Sunday 30 May 2021

सरकारी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट हवाई अड्डे पर अमान्य

Government lab corona test report invalid at airport

अगर विदेश यात्रा पर जाएं तो कोरोना टेस्ट सरकारी लैब से न कराएं, वरना बहुत परेशान होंगे

If you travel abroad, do not get corona test done by the government lab, otherwise it will be very upset



अगर आप या आपका कोई परिजन हवाई यात्रा करने की योजना बना रहे हैं तो सावधान हो जाइए। हवाई यात्रा के लिए कोरोना का टेस्ट कराना अनिवार्य है। यात्रा से 72 घंटे पहले का आररटीपीसीआर टेस्ट या 48 घंटे से पहले का एंटीजन टेस्ट जरूरी होता है। लेकिन यदि ये टेस्ट आपने किसी सरकारी लैब से कराए हैं तो आपको अपनी यात्रा में काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। 

ऐसा इसलिए है क्योंकि कोरोना की सरकारी टेस्ट रिपोर्ट देश में ही स्थित हवाई अड्डों पर मंजूर नहीं की जा रही है। इसका कारण यह है कि सरकारी टेस्ट रिपोर्ट में क्यूआर कोड नहीं दिया जाता, जबकि 22 अप्रैल 2021 से हवाई यात्रा के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि कोरोना टेस्ट रिपोर्ट में क्यूआर कोड होना अनिवार्य है। बिना क्यूआर कोड के रिपोर्ट स्वीकार नहीं होगी। सरकार ने नियम बना दिया जबकि सरकारी रिपोर्ट में ही क्यूआर कोड की व्यवस्था नहीं की गई है। सरकारी रिपोर्ट एक लिंक के जरिये सादा कागज पर प्रिंट मिलती है, जिसे देखकर लगता है कि इसे तो कोई भी अपने कंप्यूटर पर बैठकर बना सकता है। उधर,  प्राइवेट लैब वालों ने रिपोर्ट में क्यूआर कोड की व्यवस्था कर ली है और प्राइवेट लैब की रिपोर्ट हवाई अड्डों पर स्वीकार की जा रही है।

यह कोई सुनी-सुनाई बात नहीं है बल्कि इस लेखक का स्वयं का अनुभव है। 29 मई 2021 की रात को लेखक की पुत्री को अपनी पढ़ाई के सिलसिले में जर्मनी की यात्रा करनी थी। इसके लिए मेरठ के लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में कोरोना टेस्ट कराया था। पुत्री की खतौली निवासी सहेली भी उसके साथ जा रही थी। सहेली ने अपना टेस्ट निजी लैब से कराया था। दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर चेक-इन के दैरान वहां मौजूद स्टाफ ने बिना क्यूआर कोड वाली सरकारी टेस्ट रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया। उन्हें बताया गया कि सरकारी टेस्ट रिपोर्ट में एक लिंक दिया जाता है। उस लिंक को खोलने पर ओटीपी आता है और फिर यह रिपोर्ट खुलती है, लेकिन उन्हें बिना क्यूआर कोड के कुछ भी मंजूर नहीं था।

उधर, पुत्री की सहेली आसानी से आगे बढ़ गई, क्योंकि उसकी निजी लैब वाली रिपोर्ट में क्यू आर कोड था। पुत्री अंदर जाकर फिर से बाहर आ गई। बड़े परेशान हुए। दौड़े-दौड़े वहीं पर स्थित रैपिड एंटीजन टेस्ट के काउंटर पर गए। 1200 रुपये देकर रैपिड एंटीजन टेस्ट कराया। उसकी रिपोर्ट 15-20 मिनट में आ गई। उसे लेकर पुत्री फिर से अंदर गई। उन्होंने उसे रिपोर्ट को मंजूर किया और तब जाकर राहत की सांस मिली। इससे पहले इतनी अफरातफरी का माहौल रहा कि बस पूछिए मत।

...तो यदि आप या आप का कोई परिजन आगे कभी भी हवाई यात्रा पर जाए तो कोरोना का टेस्ट निजी लैब से ही कराएं। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो एयरपोर्ट पर बहुत परेशानी उठानी पड़ेगी।

नीचे देखिए सरकारी आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट जिसे देखकर लगता है कि इसे कंप्यूटर पर कोई भी बना सकता है। ना कोई सरकारी लोगो है, न किसी के हस्ताक्षर हैं। बस लिखाए गए फोन नंबर पर एक लिंक भेजा जाता है। उस लिंक को खोलकर फोन नंबर डालना होता है। फोन नंबर पर ओटीपी आता है और उसे डालने पर यह रिपोर्ट खुलती है। व्यवस्था पूरी दुरुस्त है और यह साधारण रिपोर्ट भी बिना लिंक व ओटीपी के नहीं मिलती है, लेकिन यदि हवाई अड्डे के लिए क्यूआर कोड अनिवार्य किया गया है तो इसे सरकारी रिपोर्ट पर भी होना चाहिए। क्यूआर कोड भी किसी अधिकृत/मूल स्रोत या लिंक तक पहुंचने के लिए ही होता है। लेकिन सरकारी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पर यह नहीं है, जबकि हवाई अड्डे पर इस रिपोर्ट में क्यूआरकोड का होना जरूरी है।



- लव कुमार सिंह

Wednesday 26 May 2021

गत्यात्मक ज्योतिष के अनुसार पहलवान सुशील कुमार को सितंबर-अक्टूबर तक कोर्ट से राहत मिल सकती है

