Thursday 13 February 2020

शहरों, कस्बों और गांवों में बढ़ गया कुत्तों और बंदरों का आतंक

Terror of dogs and monkeys increased in cities, towns and villages 

How to deal with the problem of dogs and monkeys

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हमारे शहर मेरठ में
देर रात घर से निकलने पर
पुलिस आपसे सवाल करे न करे
मगर एक महाशय अनिवार्य रूप से सवाल पूछते हैं
ये महाशय हैं-
श्री-श्री एक हजार आठ, देशी कुत्ता महाराज
ये महाशय हर गली-कूचे में तैनात रहते हैं
इनके यहां संख्याबल की कोई कमी नहीं है
आपको देखते ही ये गुर्राते हैं और सवालों की झड़ी लगा देते हैं-
भौं-भौं...कौन है बे?
भौं-भौं...कहां जाता है बे?
भौं-भौं....रात में क्यों निकला बे?
भौं-भौं....झूठ बोला तो फाड़ दूंगा बे
इन महाशय के एक या कई साथी
उसेन बोल्ट के अंदाज में तैयार रहते हैं
ताकि यदि आप भागें
तो वे न केवल रेस में आपको पछाड़ सकें
बल्कि आपकी टांगों में दांत गड़ाकर तुरंत ही मेडल भी पा सकें
अगर आपने इनसे विनम्रता का व्यवहार किया
आप डरकर चीखे-चिल्लाए
या आपने भागने की कोशिश की
तो हो सकता है कि आपके पिछवाड़े पर डंडा न पड़े
लेकिन एंटी-रैबीज का इंजेक्शन जरूर ठुकेगा।

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और अगर रात में आप देशी कुत्ता महाराज से बच गए
तो दिन में आपसे एक और महाराज रूबरू होंगे
ये हैं श्री-श्री एक हजार आठ
हमारे कथित पूर्वज बंदर महाराज
वे आपकी ही छत पर आपसे पूछते हैं-
खी-खी- कौन है बे? और यहां कैसे?
मुझसे ऐसे ही पूछा गया तो मैंने कहा-
इस घर का मालिक हूं, छत पर कपड़े सुखा रहा हूं
बंदर बोला- खी-खी...नौकर होकर मालिक कहता है
झूठ बोलेगा तो चांटे पड़ेंगे
चल नीचे भाग और कुछ खाने को ला
हम इस छत पर बंदरिया से प्रेमालाप करेंगे।

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बिल्कुल सही कह रहा हूं साब, मचा है हाहाकार
मेरे जिले में खूंखार कुत्ते-बंदर
अनेक बच्चों-बड़ों का कर चुके हैं शिकार
अस्पतालों में एंटी-रैबीज टीके के लिए लगी हैं कतार
अगर बंदर-कुत्तों के साथ थोड़ा सख्त करें व्यवहार
तो मेनका गांधी सेना के लोग चिल्लाते हैं-
अत्याचार-अत्याचार
वन विभाग से इन्हें पकड़ने की लगाई गुहार
तो वे बोले- खुद पकड़ो, और हां...छूना मना है होशियार
और अगर बंदर-कुत्ते को हुआ तनाव
तो तुम्हारी शामत आनी पक्की है बरखुरदार
(बिना छुए पकड़ो...वन विभाग की 35-36 शर्तें ऐसी ही है जिन्हें पूरा करने का अर्थ है लगभग यही है कि आप बंदर को बिना छुए पकड़ें। एक को मत पकड़ो, सभी को पकड़ो, एक क्षेत्र के बंदर दूसरे क्षेत्र से न मिलाओ, ठंड-गर्मी से बचाओ, एक पिंजड़े में एक ही प्रजाति के बंदर रखो, पिंजड़े का वजन इतने किग्रासे ज्यादा न हो, तनाव न हो आदि।)

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तो हमारे शहर में बहुत बुरे हालात हैं साहब
कुत्ते जैसा बर्ताव, बंदरों जैसी हरकत
ये जुमले अब बोलचाल में न कहें आप
इनमें नहीं रहा अब कोई ताब
कुत्तों-बंदरों में तो बरकत है आजकल
आदमी होना ही हो गया है पाप 

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यहां पेश किए गए इस वाकये को यू-ट्यूब पर नीचे दिए गए लिंक को खोलकर रोचक अंदाज में सुनें। बहुत ही आनंद आएगा।





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इस मुद्दे पर यह कहानी भी पढ़ें--------
कहानी-  जब रात में कुत्ते भौंककर कहें- भौं-भौं... कहां जा रहे हो

