Wednesday 12 February 2020

दिल्ली की जनता को कोसने या उसे मुफ्तखोर कहने से कुछ हासिल नहीं होगा

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Nothing will be gained by cursing the people of Delhi or calling it freebred?


दिल्ली की जनता को कोसने या उसे मुफ्तखोर कहने से कुछ हासिल नहीं होगा। जनता का फैसला स्वीकार कीजिए। केजरीवाल तात्कालिक लाभ दे रहे हैं, जनता ने लपक लिया। मोदी दीर्घकालिक लाभ की बात करते रहे हैं, उन्हें दिल्ली वाले पहले ही लपक चुके हैं। दोनों हाथों में लड्डू हैं दिल्ली वालों के। वर्तमान भी उनका और भविष्य भी उनका।.....लेकिन यह कहानी का एक ही हिस्सा है। कहानी के दूसरे हिस्से में सीएए के कारण हुआ मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण है। अब इसका जिम्मेदार चाहे जो हो पर यदि यह न होता तो जीत के बावजूद केजरीवाल की सीटों का आंकड़ा आज से काफी अलग होता।

Did Congress sacrifice in Delhi assembly elections?


अगर आप कह रहे हैं कि कांग्रेसी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुर्बानी दे दी तो माफ कीजिए ऐसा हरगिज नहीं हुआ है। कृपया दुर्गति को कुर्बानी का नाम मत दीजिए। ऐसी कुर्बानी की जरूरत लोकसभा चुनाव में ज्यादा थी, लेकिन तब केजरीवाल के गिड़गिड़ाने पर भी कोई कुर्बानी नहीं हुई। अगर ईश्वर राहुल गांधी को विकल्प दे और उनसे पूछें कि तुम लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराना चाहोगे या यह चाहोगे कि लोकसभा चुनाव भाजपा जीत जाए और छह-सात-आठ राज्य कांग्रेस या उसके सहयोगी जीत जाएं? राहुल गांधी का छूटते ही उत्तर होगा- कैसे भी लोकसभा चुनाव जिता दो भगवन, फिर चाहे बदले में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ भी ले लो। ...तो लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने के लिए तड़प रहे राहुल गांधी ने केजरीवाल को सहयोग नहीं दिया, लेकिन आपके अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव में सहयोग कर दिया। जिस कांग्रेस से छह महीने पहले दिल्ली में तीन सीट कुर्बान नहीं हुई उसने अब 70 सीट कुर्बान कर दीं? जी नहीं। असल बात यह है कि कांग्रेस को वोटों का टोटा पड़ गया था। उसके परंपरागत वोटर तो केजरीवाल ने पहले ही काबू में कर लिए थे, इस बार एकमुश्त मुस्लिम वोट भी केजरी की झोली में जा गिरे। अगर यह कुर्बानी है तो आगे भी 0 सीट वाली ऐसी कुर्बानी जरूर दिखनी चाहिए। अगर आपको दिखे तो बताइएगा।

Do not lynch Manoj Tiwari


अनेक साथी मनोज तिवारी के पीछे पड़े हैं। अरे भाई, अच्छा है, बंदे ने 11 तारीख को रिजल्ट देखने का मजा बनाए रखा। हर कोई इन्हें नॉन सीरियस कहता रहा, मगर इनकी बातों को सीरियसली भी लेता रहा। स्वयं केजरीवाल, संजय सिंह तक को शंका होने लगी थी। अनेक मित्र 'खेल हो गया' चिल्लाने लगे थे। कइयों ने तो भाजपा के जीतने पर सड़कों पर बवाल करने तक की बात कह दी थी। अब नाहक बंदे की 'मॉब लिंचिंग' मत कीजिए, क्योंकि कोई चुनाव बता दीजिए जिसमें किसी नेता ने नतीजे से पहले अपनी पार्टी की ज्यादा सीटें आने या सरकार बनाने का दावा न किया हो। मनोज तिवारी ने क्या किसी से कुछ अलग कहा?
- लव कुमार सिंह 

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