Monday 17 February 2020

गलत कारोबार को बंद करवाना क्या रोजगार पर चोट मारना कहा जाना चाहिए?

Stopping the wrong business, should it be said to strike on employment?


  • Will efforts to eradicate corruption in India not succeed?
  • If the offender stops earning from crime, will it be termed employment snatch?



 

किसी कस्बे के एक घर में अच्छा पैसा आ रहा था। परिवार तेजी से संपन्न बन गया। पता चला कि घर का एकमात्र बेटा मुंबई में किसी कंपनी में लगा है। फिर कुछ वर्ष बाद खुलासा हुआ कि वह तो नकली नोट बनाने वाले गिरोह के साथ काम कर रहा था। पुलिस ने छापा मारा तो धंधा बंद हो गया। जेल हुई सो अलग। क्या आप इसे उस युवक का रोजगार छिनना कहेंगे? 

देश में लाखों शैल (मुखौटा) कंपनियों के शटर गिर गए। इन कंपनियों से निकले हजारों युवक घर पहुंच गए। क्या इन कंपनियों से निकले युवाओं के घर आने को आप रोजगार का छिनना कहेंगे? गलत तरीके से पैसा कमा रहे व्यापारी पर कुछ नकेल कसी तो उसने अपने यहां काम कर रहे कुछ लोग हटा दिए। क्या इसे रोजगार का छिनना कहा जाएगा? 

संपत्ति के धंधे में, एनजीओ आदि में असंख्य गलत कामों पर लगाम लगनी शुरू हुई तो बहुत से लोगों के गलत काम बंद हुए। क्या आप इसे रोजगार का छिनना कहेंगेजो लोग रसोई गैस में सब्सिडी हजम कर रहे थे या जो लोग राशनकार्डों में धांधली कर रहे थे, उनके इस धंधे पर रोक लगने को उनका रोजगार छिनना कहा जाएगा? क्या सरकार के सैकड़ों भ्रष्ट अफसरों को घर बैठाने को उनका रोजगार छिनना कहा जाएगा?

नैतिक रूप से तो इन सबको रोजगार का छिनना नहीं कहा जाना चाहिए। अपराधी की यदि अपराध से कमाई बंद हो जाए तो रोजगार छिनना नहीं कहा जाना चाहिए, लेकिन भारत में यह कहा जा रहा है। 

इसीलिए आज के घोर भौतिकतावादी युग में यदि कोई नेता देश से भ्रष्टाचार मिटाना चाहेगा या ऐसे कदम उठाएगा जिनसे लोगों को कुछ मिलने के बजाय उनका कुछ छिने तो ऐसे कदमों के देशहित में होते हुए भी ज्यादा संभावना यही है कि वह नेता जबर्दस्त आलोचना का शिकार बनेगा और बहुत से चुनाव भी हारेगा क्योंकि इस प्रक्रिया में जिनका कुछ छिन रहा है वे निम्न मध्यम से लेकर उच्च मध्यम वर्ग तक का हिस्सा हैं और यह वर्ग इस देश की रीढ़ है। विचार-विमर्श पर इस वर्ग का ही प्रभुत्व है और इसका ही शोर हवा में सबसे ज्यादा सुनाई देता है। इसी वर्ग के वे लोग जो इन कदमों को देशहित में मानते हैं, वे कोई शोर नहीं मचाते और जो इस बारे में नहीं जानते वे इस शोर से प्रभावित होते हैं।

नरेंद्र मोदी ने इन सब चीजों से निपटने की क्या योजना बनाई है, हमें नहीं पता। क्या वे सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट, धारा 370, सीएए जैसी दूसरे क्षेत्र की बड़ी लाइनें खींचते रहेंगे या कुछ और करेंगे? हमें नहीं पता, लेकिन जहां तक अरविंद केजरीवाल का सवाल है तो ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल ने अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम वर्षों में इस विषय पर गहन मंथन किया है। तभी उन्होंने संभवतः भ्रष्टाचार मिटाने का ठेका लेना अब छोड़ दिया है।

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कथित भ्रष्टाचार को तो वह पिछली बार मुख्यमंत्री बनते ही भूल गए थे। इसके बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से भी तौबा कर ली और एक-एक करके उन सभी व्यक्तियों से माफी मांग ली जिन पर उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय तो जैसे भ्रष्टाचार शब्द उनकी डिक्शनरी से ही गायब हो गया।

तो क्या भारत में भ्रष्टाचार खत्म करने के प्रयास कभी सफल नहीं होंगे? क्या इसके लिए नरेंद्र मोदी वाला तरीका सही नहीं है? क्या इसके लिए कुछ और तरकीब अपनानी होगी? या फिर भ्रष्टाचार खत्म होने की उम्मीद हमें छोड़ देनी चाहिए।

- लव कुमार सिंह

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