Saturday 29 February 2020

बिजनौर पुलिस ने पूरे देश की पुलिस को दिया दंगा नियंत्रण का मंत्र

Bijnor police gave riot control mantra to the police of the whole country




दैनिक जागरण के 29 फरवरी 2020 के अंक में छपे इस चित्र को देखें। एक नजर में यह दिल्ली का दृश्य प्रतीत होता है और लगता है कि दंगों के बाद पुलिस ने छत से कुछ बरामद किया है। निश्चित ही पुलिस ने छत से कुछ बरामद किया है लेकिन यह दृश्य दिल्ली का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर का है। बिजनौर पुलिस ने शुक्रवार को जो किया, यदि पूरे भारत की पुलिस उस पर अमल करे तो यह दंगा या किसी भी तरह के बवाल को नियंत्रित करने के लिए एक मंत्र की तरह काम करेगा।

दरअसल दिल्ली में हुए दंगों के बाद शुक्रवार 28 फरवरी को जुमे की नमाज थी। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में इस दौरान सतर्कता बरती गई थी। बिजनौर पुलिस ने नया काम यह किया कि अमूमन दंगों के बाद होने वाली कार्रवाई उसने किसी संभावित बवाल को रोकने के लिए पहले ही कर डाली। उसने खुफिया इनपुट के आधार पर बिजनौर में जामा मस्जिद के आसपास घरों में तलाशी अभियान चला डाला। पुलिस को कई घरों में छतों पर ईंटों के ढेर मिले। दैनिक जागरण में छपे इस चित्र में ऐसे ही ईंटों के एक ढेर को पुलिसकर्मी छत से नीचे फेंक रहे हैं।

इससे दंगा नियंत्रण का यह मंत्र  मिलता है कि तलाशी की जो कार्रवाई आप किसी दंगे या बवाल के बाद करते हो, क्यों ने वह कार्रवाई पहले ही कर ली जाए। यदि हालात नाजुक हों और पुलिस को लगे कि किसी इलाके में कुछ गंभीर घटना हो सकती है तो क्यों नहीं उस इलाके में पहले ही तलाशी अभियान चला दिया जाए। और अब तो पुलिस के पास ड्रोन (#Dron) की भी सुविधा है। दिल्ली में अब दंगों के बाद ड्रोन घुमाए जा रहे हैं। अगर पहले ही ड्रोन घूम जाते तो बहुत कुछ रोकथाम की जा सकती थी। दिल्ली पुलिस (#DelhiPolice) के लिए आगे का सबक यह है कि यदि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर या सरकार के कहने पर शाहीन बाग में सड़क को खाली कराने के लिए जाती है तो अपनी कार्रवाई से पहले उसे पूरे शाहीन बाग (#ShaheenBag) में ड्रोन घुमाने चाहिए। साथ ही घरों में तलाशी अभियान भी चलाना चाहिए। इसी के बाद सड़क खाली कराने की कार्रवाई करनी चाहिए। 

इसके अतिरिक्त क्यों न ड्रोन घुमाने की यह कसरत किसी भी जिले की पुलिस द्वारा सप्ताह या महीने में नियमित रूप से की जाए? क्यों न जब-जब भी पुलिस फ्लैग मार्च निकाले तो संवेदनशील इलाकों में तलाशी अभियान भी चलाए। किसी विवाद या आपत्ति से बचने के लिए वह इलाके के नामदार लोगों और जनप्रतिनिधियों को भी अपने साथ रखे।

यह मैं पहले की पोस्ट में भी कह चुका हूं कि दंगे की स्थिति में पुलिस को उस इलाके के जनप्रतिनिधियों (सांसद, विधायक, पूर्व विधायक, पार्षद आदि) और नामदार लोगों को खाली नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसे सभी लोगों को अपने साथ रखना चाहिए और लोगों को समझाने के लिए इनका उपयोग करना चाहिए। इससे दंगा नियंत्रण में बहुत मदद मिलेगी।
- लव कुमार सिंह




Tuesday 25 February 2020

दंगा नियंत्रण का सबसे प्रभावी उपाय

How to control the riot?

The most effective measures of riot control



(फरवरी 2020 में यह पोस्ट तब लिखी गई थी जब दिल्ली में दंगे हुए थे।)

दंगा नियंत्रण का एक टिप्स हमसे भी ले लीजिए सर।
तुम कौन?
मैं मेरठ का निवासी।
“तो इससे क्या? सभी कहीं न कहीं के निवासी हैं?
फर्क है। दंगों की बात पूछनी है तो मेरठ वालों से पूछिए। अनुभव ने हमें ज्ञानी बना दिया है।
कहो...

बस इतनी सी बात कहनी है सर कि ज्यादातर मामलों में पुलिस आधा दंगा ही रोक सकती है, बाकी आधा काम समाज के प्रतिष्ठित, प्रभावशाली और सम्मानित लोग करते हैं। जहां भी दंगा हो रहा हो, आप वहां के विधायक, पूर्व विधायक, पार्षद, मौलाना, काजी आदि को बुलाइए। जो आपने शांति समितियां बना रखी हैं, उनके कर्ता-धर्ताओं को बुलाइए और भीड़ को समझाने के दौरान उन्हें अपने साथ रखिए। उन्हें घर में मत बैठने दीजिए। उनके साथ 'साथ जिएंगे, साथ मरेंगे' जैसा भाव रखिए। आप सोच भी नहीं सकते, दंगा या कोई भी बवाल रोकने में आपको बहुत मदद मिलेगी। नेता और समाज का प्रभावशाली व्यक्ति इस तरह की भूमिका मिलने पर लोगों को शांत करने में अपनी जान लगा देगा। क्या कहा आपने दिल्ली में शांति समितियां ही नहीं बनाई हैं? ऐसी लापरवाही मत करिए सर। इन्हें जरूर बनाइए।

अमूमन जिन जनप्रतिनिधियों, समाज के प्रभावशाली लोगों के मन में खोट नहीं होगा तो वे मौके पर जरूर आएंगे। कई तो बुलाने के लिए आपका अहसान मानेंगे, क्योंकि इससे उनकी छवि चमकती है। अगले दिन अखबारों में छपता है कि फलाने ने लोगों को शांत किया तब जाकर बवाल थमा। कई बार तो बवाल भी इसीलिए होता है कि आप नेताजी को पूछते नहीं हैं। 

