Monday 10 May 2021

मुंबई ने कैसे कोरोना पर कंट्रोल किया?

How did Mumbai control the corona?

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 चौथी कड़ी....जो सफल है, उसकी बात सुननी चाहिए

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कोरोना के खिलाफ जानदार लड़ाई का श्रेय मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कमिश्नर इकबाल सिंह चहल और उनकी टीम को दिया जा रहा है। हालांकि इस सफलता से पहले वे काफी समय तक पूरे देश के लिए हंसी का पात्र भी बने। लेकिन उन्होंने सीखा और काम किया। इसलिए हमें, नेताओं को, जिलों की कमान संभाल रहे अधिकारियों को और डॉक्टरों को भी जानना चाहिए कि चहल और उनकी टीम ने यह काम कैसे किया और उनका मॉडल क्या है? यह सब चहल ने एक अंग्रेजी दैनिक के साथ बातचीत में कहा है। यहां कुछ कड़ियों में इस बातचीत का सार प्रस्तुत है... (इस कड़ी का विषय है- समस्या का आंकलन, पूर्वानुमान और सिस्टम का निर्माण)
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क्या हम इसकी कल्पना कर सकते हैं कि कोरोना के एपीसेंटर बने मुंबई में ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि वहां बीएमसी के कमिश्नर के पास अब जनता की कोई फोन कॉल नहीं आती। इकबाल सिंह चहल यही दावा करते हैं। चहल के अनुसार मई 2020 में जब वे बीएमसी के कमिश्नर बने तो मुख्यमंत्री ने उन्हें फ्री हैंड दे दिया। चहल ने अपनी टीम से कहा कि यह वायरस यूं ही जाने वाला नहीं है, इसलिए हमें दो-तीन साल की लड़ाई के लिए तैयार हो जाना चाहिए। ...और इसी के साथ उन्होंने सिस्टम बनाना शुरू कर दिया।

कुछ खास बातें....

  • मुंबई में 7 जंबो कोविड सेंटर काम कर रहे हैं और 4 काम करने को तैयार हैं। 11 जंबो कोविड सेंटरों के 15 हजार बेड में से 70 प्रतिशत पर ऑक्सीजन की व्यवस्था हो, ऐसी तैयारियां की जा रही हैं। जंबो सेंटर बनाने बनाने का फायदा यह है कि उन अस्पतालों पर दबाव बिल्कुल कम हो जाता है जहां पर गंभीर मरीज भर्ती हैं।

  • मुंबई पहला शहर बना जिसने लैब द्वारा कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट को सीधे मरीज को देने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस प्रतिबंध से पहले यह होता था कि लैब शाम के 7 बजे मरीज को पॉजिटिव होने की सूचना देते थे। इस खबर को सुनकर पैनिक फोन कॉल्स और बेड के लिए अफरातफरी शुरू हो जाती थी। एक हेल्पलाइन नंबर पर हजारों कॉल आती थीं। इससे सेंट्रल कंट्रोल रूम कोलेप्स हो जाता था। इसी के साथ एक सिंगल मरीज बेड की खोज में सैकड़ों अन्य लोगों को संक्रमित कर देता था।

  • सभी जंबो कोविड सेंटरों के लिए ऑक्जीजन जनरेशन प्लांट की व्यवस्था की जा रही है। यदि सभी व्यवस्थाएं सही रहीं तो 31 मई तक मुंबई शहर को 1 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन की भी बाहर से जरूरत नहीं होगी। अन्य स्रोतों से मुंबई की ऑक्सीजन की जरूरत 60 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। तब उसे राज्य सरकार से ऑक्सीजन की मांग नहीं करनी पड़ेगी।

  • चहल के अनुसार उनके मन में तीसरी लहर को लेकर कोई संदेह नहीं है। वे इसके लिए भी तैयारी कर रहे हैं। चार नए जंबो कोविड सेंटर इसीलिए बनाए जा रहे हैं।

  • छह महीने पहले कर्नाटक से चहल के बैचमेट ने उनसे जानकारी ली कि ये वार्ड वार रूम क्या होते हैं? कैसे काम करते हैं? कैसे एंबुलेंसों का संचालन होता है? आदि-आदि। अब यही सब चीजें बेंगलूरू में लागू की जा रही हैं।

  • कुछ महीने पहले तक दूसरे राज्यों और केंद्र के उनके कुलीग्स चहल को फोन करके पूछते थे कि केवल महाराष्ट्र में ही कोविड क्यों है और ऐसा पूछकर वे हंसते थे। तब चहल उनसे कहते थे कि सबका नंबर आने वाला है। ऐसे हंसने वाले अफसरों को चहल के मॉडल में दिलचस्पी नहीं थी और चहल ने भी उनसे अपना मॉडल साझा नहीं किया। लेकिन आज हर तरफ उनके मॉडल की ही चर्चा है।

  • चहल सारे देश में लॉकडाउन लगाने के पक्ष में नहीं हैं। वह कहते हैं कि लॉकडाउन का मामला राज्यों पर ही छोड़ देना चाहिए। डिसेंट्रलाइज्ड लॉकडाउन होना चाहिए। वर्तमान स्थिति में यही बेहतर विकल्प है।
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दोस्तो, पिछली चार पोस्टों में कोरोना के संबंध में जो चार कड़ियां मुंबई के बीएमसी कमिश्नर इकबाल सिंह चहल के बारे में लिखीं, उनका उद्देश्य यही बताना था कि जिनके पास अधिकार हैं, जिम्मेदारियां हैं, यदि वे उन्हें सही तरीके से निभाएं तो किसी भी समस्या से लड़ा जा सकता है। यहां किसी अधिकारी को झाड़ पर चढ़ाने का उद्देश्य नहीं है। बस चहल का इंटरव्यू पढ़ा तो लगा कि इस बात को अन्य लोगों के साथ भी साझा करना चाहिए। हकीकत यह भी है कि केवल एक व्यक्ति से कुछ नहीं होने वाला है। ये केवल मुंबई की कहानी थी, जबकि बाकी महाराष्ट्र में हालात अभी सुधरे नहीं हैं। हमें देश के हर जिले में चहल जैसे अधिकारियों की जरूरत है। चुनौतियां बड़ी हैं। हो सकता है कि आने वाले मानसून सीजन में मुंबई की तैयारियां धरी की धरी रह जाएं, लेकिन वे कम से कम तीसरी लहर और मानसून को ध्यान में रखकर तैयारी तो कर रहे हैं। ऐसे ही कई जिलाधिकारियों की खबरें आई हैं कि कैसे उन्होंने खतरे को भांपकर पहले से ही तैयारी की और ऑक्सीजन के मामले में अपने जिलों को आत्मनिर्भर बना दिया। यह बात ठीक है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन अकेला चना इतनी तेज आवाज जरूर कर सकता है कि उसे सुनकर बाकी चने भी भाड़ को फोड़ने में जुट जाएं। क्या बाकी चने इसे सुन रहे हैं?

- लव कुमार सिंह

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