According to Gatyatmak Astrology, wrestler Sushil Kumar may get relief from the court by September-October



स्वयं को गत्यात्मक ज्योतिष का जनक कहने वाले विद्या सागर महथा के अनुसार साथी पहलवान की हत्या में आरोपित ओलंपिक पदक विजेता पहलवान को इस साल सितंबर-अक्टूबर तक कोर्ट से राहत मिल सकती है। यानी कोर्ट का फैसला सुशील कुमार के हक में आ सकता है।

उल्लेखनीय है कि गत्यात्मक ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रत्येक 12 वर्षों में आधारभूत परिवर्तन होता है। विद्या सागर महथा अपनी फेसबुक पोस्ट में इस विषय पर लिखते हैं कि सुशील कुमार को 24 से 36 वर्ष के 12 वर्ष के कालखंड में कुश्ती जगत की राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जबर्दस्त सफलता हासिल हुई। इसी कालखंड में सुशील कुमार 2008 के बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक, 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीतकर लगातार दो ओलंपिक मुकाबलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। इसके अलावा सुशील कुमार को राजीव गाँधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, पदम्श्री जैसे सम्मान भी मिले।


विद्या सागर महथा

विद्या सागर महथा के अनुसार सुशील कुमार की जन्मपत्री में जिस प्रकार ग्रहों की गति-स्थिति है, पिछले पांच छः वर्षों से बड़ी बड़ी सफलताओं के बावजूद कुछ समस्याएं इनके सामने उपस्थित होती रही हैं। महथा के अनुसार सुशील 2022 तक बाधाओं और समस्याओं से जूझते रहेंगे, फिर भी सितंबर-अक्टूबर 2021 में कोर्ट का फैसला उनके लिए राहत की खबर दे सकता है।

अपनी पोस्ट के साथ एक ग्राफ देते हुए महथा लिखते हैं कि गत्यात्मक ज्योतिष का गतिज ग्राफ बहुत नीचे नहीं गया है। अतः ऐसा लगता है कि आरोप से संभवतः बचने का रास्ता निकल जायगा। 2029, 2030, 2031 में ग्रहगति की बाधाओं के कारण इन्हें पुनः कुछ विरोधियों का सामना करना पड़ सकता है या कुछ झंझट परेशानी में फंस सकते हैं। फिर भी 54 वर्ष की उम्र तक आत्मविश्वास में कमी नहीं होगी, सहयोगियों का सहयोग मिलता रहेगा लेकिन इसके बाद ग्राफ नीचे जा रहा है, इसलिए सुशील कुमार को सतर्क रहने की जरूरत पड़ेगी।


यहां बताते चलें कि प्राचीन ज्योतिष के ग्रंथों में वर्णित ग्रहों की अवस्था के अनुसार मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले ग्रहों की गति के सापेक्ष उनकी शक्ति के प्रभाव के 12-12 वर्षों का विभाजन `गत्यात्मक दशा पद्धति´ कहलाता है। यह सिद्धांत, परंपरागत ज्योतिष पर आधारित होते हुए भी पूर्णतया नवीन दृष्टिकोण पर आधारित है।


- लव कुमार सिंह

Tuesday 25 May 2021

जब कोरोना नहीं था, तब भी गंगा घाट पर इसी प्रकार शव दफनाए जाते रहे हैं

Even when there was no corona, the bodies have been buried in the same way on the Ganges Ghat

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आप आज के मीडिया को कितना भी कोसिए, लेकिन मुझे आज के मीडिया की केवल और केवल एक बात बहुत अच्छी लगती है और वो यह कि झूठ कोई सा भी पक्ष बोले, दावा कोई सा भी खेमा करे, षड्यंत्र किसी की भी तरफ से हो, असली बात बहुत जल्द दुनिया के सामने आ जाती है। बेशक मीडिया खेमों में बंटा है, लेकिन इसका एक फायदा यह हुआ है कि झूठ ज्यादा देर तक टिक नहीं पाता। मीडिया का एक वर्ग कुछ दावा करता है तो दूसरा उस दावे की पड़ताल में जुट जाता है और यदि बात झूठी होती है तो तुरंत उसे तथ्यों के साथ परोस देता है। जब मीडिया कथित रूप से तटस्थ था, तब ऐसा अमूमन देखने को नहीं मिलता था।

हां, यह जरूर है कि इसके लिए आपको पाठक, दर्शक के रूप में थोड़ी मेहनत जरूर करनी होती है। आपको दोनों तरह के चैनल देखने होते हैं और दोनों तरह की वेबसाइट्स पर नजर पर नजर डालनी होती हैं। साथ ही अखबारों पर भी नजर बनाना जरूरी होता है।

अब देखिए ना, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में गंगा के किनारे शवों को दफनाने के बड़े-बड़े फोटो छापे गए।  इस संबंध में क्या-क्या नहीं कहा गया, कैसी-कैसी गालियां दी गईं। लेकिन अब पता चल रहा है कि प्रयागराज में तो गंगा के किनारे के कुछ समाजों में शवों को इसी तरह दफनाने की बहुत परंपरा है। दैनिक जागरण में तो 2018 की एक तस्वीर भी आ गई है जो लगभग वैसी ही है, जैसी कोरोना के इस वर्तमान काल में दिखाई जा रही है। यानी जब कोरोना नहीं था, तब भी एक विशेष क्षेत्र में गंगा के किनारे का यही हाल था।

नीचे दैनिक जागरण की खबर का प्रयागराज से प्रकाशित एक खबर का चित्र है, जो सारी स्थिति को स्पष्ट कर रहा है।



प्रस्तुति- लव कुमार सिंह


#Media #Corona #FakeNews #Covid #Unite2fightCorona 

Sunday 23 May 2021

क्रिकेट में क्या होती है 'ड्रॉप इन' पिच?