मेरे मित्र राकेश की नौकरी रात की थी। रोज रात करीब दो बजे वह दफ्तर से छूट पाता था। दफ्तर से घर करीब 11 किलोमीटर दूर था। राकेश की कॉलोनी और उससे भी आगे की कॉलोनी के कई साथी उस दफ्तर में काम करते थे। रात में वह उन्हीं के साथ घर वापस आता था। तीन-चार लोग साथ होने से कोई समस्या नहीं होती थी। समस्या तब महसूस हुई जब रात के उस वक्त घर लौटने वाला राकेश अकेला व्यक्ति रह गया। एक साथी का तबादला होने और बाकी की ड्यूटी का समय बदलने के कारण ऐसा हुआ था। 

समस्या यह थी कि राकेश के घर लौटने के रास्ते में जगह-जगह आवारा कुत्तों का डेरा था। दो-चार लोग स्कूटर-मोटरसाइकिल पर साथ चलते तो ये कुत्ते किनारे हो जाते थे, मगर अकेला व्यक्ति दिखने पर वाहन के साथ दूर तक काट खाने को दौड़ते थे। शहर में कई कानूनी, गैरकानूनी पशुवधशालाएं और मांस बिक्री की दुकानें थीं। इन जगहों पर मुंह मारने से इन कुत्तों को मांस की लत लग गई है और ये और भी खूंखार हो गए थे।

जब राकेश अकेला हो गया तो डर के कारण अपने स्कूटर को तेज भगाने लगा। जैसे ही उसे सामने सड़क पर कोई कुत्ता दिखाई देता, वह पहले से ही स्कूटर की गति तेज कर देता और तेजी से उसकी बगल से निकल जाता। कुत्ते भौंकते, दौड़ने का प्रयास करते मगर तेज गति देखकर रुक जाते।

कुछ दिन ऐसा ही चला मगर एक रात राकेश ने देखा कि दो कुत्ते सड़क के दोनों ओर खड़े हैं। उनके बाकी साथी किनारे पर ही थे। सड़क पर खड़े दोनों कुत्तों की नजरें उसके स्कूटर पर ही थीं और शरीर जैसे दौड़ने के लिए तैयार। जैसे कोई गोली छूटेगी और ये सौ मीटर दौड़ के धावक की तरह दौड़ने लगेंगे। राकेश ने घबराकर स्कूटर तेज कर दिया, मगर जैसे ही वह कुत्तों के पास आया, वे भौंकते हुए पूरी ताकत से स्कूटर के साथ-साथ दौड़ने लगे। उनके साथी भी आगे-पीछे दौड़ते दिखाई दे रहे थे।

दोनों तरफ से दौड़ते और भौंकते कुत्तों का हमला राकेश पहली बार झेल रहा था। उसने अधिकतम संभव गति पर स्कूटर दौड़ाया मगर दोनों तरफ बिल्कुल पैरों के पास दौड़ते कुत्ते देखकर उसके हाथ-पांव फूले गए थे। सड़क गड्ढों से भरी थी। रात में उस सड़क पर भारी सामान लेकर ट्रक भी आते-जाते थे। सड़क के किनारे-किनारे काफी गहरा, दलदली नाला भी था। यानी हादसे की पूरी आशंका थी। राकेश को बचने की कोई सूरत नहीं दिखाई दे रही थी। तभी सामने से ट्रकों का एक काफिला आ गया। उससे बचने की कोशिश में राकेश के दाएं तरफ वाला कुत्ता सड़क के किनारे हो गया। यह देखकर बाएं तरफ वाला कुत्ता भी धीमा पड़ गया और राकेश किसी तरह सुरक्षित निकल आया।

कुत्तों के साथ इस दौड़ प्रतियोगिता से राकेश बहुत डर गया। यह कोई एक रात की बात तो थी नहीं। उसे हर रात ही उस रास्ते से आना था। नौकरी छोड़ने या बदलने का भी विकल्प नहीं था। राकेश ने अपनी आपबीती मुझे बताई तो मैंने कई विकल्पों पर विचार किया। अब राकेश मुख्य सड़क पर रुककर थोड़ी देर इंतजार करता कि कोई बड़ा वाहन मुख्य मार्ग से शहर के अंदर वाले मार्ग पर मुड़े तो उसके पीछे-पीछे अपना स्कूटर लगा ले। किसी रात तो उसके दफ्तर से निकलने के समय पर ही उसे कई ट्रक शहर के अंदर जाते मिल जाते, मगर कई बार घंटों कोई बड़ा वाहन नहीं आता।

राकेश ने  स्कूटर के आगे सामान रखने की जगह में दफ्तर से चलने से पहले ईंट-पत्थर भी रखने शुरू किए। इसके अलावा उसने कमर से पतलून की बेल्ट निकालकर एक हाथ से स्कूटर चलाया और दूसरे हाथ से कुत्तों की तरफ बेल्ट भी लहराई। घर से एक छोटा डंडा भी उसने लाना शुरू किया, मगर ये समाधान हास्यास्पद और अस्थायी ही निकले। उसका सवाल था कि क्या कुत्तों से डरकर वह जिंदगीभर यूं ही घर जाने से पहले ईंट-पत्थर ढूंढेगा या बेवकूफों की तरह रात में हवा में बेल्ट घुमाएगा या एक हाथ से स्कूटर और दूसरे हाथ से डंडा चलाएगा। एक हाथ से स्कूटर चलाने में  खतरा भी तो बहुत था।

