मेरठ वाले सोफिया व सेंट मेरीज के पीछे पागल, कई इस चक्कर में दलालों से होते हैं घायल
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स्कूलों में दाखिलों
के मौसम के दौरान कोई वर्ष ऐसा नहीं जाता जब आस-पड़ोस, मित्रों या
नाते-रिश्तेदारों में से किसी के मुंह से यह नहीं सुना हो कि फलां के बेटे या बेटी
का मेरठ के प्रतिष्ठित स्कूलों 'सेंट मेरीज' या 'सोफिया' में एडमिशन कराने के लिए
लाख-दो लाख या इससे भी ज्यादा रुपये देने पड़े हैं।
मैं नहीं कहता कि
शहर के इन प्रतिष्ठित स्कूलों में सभी बच्चों का प्रवेश पैसा देकर या
सोर्स-सिफारिश से ही होता है, लेकिन यह एक सच्चाई है कि कई बच्चों का प्रवेश कई
लाख रुपये खर्च करके होता है। अब यह पैसा कौन लेता है? स्कूल या बाहर के दलाल, यह जांच का विषय है।
दोनों स्कूलों के लिए पैसा लेने वाले तो सक्रिय
हैं ही, लेकिन यह भी सच है कि अनेक अभिभावक भी दो-तीन-चार-पांच लाख रुपये देने के लिए बिल्कुल तैयार
बैठे रहते हैं। वे ढूंढते रहते हैं, तलाश करते हैं कि एडमिशन कराने के लिए कहीं
कोई पैसे लेने वाला मिल जाए।
कुछ वर्ष पहले पड़ोस
के एक बच्चे के 'सेंट मेरीज' में प्रवेश के लिए उसके माता-पिता ने किसी व्यक्ति
को डेढ़ लाख रुपये दिए थे, लेकिन उस बच्चे का पैसे देकर भी प्रवेश नहीं हो सका।
ऐसे में काफी दिनों तक दिए गए डेढ़ लाख रुपये की वापसी के लिए मशक्कत होती रही।
सोफिया स्कूल के बारे
में कहा जाता है कि यहां एलकेजी से ही दाखिला होता है। इसके बाद दाखिला नहीं किया
जाता है। लेकिन तीन साल पहले ही शास्त्रीनगर में एक व्यक्ति ने अपनी पुत्री का
प्रवेश छठी कक्षा में कराया। उनका दावा है कि इस काम में उनके पांच लाख रुपये खर्च
हुए।
दाखिले के मौसम में
पत्रकारों के लिए यह एक्सक्लूसिव खबर या स्टिंग ऑपरेशन का बहुत सनसनीखेज विषय
है, लेकिन मेरठ में रहते हुए करीब 30 साल हो गए, किसी पत्रकार ने इस विषय पर कभी कलम
नहीं चलाई है।
अब आती है पढ़ाई की
बात। हमने सेंट मेरीज और सोफिया के छात्र-छात्राओं को भी ट्यूशन पढ़ते देखा है।
हमने सेंट मेरीज और सोफिया के बच्चों के साथ भी उनके माता-पिता को पढ़ाई के लिए माथापच्ची
करते देखा है। फिर इन स्कूलों में और बाकी पब्लिक स्कूलों में क्या अंतर हुआ? कहने
का अर्थ यही है कि सेंट मेरीज, सोफिया या शहर के अन्य पब्लिक स्कूलों में जहां तक
पढ़ाई के स्तर की बात है तो सभी में 19-20 का ही अंतर है। बिना ट्यूशन या बिना
मां-बाप के पढ़ाए या उन पर ध्यान दिए आज बच्चा किसी स्कूल में पढ़ ले, उसका बेड़ा
पार नहीं है। जो बच्चे होशियार हैं या स्वतः ही पढ़ने में रुचि लेते हैं, उन्हें
अपवाद कहा जा सकता है।
ऐसा कोई आंकड़ा हमारे सामने नहीं है कि सेंट मेरीज या सोफिया से पढ़े बच्चों ने दीवान, डीएमए, सीजेडीएवी, एमपीएस या अन्य पब्लिक स्कूलों में बढ़े बच्चों के मुकाबले जीवन में कुछ अलग या बेहतर किया है। यहां तक कि बीटेक आदि के कंप्यूटर व अन्य पाठ्यक्रमों में एक ही कक्षा में सोफिया व सेंट मेरीज के बच्चे भी पढ़ते हैं और अन्य स्कूलों से निकले बच्चे भी। स्नातक में आकर सब हिसाब बराबर हो जाता है।
इस प्रकार 'सोफिया' और 'सेंट मेरीज' बस
स्टेटस सिंबल बन गए हैं। एक भेड़चाल है जिसके पीछे सब दौड़े जा रहे हैं और लाखों
रुपये यूं ही खर्च कर रहे हैं। बहुत से लोगों के पास फालतू के पैसे हैं भी, तभी वे
खर्च भी कर रहे हैं।
शहर के जिन दो