What is 'drop in' pitch in cricket?



आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच दूसरे टेस्ट मैच (2019-20) के दौरान एक नया शब्द 'ड्रॉप इन' पिच सुनने को मिला। पर्थ में अभी तक जिस मैदान पर टेस्ट मैच होते थे, उसे वाका के नाम से जाना जाता था। लेकिन अब पर्थ में वाका के साथ ही एक नया स्टेडियम 'ऑप्टस' बनाया गया है और इसमें क्रिकेट मैच के आयोजन के दौरान 'ड्रॉप इन' पिच का इस्तेमाल किया जाता है।

दरअसल 'ऑप्टस' स्टेडियम कई खेलों का स्टेडियम है। यहां केवल क्रिकेट ही नहीं खेला जाता बल्कि फुटबाल समेत तमाम खेल खेले जाते हैं। जाहिर है कि जब इस मैदान पर फुटबाल का खेल खेला जाएगा तो क्रिकेट की पिच के खराब होने की पूरी संभावना रहेगी। इसीलिए इस मैदान पर क्रिकेट मैच के दौरान 'ड्रॉप इन' पिच का तरीका अपनाया गया है।

'ड्रॉप इन' पिच को किसी दूसरी जगह पर तैयार किया जाता है। जब भी स्टेडियम में क्रिकेट मैच का आयोजन होता है तो उससे ठीक पहले ऐसी पिच को स्टेडियम में स्थापित कर दिया जाता है। जब स्टेडियम में क्रिकेट से अलग कोई और खेल होता है तो इस पिच को वहां से हटा दिया जाता है।

पर्थ के दूसरे टेस्ट मैच को टेलीविजन पर देख रहे दर्शकों को भी स्पष्ट रूप से पिच का वह हिस्सा बाकी मैदान से कुछ अलग रंग का दिखाई दिया। पिच के उस चौकोर हिस्से की घास का रंग अलग होने से कई बार तो ऐसा एहसास भी हुआ जैसे कि मैदान पर केवल पिच वाले स्थान पर ही सूरज की रोशनी पड़ रही हो। खासकर दोपहर के बाद यह नजारा विशेष रूप से दिखाई दिया।

'ड्रॉप इन' पिच का मुख्य लाभ यही है कि इसकी वजह से एक ही मैदान पर कई प्रकार के खेल और कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। अभी तक विशेष रूप से क्रिकेट के लिए बने स्टेडियमों में क्रिकेट के अतिरिक्त अन्य कोई गतिविधि नहीं हो सकती थी, लेकिन जहां 'ड्रॉप इन' पिच की सुविधा है, वहां क्रिकेट के अलावा फुटबाल, रग्बी जैसे खेल और म्यूजिकल नाइट जैसे आयोजन भी कराए जा सकते हैं।

'ड्रॉप इन' पिच का यह फायदा भी है कि इसे क्यूरेटर अपने मनमाफिक यानी अपने देश और अपनी टीम के अनुकूल बना सकता है। पहली 'ड्रॉप इन' पिच पर्थ के ही वाका स्टेडियम में स्थापित की गई थी।

- लव कुमार सिंह

सुपरमून : चांद लाल क्यों दिखता है?

Supermoon : Why does the moon look red?



आपके मन में सवाल होगा-


मून पर ये खून कैसा?

लाल क्यूं दिखता है चंदा?

वो तो था कुछ रूई जैसा

लालम लाल क्यूं है बंदा?


...तो ये बदलाव इस प्रकार संभव हुआ-

 

धरती से मिलने की ख्वाहिश

चांद के दिल में जगी,

धरती को चंदा की कोशिश

बहुत ही प्यारी लगी।

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एक ही रस्ते पे दोनों

मिलने को आगे बढ़े,

खुश बहुत थे दुनियावाले

देखने को आ जुटे।

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चांद जब नजदीक आया

बड़ा-था वो और खिलखिलाया,

धरती वाले हुए दीवाने

सुपरमून तब वो कहलाया।


लेकिन खून का क्या? लाल का क्या?
हां-हां और सुनिए...


दोस्तों के इस मिलन में

एक घोटाला हो गया,

धरती की छाया से अपना

चांद काला पड़ गया।

चांद पर लग गई कालिख

चंद्रग्रहण यूं हो गया।

...........

पर सूर्य दादा वहीं पर

उसी रस्ते पर मौजूद थे,

वे खुश थे या नाराज थे

पर वहीं पर मुस्तैद थे।

..........

एक दृष्टि डाली तिरछी

शरमा गया अपना चंदा,

लंबी लाल किरणें छूकर

लालम लाल हुआ बंदा।

.........

लालम लाल हुआ बंदा

धरती को भा गया चंदा,

लालम लाल हुआ बंदा

धरती को भा गया चंदा।

.......


दोस्तो, यह कविता सुनने में और अच्छी लगती है। एक बार सुनें...