कुत्तों का इतना खौफ हो गया था कि वे अब राकेश के सपनों में भी दिखाई देने लगे थे। रात में दफ्तर में छुट्टी होने से पहले ही उसके दिल और दिमाग में कुत्तों का डर बैठने लगता। मैंने कुछ पत्रकार मित्रों से अनुरोध करके आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी पर अखबार में खबरें भी लिखवाईं मगर कोई असर नहीं हुआ। एकाध बार नगर निगम ने कुत्ता पकड़ो अभियान भी चलाया मगर मेनका गांधी की संस्था वाले लोग अभियान के विरोध में आ खड़े हुए।

कुछ मित्रों ने सुझाव दिया कि राकेश स्कूटर दौड़ाए नहीं, बल्कि कुत्तों के दौड़ते ही तुरंत रोक दे। तभी एक अन्य मित्र बोले कि यह तरकीब इस शहर के कुत्तों पर काम नहीं करेगी। उन्होंने बताया कि एक साइकिल से जाने वाले सहकर्मी ने कुत्तों को देखकर साइकिल रोकी तो एक कुत्ते ने उसके पैर में अपना मुंह गड़ा दिया। मैंने भी पढ़ा था कि हमारे दौड़ने से कुत्ते की शिकारी प्रवृत्ति जाग जाती है और वे हमसे भी ज्यादा तेज दौड़ने का प्रयास करते हैं, मगर राकेश का सवाल था कि यदि वह कुत्तों के पास अपना स्कूटर रोक दे तो इसकी क्या गारंटी है कि उनमें से कोई पागल कुत्ता उसे नहीं काटेगा।

इसी दौरान, टेलीविजन पर एक कार्यक्रम में मैंने विशेषज्ञों के मुंह से सुना कि जंगल में कभी भी जानवर से नजरें मत मिलाओ। उन्हें ऐसा महसूस कराओ कि उन्हें तुमसे कोई खतरा नहीं है। लापरवाह से दिखो मगर चौकन्ने बने रहो। जानवर के सामने पीठ दिखाकर मत भागो। आपको डरा जानकर वह निश्चित ही आप पर हमला करेगा। यह बात मैंने राकेश को बताई तो उसने कहा कि यह तो उसने भी महसूस किया था। उसने बताया कि कुत्ते जैसे उससे नजरें मिलने का इंतजार करते थे। नजर मिलते ही वे किनारे से सड़क पर आ जाते थे। लेकिन मुश्किल ये थी कि शहर में अकेली आंखें ही कुत्तों को दुश्मन नहीं लगतीं। वाहन की लाइट, उसकी आवाज और उसका कुत्तों की दिशा में आना भी तो उन्हें बेचैन करता है।

बहरहाल, विशेषज्ञों की सलाह और दोस्तों की बातें सुनने के बाद राकेश के शरीर और दिमाग में जानकारी की खुराक गई तो उसका आत्मविश्वास कुछ बढ़ा। अब वह ये करने लगा कि एक तो कुत्तों के इलाके में पहुंचकर मोटरसाइकिल ( कुत्तों से जंग इतनी लंबी चली कि उसके पास स्कूटर की जगह अब बाइक हो गई थी) तेज नहीं दौड़ाता था। उसकी स्पीड मध्यम से थोड़ी कम रखता। दूसरे, कुत्तों से नजर नहीं मिलाता, हालांकि चौकन्ना रहता। यानी कनखियों से उन पर नजर रखता। तीसरे, मोटरसाइकिल को बिल्कुल रोकता भी नहीं ताकि अचानक किसी कुत्ते के हमला करने पर अपने को बचाकर निकल सके। चौथा, जब तीनों उपाय काम नहीं आते तो वह अचानक मोटरसाइकिल रोकता और उसे खड़ा करके जमीन से पत्थर उठाने का उपक्रम करता। उसे पत्थर उठाते देख कुत्ते पीछे हट जाते। यदि नहीं हटते थे तो वह वाकई पत्थर उठाकर उन पर फेंकता था।

राकेश ने बताया कि अभी तक तो उसके ये उपाय सफल रहे हैं। पिछले कई सालों में चौथे उपाय की नौबत एक-दो बार ही आई है। इससे उसके दिल से कुत्तों का डर काफी हद तक निकल गया है। हां, कु्त्तों ने उसे परेशान करना नहीं छोड़ा है, पर राकेश ने डरना छोड़ दिया है।



- लव कुमार सिंह

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