Thursday 25 June 2020

अपराधी दिमाग वाले और नाकारा पुलिसकर्मियों से पुलिस विभाग को कैसे छुटकारा मिलेगा?

How will the police dept. get rid of the criminal minded and incompetent policemen?


 

  • अगर आतंकवादी कुछ दिनों के प्रशिक्षण में युवाओं की मानसिकता बदल सकते हैं तो क्या पुलिस का प्रशिक्षण अपराधी पुलिसवालों की मानसिकता नहीं बदल सकता?
  • If terrorists can change the mentality of the youth in a few days training, then can the police training not change the mindset of the criminal policemen?



मायावती गईं, अखिलेश यादव आए। अखिलेश गए, योगी आदित्यनाथ आए। योगी भी जाएंगे तो कोई और आएगा। मगर ये 'झगड़ू' सिपाही और 'जबरू' दारोगा न कहीं गए थे और न कहीं जाएंगे। सरकारें बदल जाती हैं मगर ये कभी नहीं बदलते और न ही बदलती है इनकी आपराधिक मानसिकता। कोई सरकार इनकी मानसिकता बदलने का प्रयास भी नहीं करती है।

 

क्या है इनकी मानसिकता? झगड़ू और जबरू की नजर में वे पुलिस की नौकरी में कोई समाजसेवा करने नहीं आए हैं। उनके लिए किसी की मदद करना तो संक्रामक रोग की तरह है, जो उन्हें अपनी गिरफ्त में ले सकता है। किसी की मदद करने पर या किसी से सहजता से बोलने पर इन्हें अपनी ही नजर में गिरने की आशंका होती है।

 

झगड़ू और जबरू के लिए लिए पुलिस की नौकरी के दो ही मतलब हैं-

 

एक- इस नौकरी से दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों में उनका रौब गालिब हो और

दो- कहीं से भी और कैसे भी यह नौकरी उनकी अवैध वसूली का जरिया बन जाए या जिस भी चीज की उन्हें जरूरत हो, वह उन्हें मुफ्त में मिल जाए।

 

ये दो उद्देश्य पूरे न हों तो झगड़ू और जबरू बावले हो जाते हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति में जो भी बाधा बनता है, वे उस पर कहर बनकर टूट पड़ते हैं। इसके बाद हमें सुनने को मिलते हैं पुलिस हिरासत में मौत के समाचार, सड़क पर पुलिस द्वारा लूट के समाचार, रात के अंधेरे में डकैती के समाचार। पत्रकारों की पिटाई के समाचार। निरीह लोगों पर लाठी बरसाने के समाचार। यूं ही किसी को भी गोली मार देने के समाचार।

 

आम जनता का सबसे ज्यादा सामना इन्हीं झगड़ू और जबरू से होता है। ये आम जनता की बाद में सुनते हैं, अपना गाली-गलौच के अभ्यास वाला मुंह और मारपीट के अभ्यास वाले हाथ पहले चलाते हैं। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि जब किसी बदमाश से इनका सामना होता है तो इनका मुंह बंद हो जाता है और हाथ चलना भूल जाते हैं।

 

ये झगड़ू और जबरू इतने काइयां हैं कि किसी के यहां हत्या हो जाए तो भी इनका दिल पसीजता नहीं है। ये हत्या, डकैती, मृत्यु वाले घर में भी वसूली करने की संभावनाएं अंतिम क्षण तक टटोलते हैं। इनकी पुलिसिया किताब में पीड़ित और अत्याचारी, असहाय और बाहुबली में कोई अंतर नहीं है।

 

वर्षों से हम पुलिस में सुधार की बातें सुनते आ रहे हैं, लेकिन सुधार कोसों दूर खड़ा दिखाई देता है। इसके उलट कोई सरकार आती है और भर्ती में होने वाला इंटरव्यू बंद कर देती है। कोई सरकार लिखित परीक्षा ही खत्म कर देती है। इससे झगड़ू और जबरू का पुलिस में आना और भी आसान हो जाता है।

 

सरकारी किसी की भी हो और डीजीपी कोई भी हो, जब तक पुलिस विभाग में भारी संख्या में मौजूद झगड़ू और जबरू की मानसिकता नहीं बदली जाएगी, तब तक जनता परेशान होती रहेगी और पुलिस महकमे व सरकारों की फजीहत होती रहेगी।

 

झगड़ू और जबरू की मानसिकता कैसे बदली जाएगी?

 

इसके लिए सबसे पहले भर्ती प्रक्रिया में बदलाव करना होगा। यह प्रक्रिया ऐसी बनानी होगी ताकि पुलिस की नौकरी में मजबूत इच्छाशक्ति और सेवाभाव रखने वाले युवा ही ज्यादा से ज्यादा संख्या में जा पाएं। पुलिस की भर्ती प्रक्रिया में मनोविशेषज्ञों, समाजशास्त्रियों जैसे लोगों को भी शामिल करना चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि भर्ती होने वाला युवा पुलिस की नौकरी के लिए कितना उपयुक्त है। पुलिस की नौकरी सबके लिए नहीं होनी चाहिए, जबकि आज की हकीकत यह है कि जो युवा ठीक से पढ़-लिख नहीं पाता या कुछ और नहीं कर पाता वह पुलिस की नौकरी करने पहुंच जाता है।

 

पुलिस में भर्ती होने के बाद भी प्रशिक्षण कार्यक्रम सघन और लंबी अवधि का किया जाना चाहिए। पुलिस प्रशिक्षण चलाने वालों को स्वयं से सवाल पूछना चाहिए कि आतंकवादी संगठन कुछ ही दिनों के प्रशिक्षण में किसी युवा का ब्रेनवाश करके उसकी मानसिकता को अपने उद्देश्य के अनुकूल बना देते हैं तो क्या पुलिस प्रशिक्षण के दौरान युुवाओं को समाजसेवा के लिए ब्रेनवाश नहीं किया जा सकता है? क्या भर्ती और पुलिस प्रशिक्षण के दौरान यह पता नहीं लगाया जा सकता कि फलां आदमी के रूप में पुलिस में कोई सिपाही या दारोगा भर्ती नहीं हुआ है बल्कि कोई बदमाश भर्ती हो गया है?