-लव कुमार सिंह

Friday 21 May 2021

महिमा चाय की, कमियां चाय की

Glory of tea, Sorry of tea


#InternationalTeaDay2021 #InternationalTeaDay #TeaLovers #चाय



महिला चाय की, कमियां चाय की

 

हम इतना चाहें इसको कि ‘चाह’ भी कहने लगे

ये जिंदगी का अंग बनके अंगों में समा रही

सबको ये सुलभ तो समतावादी कहिए इसे

अमीर हो या हो गरीब, सबके दिल पे छा रही।

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ये दे सुकून, ताजगी, आराम का बहाना भी

आरंभ दिन का इससे ही, और अंत में भी आ रही।

यह सादा है, सरल है और श्याम रंग धारणी

इसकी यही खूबियां, तन-मन को भा रहीं।

...............

पर सावधान चाय को बस, दोस्ती तक सीमित रखें

ज्यादा मुलाकातें सबब, समस्या बनके आ रहीं

ताजगी और स्वाद को, जज्ब बेशक कीजिए

पर बार-बार मुंह लगाके, चीनी घर बना रही।

................

प्यार में भी कभी-कभी, ऐसा हो जाता है

मिलने आती प्रेमिका, सहेली संग ला रही

बने मरीजे मधुमेह, तो हैरत में पड़ गए

चाय की सहेली चीनी, तन को तड़पा रही।


- लव कुमार सिंह


Thursday 20 May 2021

होम्योपैथी में ब्लैक फंगस के लिए क्या इलाज है?

What is the treatment for black fungus in homeopathy?


#BlackFungus #Corona #coronavirusinindia #COVIDー19



म्यूकोरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस उतना भयानक नहीं है जितना इसके बारे में प्रचारित हो रहा है, क्योंकि इसकी मारटेलिटी रेट ज्यादा होने पर भी संक्रामकता अत्यधिक कम है। यह फंगस हम सब के आसपास मिट्टी और हवा में हमेशा मौजूद रहता है, हम भी उसके साथ रहने की आदी हैं। स्वस्थ एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त किसी भी व्यक्ति को यह फंगस कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। इसलिए बहुत बीमार और रोग प्रतिरोधक क्षमता खो चुके लोगों को छोड़कर अन्य किसी को इससे डरने की जरूरत नहीं। यह कहना है एमडीहोमियो लैब प्राइवेट लिमिटेडमहाराजगंजगाज़ीपुरउप्र, के प्रबंध निदेशक डॉ. एमडी सिंह का। 

डॉ एमडी सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखी अपनी पोस्ट में बताया है म्यूकोरमाइकोसिस को जाइगोरमाइकोसिस के नाम से भी जाना जाता रहा है। यह बहुत ही कम होने वाला मारक फंगल डिजीज है। यह आमतौर पर पहले से अत्यधिक बीमार, अंग प्रत्यारोपण करवाए हुए, कैंसर जैसे अनेक कठिन रोगों से पूर्व पीड़ित एवं अनेक जीवन रक्षक औषधियों तथा आक्सीजन, वेंटिलेटर आदि के सपोर्ट पर जीवित रोग प्रतिरोधक क्षमता खोए हुए लोगों को प्रभावित करता है।

इस फंगस के स्रोत धूल, मिट्टी, पशुओं के डंग(गोबर), सड़ रहे खर-पतवार, निर्माण कार्य चल रहे स्थल हैं। अस्पतालों में जहां साफ-सफाई की सुविधा कम हो , लंबे समय से लगे राइस ट्यूब, कैथेटर, ऑक्सीजन ट्यूब एवं बैंडेज इत्यादि भी इस फंगस के रिहायशी स्थल हैं। गर्मी के दिनों में वायु में भी इसके पोर्स पाए जाते हैं।

डॉ. एमडी सिंह के अनुसार होम्योपैथी में इस रोग का प्रभावी इलाज मौजूद है। इसके लिए होम्योपैथी में कई दवाइयां मौजूद हैं।

होम्योपैथी में ये इलाज है....


उपाय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए ताकि रोग होने ही न पाए...


रोग प्रतिरोध के लिए होम्योपैथी की दो औषधियां हैं

  • मैंसीनेला 200 एवं
  • हिप्पोजेनियम 200

इनका प्रयोग एक-एक हफ्ते पर एक खुराक बारी-बारी से जीर्ण मरीजों को देकर इस फंगस के प्रकोप से बचाया जा सकता है। इन दोनों औषधियों को रोग होने से पहले ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी लिया जा सकता है।


उपाय जब रोग हो जाए...


संभावित दवाएं ये हैं, जिन्हें अपने पूरे लक्षण बताकर किसी योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह पर लेना चाहिए। होम्योपैथिक चिकित्सा में लक्षण बहुत महत्वपूर्ण हैं। ब्लैक फंगस के भी कई प्रकार होते हैं, इसलिए रोग के ठीक होेने के लिए सही लक्षण के अनुसार सही दवा का चुनाव जरूरी होता है। इसलिए चिकित्सक का परामर्श अनिवार्य हो जाता है।

  • आरम मेटालिकम
  • एरम ट्रिफलम
  • अरण्डो
  • मेजेरियम
  • मैलेन्ड्रिनम
  • मर्क्यूरियस
  • प्रूनस स्पाइनोसा
  • सिन्नाबेरिस
  • रस टाक्स
  • टिकुरियम मेरम वेरम
  • आर्सेनिक एल्बम
  • एसिड नाइट्रिक
  • काली आयोडेटम
  • एसिड म्यूर
  • आर्स ब्रोमाइड 
  • काण्डुरैंगो
  • क्रिएजोट

उपाय ताकि ये रोग न हो...