जो नहीं आते उनसे साफ कह दीजिए कि आगे से थाने, दफ्तर में उनकी आवभगत बंद। उनकी सिफारिश पर ध्यान दिया जाना बंद। और उनके नहीं आने से आपको यह भी पता चल जाएगा कि स्थिति कितनी गंभीर है। इससे आपको कर्फ्यू, देखते ही गोली मारने का आदेश जैसे फैसले लेने में आसानी होगी। मैं तो कहता हूं कि आपको कपिल मिश्रा को भी बुलाना चाहिए था। आप उनसे कहते कि आइए और अपने लोगों को समझाइए, अब आप घर में नहीं बैठ सकते। इसी तरह यदि आप आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन को उसके घर में न बैठने देते तो कई लोग मरने से बचाए जा सकते थे।

मेरठ में पिछले दिसंबर में सीएए के खिलाफ बवाल हुआ तो मेरठ के अधिकारी बवाल पर नियंत्रण पाने के साथ ही समाज के प्रभावशाली लोगों के फोन मिला रहे थे। ज्यादातर के फोन बंद मिले। बवाल नहीं रुका। यह तभी रुका जब इन खलीफाओं के फोन ऑन हुए और ये शांति स्थापना के लिए सक्रिय हुए। इसीलिए दिल्ली में पुलिस किसी के भी अंडर हो, आम आदमी पार्टी व भाजपा के विधायकों, सांसदों, पूर्व विधायकों, पार्षद, मौलाना, मौलवियों आदि को पुलिस के साथ होना चाहिए था या पुलिस को इन्हें अपने साथ लेना चाहिए था। लेकिन सैकड़ों वीडियो फुटेज में दंगाई तो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन जनप्रतिनिधि गायब हैं। इसी के साथ 24 फरवरी को गृहमंत्री अमित शाह को भी अहमदाबाद के बजाय पूरे समय दिल्ली में ही होना चाहिए था।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि दंगाग्रस्त क्षेत्र के किसी सांसद, विधायक, पार्षद और नामदार व्यक्ति को घर में न रहने दें, दंगा रोकने में बहुत मदद मिलेगी।

- लव कुमार सिंह

#DelhiBurns ##DelhiIsBurning #delhivoilence #Riots


नागरिकता न किसी की जानी थी, न गई मगर जान कइयों की चली गई

#DelhiRiots #DelhiViolence #GautamGambhir

नागरिकता न किसी की जानी थी, न गई
मगर जान कइयों की चली गई।
जैसे मेहमान के सामने बच्चा शैतानी करे है
वैसे दिल्ली में बिगड़ैलों की बात बन गई।
मम्मी-पापा मेहमान का लिहाज करते रहे
और दिल्ली में शोहदों की नंगई चल गई।
वे आंख दिखाकर कहते हैं कि ये उनका डर है
मगर इससे डरकर शांति ही मर गई।
मेहमान की रवानगी के बाद क्या होगा?
अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है अपने तईं।
मम्मी-पापा कूटेंगे या बस ये कहकर रह जाएंगे
नई बाबा नई, आगे ऐसा नई।
- लव कुमार सिंह

Monday 24 February 2020

आतंकवादी संगठन : किसी के नाम का अर्थ है 'सत्य', किसी का 'पवित्र', लेकिन उनका काम कितना अपवित्र और असत्य...तौबा-तौबा

Terrorist organization: Someone's name means 'truth', someone's 'holy', but how unholy and untrue their work is ... Toba-Toba




कुछ समय पहले अमेरिका ने पाकिस्तान को उसके यहां सक्रिय आतंकवादी संगठनों की सूची सौंपी और उनका खात्म करने की दिशा में कदम उठाने के लिए कहा। इस सूची में बहुत सारे आतंकी संगठनों के नाम हैं। जब हम इन नामों पर गौर फरमाते हैं तो पाते हैं कि इन आतंकवादी संगठनों के नाम बहुत ही पवित्र हैं, लेकिन इनके काम शैतानों को भी मात देने वाले हैं।

विडंबना यह है कि हत्या, लूट, अवैध वसूली और बलात्कार करने वाले ये सभी आतंकी संगठन धर्म की आड़ लेकर खड़े किए गए हैं। इन्होंने खुद के संगठन के ऐसे-ऐसे धार्मिक और अन्य नाम रखे हुए हैं, जिससे ये युवाओं को बरगलाकर संगठन में शामिल कर सकें। इन आतंकवादी संगठनों के नामों और इनके मतलब से हम जान सकते हैं कि ये आतंकी संगठन कितने शातिर दिमाग हैं जो खुद को सही ठहराने के लिए र्म को कवच के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

तालिबान #Taliban


यह पश्तो भाषा का शब्द है जिसका मतलब छात्र यानी शिक्षार्थी से होता है। लेकिन यह ऐसा छात्र है जो अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले ही अपने इलाकों की गलियों-कूचों में खून की नालियां बहाकर दुनिया को हिंसा की शिक्षा देने चल पड़ा है। यह आतंकी संगठन पूरे अफगानिस्तान में फैलकर दिसंबर 1996 से दिसंबर 2001 तक वहां सरकार भी बना चुका है। 

इस संगठन का गठन 1994 में मोहम्मद उमर ने किया था। आज तालिबान न केवल अफगानिस्तान में कहर बरपा रहा है, बल्कि इसका विस्तार पाकिस्तान तक हो चुका है। वहां तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान नाम से आतंकी संगठन अस्तित्व में आ चुका है। इसके खिलाफ पाकिस्तानी सेना ने अभियान चलाया तो इससे क्रुद्ध होकर इस संगठन ने 16 दिसंबर 2014 को पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 मासूम बच्चों समेत 141 लोगों का कत्लेआम कर डाला था।

अल कायदा #al-qaeda


इसका शाब्दिक अर्थ है- द बेस। अल का र्थ  है और कायदा का बेस यानी आधार। यह विश्वव्यापी आतंकवादी संगठन है, जिसका गठन ओसामा बिन लादेन और अब्दुल्ला आजम ने 1988-89 में कई आतंकवादियों के साथ मिलकर किया था। उसके बाद से यह संगठन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भयंकर तबाही मचा चुका है। अल कायदा शब्द का र्थ मिलिट्री बेस से भी लगाया जाता है। 

2001 में खुद ओसामा बिन लादेन ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि रूस के खिलाफ लड़ाई के लिए उसके संगठन ने अनेक प्रशिक्षण शिविरों की स्थापना की थी। इन ट्रेनिंग कैंपों को वे लोग अल कायदा (मिलिट्री बेस) कहकर संबोधित करते थे। बस उसी के बाद से आतंकवादी संगठन को भी अल कायदा कहा जाने लगा। हालांकि ब्रिटेन के पूर्व राजनेता राबिन कुक ने लिखा है कि अल कायदा शब्द का अनुवाद  द डाटाबेस करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब उन कंप्यूटर फाइलों से था जिनमें उन हजारों मुजाहीदीन आतंकवादियों के ब्योरे थे, जिन्हें रूस को हराने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद से भर्ती और प्रशिक्षित किया गया था।

आईएसआईएस #ISIS

इसका शाब्दिक मतलब है इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया। इराक और सीरिया में इस्लामिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य से इस आतंकी संगठन का गठन किया गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आईसिस (Isisमिस्र में बच्चे का नाम होता है। वहां इसे एक देवी से जोड़कर देखा जाता है और सभी देवियों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस तरह आईएसआईएस से, अंग्रेजी में मिलाकर बोलने से आईसिस की भी ध्वनि निकलती है, जिससे लगता है कि यह कोई पवित्र किस्म का संगठन है। एक समय दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बन चुके आईएसआईएस की स्थापना इराकी नागरिक अबु बकर अल बगदादी ने अलकायदा से अलग होकर की थी।

हिज्ब उल मुजाहीदीन #hizbul_mujahideen


इसका शाब्दिक अर्थ है- पवित्र योद्धाओं का दल, मगर संगठन के किसी भी काम का पवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है। इसके उलट इस संगठन से जुड़े लोगों के हाथ सैकड़ों निर्दोष लोगों के खून से रंगे हुए हैं। 

1985 में इस संगठन की स्थापना कश्मीरी अलगाववादी अहसान डार ने की थी। इस समय इस समूह का सरगना सैयद सलाहुद्दीन है, जो पाकिस्तान में छिपा हुआ है और वहीं से आतंकवादी गतिविधियां संचालित करता है।

जैश ए मोहम्मद #jaish_e_mohammed


इस नाम का शाब्दिक मतलब है- मोहम्मद की सेना, मगर दुर्भाग्य से मोहम्मद साहब की दी शिक्षाओं से इस संगठन से जुड़े लोगों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। यह भी कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। 

इसे 2002 में पाकिस्तान में ऊपरी तौर पर तो प्रतिबंधित करने की घोषणा की गई थी मगर अंदरूनी तरीके से पाकिस्तान ने इसकी मदद करना जारी रखा हुआ है। इस संगठन को भारत के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन भी आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं। 

इसका गठन 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने किया था। इसे हरकत उल मुजाहीदीन नाम के आतंकवादी संगठन से अलग होकर बनाया गया था। यह वही मसूद अजहर है जिसे भारत ने 1999 में अपहृत विमान यात्रियों की रिहाई के बदले में छोड़ा था। 2001 में भारतीय संसद पर हमले का जिम्मेदार भी इसी संगठन को माना जाता है। 

2002 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने संगठन पर प्रतिबंध लगाया तो इसने अपना नाम बदलकर खुद्दाम उल इस्लाम रख लिया, जिसका मतलब है इस्लाम का सेवक।

लश्कर ए तैइबा #lashkar_e_taiba


इसका शाब्दिक मतलब है खुदा की सेना, लेकिन वास्तव में यह जालिमों की सेना ही है जो केवल खून बहाना ही जानती है। इसका मतलब शुद्धता यानी पवित्रता की सेना भी निकाला जाता है, मगर संगठन के नाम और काम में जमीन-आसमान का अंतर है। यह दक्षिण एशिया का बेहद संगठित आतंकी समूह है जो अपनी गतिविधियां पाकिस्तान से संचालित करता है। 

इसका गठन 1990 में हाफिज सईद, अब्दुल्ला आजम और जफर इकबाल नाम के शातिर दिमाग लोगों ने किया था। इस आतंकी संगठन के अनेक प्रशिक्षण शिविर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चलते हैं। 2008 के मुंबई हमलों के लिए इसी संगठन ने अंजाम दिया था। इस संगठन पर भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, रूस और आस्ट्रेलिया प्रतिबंध लगा चुके हैं

औपचारिक रूप से पाकिस्तान भी इसे प्रतिबंधित कर चुका है पर भारत और दुनिया के अनेक देश मानते हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इस आतंकी संगठन को अपना सहयोग और समर्थन जारी रखे हुए है।

बोको हराम #boko_haram


यह नाइजीरिया का आतंकवादी संगठन है। बोको हराम का शाब्दिक अर्थ है- पश्चिमी शिक्षा हराम है।बोको हराम का  मानना है कि पश्चिमी शिक्षा बंद कर सिर्फ और सिर्फ इस्लामी शिक्षा दी जाए। इस संगठन के अनुसार लड़कियों को पढ़ने का बिल्कुल अधिकार नहीं हैइसलिए उन्हें स्कूलों में भेजना अपराध है। इस नजरिये को लोगों पर लादने के लिए बोको हराम के आतंकी लोगों की हत्या करते हैं, लड़कियों का अपहरण करते हैं और बलात्कार करते हैं। स्कूलों में छात्र-छात्राओं पर हमला करते हैं। वे गिरजाघरों और अन्य जगहों पर विस्फोट भी करते हैं जिनमें हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। 