 

मैं अक्सर अपने घर के नजदीक स्थित विश्वविद्यालय के प्रांगण में टहलने चला जाता हूं। वहां सिपाही भर्ती के लिए अनेक युवा अभ्यास करते दिखाई देते हैं। उनकी बातचीत के लहजे, बातचीत के विषय और उनके अंदाज को देखकर-सुनकर उनमें से अनेक युवाओं में मुझे झगड़ू और जबरू नजर आते हैं। अब अगर पुलिस प्रशिक्षण के दौरान भी उनके नजरिये में जरा भी बदलाव नहीं आ पाता है तो समझ लेना चाहिए कि हमें इन झगडू और जबरू से मुक्ति के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा।


अफसरों की अकर्मण्यता पड़ रही भारी


इसी के साथ उच्च अधिकारियों को भी ज्यादा निगरानी और सतर्कता बरतने की जरूरत होगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि निगरानी और सतर्कता के बजाय अनेक बार ये अधिकारी ही झगड़ू और जबरू को प्रोत्साहित करने का काम करते हैं, क्योंकि झगड़ू और जबरू इन अधिकारियों की जेब जो भरते रहते हैं। कमाल की बात तो यह है कि उच्च अधिकारी अच्छे रुतबे, अच्छे वेतन और सम्मान को छोड़कर और ज्यादा धन की चाह में अपराधियों से मेलजोल कर लेते हैं। अब यूपी एसटीएफ के पूर्व डीआईजी अनंत देव तिवारी को ही ले लीजिए। एसटीएफ में रहते हुए उन्होंने काफी नाम कमाया था, लेकिन कानपुर के बिकरू गांव में डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में उनकी भूमिका संदेहास्पद पाई गई। डीएसपी के पत्र लिखने के बावजूद उन्होंने कानपुर नगर का एसएसपी रहते हुए एसओ चौबेपुर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। गैंगस्टर विकास दुबे भी खुला घूमता रहा। विकास दुबे के करीबी के साथ अनंत देव के कई फोटो भी वायरल हुए। शासन ने अनंत देव को एसटीएफ के डीआईजी पद से हटाकर उनका तबादला कर दिया है। एक ही झटके में उनकी प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुंचा है। कोर्ट ने भी उनके खिलाफ टिप्पणी की है।


क्या ऊंची तनख्वाह पाने वाले पुलिस के अधिकारियों को मनरेगा का हिसाब रखना होता है या उन्हें खेतों में जाकर फसल की सिंचाई करनी होती हैं? जब ऐसा नहीं है तो फिर क्या ये अधिकारी नियमित रूप से अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले थानों का निरीक्षण नहीं कर सकते? क्या ये अधिकारी थाने, चौकी में आ रही शिकायतों की नियमित समीक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते? उदाहरण के रूप में अगर अधिकारियों ने अपने काम को जिम्मेदारी से किया होता तो आज हमारे बीच गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी जिंदा होते, जिन्हें अपनी भांजी की छेड़खानी की शिकायत पुलिस से करने पर बदमाशों ने सरेराह मार डाला। यदि अधिकारी अपनी निगरानी की जिम्मेदारी ठीक से निभाते तो विक्रम जोशी की शिकायत पर कार्रवाई न करने की हिम्मत निचले स्तर के पुलिसकर्मी नहीं कर पाते। अफसोस कि ये वे पुलिस अधिकारी हैं जो आईपीएस बनने के इंटरव्यू में देश और समाज की सेवा की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जब ड्यूटी पर आते हैं तो अपनी जेब भरना ही इनका एकमात्र धर्म बन जाता है।


पुलिस विभाग में हालात इतने खराब हैं कि बस और कुछ कहते नहीं बनता-


कई दारोगा/एसपी को भारी-भरकम रुतबा और सम्मान भी नहीं जंचता

हर महीने मिलने वाले आकर्षक वेतन और 'उपहारों' से भी पेट नहीं भरता

डीएसपी, एसएसपी, डीआईजी, आईजी के रूप में तरक्की के मौके भी खूब हैं

मगर फिर भी इन्हें ये तरक्की नहीं, कोई और 'विकास' ही है जंचता

सवाल है फिर पुलिस में क्यों आया भाया? मजे से कहीं भी दलाली से जेब भरता।


- लव कुमार सिंह



ये रोचक पोस्ट भी पढ़ें....
  • Hashimpura Kand : दंगा, हिंदू-मुसलमान और पीएसी
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  • बिजनौर पुलिस ने पूरे देश की पुलिस को दिया दंगा नियंत्रण का मंत्र
https://stotybylavkumar.blogspot.com/2020/02/Bijnor-police-gave-riot-control-mantra-to-the-police-of-the-whole-country.html


#Police #Crime #PoliceReform #PoliceBrutality #PoliceReformDay

Wednesday 24 June 2020

बच्चों में दांत किटकिटाने की आदत को लेकर डॉक्टरों में है मतभेद

There is a difference of opinion among the doctors regarding the habit of Bruxism (grit the teeth) in children


  • ऐसे में यदि बच्चा दांत किटकिटाए तो क्या करना चाहिए
  • In this situation, what to do if the baby has a problem of bruxism?



कुछ बच्चों में यह आदत देखी जाती है कि वे सोते समय अपने दांत किटकिटाते हैं। मेडिकल की भाषा में दांत किटकिटाने को ब्रक्सिज्म (bruxism) कहा जाता है। कई बार तो यह दांत किटकिटाना इतना जोर से होता है कि आसपास सोने वालों की नींद भी खुल जाती है। कुछ विशेषज्ञ और आम लोग भी कहते हैं कि यदि कोई बच्चा रात में अपने दांत किटकिटाता है तो जरूर उसके पेट में कीड़े होंगे। लेकिन कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि सोते समय दांत पीसना एक नुकसान रहित आदत है और पेट में कीड़ों का इससे कोई संबंध नहीं है।

मेरठ के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. उमंग अरोड़ा का कहना है कि दांत किटकिटाने को पेट में कीड़ों की उपस्थिति से जोड़कर देखना सही नहीं है। डॉ. अरोड़ा का कहना है कि दिन की गतिविधियां रात के समय बच्चे की नींद में घूमती रहती हैं। दिन में अगर बच्चों की बातों को ध्यानपूर्वक सुना जाए, उन्हें समझने का प्रयास किया जाए और उनकी समस्या का समाधान किया जाए तो बच्चों में तनाव उत्पन्न नहीं होता और उनकी दांत किटकिटाने की आदत जाती रहती है। डॉ. उमंग अरोड़ा के अनुसार शोध के दौरान यह सामने आया है कि दांत किटकिटाना कोई बीमारी न होकर एक प्राकृतिक तरीका है जिससे हमारा शरीर जबड़े में दांतों को पीसता है। इसके जरिये दांतों को अपनी जगह में बिठाने का प्रयास होता है।

लेकिन डॉ अनूप मोहता ऐसा नहीं मानते। हरिभूमि डॉट कॉम पर सवालों के जवाब देते हुए डॉ. मोहता स्पष्ट कहते हैं कि दांत पीसने का सीधा कारण पेट में कीड़े होना ही होता है। इसके लिए बच्चों को 6 महीने के अंतराल पर डी वार्मिंग (कीड़े की दवा) की दवा देते रहना चाहिए।

कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे पारिवारिक तनाव, स्कूल की किसी समस्या, अधिक काम के बोझ, दोस्तों से सही तालमेल नहीं होने आदि को लेकर तनाव में हो सकते हैं। बच्चों का यह तनाव दांत किटकिटाने का प्रमुख कारण बनता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चे दिन में अपना गुस्सा पी जाते हैं और रात में यह तनाव उनके दांत किटकिटाने का कारण बनता है। ये बातें डॉ उमंग अरोड़ा के तनाव वाले कारण जैसी ही हैं।

दांतों में किसी प्रकार का कोई छिद्र होना, दांतों की बनावट ठीक नहीं होना, दांतों में फिलिंग सही न होने के कारण न केवल बच्चों बल्कि बड़ों में भी दांत किटकिटाने की आदत पनप सकती है। ये बातें डॉ उमंग अरोड़ा की उस बात से मेल खाती हैं कि हमारा शरीर दांतों को अपनी जगह बिठाने के प्रयास में जबड़े में दांतों को पीसता है।

क्या किया जाए?