  • चिंता और तनाव से मुक्त रहकर अपनी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहिए।
  • शुद्ध आसानी से पचने वाले ताजा भोजन एवं ताजी मौसमी फलों का प्रयोग करना चाहिए।
  • योग, व्यायाम एवं प्राणायाम द्वारा अपनी शारीरिक क्षमता को सदैव ठीक रखना चाहिए।
  • अपने आसपास के वातावरण को को साफ और शुद्ध रखने का भरसक प्रयास करना चाहिए।
  • पेट को अजीर्ण और कब्ज से से बचा कर रखना चाहिए।
  • रुग्ण अवस्था में मरीज के वार्ड, बेड, कैथेटर, बैंडेज, राइस ट्यूब एवं ऑक्सीजन ट्यूब आदि का प्रॉपर तरीके से समय-समय पर सफाई हो जाना चाहिए।
  • ऐसे कमजोर मरीजों के रूम ने अच्छा एयर फिल्टर लगा होना चाहिए।
  • कोई भी लक्षण मिलने पर तुरंत एंटीफंगल औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।

डॉ. एमडी सिंह का ईमेल पता है- md@mdhomoeo.com


- प्रस्तुति लव कुमार सिंह


Wednesday 19 May 2021

सुमित्रानंदन पंत : प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए 10 प्रमुख तथ्य

सुमित्रानंदन पंत के बारे में 10 प्रमुख तथ्य जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत काम के हैं



  1. हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक कहलाए। तीन अन्य स्तंभ थे जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
  2. जन्म वर्तमान उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ। बचपन में नाम गोसाईं दत्त मिला जो उन्होंने अल्मोड़ा में हाईस्कूल की शिक्षा के दौरान बदलकर सुमित्रानंदन पंत कर लिया।
  3. चौथी कक्षा में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। काशी के क्वींस कॉलेज, इलाहाबाद के म्योर कॉलेज में पढ़ने के बाद असहयोग आंदोलन के दौरान कॉलेज छोड़कर घर पर ही पढ़ाई की। अनेक वर्ष कालाकांकर, प्रतापगढ़ में भी रहे।
  4. 1938 में मासिक पत्रिका ‘रूपाभ’ का संपादन किया। 1950 से 1957 तक आकाशवाणी से जुड़े रहे।
  5. 1958 में प्रकाशित काव्य संकलन ‘चिदंबरा’ के लिए 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
  6. 1960 में काव्य संग्रह ‘कला और बूढ़ा चांद’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  7. 1961 में पद्मभूषण सम्मान मिला। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार भी मिला।
  8. 1964 में विशाल महाकाव्य ‘लोकायतन’ प्रकाशित हुआ। ‘पल्लव’ उनका सबसे कलात्मक कविता संग्रह माना जाता है। वीणा, उच्छवास, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, ग्राम्या, गुंजन, सत्यकाम उनके अन्य प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं।
  9. हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से उन्होंने ‘खादी के फूल’ नाम का कविता संग्रह प्रकाशित कराया।
  10. वे मार्क्सवादी विचारधारा के थे। लेकिन वे महात्मा गांधी और योगी अरविंद से भी प्रभावित थे। उनका पूरा साहित्य ‘सत्यं शिवं सुंदरम्’ के आदर्श से प्रभावित रहा। लेकिन फिर भी इसमें बदलाव देखने को मिलता है। उनकी प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के दर्शन होते हैं। दूसरे चरण में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाएं और कोमल भावनाएं मिलती हैं तो अंतिम चरण में प्रगतिवाद और विचारशीलता देखने को मिलती है। जीवनभर अविवाहित रहे। 28 दिसंबर 1977 को मृत्यु हुई।
- लव कुमार सिंह

विष्णु शास्त्री चिपलूणकर : मात्र 32 वर्ष की उम्र में मराठी भाषा के 'शिवाजी' कहलाए

विष्णु शास्त्री चिपलूणकर के बारे में 10 प्रमुख तथ्य जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत काम के हैं



  1. विष्णु शास्त्री चिपपूणकर मराठी गद्य के युग प्रवर्तक साहित्यकार और संपादक कहलाते हैं।
  2. चिपलूणकर को मराठी भाषा का ‘शिवाजी’ कहा जाता है।
  3. जनवरी 1981 में जीजी अगरकर और बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर मराठी में ‘केसरी’ और अंग्रेजी में ‘मराठा’ नाम के समाचार पत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया। ये वे समाचार पत्र थे जिनकी वजह से तिलक न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गए। इन समाचार पत्रों के जरिये ही तिलक अपने जनजागरण अभियान को सफल बना सके।
  4. इससे पहले उन्होंने ‘निबंधमाला’ नाम की मासिक पत्रिका निकाली। अनेक लेख, निबंध लिखे जिनमें ‘आमच्या देशाचीं सद्यस्थिति’ (हमारे देश की वर्तमान स्थिति) बहुत चर्चित हुआ और इससे अंग्रेज भी उनसे नाराज हो गए।
  5. उन्होंने सेमुअल जॉनसन के उपन्यास ‘रासेलस’ का मराठी में अनुवाद भी किया। उन्होंने 1872 से 1879 तक सरकारी स्कूल में अध्यापक के रूप में काम किया। उन्होंने एक मासिक ‘काव्येतिहास संग्रह’ भी निकाला।
  6. उन्होंने बाणभट्ट की ‘कादंबरी’ के अलावा ‘अरेबियन नाइट्स’ का भी मराठी में अनुवाद किया।
  7. ‘चित्रशाला’ नामक प्रेस की स्थापना की जो भारत में रंगीन चित्रों को प्रकाशित करने वाले सबसे पहले छापेखानों में से एक थी। उन्होंने ‘किताबखाना’ नाम से पुस्तकों की एक दुकान भी खोली।
  8. युवाओं में स्वदेशप्रेम जागृत करने के उद्देश्य से चिपलूणकर ने ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ नाम की पाठशाला की भी स्थापना की।
  9. ये सब काम चिपलूणकर जी ने मात्र 32 वर्ष के जीवन में ही कर डाले थे।
  10. उनका जन्म पुणे में 20 मई 1850 को हुआ था जबकि निधन 17 मार्च 1882 को हो गया। उनके निधन का कारण टायफाइड की बीमारी बनी।
- लव कुमार सिंह