बोको हराम का गठन 2002 में धर्मगुरू मोहम्मद यूसुफ ने किया था। शुरुआत में इस संगठन ने मस्जिद और धार्मिक स्कूल बनवाए, लेकिन धीरेधीरे यह राजनीतिक रूप से सक्रिय हुआ और फिर आतंकवादी संगठन के रूप में बदल गया। बोको हराम कहता है कि अंग्रेजी शिक्षा हराम है, मगर अब नाइजीरिया में अनेक लोग कहने लगे हैं कि यह संगठन ही हराम है।


हक्कानी नेटवर्क #Haqqani_network


हक्कानी नेटवर्क, अफगानिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां चलाने वाला छापामार समूह है जो वर्तमान  में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों को तथा अफगानिस्तान सरकार को को निशाना बनाता है। यह समूह अफगानिस्तान में कार्यरत है और इसका आधार भी अफगानिस्तान में है, किन्तु ऐसा आरोप है कि इसको पाकिस्तान की आईएसआई से भी सहायता मिलती है।

पाकिस्तानी अधिकारी हक्कानी नेटवर्क को मुख्यतः अफगान चरमपंथी गुट बताते हैं, लेकिन इसकी जड़ें पाकिस्तान के अंदर तक फैली हैं। हमेशा से अटकलें लगती रही हैं कि पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र में कुछ लोगों में इसकी खास पैठ है। अमरीका काफी समय से इस चरमपंथी संगठन को एक खतरे के तौर पर पेश करता रहा है और आरोप लगाता रहा है कि इसके अल-कायदा और तालिबान जैसे संगठनों से संबंध हैं। 

लेकिन विडंबना देखिए कि हक्कानी अंजुमन के नाम से एक एक इस्लामी सूफी गैर सरकारी संगठन भी है और यह इस्लाम धर्म के दूसरे खलीफा हजरत उमर (र.) के परिवार से 37 वे वंशज, हजरत मौलाना सूफी मुफ्ती अजान गाछी साहेब (र.) द्वारा स्थापित है। यह सुफिवादी संगठन बिना किसी शुल्क के, पूरी मानव जाति की सेवा करने और उन्हें सही सलाह देने के साथ जुड़ा हुआ है। इस संगठन का केवल एक ही उद्देश्य है और वो है खुदा के सच्चे रास्ते का अनुसरण करना और प्रत्येक आदमी को एक बेहतर आदमी बनाना। इस हक्कानी अंजुमन का शाब्दिक अर्थ है: -"सत्य का संगठन"। इस तरह हक्कानी शब्द का अर्थ हुआ सत्य। तो एक तरफ तो हक्कानी अंजुमन जाति, धर्म, रंग के फर्क के बिना जीवन की बुराइयों से मानवता के उद्धार के लिए प्रतिबद्ध है तो दूसरी तरफ कुछ लोग अपने आतंकवादी संगठन का नाम हक्कानी नेटवर्क रखकर मानवता के बिल्कुल विपरीत काम करने लगे हैं।

हमास #hamas


हमास शब्द अरबी भाषा के हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया का संक्षेप रूप है। इसका मतलब है इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन। अरबी में  हमास एक अलग शब्द भी है, जिसका मतलब "उत्साह" होता है। 

हमास का गठन 1987 में मिस्र और फिलस्तीन के मुसलमानों ने मिलकर किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इसरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ था। 1993 में पहले आत्मघाती हमले के बाद से 2005 तक हमास ने इसरायली क्षेत्रों में कई आत्मघाती हमले किए।

2005 में हमास ने हिंसा से खुद को अलग किया मगर 200में फिर से इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमले शुरू कर दिए। तब से रह-रहकर हमास और इसरायली सैनिकों के बीच संघर्ष होता है जिसमें हर बार सैकडों लोग मारे जाते हैं। ज्यादा नुकसान फिलस्तीनी लोगों का ही होता है। हमास का मतलब उत्साह है, मगर हमास से जुड़े लोग फिलस्तीन को आगे बढ़ाने में कोई उत्साह नहीं दिखाते। इसके बजाय वे इसरायल से लड़ने में ज्यादा उत्साह दिखाते हैं।

अल शबाब #al_shabaab


यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- द यूथ यानी युवा। दुर्भाग्य से ये युवा भी युवाओं जैसा कोई काम नहीं कर रहे हैं। ये युवा अपने कंधों पर समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उठाने के बजाय बंदूकें-राइफल हाथ में लेकर लोगों का खून बहा रहे हैं। 

अल शबाब सोमालिया, केन्या आदि देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इस संगठन ने ही पिछले दिनों केन्या के एक मॉल में घुसकर बड़ी निर्ममता से 60 लोगों की हत्या कर दी थी। यहां बताते चलें कि बहरीन में अल शबाब नाम से एक फुटबाल क्लब भी है। कई देशों में अल शबाब नाम से सामाजिक संस्थाएं भी हैं।

आतंकवादी संगठनों की चाल भी यही है कि अपने संगठन का ऐसा नाम रखा जाए जो समाज में या तो पहले से प्रतिष्ठित हों या जिसे सुनकर किसी अच्छे उद्देश्य का अहसास होता हो। इससे उन्हें युवाओं का ब्रेन वाश करने में मदद मिलती है और वे धर्म व जिहाद के नाम पर अपने संगठन की ताकत बढ़ाने में भी सफल हो जाते हैं।

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान #tehrik-e-taliban-pakistan


यह पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन है, जिसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान भी कहते हैं। इसने पाकिस्तान के अंदर कई आतंकवादी हमले कराए हैं जिनमें सैकड़ों लोगों की जान गई है। 17 जुलाई 2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के सरगना मुफ्ती नूर वली महसूद को 'वैश्विक आतंकवादी' घोषित किया है। तहरीक का अर्थ होता है- प्रस्तावना, आंदोलन, हरकत। तालिबान का अर्थ हम पहले ही जान चुके हैं। इस प्रकार यह हुआ शिक्षार्थियों या छात्रों का आंदोलन। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अपने नाम के विपरीत यह कितने खतरनाक अपराधियों का समूह है।

- लव कुमार सिंह

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नफरत नहीं.....प्रेम

Love.....not hate




नफरतों से प्यार करके
चैन नहीं पाओगे
इन्हें दिल से निकाल फेंको
तभी आदमी बन पाओगे
लहू की प्यासी हैं ये नफरतें
जो तुम इन्हें भड़काओगे
ये हड्डियां भी चूस लेंगी
और खाक में मिल जाओगे।
नफरतों से प्यार करके....