दांत पीसने के कारणों में विरोधाभास होते हुए भी कुछ बातें हमें पता चलती हैं-

  • यह बच्चों में तनाव के कारण हो सकता है
  • यह बच्चों के पेट में कीड़ों के कारण हो सकता है
  • यह दांतों की बनावट में किसी दोष के कारण हो सकता है

अच्छा यही है कि हमें किसी उलझन में पड़ने के बजाय इन तीनों बातों पर ही ध्यान देना चाहिए। जैसा कि डॉ उमंग अरोड़ा ने कहा कि बच्चों में तनाव इसका कारण हो सकता है, इसलिए हमें सबसे पहले बच्चों का तनाव दूर करने का प्रयास करना चाहिए। उनकी बात ध्यान से सुननी चाहिए। उन्हें कोई समस्या है तो उसका हल ढूंढना चाहिए। घर में उन्हें हंसी-खुशी का माहौल देना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे सोने से पहले टीवी पर हिंसात्मक कार्यक्रम न देखें। बच्चा डरा हुआ भी हो सकता है। यदि वह अकेला सोता है तो वह डर महसूस कर सकता है। इसलिए बच्चे को अच्छी तरह से आश्वस्त करके सुलाएं। अगर दांत किटकिटाने की समस्या ज्यादा गंभीर है तो कुछ डॉक्टर रबर गार्ड लगाने की भी सलाह देते हैं ताकि दांतों को कोई क्षति न पहुंचे।

भले ही दांत किटकिटाने का कारण पेट में कीड़ों का संकेत ना हो, तब भी हर छह महीने में बच्चों को पेट के कीड़ने मारने की दवाई देने की सलाह तो सभी डॉक्टर देते ही हैं। इसलिए छह महीने पर यह दवा बच्चों को जरूर दे देनी चाहिए। इससे पेट के कीड़े भी मर जाएंगे और यह आशंका भी नहीं रहेगी कि पेड़ में कीड़े के कारण बच्चा दांत किटकिटा रहा है।

तीसरे कारण के रूप में बच्चे की दांतों की बनावट में कोई दोष हो सकता है, इसलिए यदि बच्चा दांत किटकिटाता है तो इस पक्ष पर भी ध्यान देना चाहिए। यदि दांतों की बनावट में कोई दोष है तो दांतों के डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और यदि ऐसा कुछ नहीं है तो बेकार में परेशान नहीं होना चाहिए।

इस प्रकार तीनों ही उपाय करके और ज्यादा परेशान न होकर हम बच्चे की इस आदत से खुद को परेशान होने से बचा सकते हैं। बच्चे में तनाव को दूर करने का काम हमें गंभीरता और प्राथमिकता से करना चाहिए क्योंकि यदि बच्चा तनाव में रहेगा तो उसके लिए न केवल दांत किटकिटाना बल्कि और भी कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

- लव कुमार सिंह


#children #kids #parenting #bruxism #GritTheTeeth


Monday 22 June 2020

जानिए एक पत्रकार ने कैसे घर पर ही कोरोना को हराया

Know how a journalist beat Corona at home


  • अस्पतालों की अव्यवस्था से डरकर घर पर ही आइसोलेशन में रहने का फैसला किया
  • अपने घर पर ही रहकर 14 दिन तक बहुत ही कड़ी दिनचर्या का पालन किया
  • जब उसने फेसबुक पर लिखी अपनी कहानी तो फेसबुक ने एकाउंट बंद करने का नोटिस दिया



पिछले दिनों टीवी9 भारतवर्ष के पत्रकार श्याम त्यागी को कोरोना का संक्रमण हुआ। चूंकि श्याम त्यागी को पहले से कोई बीमारी नहीं थी यानी कोई पुराना रोग नहीं था, इसलिए उन्होंने बहुत सोच-समझकर घर पर ही आइसोलेशन में रहकर इस बीमारी से लड़ने का फैसला किया। इस फैसले का कारण यह भी रहा क्योंकि अस्पतालों की अव्यवस्थाओं की खबरें लगातार मीडिया में आ रही थीं और श्याम त्यागी कोरोना संक्रमित होने के बाद बहुत ज्यादा डरे हुए थे।


श्याम त्यागी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि 21 मई 2020 को दफ्तर में काम करते हुए उन्हें सिरदर्द हुआ, जो कुछ ही घंटों में पूरे शरीर का दर्द बन गया। इसके बाद उन्हें बुखार भी हो गया। उन्होंने पैरासिटामाल की गोलियां लीं। गोली लेने पर बुखार कुछ उतर जाता, लेकिन थोड़ी देर बार फिर चढ़ जाता। बुखार के साथ उन्हें खांसी भी हो गई। श्याम जोर देकर कहते हैं कि यह खांसी बलगम वाली थी। अर्थात् यह जरूरी नहीं है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति को सूखी खांसी ही हो। खांसी बलगम वाली भी हो सकती है।


बार-बार खांसी और बुखार होने पर श्याम ने 28 मई 2020 को अपोलो अस्पताल में जाकर 4850 रुपये में अपनी जांच कराई। 30 मई को अस्पताल ने उन्हें बताया कि वे कोरोना पॉजिटिव हैं। श्याम ने अपनी पोस्ट में लिखा कि रिपोर्ट को देखते ही वे ऐसे हिल गए जैसे कोई व्यक्ति भूकंप आने पर हिल जाता है। हालांकि एक अच्छी बात यह रही कि उनके दफ्तर के लोगों और कुछ दोस्तों ने उन्हें बहुत हिम्मत बंधाई। कोरोना का डर तो था ही, अस्पतालों की अव्यवस्था का डर उससे भी ज्यादा था। इसीलिए श्याम त्यागी ने बहुत सोच-विचार के बाद घर पर ही आइसोलेशन में रहकर इलाज करने का फैसला किया। इस इलाज के बारे में उन्हें उनके दोस्तों, परिचितों, दफ्तर के लोगों आदि ने ही बताया था।


