Make corona treatment protocol public so that people can treat at home
दिल्ली और मुंबई के
अस्पतालों में घटी घटनाओं ने लोगों को बहुत डरा दिया है। कहीं लाशें गायब हो रही
हैं तो कहीं मरीजों के बीच में लाशें पड़ी हैं। कहीं मरीजों को समुचित सुविधाएं
नहीं मिल रही हैं तो कहीं मरीज इलाज तो दूर पेट भरने के लिए भी तरस रहे हैं।
आज लोग कोरोना से
बचने की प्रार्थना तो ऊपर वाले से कर ही रहे हैं, साथ ही यह प्रार्थना भी हो रही है कि यदि
कोरोना का संक्रमण हो भी जाए तो अस्पताल न जाना पड़े। आज दिल्ली के लोग कह रहे हैं
कि काश अपने भाई/मां/बेटा आदि को वे अस्पताल न लाकर घर पर ही रखते तो शायद आज वह
हमारे बीच जिंदा होता/होती।
देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान एम्स तक में कोरोना पॉजिटिव एक पत्रकार ने चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। कुछ लोग इसे हत्या भी कह रहे हैं, क्योंकि जब वह पत्रकार आईसीयू में भर्ती था तो खिड़की तक कैसे पहुंच सकता था? इसके अलावा यह आरोप भी है कि वह सामान्य वार्ड में बिल्कुल ठीक था और उसे आराम हो रहा था, लेकिन चूंकि उसने अपने फोन से एम्स के ट्रॉमा सेंटर की अव्यवस्थाओं को उजागर किया था, इसलिए उससे उसका फोन लेने के लिए उसे जबरन आईसीयू में भर्ती किया गया। सबसे बड़ी बात यह कि अस्पताल में जाकर उस पत्रकार का अपने परिवार से संपर्क पूरी तरह टूट गया। आईसीयू में पांच दिन से उसकी अपने परिजनों से कोई बात नहीं हो पा रही थी।
इस समय बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न है कि जब कोरोना के संक्रमण का कोई इलाज नहीं है तो अस्पतालों में किस प्रकार से इलाज हो रहा है। इसके जवाब में कहा जा रहा है कि अस्पताल में इलाज नहीं हो रहा, बल्कि देखभाल हो रही है। लोग पूछ रहे हैं कि सरकार इस देखभाल/इलाज का प्रोटोकाल सार्वजनिक क्यों नहीं कर देती ताकि कम गंभीर रोगी अपने घर पर ही रहकर दवाइयों लें सकें और अपनी देखरेख कर सकें तथा अस्पतालों में केवल गंभीर रोगियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
सरकार और विशेषज्ञ
बार-बार कह रहे हैं कि कोरोना का इलाज साफ-सफाई, पौष्टिक खुराक और मजबूत इच्छाशक्ति है। लेकिन
आज दुर्भाग्य से देश के अधिकांश अस्पतालों में ये तीनों चीजें ही नहीं हैं। कोई
व्यक्ति जितनी साफ-सफाई घर में रख सकता है, जितना पौष्टिक
भोजन उसे घर में दिया जा सकता है और जितना ढांढस व हिम्मत उसे घर में बंधाई जा
सकती है, उतना किसी अस्पताल में नहीं हो सकता।
आखिर बाकी रोगों में
भी तो कोई व्यक्ति जब डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर मरीज के सामने दवा का
खुलासा करता है और दवाइयों को पर्चे पर लिखकर, परहेज/एहतियात आदि बताकर मरीज को घर भेज देता
है। अगर संक्रामक रोग होता है तो रोगी को आइसोलेशन में रखने की हिदायत भी देता है।
क्या कोरोना के मामले में ऐसा नहीं किया जा सकता?
सरकार और डॉक्टरों को
समझना चाहिए कि आज बीमारी से ज्यादा लोग इस बात से परेशान हैं कि एक बार कोविड
वार्ड में जाने के बाद उनका अपने परिजन मरीज से नाता टूट जाता है। वे इस बात से
बहुत परेशान हो जाते हैं कि अब न तो उनके मरीज को ठीक प्रकार से खाना मिलेगा, न वे उसे देख पाएंगे और
न ही उसे हिम्मत बंधा पाएंगे। अब बताइए जब घरवालों को ही मानसिक रूप से इतना आघात
लगता है तो घरवालों से दूर होकर मरीज को मानसिक रूप से कितना आघात लगता होगा।
कोरोना से आधी जंग तो वह तभी हार जाता होगा।
बहुत से व्यक्ति ऐसे
होते हैं जो अपने घर में दूसरों पर निर्भर होते हैं। सबकी समझदारी का स्तर भी एक
सा नहीं होता है। बहुत से व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी जरूरत की चीज मांग लेते
हैं, लेकिन
बहुत से लोगों को ऐसा करने में परेशानी और हिचक होती है। ऐसे लोगों को अस्पताल में
बहुत परेशानी होती है। बहुत से लोग पहले से किसी अन्य रोग की दवाएं ले रहे होते
हैं। ऐसे लोगों की दवाएं कोविड वार्ड में जाने पर उन्हें नहीं दी जा सकीं। ऐसे
अनेक मामले कई अस्पतालों में सामने आए हैं। ऐसे सभी व्यक्तियों की जितनी देखभाल घर
में हो सकती है, उतनी किसी भी अस्पताल में नहीं हो सकती है।
ऐसे में सरकार को
चाहिए कि वह कोरोना के इलाज में प्रयोग हो रही दवाओं के इस्तेमाल, परहेज और अन्य एहतियात
आदि को सार्वजनिक करे और कम गंभीर रोगियों को घर में ही इलाज करने के लिए
प्रोत्साहित करे। इससे न केवल अस्पतालों और डॉक्टरों पर बोझ कम होगा, बल्कि डॉक्टर गंभीर रोगियों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। इससे
कोरोना के कारण मृत्यु के द्वार पर खड़े लोगों को बचाया जा सकेगा। इसी के साथ
सरकारी अस्पतालों पर बोझ घटने पर लोगों को उन निजी अस्पतालों में भी भर्ती नहीं
होना पड़ेगा जहां कोरोना टेस्ट और इलाज के नाम पर मरीजों को लूटा जा रहा है।
मेरी मीडिया से भी
प्रार्थना है कि यदि डॉक्टर नहीं बताते तो वे कोरोना से ठीक हो रहे मरीजों से
विस्तार से बात करके उनकी पूरी दिनचर्या छापें और उन्हें अस्पताल में क्या इलाज
मिला, इसकी
जानकारी आम लोगों को मुहैया कराएं, जिससे बिना लक्षण वाले
मरीज घर पर इस इलाज का पालन करके स्वयं को कोरोना के संक्रमण से दूर कर सकें।
अंत में यही कि अनलॉक पीरिडय में आप संक्रमण नहीं रोक सकते, इसलिए आपको लोगों की जान बचाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जब आप बैंकट हॉल, होटलों में, बड़े सार्वजनिक मैदानों में बेड बनाने की बात कर रहे हैं तो घर में ही बेड होने में क्या गलत है? कम गंभीर रोगियों को बस आप फोन पर या एक बार मिलकर सलाह दीजिए, दवा बताइए और अस्पतालों में गंभीर रोगियों को बचाने में ध्यान लगाइए।
- लव
कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment