Friday, 12 June 2020

डॉक्टरों पर दबाव है, क्यों नहीं मरीजों के परिजनों को स्वयंसेवक बना दिया जाता?

There is pressure on doctors, why not the family members of the patients are made volunteers?



कोरोना संकट के बीच आज बीमारी से ज्यादा लोग इस बात से परेशान हैं कि एक बार कोविड वार्ड में जाने के बाद उनका अपने परिजन मरीज से नाता टूट जाता है। वे इस बात से बहुत परेशान हो जाते हैं कि अब न तो उनके मरीज को ठीक प्रकार से खाना मिलेगा, न वे उसे देख पाएंगे और न ही उसे हिम्मत बंधा पाएंगे। अब बताइए जब घरवालों को ही मानसिक रूप से इतना आघात लगता है तो घरवालों से दूर होकर मरीज को मानसिक रूप से कितना आघात लगता होगा। कोरोना से आधी जंग तो वह तभी हार जाता होगा।

और अस्पतालों की तो छोड़ दीजिए, देश के प्रतिष्ठित अस्पताल एम्स को ही ले लीजिए। यहां पिछले दिनों दैनिक भाष्कर के एक पत्रकार तरुण सिसौदिया ने अस्पताल की चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। लेकिन कुछ लोग इसे हत्या भी कह रहे हैं, क्योंकि तरुण सिसौदिया की हालत सुधर रही थी। इसी बीच, उसने अस्पताल की अव्यवस्थाओं को अपने फोन के जरिये उजाकर किया तो आरोप है कि उसे उसके फोन से अलग करने के लिए आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। आईसीयू में पांच दिन से तरुण सिसौदिया अपने परिजनों से बात नहीं कर पा रहा था। परिजनों को पांच दिन से उसकी कोई खबर नहीं थी। जब खबर मिली भी तो मौत की खबर मिली।

ऐसी परिस्थितियों में जब किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिजनों को असीम कष्ट का अनुभव होता है। उन्हें इस बात का बहुत मलाल होता है कि उनका भाई, पिता, बेटा आदि यूं ही इस दुनिया से चला गया और वे उसके लिए कुछ नहीं कर पाए। वे उसे मृत्यु के कुछ दिन पहले तक तो देख ही नहीं पाए, मृत्यु के बाद भी नहीं देख सके। बहुत से लोगों को तो अंतिम संस्कार के लिए अपने मरीज की लाश तक नसीब नहीं हो रही है। यह बहुत ही विकट स्थिति है। ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए।

इस बीच, डॉक्टरों पर दबाव बढ़ने की खबरें लगातार आ रही हैं। खबरें आ रही हैं कि वे महीनों से ठीक से सोए भी नहीं हैं। इसके हल के लिए यह बात भी उठ रही है कि डॉक्टरों की मदद के लिए स्वयंसेवकों को लगाया जाना चाहिए। 

मेरी सलाह है कि क्यों नहीं यह स्वयंसेवक उस मरीज का परिजन ही हो। अगर कोरोना संक्रमित मरीज के एक परिजन को (उसकी मंजूरी होने पर) स्वयंसेवक के रूप में तैनात कर दिया जाए तो न केवल बहुत सारी अफरातफरी का अंत होगा बल्कि मरीज को भी बहुत ज्यादा मानसिक संबल मिलेगा। 

आखिर स्वयंसेवकों को भी तो पीपीई किट आदि पहनाकर, तमाम ऐहतियात के साथ ही कोविड वार्ड में भेजा जाएगा तो इसी प्रकार मरीज के परिजन को भी पीपीई किट पहनाकर उसके मरीज की देखभाल के लिए नियुक्त किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर केवल निर्देश देने का काम करेंगे और मरीजों के परिजन उन्हें दवा, भोजन आदि देने का काम कर सकेंगे। अपने परिजन (माता-पिता-भाई आदि) को साथ देखकर मरीज की हिम्मत भी बनी रहेगी। ऐसे में यदि कोरोना से मरीज की मृत्यु भी हो जाती है तो परिजनों को संतोष रहेगा कि उनकी तरफ से तो पूरी कोशिश हुई लेकिन ईश्वर की मर्जी के आगे वे कुछ नहीं कर सके। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों और अस्पताल पर भी दोषारोपण नहीं होगा।

- लव कुमार सिंह

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