इलाज यह था


श्याम त्यागी की फेसबुक पोस्ट के अनुसार 14 दिन तक उन्होंने यह सब कुछ किया-

  • गर्म पानी में नमक और हल्दी डालकर गरारे करने शुरू किए। ये उन्होंने सुबह, दोपहर और शाम को किए। गरारे के लिए एक गिलास गर्म पानी में थोड़ा सफेद नमक और आधा चम्मच हल्दी मिलाई।
  • इसके बाद सुबह उठकर खाली पेट वे कच्चे आंवला और गिलोय का जूस लेते थे। लेकिन तीन-चार दिन बाद उन्होंने खट्टा होने और खांसी में नुकसान करने के कारण आंवला लेना बंद कर दिया। गिलोय के जूस को लेना जारी रखा।
  • इसके बाद वे काढ़े का सेवन करते थे। काढ़ा भी उन्होंने सुबह, दोपहर, शाम यानी तीन वक्त लिया। (काढ़े का विवरण सबसे अंत में है)
  • दिन में 4-5 लीटर गर्म पानी पीना शुरू कर दिया।
  • उन्होंने दूध पीना बंद कर दिया क्योंकि वह बलगम बनाने में सहायक होता है।
  • इसी बीच, श्याम त्यागी की पत्नी को भी उनके जैसे ही लक्षण दिखने शुरू हो गए तो उन्होंने बिना टेस्ट कराए पत्नी को भी ये सभी चीजें सेवन कराना शुरू कर दिया।
  • श्याम त्यागी रोज सुबह गर्म पानी से ही नहाते थे।
  • नहाने के बाद वे 15-20 मिनट छत पर जाकर धूप में बैठते थे। (धूप में विटामिन डी होता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए बहुत जरूरी है।)
  • इसके अतिरिक्त त्यागी एक गिलास गर्म पानी में 8-10 बूंदें तुलसी अर्क की डालते थे और दिन में एक बार इसे लेते थे।
  • उन्होंने जब भी गर्म पानी पीया तो उसमें हल्दी भी डाली।
  • एक दिन में एक गोली जिनकोविट (#Zincovit) की दोपहर के खाने के बाद ली। (इस गोली में जिंक के साथ ही विटामिन और अन्य बेहद जरूरी मिनरल होते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।)
  • उन्होंने सुबह-शाम एक-एक गोली लाइमसी विटामिन सी चूसने वाली (limcee vitamin c chewable tablets) भी ली। (यह गोली विटामिन सी की कमी को पूरा करने के लिए ली जाती है।)
  • श्याम त्यागी ने सुबह-शाम गर्म पानी में अजवाइन डालकर भाप भी ली।
  • खाने में उन्होंने भोजन के अतिरिक्त रोज एक सेब खाया। साथ में थोड़ा पपीता भी खाया। साथ ही बादाम और किशमिश जैसे कुछ ड्राइफ्रूट भी खाए।
  • उन्होंने अपनी बर्तन स्वयं साफ किए। अपने कपड़े खुद धोए। हर रोज सेनेटाइजर से कमरे की सफाई की। घर में भी मास्क लगाकर रखा। हर बार साबुन से हाथ धोए।


क्या सभी को ऐसा ही करना चाहिए?


श्याम त्यागी अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि जिन्हें पहले से किडनी, फेफड़े, सांस या दिल संबंधी कोई बीमारी है तो उन्हें अवश्य ही अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए। उन्हें घर पर ही इलाज करने का रिस्क नहीं लेना चाहिए। त्यागी लिखते हैं कि यदि आप कोरोना का संक्रमण होने से पहले स्वस्थ रहे हैं और आपको कोई परेशानी नहीं रही है, पुरानी गंभीर बीमारी नहीं रही है तो घर में रहकर इस बीमारी का इलाज संभव है।


(यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बहुत से कोरोना संक्रमित यदि श्याम त्यागी जैसा ही करना चाहें भी तो आसपास के लोग उन्हें ऐसा करने नहीं देंगे। श्याम त्यागी के आस-पड़ोस में भी लोगों में उन्हें लेकर दहशत रही और उनके द्वारा तरह-तरह की बातें बनाई गईं।)


अपनी पोस्ट के अंत में श्याम त्यागी लिखते हैं-


मैं कोई आयुर्वेदाचार्य या कोई डॉक्टर नहीं हूं। मुझे भी इस तरह के ट्रीटमेंट की जानकारी अपने दोस्तों और वरिष्ठों से मिली थी। मैंने इसे अपने ऊपर आजमाया था। ये मेरा फैसला था। अगर आप को इस तरह की कोई परेशानी होती है तो एक बार अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें। अपनी हेल्थ स्थिति को मद्देनजर रखकर ही किसी भी चीज का सेवन करें। मैं इस पोस्ट को लिखने से डर रहा था। कहीं किसी का कुछ नुकसान ना हो जाए। इसलिए बिना किसी डॉक्टर की सलाह के कुछ ना करें। अपनी सेहत के हिसाब से चीजों का इस्तेमाल करें। बाकी महाकाल बाबा सबका भला करेंगे। देश इस वायरस पर जल्द पूरी तरह फतह हासिल करेगा। मास्क लगाकर रखें। दूरी बनाकर रखें। हाथ धोते रहें।


उल्लेखनीय है कि श्याम त्यागी की यह पोस्ट बहुत तेजी से वायरल हुई। नतीजा यह हुआ कि मैदान में फेसबुक भी उतर आया। फेसबुक ने उन्हें चेतावनी दी कि या तो आप इस पोस्ट को हटाइए या फिर आपको एक वर्ष तक अपने एकाउंट से हाथ धोना पड़ेगा। फेसबुक का कहना था कि श्याम त्यागी की पोस्ट से फिजिकल हार्म हो सकता है।


श्याम त्यागी एक और पोस्ट में लिखते हैं- अब पता नहीं किसी का फिजिकल हार्म होगा या 'मेडिकल लूटमार' से जुड़े लोगों का फाइनेंसियल हार्म होगा। भगवान जाने।


फेसबुक ने उन्हें दो ऑप्शन भी दिए। एक पोस्ट डिलीट करने का और दूसरा फेसबुक के डिसीजन के खिलाफ अपील करने का। श्याम ने अपील की है। लेकिन स्वयं श्याम के अनुसार- अपील वहां की है जहां जज भी यही हैं वकील भी यही हैं, मुजरिम सिर्फ मैं। हो सकता है जिस एकाउंट को मैंने इतने साल तक सींचा था वो डिलीट हो जाए। बैन हो जाए। या एक साल तक कुछ लिख पढ़ ना पाऊं।

 

श्याम त्यागी ने जो काढ़ा पीया, उसे बनाने की विधि इस प्रकार है- 


(एक व्यक्ति के लिए)

सामग्री- लौंग 3-4, इलायची हरी 2, काली मिर्च गोल 3-4, दालचीनी 2-3 टुकड़े, सौंठ 1/2 चम्मच, मुनक्का 2

विधि- एक गिलास पानी में सारी सामग्री डाल लें। आग पर पकाएं। जब पानी पककर आधा रह जाए तो उसे छानकर पी लें।


- लव कुमार सिंह


#coronavirus #COVID19 #Covid_19 #COVIDー19

Sunday 21 June 2020

भारत और चीन में सबसे बड़ा अंतर क्या है?

What is the biggest difference between India and China?





भारत और चीन

दोनों ही भारी जनसंख्या वाले देश हैं

दोनों के पास भारी संख्या में सैनिक हैं

दोनों तरफ सैन्य साजो-सामान भी खूब है

दोनों परमाणु क्षमता से लैस हैं

दोनों ही दुनिया के सबसे बड़े बाजार हैं

फिर दोनों में अंतर क्या है?