 

इंटेलीजेंस विभाग की 'खुफिया रिपोर्ट' से प्रेरित लगते हैं केजरीवाल

Kejriwal seems inspired by Intelligence Department's 'Intelligence Report'



हमारे एक परिचित उत्तर प्रदेश सरकार के इंटेलीजेंस विभाग में काम करते थे। वे बड़े 'मुस्तैद' थे। उनके अनुसार जब भी दिवाली, होली, ईद या मोहर्रम जैसा कोई त्यौहार आता तो वे अपने दफ्तर में बैठकर एक रिपोर्ट तैयार करते थे और उसे प्रदेश सरकार के आला अधिकारियों को भेजते थे। रिपोर्ट का मजमून कुछ इस प्रकार होता था कि आगामी त्यौहार के मद्देनजर प्रदेश में कड़ी सतर्कता की जरूरत है। खुफिया इनपुट है कि असामाजिक तत्व इस मौके पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास कर सकते हैं। आतंकी संगठन भी इस मौके पर समाज में अशांति फैलाने का प्रयास कर सकते हैं।

इस रिपोर्ट के लिए उन अधिकारी या उनके इंटेलीजेंस विभाग को किसी तहकीकात या अनुसंधान की जरूरत नहीं होती थी या होती है। यह अपनी खाल बचाने और मुस्तैदी दिखाने का एक बहुत ही प्रचलित तरीका होता था और होता है। कॉमन सेंस की बात है कि अगर आपने इस तरह का खुफिया इनपुट नहीं दिया और कोई अप्रिय घटना हो गई तो अगले दिन ही शोर मच जाएगा कि खुफिया विभाग क्या कर रहा था? 

...तो  इस तरह की खुफिया रिपोर्ट से दोनों ही स्थितियों में इंटेलीजेंस विभाग की जिम्मेदारी पूरी हो जाती थी। यदि अप्रिय घटना हो गई तो विभाग के लिए राहत की बात होगी क्योंकि उसने तो पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी। यदि सब कुछ शांति से निबट गया तो भी बढ़िया क्योंकि तब यह मान जाएगा कि विभाग ने चेताया, सरकार और पुलिस ने सतर्कता बरती और असामाजिक तत्वों या आतंकवादियों की हिम्मत ही नहीं हुई कि वे कुछ कर सकें।

यही ट्रेंड इधर राजनीति में देखने को मिल रहा है। आगे आने वाले दिनों में बहुत सी ऐसी घटनाएं हो सकती हैं जिनका पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। ऐसी घटनाएं ना हों तो भी कोई बात नहीं क्योंकि कहने वाले ने संभावना ही तो व्यक्त की थी। और यदि ऐसी घटनाएं हो जाती हैं तो कहने वाले की बल्ले-बल्ले, क्योंकि तब उसके शागिर्द चिल्ला-चिल्लाकर पूरी दुनिया को बताते हैं कि फलाने ने तो पहले ही इसकी आशंका जता दी थी और देखिए वही हुआ। फलाने कितने ज्ञानी हैं।

यही पिछले साल कोरोना के संबंध में राहुल गांधी ने किया। यही इस साल कोरोना की तीसरी लहर को लेकर प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने किया और ऐसा ही कुछ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल करते नजर आ रहे हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि इंटेलीजेंस विभाग को कम से कम यह अधिकार तो होता है कि वह समाज में चल रही गतिविधियों के बारे में सरकार को बताए, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो वहां भी टांग घुसा रहे हैं जहां उनका कोई मतलब नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 18 मई 2021 को केजरीवाल ने दावा किया था कि सिंगापुर में पाया जाने वाला कोरोना का नया वैरिएंट खतरनाक है। इसलिए भारत सरकार को  इसे भारत आने से रोकने के लिए सिंगापुर की सारी फ्लाइट बंद कर देनी चाहिए। इसके बाद विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया कि सिंगापुर सरकार ने उच्चायोग को केजरीवाल सरकार के बयान पर कड़ी आपत्ति जताने के लिए कॉल किया था। विदेश मंत्रालय ने केजरीवाल के 'सिंगापुर वैरिएंट' के नाम पर डर फैलाने को लेकर जवाब देते हुए कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री भारत के लिए नहीं बोलते।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस संबंध में ट्वीट किया और लिखा कि- हालांकि ये गैर जिम्मेदार रवैया है, वो भी उनका, जिनहें मालूम होना चाहिए कि इससे लंबे समय से चली आ रही साझेदारी खराब हो सकती है। इसलिए मैं साफ कर देना चाहता हूं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री भारत के लिए नहीं बोलते।

