनल मैच स्थगित नहीं होता तो हिटलर हॉकी के फाइनल मैच में नहीं होता। लेकिन एक बार स्थगित होने के बाद मैच ओलंपिक के अंतिम दिन मुख्य स्टेडियम में हुआ, जहां हिटलर भी मौजूद था। हालांकि भारतीय टीम का खेल देखकर वह हाफ टाइम में स्टेडियम से चला गया क्योंकि वह जर्मनी की हार का गवाह नहीं बनना चाहता था। हालांकि बाद में वह मेडल वितरण समारोह में शामिल होने के लिए लौट आया। यहां बताते चलें कि भारतीय टीम दुनिया की उन कुछ टीमों में शामिल थीं जिन्होंने हिटलर को ‘नाजी सैल्यूट’ नहीं किया था। बाकी सभी टीम हिटलर के मौजूद होने पर उसे नाजी सैल्यूट करती थीं।

करीब 40 हजार दर्शकों के बीच हुए फाइनल मैच में भारतीय टीम हाफ टाइम तक 1 गोल से आगे थी। इसके बाद जर्मनी की टीम बुरे बर्ताव पर उतर आई। ध्यानचंद के चारों ओर कई खिलाड़ी लगा दिए गए। इसी दौरान गलत तरीके से टेकल करने के कारण ध्यानचंद का एक दांत भी टूट गया। यह भी बताया जाता है कि इस मैच में ध्यानचंद और उनके साथियों ने अपने जूते उतार दिए थे और वे पहले नंगे पैर और फिर रबर के स्लीपर पहनकर भी खेले थे।

हाफ टाइम के बाद भारत ने सात गोल और किए। इनमें ध्यानचंद के लगातार तीन गोल (हैट्रिक) भी शामिल थे। जर्मनी की टीम केवल एक गोल कर सकी, जो पूरे ओलंपिक में भारतीय टीम के खिलाफ हुआ एकमात्र गोल था। इस प्रकार भारत ने यह मैच 8-1 से जीतकर तीसरी बार ओलंपिक स्वर्ण अपने नाम कर लिया।

इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद को संदेशा भिजवाया कि वे उससे आकर मिलें। हिटलर एक क्रूर शासक था। जर्मनी में यहूदियों के साथ बहुत बुरा सुलूक हो रहा था। पूरी दुनिया हिटलर के नाम से डरती थी। ध्यानचंद ने यह भी सुन रखा था कि हिटलर अपने सामने ही लोगों को गोली से मरवा देता है। इसलिए जब ध्यानचंद को यह पता चला कि हिटलर उनसे मिलना चाहता है तो उनका शरीर जैसे सुन्न सा हो गया।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हिटलर स्टेडियम में ही अपनी निजी बॉक्स में ध्यानचंद से मिला, जबकि कुछ अन्य रिपोर्ट्स कहती हैं कि यह मुलाकात हॉकी फाइनल के अगले दिन हुई थी।

बहरहाल, ध्यानचंद हिटलर से मिलने गए। इस मुलाकात का जिक्र उस समय भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर रहे स्वामी जगन नाथ ने कई बार मीडिया के सामने किया है। इसके अलावा ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ में भी इसका जिक्र है।

हिटलर ने ध्यानचंद का स्वागत किया। उसने सबसे पहले ध्यानचंद के बहुत ही साधारण से कैनवास के जूतों पर एक नजर डाली और उनसे पूछा- 

जब तुम हॉकी नहीं खेल रहे होते हो तो क्या करते हो?

ध्यानचंद ने कहा- मैं भारतीय सेना में हूं।

हिटलर ने सवाल दागा- तुम्हारा रैंक क्या है?

ध्यानचंद ने जवाब दिया- मैं लांस नायक हूं।

अब हिटलर ने प्रस्ताव रखते हुए कहा- जर्मनी आ जाओ। मैं तुम्हें फील्ड मार्शल बनाऊंगा।

ध्यानचंद एकदम से कुछ समझ नहीं पाए। दरअसल वे यह सोचकर भ्रमित हो गए कि यह हिटलर का आदेश था या अनुरोध। लेकिन फिर वे संभले और विनम्रता से कहा- भारत मेरा देश है। मेरा परिवार वहां रहता है और मैं वहां ठीक हूं।

अब हिटलर बोला- जैसा तुम ठीक समझो।

इसी के साथ यह मुलाकात खत्म हो गई।

उल्लेखनीय है कि ‘हॉकी के जादूगर’ कहे गए ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। पांच फुट सात इंच लंबे ध्यानचंद 1921 में सेना में भर्ती हुए और अपने जादुई खेल के बल पर मेजर के पद तक पहुंचे। 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के लिए स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से ज्यादा गोल किए। 1956 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 3 दिसंबर 1979 को 74 वर्ष की आयु में दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई। उनके जन्मदिवस को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

- लव कुमार सिंह

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