मेरी नजर में तीन अंतर खास हैं


एक-


भारत के पास है-

मित्रता, स्वाभिमान, निर्भीकता, साहस, शौर्य और शक्ति

चीन के पास है-

धोखा, लिप्सा, महत्वाकांक्षा, विस्तारवाद और चालबाजी


दो-


चीन में तानाशाही है

भारत में लोकतंत्र है 


तीन-


दोनों में इनसे भी बड़ा एक अंतर और है

सोचिए क्या चीन में कोई भारत के साथ है?

बिल्कुल नहीं, हो भी तो हमें पता नहीं

क्या भारत में कोई चीन के साथ है?

बिलकुल हैं, और इनके चर्चे हर दिशा में हैं

सबको पता है, इनकी संख्या लाखों में है

चीन का पलड़ा यहीं कुछ बड़ा है 

दोनों में यही अंतर सबसे बड़ा है।


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देखिए भारत में चीन के हमदर्दों को एक वरिष्ठ पत्रकार ने कैसे व्यक्त किया है-


मालिक, चाचा, चाचा के बच्चे
और धूर्त, चालबाज चीन


पुरुषोत्तम कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)

 

इसे ऐसे समझें। गांव में आपके दादाजी के नाम पर ढेर सारी जमीनें हैं। कुछ जमीन गांव की सीमा पर भी है। यहां की जमीन दूसरे गांव वाले कब्जा लेते हैं। मालिक आपके चाचाजी हैं। वो ध्यान नहीं देते। जमीन छुड़ाने नहीं जाते। कहते हैं, सीमा पर तो जमीन बंजर है। चाचाजी के बाद चाचाजी के बच्चे मालिक बने। उनकी भी हालत ऐसी है रहती है। परिवार के बाकी सदस्य उनसे उकता जाते हैं। खफा हो जाते हैं।


परिस्थितियों बदलती हैं। मालिक आप बनते हैं। आपको गांव-घर से प्यार है। कहते हैं, पुरखों की जमीन है, छोड़ूंगा नहीं। आप कब्जे वाली जमीन के पास तक पहुंचने का रास्ता सुगम करते हैं। हल-बैल के बाद ट्रैक्टर भी ले जाते हैं। कब्जा करने वाले को बताते हैं। एक-एक इंच जमीन तुमसे वापस लूंगा। वो अड़ता है तो आप ज्यादा अड़ते हैं। आप कहते हैं, चाचाजी का जमाना गया। अब सब कुछ बदल चुका है। लेकिन वह कब्जा क्यों छोड़ना चाहेगा। आपकी जमीन को वह अपना मान चुका है। ऐसे भी उसे आपके चाचाजी की आदत पड़ी है, जो कब्जाई गई जमीन पलटकर देखने भी नहीं गए। वो हर संभव कोशिश कर रहा है, आपको पुरानी स्थिति में रखने की।


...और आप हैं कि उसे औकात में लाकर जमीन वापस लेने की कोशिश में लगे हैं। उसे घेरने की कोशिश कर रहे हैं। आप चतुर भी हैं। उससे बात भी करते हैं, घेरते भी हैं। मारते भी हैं। लड़ाई है। चोट आपके लोगों को भी लगेगी। आप के लोग घर आएंगे तो आप उसका उपचार करने की सोचेंगे। लेकिन, इधर आपके मालिक बनने से नाखुश आपके चाचा के बाल-बच्चे आपको घेरेंगे, कोसेंगे, सवाल करेंगे। कब्जा करने वाला भी पिटा, लेकिन वह तो अपने घर चला गया। किसी को बताएगा भी नहीं कि पिट गया।


ऐसे में चाचा के बच्चे कहेंगे, कब्जा करने वाला पक्ष तो पिटा नहीं। आप पर तंज करेंगे। पूछेंगे, आ गए पिट के? कहां पिटे, अपने खेत में कि उनके खेत में? कितने थप्पड़, लाठी खाए तुम्हारे लोग?

उन्हें अपनी जमीन वापस लेने के आपके प्रयासों से मतलब नहीं है। उनका मकसद यह साबित करना है कि आप मालिक बनने के लायक नहीं हैं। पूरा गांव आपको पुरखों का सच्चा बेटा मानता हो, इस बात को भी वे नहीं मानेंगे। वो तो सिर्फ यही मानेंगे कि मालिक बनने के लायक तो बस वही हैं। इसलिए वो आपको चिढ़ाने के लिए सवाल करेंगे, जवाब पाने के लिए नहीं। आप जवाब देंगे तो उसे सुनेंगे नहीं। नया सवाल दागेंगे।


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  • क्या 'वुल्फ वॉरियर' रणनीति के कारण ही चीन बार-बार भारत में घुसने की कोशिश कर रहा है?

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Saturday 20 June 2020

बहुत बड़ी राहत की खबर, भारत के बाजार में उतारी गई कोरोना वायरस की दवा

News of huge relief, Corona virus medicine launched in Indian market


  • शुरुआती स्टेज वाले कम गंभीर रोगियों को ठीक करने में पूरी तरह सफल बताई जा रही
  • भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) भी दे चुका है उत्पादन और मार्केटिंग की अनुमति
  • डायबिटीज और दिल के रोगी भी शुरुआती स्टेज में ले सकते हैं यह दवा



कोरोना महामारी के इस दौर में 20 जून को एक बेहद सुखद खबर सुनने को मिली थी। इस दिन भारत में स्थित एक कंपनी ने बाजार में कोरोना वायरस के संक्रमण को दूर करने की दवा उतार दी थी। यह दवा मुंबई की ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स ने बनाई है और यह दवा कोरोना वायरस से पीड़ित कम गंभीर रोगियों के लिए बिल्कुल सटीक दवा बताई जा रही है। कंपनी के अनुसार इस दवा के उत्पादन और मार्केटिंग की अनुमति भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने पहले ही दे रखी है।


कोरोना वायरस के संक्रमण को दूर करने वाली इस दवा का नाम फेविपिराविर है। कंपनी ने इसे ‘फैबिफ्लू’ के नाम से बाजार में उतारा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स के सीएमडी ग्लेन सल्दान्हा ने कहा है कि इस दवा के बाजार में आने से भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के रिकवरी रेट में वृद्धि होने की पूरी उम्मीद है। 


सल्दान्हा के अनुसार क्लीनिकल ट्रायल में फैबिफ्लू के इस्तेमाल से कोरोना के हल्के संक्रमण से पीड़ित मरीजों के मामले में बेहद सुखद परिणाम मिले हैं। कंपनी ने फैबिफ्लू दवा की कीमत 103 रुपये प्रति टेबलेट रखी है। अभी इसे बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं खरीदा जा सकेगा।


इसे लेने का तरीका भी बताया गया है। फैबिफ्लू की 1800 मिलीग्राम की दो खुराक रोगी को पहले दिन लेनी होंगी। उसके बाद 800 मिलीग्राम की दो खुराक अगले 14 दिन तक लेनी होंगी। कंपनी का दावा है कि डायबिटीज और दिल की बीमारी वाले लोग भी इस दवा को ले सकते हैं, बशर्ते उन्हें कोरोना वायरस का मामूली संक्रमण हो।