0000

मान कल जो हुआ बुरा था
नहीं कहता मैं तुम भूल जाओ
पर ये भी मुनासिब नहीं
बिछौना यादों का कल की बनाओ
यदि कल में ही जीते रहे तो
कैसे आज को बनाओगे?
कैसे कल को संवार सकोगे?
कैसे अपनों को खिलाओगे?
नफरतों से प्यार करके....

0000

रखवाले हो तुम इस वतन के
कई आएंगे तुम्हें बहकाने
मशाल देकर कहेंगे उजाला
फिर चलेंगे घरों को जलाने
चिंगारी को दीया यदि समझे
तो बड़ा पछताओगे
ना घर ही सलामत रहेगा
ना पता अपना पाओगे।
नफरतों से प्यार करके....

000

सारी दुनिया में नजरें घुमा लो
बस प्रेमी सराहे गए हैं
बलशाली कितने रहे हों
हत्यारे नकारे गए हैं
तभी तो छोड़ के यदि तुम भी नफरत
बंशी प्रेम की बजाओगे
तो तुम भी खिलने लगोगे
इस फिजा को भी महकाओगे।

नफरतों से प्यार करके....

- लव कुमार सिंह




#PoemOnBrotherhood #PoemOnHarmony #PoemOnLove #PoemAgainstHate #Harmony #Peace


Sunday 23 February 2020

मैले-कुचले व गंदे कपड़ों में इंटरव्यू देने पहुंचे स्टीव जॉब्स मगर फिर भी चुन लिए गए

Steve Jobs arrives for an interview in dirty clothes but is still selected

नौकरी मिली तो कंपनी के इंजीनियर ने साथ काम करने से मना कर दिया

#SteveJobs #Apple


वीडियो गेम बनाने वाली मशहूर कंपनी अटारी ने उन दिनों टेक्नोलॉजी हेल्पर के रूप में नौकरी का विज्ञापन निकाला था। इंटरव्यू के दिन कंपनी के दफ्तर में अनेक युवा जमा थे। हर युवा इंटरव्यू के लिए उपयुक्त ड्रेस में सजकर वहां पहुंचा था, लेकिन एक युवा के साथ ठीक इसका उलट था। उसके पैरों में जूतों की जगह सैंडिल थी। करीने से संवरे होने के बजाय बाल बहुत लंबे और बेतरतीब थे। कपड़े मैले-कुचले और गंदे थे। वह युवा स्टीव जॉब्स थे जो कहीं से भी उम्मीदवार नजर नहीं आ रहे थे। इसके बजाय वह कोई हिप्पी और गंदे व्यक्ति नजर आ रहे थे।

जॉब्स उन दिनों अपने माता-पिता के पास वापस जरूर आ गए थे और नौकरी की खोज भी कर रहे थे मगर रहन-सहन का अंदाज बिल्कुल फक्कड़ व्यक्ति जैसा था। जाहिर है उन दिनों माता-पिता भी उनसे खुश नहीं थे। दोस्तों की मदद से जॉब्स की जिंदगी आगे बढ़ रही थी। इस बीच, कॉलेज से निकलकर स्टीव जॉब्स ने कैलीग्राफी का प्रशिक्षण ले लिया था और अब नौकरी की खोज में अटारी के दफ्तर में आ पहुंचे थे।

अटारी के कर्मचारियों ने स्टीव जॉब्स को वहां से वापस भेजने की कोशिश की मगर उन्होंने जोर-जोर से बोलकर घोषणा कर दी कि वे इंटरव्यू देकर ही जाएंगे और इस नौकरी को लेकर ही रहेंगे। आखिरकार उनका इंटरव्यू हुआ। कंपनी के मालिक बुशनेल सुलझे हुए इंसान थे। उन्होंने जॉब्स के बाहरी रूप पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय उन्होंने उनके अंदर मौजूद क्षमताओं को जानने की कोशिश की। उन्हें वे काम के आदमी लगे और वहां मौजूद लोगों ने देखा कि नौकरी पाने वाले 50 युवाओं की सूची में जॉब्स का नाम भी शामिल था। इन सबको पांच डॉलर प्रति घंटे की भुगतान दर से नौकरी पर रखा गया था।

लेकिन समस्या अभी खत्म नहीं हुई थी। कंपनी के जिस सेक्शन में स्टीव जॉब्स भेजे गए वहां के इंजीनियर ने उन्हें अपने साथ रखने से मना कर दिया। उसका कहना था कि स्टीव के शरीर से बुरी गंध आती है जो उसे सहन नहीं होती। यहां फिर मालिक बुशनेल ने हस्तक्षेप किया और स्टीव की शिफ्ट ही बदल दी। उन्हें अब दिन के बजाय रात में काम करना था। इस तरह स्टीव अटारी में रात में काम करने लगे।

( यह अंश '21वीं शताब्दी के महानायक- स्टीव जॉब्स'  नामक पुस्तक से लिया गया है। मेरे द्वारा लिखी गई इस पुस्तक को पुस्तक महल दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इस रोचक पुस्तक को पढ़कर हमें पता चलता है कि जिस व्यक्ति ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं की, जो व्यक्ति हार्डवेयर का इंजीनियर नहीं रहा, जो व्यक्ति सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर भी नहीं रहा, यहां तक कि उसने प्रबंधन का कोई गुर भी कहीं से नहीं सीखा, लेकिन वही व्यक्ति कंप्यूटर और सेलफोन के क्षेत्र में कॉरपोरेट जगत के शीर्ष पर जा पहुंचा। उसी व्यक्ति ने तकनीक को बदल डाला। उसी व्यक्ति ने जिंदकी और काम के प्रति लोगों का नजरिया बदलकर रख दिया और अंततः उसी व्यक्ति ने दुनिया को भी बदलकर रख दिया।