इससे पहले सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अरविंद केजरीवाल के दावों को खारिज किया था। वहीं सिंगापुर के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को तथ्यों के आधार पर बोलने की सलाह देते हुए कहा था कि सिंगापुर वैरिएंट जैसा कुछ नहीं है। इसके बाद उन्होंने एस जयशंकर का बयान देखकर उन्हें धन्यवाद कहा और लिखा कि- अपने-अपने देश के हालातों को सुधारने पर फोकस करते हैं और एक-दूसरे का ध्यान देते हैं। कोई भी सुरक्षित नहीं है जब तक हर कोई सुरक्षित न हो।

उल्लेखनीय है कि केजरीवाल ने अपने ट्वीट में लिखा था-

सिंगापुर में आया कोरोना का नया रूप बच्चों के लिए बेहद खतरनाक बताया जा रहा है। भारत में ये तीसरी लहर के रूप में आ सकता है। केंद्र सरकार से मेरी अपील- 

1- सिंगापुर के साथ हवाई सेवाएं तत्काल प्रभाव से रद्द हों।

2- बच्चों के लिए भी वैक्सीन के विकल्पों पर प्राथमिकता के आधार पर काम हो।

बहरहाल, केजरीवाल को संभवतः इस समय हो रही अपनी छीछालेदर से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लगता है। यह निश्चित है कि यदि भारत में तीसरी लहर आई और उसने बच्चों को बुरी तरह प्रभावित किया तो वह चिल्ला-चिल्लाकर कहेंगे कि उन्होंने तो पहले ही इसकी आशंका जता दी थी। और यदि ऐसा कुछ नहीं हुआ तो भी वे जानते हैं कि वे उस इंटलीजेंस अफसर की तरह सजग नागरिक तो बने ही रहेंगे।


ऑक्सीजन, वैक्सीन के मामले में भी यही रवैया


ऑक्सीजन और वैक्सीन के मामले में भी केजरीवाल जल्द से जल्द अपनी बात मीडिया के पास पहुंचा देना चाहते हैं ताकि बाद में उनके ऊपर कोई उंगली न उठा सके। साथ में गंदी राजनीति तो है ही जिसके तहत वह अपनी कमीज हर समय सफेद रखना चाहते हैं और खबरों में बने रहने के लिए भी कुछ न कुछ बोलना तो जरूरी होता है।

जब ऑक्सीजन की किल्लत हुई तो जहां बाकी राज्यों के मुख्यमंत्री इसकी व्यवस्था करने में जुटे थे, वहीं केजरीवाल बार-बार इसके लिए मीडिया के पास जा रहे थे। जब ऑक्सीजन ऑडिट की बात हुई तो दिल्ली में अचानक ऑक्सीजन सरप्लस में हो गई। ऑक्सीजन का मसला ठंडा पड़ा तो केजरीवाल ने वैक्सीन को पकड़ लिया। अन्य किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री वैक्सीन पर ज्यादा कुछ नहीं बोल रहा है क्योंकि सबको पता है कि वैक्सीन का अभी उतना उत्पादन नहीं है जितनी मांग है, लेकिन केजरीवाल  इस मुद्दे पर भी लगभग रोज ही मीडिया में बयानबाजी कर रहे हैं।

- लव कुमार सिंह



Monday 17 May 2021

लॉकडाउन : क्या दुकानदार-ग्राहक वीडियो कॉल से बच सकता है कारोबार?

Lockdown : Can video calls between shopkeeper and customer prevent business from collapsing?



कोरोना काल में व्यापारी परेशान हैं क्योंकि उनकी दुकानें कई हफ्तों से बंद हैं। धंधा तो चौपट है ही, दुकानें बंद होने से उनमें रखा सामान भी धूल फांककर खराब हो रहा है। वे इस बात से और ज्यादा परेशान हैं कि उनका धंधा तो बंद पड़ा है लेकिन ऑनलाइन कारोबार जोर-शोर से चल रहा है।

लेकिन व्यापारियों के लिए इस बहुत बुरे समय में भी कपड़ों की दुकान चलाने वाले रवि अग्रवाल (बदला हुआ नाम) को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। दरअसल, जब 2020 में पहली बार लॉकडाउन लगा था तब रवि भी बहुत परेशान हुए थे। कुछ दिन तो ठीक से कट गए थे, लेकिन बाद में घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया। बाद में जब लॉकडाउन खुला तो रवि अग्रवाल ने निश्चय कर लिया कि यदि आगे इस प्रकार की स्थिति आती है तो उसका हल सोचना होगा। सोच-विचार के दौरान ही उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने बाजार अनलॉक होते ही अपने विचार को मूर्त रूप दे दिया।

रवि अग्रवाल ने यह किया कि उनकी दुकान में जो भी ग्राहक आता, उन्होंने उसका नाम-पता नोट करना शुरू कर दिया। साथ ही उन्होंने हर ग्राहक को अपना विजिटिंग कार्ड भी देना शुरू किया और ग्राहकों से कहा कि यदि लॉकडाउन जैसी स्थिति दोबारा आती है तो वे विजिटिंग गार्ड पर लिखे नंबर पर फोन करें। उनका सामान उनके घर पर ही पहुंचा दिया जाएगा। 