चूंकि यह दवा 14 दिन तक खानी है, इसलिए यह 34 टेबलेट की स्ट्रिप में मिलेगी। कंपनी के अनुसार इन 34 टेबलेट का अधिकतम खुदरा मूल्य 3,500 रुपये रखा गया है। अभी यह दाम गरीबों के लिए बहुत ज्यादा है। हालांकि मध्यम वर्ग की पहुंच में है। हो सकता है कि जब अन्य कंपनियां भी अपनी दवाइयां लेकर आएं या फिर सरकार इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सुलभ कराने का प्रयास करे तो इसके दाम कुछ घटें। फिलहाल राहत की बात यही है कि कोविड-19 के इलाज के लिए यह पहली खाने वाली दवा है जिसे सरकारी एंजेंसी की मंजूरी मिली है और जो बाजार में पेश की गई है।


इस दवा को लांच करने के बाद ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स के शेयरों में भी भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।


- लव कुमार सिंह

#coronavirus #COVID19 #CoronavirusOutbreak

Thursday 18 June 2020

कोरोना के मरीजों को ठीक करने वाली पतंजलि की दवा 'कोरोनिल' में कौन-कौन सी औषधियां शामिल हैं?

Which medicines are included in Patanjali's 'Coronil' which cures the patients of Corona?




पतंजलि ने कोरोना के इलाज की दवा 'कोरोनिल' के नाम से लांच करके तहलका मचा दिया है। पतंजलि ने यह दवा नेशनल इंस्टीट्यू ऑफ मेडिकल साइंस, जयपुर के साथ मिलकर बनाई है।  मंगलवार 23 जून 2020 को  बाबा रामदेव ने  आचार्य बालकृष्ण और अन्य पदाधिकारियों के साथ मिलकर इस दवा को लांच किया।  हालांकि लांच होते ही इस दवा को लेकर विवाद खड़ा हो गया। काफी दावों-प्रतिदावों के बाद आखिर आयुष मंत्रालय ने इस दवा की बिक्री की मंजूरी दे दी। हालांकि अब यह कोरोना वायरस की  दवा के रूप में नहीं बिकेगी बल्कि  इम्युनिटी बूस्टर के रूप में बिकेगी। दवा की बिक्री की मंजूरी के बाद 5 जून 2020 से यह दवा पतंजलि के स्टोरों पर उपलब्ध होने लगी थी।
आइए जानते हैं कि पतंजलि की दवा कोरोनिल में किन-किन तत्वों का प्रयोग किया गया है और ये तत्व क्या काम करते हैं। 
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पतंजलि की कोरोनिल दवा में निम्नलिखित तत्व शामिल हैं-
  • गिलोय 
  • अश्वगंधा
  • तुलसी 
  • अणु तेल
  • श्वासारि 


क्या काम करती हैं ये आयुर्वेदिक दवाइयां



  • अश्वगंधा- इसमें फाइटोकेमिकल और विथेनान नामक तत्व होते हैं जो वायरस को मानव कोशिकाओं में जाने से रोकते हैं। पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण के अनुसार अश्वगंधा कोविड-19 के रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) को शरीर के एंजियोटेंसिन कन्वर्टिंग एंजाइम (एसीई) से मिलने नहीं देती है। यानी कोरोना स्वस्थ मानव कोशिकाओं में घुस ही नहीं पाता है।
  • गिलोय- इसमें टिनोकार्डिसाइड नामक तत्व होता है जो एंटीवायरल की तरह काम करता है। आयुर्वेद में गिलोय बुखार की भी रामबाण दवा है। गिलोय कोरोना के संक्रमण को रोकता है।
  • तुलसी- इसमें भी एंटीवायरल के गुण होते हैं जिससे वायरस का संक्रमण कम करने में मदद मिलती है।  तुलसी कोविड-19 के आरएनए पर हमला करती है और उसे मल्टीप्लाई होने से रोकती है।
  • अणु तेल- यह आयुर्वेदिक तेल है जो सिरदर्द, एलर्जी, साइनस दर्द और नाक की श्लेष्मा झिल्ली की सूजन से छुटकारा दिलाता है। यह सिर, नाक, गर्दन, मस्तिष्क, आंखों, चेहरे और कान की बीमारी को रोकने में सक्षम है।
  • श्वासारि बटी- अनेक जड़ी-बूटियों को मिलाकर बनाई गई श्वासरि की बटी या रस से फेफड़ों की सूजन और कफ को खत्म करने में मदद मिलती है।

कोरोनिल की लांचिंग के अवसर पर बाबा रामदेव ने बताया कि 280 मरीजों पर दवा के ट्रायल के दौरान 69 प्रतिशत रोगी 3 दिन में पॉजिटिव से नेगेटिव हो गए। सात दिन में सौ फीसदी मरीज ठीक हो गए। उन्होंने कहा कि इस दवा के ट्रायल के लिए तमाम नेशनल एजेंसियों से एप्रूवल लिए गए। उन्होंने बताया कि सात दिन में यह दवा पतंजलि के स्टोरों पर उपलब्ध हो जाएगी। दवा की डिलीवरी के लिए एक एप भी लांच किया जाएगा जिसके बाद आर्डर करने पर यह दवा तीन दिन में घर पर पहुंचा दी जाएगी।

मेरठ भी बना पतंजलि के ट्रायल का स्थल


कोरोनिल के लांच होने से तीन-चार दिन पहले आपको इस लेखक ने बताया था कि पतंजलि ने इस आयुर्वेदिक दवा का दावा यूं ही नहीं कर दिया था बल्कि उसने कोरोना से संक्रमित मरीजों पर क्लीनिकल केस स्टडी की है। उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में कोरोना के एल-3 स्तर के मरीजों का इलाज हो रहा है। ये कम गंभीर मरीज होते हैं। एल-1 स्तर के मरीजों को मेरठ में ही खरखौदा के पास स्थित मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज में रखा गया है। ये वे मरीज होते हैं जो कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं लेकिन उनमें या तो अभी कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं या बहुत हल्के लक्षण हैं। पतंजलि ने इसी एल-3 स्तर के छह मरीजों पर क्लीनिकल केस स्टडी की।

मेरठ के सीएमओ डॉ. राजकुमार ने जानकारी दी है कि एल-1 केंद्रों (जहां कोरोना के बिना लक्षण वाले या हल्के लक्षण वाले मरीज रखे जाते हैं) पर मरीजों की सहमति से आयुर्वेदिक दवाइयां या काढ़ा दिया जा सकता है। इसके लिए अनुमति की जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार पतंजलि ने छह मरीजों पर अपनी स्टडी की। आचार्य बालकृष्ण के अनुसार इसी प्रकार से देशभर में अलग-अलग स्थानों पर मरीजों पर परीक्षण किया गया।