अगर आप यह पुस्तक पढ़ना चाहते हैं और आपको यह पुस्तक अपने आसपास नहीं मिल पा रही है तो आप पुस्तक महल दिल्ली से इसे प्राप्त कर सकते हैं।
- लव कुमार सिंह

Thursday 20 February 2020

दलितों पर अत्याचार को रोकने के लिए कुछ कर सकते हैं तो कीजिए, लेकिन इस पर किसी पार्टी की चादर मत चढ़ाइए

If you can do something to stop atrocities on Dalits, then do not put a sheet of parties on it



राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार होने से और वहां होने वाली अन्यायपूर्ण घटनाओं पर लोगों की सहूलियत भरी प्रतिक्रियाओं से हमारे ज्ञानचक्षु खुलने में (अब हम इन्हें खोलना ही न चाहें तो अलग बात है) काफी मदद मिलती है। वो इस तरह कि इससे हमें समझ में आ जाता है कि नागौर में दलितों के साथ क्रूरता इसलिए नहीं हुई क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। इसी तरह ऊना कांड या रोहित वेमुला इसलिए नहीं हुआ था क्योंकि वहां भाजपा की सरकार है। महाराष्ट्र में महिला टीचर इसलिए नहीं जिंदा जलाई गई कि वहां शिवसेना, कांग्रेस व एनसीपी की सरकार थी। ये चीजें कहीं भी, किसी भी सरकार के शासन में हो सकती हैं। 

सरकारों की अपनी अच्छाइयां-बुराइयां होती हैं, लेकिन समाज के अंदरूनी तंत्र में होने वाली घटनाएं सामाजिक जागरूकता आए बिना कोई सरकार नहीं रोक सकती। हां, सरकार लीपापोती करे या कार्रवाई न करे तो जरूर उसे कठोरता से घेरना चाहिए। इससे हमें यह भी समझ में आता है कि हम कितनी भी जुबानी जंग या लफ्फाजी कर लें, अपने को कितना भी प्रगतिशील कह लें, लेकिन हमें आदमी बनने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है। हमें आदमी बनाने में सरकारें मदद तो कर सकती हैं, लेकिन हमारे स्वयं के प्रयास के बिना यह संभव नहीं होगा। आज हमारे अंदर यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है कि बस सरकारों और सिस्टम को कोस लो, मगर अपने अंदर बिल्कुल मत झांको। हमें सारे अधिकार चाहिए लेकिन अपने कर्तव्यों का पालन किए बिना।

अब जमाना बदल गया है। जैसे आज असली मर्द वो है जो औरत की इज्जत करता है, उसी तरह यदि आप असली ठाकुर, राजपूत या ब्राह्मण बनना चाहते हैं तो दलितों को इज्जत देना सीखिए। खाली मूंछ, चोटी और जनेऊ पर हाथ फिराने से कुछ नहीं होगा। आज आपकी मूंछों की रौनक घोड़ी पर चढ़े दलित दूल्हे रामचंद्र का साथ देने से ही बढ़ सकती है। दलित के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने से ही बात बन सकती है।

उसी तरह दलित भाइयों को भी सिर्फ दिलीप मंडल या चंद्रशेखर आजाद बनने से काम नहीं चलेगा। कानून और सरकार आपके साथ है तो वैमनस्य बढ़ाने के बजाय कुछ सौहार्द की भी बात कीजिए। कुछ करिए ऐसे आयोजन जिसमें दलित भाई यह शपथ लेते दिखाई दें कि अत्याचार होगा तो सहेंगे नहीं लेकिन किसी को एससी-एसटी कानून में झूठा भी नहीं फंसाएंगे।

- लव कुमार सिंह

(वर्तमान संदर्भ- अहमदाबाद के एक गांव में 23 मई 2021 को एक दलित युवक पर मूंछें रखने के कारण हमला किया गया। इस मामले में पुलिस ने छह लोगों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया है।)


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Monday 17 February 2020

सावधान! परीक्षा सिर पर है, कहीं तुम्हारे अध्ययन कक्ष में प्रेम तो नहीं घुस आया?

careful! The exam is on the head, has love entered your study room?

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अरे, ये क्या हो गयाबोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आया और तेजतर्रार माना जाने वाला छात्र अर्पण दूसरी श्रेणी ही हासिल कर सका। सब मान रहे थे कि हाईस्कूल की तरह इंटर में भी अर्पण सफलता के झंडे गाड़ेगापर ऐसा नहीं हुआ। मम्मी-पापा ने उससे काफी जानने की कोशिश की कि ऐसा कैसे हुआ पर वे विफल रहे। अब अर्पण उन्हें कैसे बताता कि पिछले एक साल से उसे सबसे प्रिय लग रही चीज ही उसकी राह की सबसे बड़ी बाधा बन गई थी। वह कैसे बताता कि परीक्षा की तैयारी के दौरान किताबों में उसे सवालों और जवाबों की जगह अपनी क्लास की ही एक लड़की का खूबसूरत चेहरा दिखाई देता था। ये एक ऐसा आकर्षण था जिसने उसके सारे पाठ भुला दिए थे।

जी हांअर्पण के सामने एक ऐसी बाधा आ खड़ी हुई थी जो किशोरावस्था में तमाम किशोर-किशोरियों का रास्ता रोकने के लिए हर समय तैयार रहती है। इस बाधा की दीवारें जहां बहुत ऊंची हैंवहीं कमजोर भी हैं। ये बाधा कब सामने आकर खड़ी हो जाएपता ही नहीं चलता। बाली उमर का आकर्षण या अंग्रेजी में टीन क्रश कही जाने वाली ये बाधा बहुत प्यारी लगती हैलेकिन ये भी सच है कि जो इस बाधा को क्रश यानी कुचल देता हैसफलता उसके कदम चूमती है और जो खुद कुचला जाता हैउसे उठकर खड़े होने में तमाम मुश्किलें पेश आती हैं।

क्या गर्लफ्रेंडब्वायफ्रेंड अनिवार्य है?       