रवि अग्रवाल की दुकान अच्छी चलती थी, लिहाजा उनकी डायरी ग्राहकों के नाम-पते से काफी भर गई। यही डायरी इस बार यानी 2021 के लॉकडाउन में उनके बहुत काम आ रही है। लॉकडाउन लगने की आशंका होते ही रवि अपनी दुकान का काफी सारा सामान घर ले आए थे। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने एक-एक करके अपने ग्राहकों को फोन करना शुरू किया। उन्होंने अपने ग्राहकों को बताया कि यदि उन्हें किसी चीज की जरूरत हो तो वे  कॉल करके बताएं, वो घर पर ही उस चीज को पहुंचा देंगे। रवि ने ग्राहकों से यह आग्रह भी किया कि हो सके तो वे वीडियो कॉल करें ताकि वे उन्हें उनकी पसंद का सामान दिखा भी सकें।

शुरू में उन्हें मेहनत लगी, लेकिन एक बार जब सभी ग्राहकों के पास फोन चला गया तो उसके एक-दो दिन बाद से उनके पास ग्राहकों की वीडियो कॉल आने लगीं। वीडियो कॉल पर रवि अपने ग्राहकों को उनकी जरूरत और साइज के हिसाब से वस्त्र दिखाते और उसके बाद इस चीज की होम डिलीवरी करवा देते। कुछ दिन बाद तो उनके पास ऐसे ग्राहकों की भी वीडियो कॉल आने लगीं जिनका नाम-पता उनके पास नहीं था। दरअसल, ऐसे लोगों को उनके पुराने ग्राहकों ने इसके बारे में बताया था। बेशक रवि अग्रवाल को पहले से ज्यादा खपना पड़ा रहा है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान भी वे बहुत अच्छी बिक्री कर ले रहे हैं। उनका धंधा अच्छी तरह चल रहा है।

इसके अलावा रवि अग्रवाल ने अपने व्यापार को ऑनलाइन बिक्री करने वाले प्लेटफार्म से भी जोड़ दिया है और अपनी दुकान के प्रीमियम प्रॉडक्ट्स को उसमें प्रदर्शित कर दिया है। इससे ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिये भी उनका काफी माल बिक रहा है।

बाकी व्यापारियों को भी रवि अग्रवाल की इस युक्ति को अपनाकर लॉकडाउन के दौरान हो रहे नुकसान से स्वयं को बचाना चाहिए। उधर, सरकार को भी चाहिए कि जिस प्रकार रेस्टोरेंट के संबंध में व्यवस्था होती है, उसी प्रकार बाकी दुकानों के संबंध में भी ऐसी व्यवस्था हो सकती है। रेस्टोरेंट के बारे में व्यवस्था है कि रेस्टोरेंट खुल सकते हैं, लेकिन उसमें ग्राहक नहीं आ सकते। यानी रेस्टोरेंट खाने की होम डिलीवरी कर सकते हैं। इसी प्रकार अन्य दुकानें भी खोलने की इजाजत दी जानी चाहिए, लेकिन उनमें ग्राहक के जाने पर रोक होनी चाहिए। इससे ये दुकानवाले भी अपने ग्राहकों से संपर्क करके उन्हें होम डिलीवरी कर सकते हैं।

- लव कुमार सिंह 



Sunday 16 May 2021

कोरोना काल में आंकड़े किस तरफ हैं?

Which side are the figures in the Corona era?



आंकड़े...ओ आंकड़े !

तुम किसकी तरफ हो?

इसकी तरफ हो या उसकी तरफ हो?

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भैया जी ! ना में इसकी तरफ हूं

ना उसकी तरफ हूं

बंदा जैसा पढ़ ले

मैं उसकी तरफ हूं।

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क्या मतलब है तुम्हारा?

साफ-साफ बोलो

दोनों तरफ कैसे हो

इसका राज खोलो।

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भैया जी ! संख्या और प्रतिशत

मेरी दो फ्री होम डिलीवरी हैं

जिसको जो भा जाए

वो उसकी सेवा लेता है

और मुझे अपनी तरफ कर लेता है।

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अब देखो, माना टीके लगे 17 करोड़

दुनिया में सबसे ज्यादा

इतने कि कई देशों का पूर्ण टीकाकरण हो जाता

पर कुल आबादी पर प्रतिशत देखो

तो बहुत ही कम, निचला स्तर छू जाता

अब जो लेता संख्या की सेवा

आंकड़ा देता उसको मेवा

और जो थामे प्रतिशत का हाथ

देना पड़ता है उसका भी साथ।

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अब मौतें देखो ढाई लाख

है ना संख्या हाहाकारी

लेकिन प्रतिशत में पुकारो

तो मात्र एक-दो परसेंट

यानी जैसे फिजूल की हो महामारी।

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अब तुम्ही बताओ मैं किस तरफ?

इसकी तरफ या उसकी तरफ?

जो जैसा अपना ले, मैं उसी तरफ।

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लेकिन भैया जी, यदि तुम सब इतने सारे ना होते

तो मैं भारत की तरफ होता

चलो इतने सारे हो भी गए पर

यदि तुममें से बहुत सारे भ्रष्टाचारी, लुटेरे, नरभक्षी न होते

तो मैं भारत की तरफ होता

यदि तुम सब संकट में एक-दूसरे पर कीचड़ न उछालते

तो मैं भारत की तरफ होता

यदि तुम इंसानियत का दामन न छोड़ते

तो मैं भारत की तरफ होता।

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- लव कुमार सिंह