कोरोना पर सवाल ही सवाल, पर जवाब नदारद
Many Questions on Corona, but answers are missing
एम्स के निदेशक डॉ. गुलेरिया जनता से कह रहे हैं कि बेवजह सीटी स्कैन न कराएं। ये 100 एक्सरे कराने के बराबर है और इससे कैंसर का खतरा है। यह बात उन्हें खुद या सरकार के मार्फत देश के डॉक्टरों से कहनी चाहिए क्योंकि अधिकांश मामलों में डॉक्टरों के लिखने पर ही इस प्रकार के टेस्ट होते हैं।
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डा. गुलेरिया को वजनदार ढंग से डॉक्टरों से यह भी कहना चाहिए कि जब रामदेशवीर (रेमेडिसविर) में वीरों जैसी कोई बात नहीं है तो डॉक्टर इतनी महंगी दवाई क्यों लिख रहे हैं? कई ईमानदार डॉक्टर चीख-चीखकर कह रहे हैं कि डेक्सामेथासोन बहुत सस्ती भी है और रेमेडिसविर से ज्यादा कारगर भी, फिर इसे क्यों नहीं लिखा जा रहा है?
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क्या किसी विशेषज्ञ ने यह जानने की कोशिश की है कि दिल, किडनी और डायबिटीज के मरीजों को कोरोना ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है या उन्हें दी जाने वाली कोरोना संबंधी गोलियों का साइड इफेक्ट? क्योंकि ये तो सभी जानते हैं कि किसी निश्चित दवाई के अभाव में मरीजों पर तरह-तरह की दवाइयों का बस प्रयोग हो रहा है।
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ऑक्सीजन सिलेडंर के लिए लंबी लाइन में क्या ऐसी विनम्र कोशिश नहीं हो सकती जिससे यह पता लग सके कि सिलेंडर के लिए जो लाइन में लगा है, उसे वास्तव में उसकी जरूरत है या वह स्टोर करने के मकसद से इसे ले जा रहा है?
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पिछले साल मरीज कोरोना से मर रहे थे, लेकिन इस बार हर मरीज ऑक्सीजन की कमी से मर रहा है। कहीं ये इलाज के तरीके का बचाव तो नहीं कि जो भी मर रहा है उसका ठीकरा ऑक्सीजन पर फूट रहा है।
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विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भाप फेफड़े का सैनेटाइजर है और नमक डालकर गर्म पानी से गरारे करना भी कोरोना को बहुत कमजोर कर देता है। लेकिन क्या अस्पतालों में मरीज भाप ले पा रहे हैं? क्या वे गरारे कर पा रहे हैं? मुझे तो नहीं लगता कि यह हो पा रहा है। उल्टे परिजनों द्वारा बाहर से भेजे गए गर्म पानी के उपकरण मरीजों तक पहुंचने के बजाय बीच में ही गायब हो जाते हैं।
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इस अल्पबुद्धि मन में प्रश्न ही प्रश्न हैं, लेकिन उत्तर नदारद हैं। ....और ये प्रश्न जाएं भाड़ में, बस इतना हो जाए कि भले सबको कोरोना हो जाए, लेकिन कोई मरने न पाए। ऐसा कब संभव होगा डॉक्टर साहब/सरकार? फिर प्रश्न?
- लव कुमार सिंह
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