पुराने समय के मुकाबले आज के किशोर के सामने टीन क्रश की समस्या ज्यादा है। तब केवल एक अदद लड़का या लड़की या फिर फिल्में ही उनका ध्यान भटकाती थीं। आज इन सबके अलावा टेलीविजन और इंटरनेट भी मौजूद हैं। देह का ज्यादा खुलापन भी नई उम्र को आकर्षित करता है। इसके अलावा बिन मांगी सलाह की तरह हमारी फिल्में और टेलीविजन हर कहानी में चीख-चीखकर कह रहे हैं कि एक लड़का या लड़की का ब्वायफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होनी अनिवार्य है। जिनकी गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड नहीं हैंउन्हें कहानी में हंसी का पात्र बताया जाता है। फिल्मों और टीवी में गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड होने के मायने भी ज्यादातर देह से जुड़े होते हैं। वास्तविक जीवन में गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड होने की कोई अनिवार्यता नहीं हैलेकिन जब प्रभावशाली माध्यमों के जरिये कोई बात या संदेश बार-बार दिया जाता है तो कुछ प्रभाव तो निश्चय ही देखने-सुनने वाले पर अवश्य ही पड़ता है। फिर किशोर आयु तो होती ही ऐसी है कि हर बात जिज्ञासा और आकर्षण पैदा करती है।

पढ़ाई को पीछे छोड़ रहा प्रेम


ऐसा नहीं है कि फिल्मों या टेलीविजन से पहले किशोर आयु में प्रेम नहीं होता था। ये होता थामगर आज इसकी रफ्तार बहुत बढ़ गई है। जो वाकये सार्वजनिक नहीं होते या पता नहीं चलते उन्हें छोड़ भी दें तो भी प्रकाश में आने वाली घटनाएं इतनी ज्यादा हैं कि लगता है जैसे किशोर-किशोरियां पढ़ाई-लिखाई छोड़ प्यार ही करने में लगे हैं। हर इलाके के हर पुलिस थाने में इन दिनों पुलिस अपराधियों का कम लड़का-लड़कियों का ज्यादा पीछा कर रही हैक्योंकि लड़कियां घर से भाग रही हैं और परिजन उनके अपहरण का मुकदमा दर्ज करा रहे हैं। बेशक इनमें बहुत से मामले वयस्क प्रेम के भी होते हैंपर इनमें भी प्रेम की शुरुआत तो किशोरवय में ही होती है।

सही समय और उम्र देखना जरूरी


लोग कह गए हैं कि प्रेम अंधा होता है। यह न उम्र देखता है और न वक्त। लेकिन इसी के साथ यह भी सच है कि सही वक्त और सही उम्र में किया गया प्रेम व्यक्ति को नई ऊर्जा देता हैउसे आगे बढ़ाता है और उसका विकास करता है। उधरबेवक्त और कम आयु में किया गया प्रेम ज्यादातर हमारे सामने बाधाएं ही खड़ी करता है। 

अब देखिए नाखूबसूरत स्वाति एमबीबीएस में चयन होने तक प्यार-व्यार के लफड़े में नहीं पड़ी। एक-दो लड़कों ने उसकी तरफ कदम बढ़ाने की कोशिश भी की मगर स्वाति ने पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित रखा। एमबीबीएस करने के बाद एमडी के अंतिम वर्ष में उसने खुद को अनुमति दी कि वह किसी के प्रति आकर्षित हो सके। ये वो वक्त और उम्र थी जब न तो स्वाति के परिजनों ने कोई शिकवाशिकायत की और न ही पढ़ाई में कोई बाधा ही आई। प्रेम का पात्र भी काबिल मिला। पीसीएस में चयनित विमल ने तो शादी के बाद ही किसी लड़की में रुचि दिखाई और वो लड़की उसकी पत्नी थी। शादी के बाद उसने पत्नी को खूब प्रेम किया। आज उनकी जोड़ी को देखकर लगता है कि प्रेम तो शादी के बाद ही करना चाहिए।

प्रेम को रोज खूंटी पर टांग सको तो प्रेम कर लो


ऐसा नहीं है कि प्रेम के साथ पढ़ाई संभव नहीं है। कई युवा दोनों को साधने में सफल रहते हैं। वे प्रेम में खुद को तबाह करने के बजाय निखार लेते हैं। पर ऐसा अपवाद के रूप में ही होता है। वास्तव में शरीर में भारी बदलावों वाली किशोर अवस्था में ऐसा करना बहुत मुश्किल होता है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा में आज की पढ़ाई आपसे पूरा वक्त मांगती है। 

चूंकि प्रेम दो पक्षों में होता हैलिहाजा यह जरूरी है कि प्रेम को अगर कैरियर या पढ़ाई में बाधा बनने से बचाना है तो दोनों पक्ष संयम और धैर्य से काम लें। अमूमन ऐसा हो नहीं पाता है। प्रेम में पड़ने के बाद उसे संभालना एक पक्ष के बस की बात नहीं होती। प्रेम को बाधा बनने से रोकना है तो प्रेम रूपी वस्त्र को पहनकर भी पढ़ाई के वक्त उसे खूंटी पर टांगना होता है। ठीक उसी तरह जैसे शाम को हमने खूब रुचि से बैडमिंटन खेला और फिर रैकेट को खूंटी पर टांगकर उतनी ही रुचि से पढ़ाई भी करने लगते हैं। प्रेम के मामले में हर कोई ऐसा नहीं कर पाता। आप कर सकते हो तो प्रेम कर लोअपने को किसी के आकर्षण में बांध लो। किसी बाजीगर की तरह जिंदगी की रस्सी पर प्रेम और पढ़ाई को साध सकते हो तो प्रेम कर लो। वरना जिंदगी में कोई मुकाम पाने के बाद ही इस बारे में सोचो।