परीक्षण के समय अखबारों में छपी खबरों के अनुसार कोरोना संक्रमित मरीजों को नाश्ते से एक घंटा पहले उनकी नाक के दोनों छिद्रों में चार-चार बूंद अणु तेल डाला गया। इसी के साथ दो गोली श्वासारि बटी की, दो गोली शुद्ध गिलोय बटी की और एक-एक गोली शुद्ध अश्वगंधा व तुलसी घनबटी की दी गईं। ये गोलियां गुनगुने पानी के साथ दी गईं। आचार्य बालकृष्ण के अनुसार ये सभी छह मरीज 31 मई से 12 जून के बीच पॉजिटिव से निगेटिव हो गए। उल्लेखनीय है कि सामान्यत कोरोना से संक्रमित मरीजों को संक्रमण से मुक्त होने में 14 से 27 दिन का समय लगता है।

आचार्य बालकृष्ण के अनुसार इन छह मरीजों के अतिरिक्त उन्होंने मेरठ में क्वारंटाइन में रखे गए 40 अन्य लोगों को भी ये दवाएं दीं और ये सभी लोग संक्रमण से मुक्त रहे। ये वायरस से संक्रमित ही नहीं हुए।

लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि पतंजलि ने कोरोना के जिन मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल किया है, वे कोरोना के कम गंभीर मरीज थे। गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों पर इस दवा का परीक्षण होना अभी बाकी है। हालांकि बाबा रामदेव की इस बात में भी दम है कि अगर कम गंभीर मरीजों को यह दवा दी जाएगी तो उनके गंभीर मरीज बनने की नौबत ही नहीं आएगी। 

यहां ध्यान देने वाली बाद है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को दूर करने के लिए भारतीय बाजार में उतारी गई पहली अंग्रेजी दवाई फेविपिराविर या फैबिफ्लू का ट्रायल भी अभी कम गंभीर मरीजों पर ही हुआ है।

- लव कुमार सिंह

#COVID19 #Covid_19 #coronavirus #MedicareForAll #Patanjali #Ayurveda


Wednesday 17 June 2020

कभी गली का दुकानदार मायूस होता था कि उसकी दुकान मुख्य सड़क पर क्यों नहीं, लेकिन लॉकडाउन में इसी दुकानदार को सबसे ज्यादा राहत रही

Sometimes the shopkeeper of the street used to feel disheartened why his shop was not on the main road, but this shopkeeper was most relieved in the lockdown



अगर आप व्यापार करने का फैसला करें तो आपकी दुकान कहां होनी चाहिए? निश्चित ही आप चाहेंगे कि आपकी दुकान शहर की मुख्य सड़क पर होनी चाहिए। यदि आपको किसी गली में अंदर जाकर दुकान मिलती है तो आप मायूस हो जाते हैं। लेकिन कोरोना संकट के इस दौर में इसके उलट नजारा दिखाई दिया। आजकल मुख्य सड़क के दुकानदार परेशान हैं। वे अपने आप से कह रहे हैं कि काश हमारी दुकान मुख्य सड़क के बजाय किसी गली में कहीं अंदर जाकर होती।

ऐसा इसलिए है कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के पिछले करीब तीन महीने के दौर में उन दुकानदारों पर इस संकट का ज्यादा असर नहीं पड़ा जिनकी दुकानें गली के अंदर मौजूद हैं या जिनकी दुकानें उनके घर के साथ लगी हैं। ऐसे दुकानदार अपनी दुकानें तो बंद रखते थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान अपनी दुकान के बाहर आकर खड़े हो जाते थे। आसपास के जानकार ग्राहक इनके पास आते थे और जरूरत की सामग्री ले जाते थे। ये दुकानदार अपने दुकान का शटर बंद रखते हुए ही घर के अंदर से जरूरी चीजें बेच रहे थे।

जिन दुकानदारों की दुकानें घर में नहीं थीं, लेकिन दूर गली के अंदर थीं, वे अपने ग्राहकों से फोन के जरिये संपर्क में थे। वे ग्राहकों को फोन करके या ग्राहक उन्हें फोन करके अपनी जरूरतें बताते थे। दुकानदार मांगे गए सामान को या तो ग्राहकों के घर तक पहुंचा देते थे या फिर उनके फोन करने पर सुबह के समय ग्राहक दुकान पर पहुंच जाता था और अपना सामान ले आता था।

उधर, सबसे ज्यादा नुकसान मुख्य सड़क के दुकानदारों को उठाना पड़ा क्योंकि वहां पुलिस-प्रशासन की निरंतर आवाजाही रहती थी। मुख्य सड़क पर मीडिया के व्यक्ति और आम जनता भी आती-जाती रहती है। दुकान का शटर खुला देखकर कोई भी पुलिस से शिकायत कर देता था। अब देखिए न मेरठ में पुस्तकों की सबसे प्रसिद्ध दुकान लायल बुक डिपो के मालिक मुख्य सड़क पर स्थित अपनी दुकान में शटर उठाकर कुछ लेने गए थे, लेकिन तुरंत पुलिस की नजर में आ गए। पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया।

...तो किस स्थान पर दुकान होने से लाभ होगा, यह कभी-कभी परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। 


ग्राहकों का ब्योरा रखिए, बहुत लाभ में रहेंगे
Keep details of customers, you will be in great benefit


यहां उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के दौरान वे दुकानदार कम नुकसान में रहे जो अपने पास ग्राहकों का पूरा ब्योरा रखते हैं। इसके उन्हें फोन को व्यापार का जरिया बनाने में मदद मिली। इसलिए यह जरूरी है कि आप कैसी भी दुकान क्यों न करते हों, अपने ग्राहकों के नाम, फोन नंबर और पते जरूर एक डायरी या रजिस्टर में नोट करें। इससे न केवल लॉकडाउन जैसे संकट से उबरने में मदद मिलेगी, बल्कि अपने व्यापार को बढ़ाने, किसी नई स्कीम की जानकारी देने आदि में आपको बहुत लाभ होगा। ऑनलाइन शॉपिंग से प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तो ग्राहकों का ब्योरा रखना और भी जरूरी है। बहुत से दुकानदार यह काम अवश्य करते हैं लेकिन बहुत से दुकानदार इस काम में लापरवाही करते हैं। ऐसे लापरवाह दुकानदार ही लॉकडाउन में मक्खियां मारते देखे गए।

वैसे भी आम दुकानदारों के सामने आज ऑनलाइन शॉपिंग के रूप में सबसे बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। इसके लिए भी उनके पास ग्राहकों का ब्योरा होना जरूरी है। ये नया जमाना है, नई चुनौतियां है, इसलिए अपनी दुकानदारी को बदलिए। लोग ऑनलाइन शॉपिंग खुद करते हैं, लेकिन यदि आपके पास आपके ग्राहकों का ब्योरा है तो आप स्वयं उन्हें अपनी दुकान के माल की ऑनलाइन शॉपिंग करा सकते हैं। लोग अमेजन, फ्लिपकार्ट के पास स्वयं जाते हैं, लेकिन आप अपने ग्राहक के पास फोन, ई-मेल आदि के जरिये स्वयं जाइए। उनकी जरूरत आदि के बारे में पूछिए, अपने यहां आए नए माल के बारे में बताइए और उनके घर तक माल पहुंचाने की व्यवस्था कीजिए। ऐसा करने से आपके व्यवसाय में निश्चित ही बदलाव आएगा। 


- लव कुमार सिंह


#lockdown2020 #COVID19 #Covid_19 #coronavirus #trading

Tuesday 16 June 2020

डेक्सामेथासोन- इम्यून सिस्टम को कमजोर करती है, दूसरे रोगों के साथ ली नहीं जा सकती, फिर कैसे बन गई यह कोरोना की रामबाण दवा?