स्कूलों के पीछे लोग दीवाने हैं, वहां एडमीशन को लेकर पारदर्शिता का भी अभाव है।
इस संदर्भ में एक रिपोर्ट ध्यान में आती है जो 2016 में ‘पत्रिका’ की वेबसाइट पर
छपी थी। यह रिपोर्ट कुछ इस प्रकार थी-
मेरठ के शर्मा नगर निवासी
रविकांत ने अपनी बेटी के एडमिशन के लिए सोफिया गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल किंडर गार्डन में प्रवेश के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया था। 10 फरवरी
को सुबह हम दोनों अभिभावक और बेटी तनवी को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। बेटी को
दूसरे कमरे में ले जाया गया और हमारा इंटरव्यू दूसरे कमरे में लिया गया। हम दोनों
से पहला सवाल ही यही किया गया कि हम किस श्रेणी से हैं। जवाब दिया कि एससी से हैं।
उसके बाद हमसे कोई दूसरा सवाल नहीं किया गया। हमें बाहर भेज दिया गया। उसी समय
में बेटी भी बाहर आ गई। रिजल्ट घर भेजने को कह दिया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, रविकांत ने बताया कि 26 फरवरी को स्कूल
का लेटर घर आया और एडमिशन ना होने की जानकारी दी। रविकांत का कहना है कि ना उसमें
इस बात की जानकारी दी कि उनकी बेटी का एडमिशन किस आधार पर रोका गया। ना ही इस बात
की जानकारी दी कि जिन 150 बच्चों का एडमिशन हुआ वो किस आधार पर किया गया। ताज्जुब
की बात तो ये है कि रजिस्ट्रेशन प्रोसेस ऑनलाइन होने के बाद भी रिजल्ट ऑनलाइन नहीं
किया गया।
इस बारे में रविकांत ने 30 मार्च को पीएमओ ऑफिस में
लेटर लिखा, जिसमें रविकांत ने प्रकरण का पूरा ब्योरा देने के साथ स्कूल पर कई आरोप लगाए। उन्होंने लेटर में लिखा कि स्कूल में उन्हीं बच्चों के एडमिशन होते हैं
जिन अभिभावकों द्वारा 3 से 6 लाख रुपए प्रबंध समिति को दिए जाते हैं या जो मलाईदार पोस्ट पर कार्यरत हैं। सुप्रीम
कोर्ट की रूलिंग के तहम गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी कोटा यहां नहीं रखा जाता है।
ये आरोप भी है कि स्कूल निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा
अधिनियम 2009 का पालन नहीं करता। उसके बाद 4 अप्रैल को पीएमओ ऑफिस की ओर से मामले
को राज्य सरकार के पास फारवर्ड कर दिया। राज्य सरकार की ओर से इस मामले को फिर फारवर्ड
कर दिया, क्योंकि आईसीएसई स्कूल केंद्र के अंतर्गत आते हैं। उसके बाद कोई जवाब नहीं दिया गया। इसकी एक कॉपी मानव संसाधन मंत्री को भी भेजी गई थी। लेकिन
दलित परिवार की सुनवाई कहीं नहीं हुई। उसके बाद रविकांत ने पीएम हाउस 7 रेस
कोर्स रोड में लेटर भेजा लेकिन जवाब नहीं मिला।
रविकांत ने बताया कि वे कांग्रेस के लीडर मल्लिकार्जुन
खड़गे से 2 मई को मिलने पहुंचे थे। लेकिन उन्होंने इस मामले को लोकल बताते
हुए सुनने से इनकार कर दिया। जून में वो पर्यटन एवं उड्डयन मंत्री महेश शर्मा से
उनके ऑफिस में गए और वहां भी लेटर दिया। लेकिन आज तक जवाब नहीं आया। रविकांत
की बेटी अब शर्मा नगर के ही छोटे से स्कूल में पढ़ रही है। रविकांत का कहना है कि
हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा एक अच्छे स्कूल में दाखिला ले और पढ़ाई कर
उंचा मुकाम हासिल करे। इस बारे में जब स्कूल मैनेजमेंट से बात की गई तो उन्होंने
कहा कि इस तरह के आरोप पूरी तरह से निराधार है। स्कूल में एडमिशन फेयर तरीके से
होते हैं।
- लव कुमार सिंह
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