खुद से कुछ वादे करके प्रेम करो


मान लिया कि तुम एक लड़का हो। तुम जिंदगी में कुछ हासिल करने से पहले हाईस्कूल या इंटर में ही किसी लड़की से प्रेम करने लगे। ठीक हैलेकिन आगे बढ़ने से पहले तुम खुद से क्या ये वादे कर सकते होएकपढ़ाई के वक्त लड़की का चेहरा तुम्हारी आंखों के सामने नहीं घूमेगा। दोतुम रोज लड़की से मिलने की कोशिश नहीं करोगे और लड़की के घर के चक्कर नहीं लगाओगे। तीनतुम्हारे प्रेम का किसी को पता नहीं चलेगा। चारतुम और लड़की एक-दूसरे का कीमती वक्त बर्बाद नहीं करोगे। यदि तुम चार में से एक भी वादा पूरा नहीं कर पाए तो ये प्रेम तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा। तुम कुछ भी नहीं बन पाओगे। इनमें से एक भी वादा टूटा तो तुम्हारी पढ़ाई चौपट होनी निश्चित है। 

कुल मिलाकर बात वहीं पर आ जाती है कि प्यार अगर आगे बढ़ने में बाधा बन रहा है तो समझ लो कि ये प्यार का सही वक्त नही हैं। तुम्हें थोड़ा इंतजार करना चाहिए। तुम अपने दिल और शरीर के प्रिंसिपल हो। तुम्हें उन्हें कहना चाहिए कि प्रेम की कक्षा में सही वक्त पर ही आएं।
                                                        - लव कुमार सिंह

गलत कारोबार को बंद करवाना क्या रोजगार पर चोट मारना कहा जाना चाहिए?

Stopping the wrong business, should it be said to strike on employment?


  • Will efforts to eradicate corruption in India not succeed?
  • If the offender stops earning from crime, will it be termed employment snatch?



 

किसी कस्बे के एक घर में अच्छा पैसा आ रहा था। परिवार तेजी से संपन्न बन गया। पता चला कि घर का एकमात्र बेटा मुंबई में किसी कंपनी में लगा है। फिर कुछ वर्ष बाद खुलासा हुआ कि वह तो नकली नोट बनाने वाले गिरोह के साथ काम कर रहा था। पुलिस ने छापा मारा तो धंधा बंद हो गया। जेल हुई सो अलग। क्या आप इसे उस युवक का रोजगार छिनना कहेंगे? 

देश में लाखों शैल (मुखौटा) कंपनियों के शटर गिर गए। इन कंपनियों से निकले हजारों युवक घर पहुंच गए। क्या इन कंपनियों से निकले युवाओं के घर आने को आप रोजगार का छिनना कहेंगे? गलत तरीके से पैसा कमा रहे व्यापारी पर कुछ नकेल कसी तो उसने अपने यहां काम कर रहे कुछ लोग हटा दिए। क्या इसे रोजगार का छिनना कहा जाएगा? 

संपत्ति के धंधे में, एनजीओ आदि में असंख्य गलत कामों पर लगाम लगनी शुरू हुई तो बहुत से लोगों के गलत काम बंद हुए। क्या आप इसे रोजगार का छिनना कहेंगेजो लोग रसोई गैस में सब्सिडी हजम कर रहे थे या जो लोग राशनकार्डों में धांधली कर रहे थे, उनके इस धंधे पर रोक लगने को उनका रोजगार छिनना कहा जाएगा? क्या सरकार के सैकड़ों भ्रष्ट अफसरों को घर बैठाने को उनका रोजगार छिनना कहा जाएगा?

नैतिक रूप से तो इन सबको रोजगार का छिनना नहीं कहा जाना चाहिए। अपराधी की यदि अपराध से कमाई बंद हो जाए तो रोजगार छिनना नहीं कहा जाना चाहिए, लेकिन भारत में यह कहा जा रहा है। 

इसीलिए आज के घोर भौतिकतावादी युग में यदि कोई नेता देश से भ्रष्टाचार मिटाना चाहेगा या ऐसे कदम उठाएगा जिनसे लोगों को कुछ मिलने के बजाय उनका कुछ छिने तो ऐसे कदमों के देशहित में होते हुए भी ज्यादा संभावना यही है कि वह नेता जबर्दस्त आलोचना का शिकार बनेगा और बहुत से चुनाव भी हारेगा क्योंकि इस प्रक्रिया में जिनका कुछ छिन रहा है वे निम्न मध्यम से लेकर उच्च मध्यम वर्ग तक का हिस्सा हैं और यह वर्ग इस देश की रीढ़ है। विचार-विमर्श पर इस वर्ग का ही प्रभुत्व है और इसका ही शोर हवा में सबसे ज्यादा सुनाई देता है। इसी वर्ग के वे लोग जो इन कदमों को देशहित में मानते हैं, वे कोई शोर नहीं मचाते और जो इस बारे में नहीं जानते वे इस शोर से प्रभावित होते हैं।

नरेंद्र मोदी ने इन सब चीजों से निपटने की क्या योजना बनाई है, हमें नहीं पता। क्या वे सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट, धारा 370, सीएए जैसी दूसरे क्षेत्र की बड़ी लाइनें खींचते रहेंगे या कुछ और करेंगे? हमें नहीं पता, लेकिन जहां तक अरविंद केजरीवाल का सवाल है तो ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल ने अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम वर्षों में इस विषय पर गहन मंथन किया है। तभी उन्होंने संभवतः भ्रष्टाचार मिटाने का ठेका लेना अब छोड़ दिया है।

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कथित भ्रष्टाचार को तो वह पिछली बार मुख्यमंत्री बनते ही भूल गए थे। इसके बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से भी तौबा कर ली और एक-एक करके उन सभी व्यक्तियों से माफी मांग ली जिन पर उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय तो जैसे भ्रष्टाचार शब्द उनकी डिक्शनरी से ही गायब हो गया।

तो क्या भारत में भ्रष्टाचार खत्म करने के प्रयास कभी सफल नहीं होंगे? क्या इसके लिए नरेंद्र मोदी वाला तरीका सही नहीं है? क्या इसके लिए कुछ और तरकीब अपनानी होगी? या फिर भ्रष्टाचार खत्म होने की उम्मीद हमें छोड़ देनी चाहिए।

- लव कुमार सिंह

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