Dexamethasone : It weakens the immune system, cannot be taken with other diseases, then how did it become Corona's panacea drug?


  • क्या है ये डेक्सामेथासोन जिसे कोरोना की सस्ती और रामबाण दवा कहा जा रहा है?
  • What is this dexamethasone which is being called cheap and panacea of Corona?



इंग्लैंड में डेक्सामेथासोन (#Dexamethasone) नामक दवा को कोरोना की सस्ती और रामबाण दवा कहा जा रहा है। वहां के शोधकर्ताओं ने पाया है कि मरीजों की जान बचाने में इस दवा ने कमाल का काम किया है और इसके इस्तेमाल से कोरोना से गंभीर रूप से बीमार मरीजों की मृत्यु दर एक तिहाई घट गई है। यह दवा सस्ती भी बताई जा रही है और इसे ब्रिटेन के सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज के कोर्स में शामिल भी कर लिया गया है। यह दवा अंतरराष्ट्रीय दवा बाजार में ‘डेक्सपैक’ जैसे ब्रांड नाम से मिलती है। ब्रांड नेम के मुकाबले इसकी जेनरिक दवा सस्ती मिलती है। इंग्लैंड से मिली अच्छी खबरों के बाद भारत में भी कोरोना वायरस के इलाज में इस दवा को शामिल किया गया है।

डेक्सामेथासोन एक स्टेरॉयड है जो शरीर में जाकर उन पदार्थों को रिलीज करने से रोकता है जो शरीर में सूजन का कारण बनते हैं। अभी तक इस दवा का इस्तेमाल एलर्जी, त्वचा संबंधी समस्याओं, बड़ी आंत की बीमारी अल्सरेटिव कोलाइटिस, हड्डियों की बीमारी आर्थराइटिस, ऑटो इम्यून बीमारी लुपस चर्मक्षय (जब शरीर की प्रतिरोधी प्रणाली शरीर के ऊतकों पर हमला करती है), सांस संबंधी दिक्कतों और सोरायसिस में किया जाता रहा है।

16 जून 2020 के दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में करीब दो हजार कोरोना संक्रमित मरीजों को यह दवा दी गई। जब इन मरीजों का उन मरीजों से तुलनात्मक अध्ययन किया गया जिन्हें यह दवा नहीं दी गई थी तो परिणाम चौंकाने वाले आए। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता पीटर होर्बी के अनुसार मृत्यु दर कम करने में और ऑक्सीजन की मदद करने वाले मरीजों में इस दवा से बहुत फायदा देखने को मिला है। इसी अध्ययन में मलेरिया की दवा हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना के इलाज में अनुपयोगी करार दिया गया है।

हालांकि डेक्सामेथासोन के बारे में इंटरनेट पर उपलब्ध ब्योरा कुछ अलग ही जानकारी देता है। www.rxlist.com, www.healthline.com आदि वेबसाइट्स पर विशेषज्ञों के लेखों के अनुसार यह एक बेहद शक्तिशाली स्टेरॉयड है और यदि आपको शरीर में कहीं भी फंगल इन्फेक्शन है तो डेक्सामेथासोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसी के साथ यदि किसी को निम्नलिखित समस्याएं हैं तो इस दवा के इस्तेमाल से पहले अपने डॉक्टर को जरूर बताना चाहिए-

  • लिवर की बीमारी
  • किडनी की समस्या
  • थायरॉयड की समस्या
  • मलेरिया
  • टीबी
  • हड्डियों की बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस
  • मांसपेशियों की बीमारी माइस्थेनिया ग्रेविस
  • डायबिटीज क्योंकि स्टेरॉयड लेने से रक्त या पेशान में ग्लूकोज का स्तर बढ़ सकता है
  • आंखों की समस्या ग्लूकोमा या कैटेरेक्ट
  • आंखों में हरपीज इन्फेक्शन
  • पेट में अल्सर, आंत में समस्या
  • डिप्रेशन या कोई मानसिक बीमारी
  • हाई ब्लड प्रेशर

उल्लेखनीय है कि कोरोना से जिन मरीजों की मृत्यु हो रही है उनमें से ज्यादातर मरीज ऐसे हैं जिनमें उपरोक्त में से कोई न कोई बीमारी पहले से मौजूद पाई गई है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि स्टेरॉयड मेडिकेशन से हमारा इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है। इससे हम कोई भी इन्फेक्शन आसानी से लग सकता है। इसके अलावा यदि आपको पहले से कोई इन्फेक्शन है तो स्टेरॉयड मेडिकेशन उसे और भी गंभीर बना देता है।

डेक्सामेथासोन के इस्तेमाल से जी मिचलाना, उल्टी, पेट की गड़बड़, सूजन, सिरदर्द, सुस्ती, मूड में बदलाव, नींद आने में समस्या, बेचैनी, थकान, रक्त में ग्लूकोज का उच्च स्तर और हाई ब्लड प्रेशर जैसे साइड इफेक्ट देखने को मिलते हैं। ये साइड इफेक्ट हल्के भी हो सकते हैं और गंभीर भी। हल्के साइड इफेक्ट समय के साथ गायब हो जाते हैं।

डेक्सामेथासोन एंटीबायोटिक, एंटीफंगल ड्रग, खून को पतला करने वाली दवाओं, कोलेस्ट्रॉल में प्रयुक्त होने वाली दवाओं, डायबिटीज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं, एड्स, दिल, टीबी जैसे रोगों की दवाओं के साथ लिए जाने पर शरीर पर गलत प्रभाव डाल सकती है या अपना प्रभाव खो सकती है।

अब इतनी संवेदनशील, बहुत सारे किंतु-परंतु के साथ ली जाना वाली और इम्यून सिस्टम को कमजोर करने वाली दवा डेक्सामेथासोन किस प्रकार से कोराना मरीजों को ठीक करने के लिए रामबाण दवा मानी जा रही है, यह सवाल मेरे मन में उठ रहा है। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कोरोना से उन्हीं मरीजों की ज्यादा मौत हो रही है जो पहले से किसी न किसी रोग से पीड़ित हैं। ऐसे में इस प्रकार के मरीजों को डेक्सामेथासोन किस प्रकार से ठीक कर सकती है, यह एक बड़ा सवाल है। अभी मुझे इस सवाल का जवाब कहीं नहीं मिला है। हो सकता है कि गुजरते समय के साथ इसका जवाब मिले। फिलहाल अगर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इस दवा को कोरोना की रामबाण दवा कह रहे हैं तो उसका कुछ आधार जरूर होगा और एक सामान्य नागरिक होने के नाते हमें विशेषज्ञों की बात माननी ही होगी।

 - लव कुमार सिंह


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