Wednesday 23 December 2020

लीजन ऑफ मेरिट : क्या नरेंद्र मोदी यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय हैं?

नरेंद्र मोदी को मिले सम्मानों से संबंधित इन प्रश्नों और उनके उत्तरों को याद रखें, प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत काम आएंगे




1-     दिसंबर 2020 में किस देश ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘लीजन ऑफ मेरिट, डिग्री चीफ कमांडर’ अवार्ड प्रदान किया? ए- रूस, बी- अमेरिका, सी- जापान, डी- फ्रांस (उत्तर- अमेरिका। अमेरिका के अनुसार नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत के वैश्विक फलक पर एक शक्ति के रूप में उभरने और वैश्विक चुनौतियों के मद्देनजर भारत-अमेरिकी रणनीतिक गठजोड़ को मजबूत बनाने के लिए यह पुरस्कार भारत के प्रधानमंत्री को दिया गया है।)

2-     ‘लीजन ऑफ मेरिट’ अमेरिका का किस क्षेत्र का सबसे बड़ा सम्मान है? ए- राजनीति, बी- आर्थिक, सी- सामाजिक, डी- सैन्य (उत्तर- सैन्य क्षेत्र)

3-     ‘लीजन ऑफ मेरिट’ सम्मान नरेंद्र मोदी से पहले किस भारतीय प्रधानमंत्री को मिला है? ए- इंदिरा गांधी, बी- जवाहर लाल नेहरू, सी- अटल बिहारी वाजपेयी, डी- किसी को नहीं (उत्तर- किसी को नहीं)

4-     अमेरिका का ‘लीजन ऑफ मेरिट’ सम्मान इनमें से किसे नहीं मिला है? ए- भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बी- जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे, डी- आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन, डी- फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (उत्तर- फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों)

5-     ए- यहां दिए तथ्यों में कोई भी सही नहीं है, बी- तथ्यि 2 सही है, सी- तथ्य 1, 3 और 4 सही है, डी- चारों तथ्य सही हैं। तथ्य 1- ‘लीजन ऑफ मेरिट’ सम्मान नरेंद्र मोदी से पहले दो भारतीयों को मिल चुका है। तथ्य 2- ‘लीजन ऑफ मेरिट’ सम्मान नरेंद्र मोदी से पहले एक भारतीय को मिल चुका है। तथ्य 3- 1950 में यह सम्मान फील्ड मार्शल के. करियप्पा को मिला था। तथ्य 4- 1955 में यह सम्मान जनरल सत्यवंत श्रीनागेश को मिला था। (उत्तर- तथ्य 1, 3 और 4 सही हैं)

6-     ‘लीजन ऑफ मेरिट’ सम्मान के बारे में क्या सही नहीं है? ए- इस सम्मान में अलग-अलग पद हैं जैसे ऑफिसर, कमांडर, चीफ कमांडर आदि। बी- यह पहला ऐसा सम्मान है जो अमेरिका विदेशी नागरिकों को भी देता है। सी- इसमें पांच दिशाओं का सफेद क्रास होता है, जिनके किनारे लाल होते हैं और ये हरे रंग के चक्र पर होते हैं जिनके केंद्र में नीले रंग के अंदर 13 सफेद सितारे होते हैं। डी- तीनों तथ्य सही हैं। (उत्तर- तीनों तथ्य सही हैं।)

7-     भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 में किस देश ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल’ सम्मान प्रदान किया? ए- सऊदी अरब, बी- फ्रांस, सी- संयुक्त अरब अमीरात, डी- रूस (उत्तर- रूस)

8-     भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 में किस देश ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ जायद’ दिया था? ए- संयुक्त अरब अमीरात, बी- सऊदी अरब, सी- जार्डन, डी- कुवैत (उत्तर- संयुक्त अरब अमीरात)

9-     किस देश ने 2016 में अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान स्टेट ऑर्डर ऑफ गाजी अमानुल्लाह खान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया? ए- सऊदी अरब, बी- अफगानिस्तान, सी- फिलिस्तीन, डी- कुवैत (उत्तर- अफगानिस्तान)

10- किस देश ने 2016 में अपना सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ अब्दुल अजीज अल सऊद’ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया? ए- सऊदी अरब, बी- संयुक्त अरब अमीरात, सी- कुवैत, डी- बहरीन (उत्तर- सऊदी अरब)

11- फिलिस्तीन ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ स्टेट ऑफ फलस्तीन अवार्ड’ किस वर्ष भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रदान किया? ए- 2016, बी- 2017, सी-2018, डी- 2019 (उत्तर- 2018)

12- मालदीव ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ डिस्टिग्विंश्ड रूल ऑफ निशान आईज्जुद्दीन’ किस वर्ष भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया? ए- 2016, बी- 2017, सी-2018, डी- 2019 (उत्तर- 2019)


- लव कुमार सिंह

Tuesday 22 December 2020

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह : इन प्रश्नों को याद रखें, कम्पीटीशन में काम आएंगे

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1-  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार 22 दिसंबर 2020 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के शताब्दी समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया। उनसे पहले किस प्रधानमंत्री ने ऐसा किया था? इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी? (उत्तर- लाल बहादुर शास्त्री ने 1964 में)

2-  एएमयू की स्थापना किसने की थी? मौलाना अबुल कलाम आजाद, सर सैयद अहमद खान, डॉ. जाकिर हुसैन, खान अब्दुल गफ्फार खां? (उत्तर- सर सैयद अहमद खान)

3-  एएमयू की स्थापना कब हुई थी? 1921, 1925, 1922, 1920  (उत्तर- 1920)

4-  एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा कब मिला? 1921, 1925, 1920, 1930? (उत्तर- 1921)

5-  एएमयू के अस्तित्व में आने से पहले इसका क्या नाम था? मुस्लिम कॉलेज, मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज, फैज-ए-आम कॉलेज, जौहर विश्वविद्यालय? (उत्तर- मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज)

6-  मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत कब हुई? 1877, 1890, 1900, 1895? (उत्तर- 1877)

7-  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय सबसे पहले एक स्कूल (मदरसा) के रूप में कब शुरू हुआ था? 1875, 1885, 1880, 1890 (उत्तर- 1875)

8-  वे दो भारत रत्न कौन हैं जिनका संबंध एएमयू से रहा है? डॉ. जाकिर हुसैन व खान अब्दुल गफ्फार खान, अबुल कलाम व एपीजी अब्दुल कलाम, अरुणा आसफ अली व उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, मरुदुर गोपालन व गुलजारी लाल नंदा (उत्तर- डॉ. जाकिर हुसैन और खान अब्दुल गफ्फार खान)

9-  इनमें क्या सही नहीं है? एएमयू के संग्रहालय का नाम मूसा डाकरी है।, एएमयू के संग्रहालय में 27 देव प्रतिमाओं का संग्रह भी है।, इस संग्रहालय में डायनासोर के अवशेष भी है।, इस संग्रहालय में रामायण काल की भी कई चीजें हैं। (उत्तर- इस संग्रहालय में रामायण काल की भी कई चीजें हैं।)

10- एएमयू का आदर्श वाक्य क्या है? (उत्तर- अल्लामल इन्साना मा लम य आलम अर्थात् आदमी को वो सिखाओ जो उसे नहीं आता)

11- इनमें से कौन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ व्यक्तित्व नहीं है? दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा, हाकी के जादूगर ध्यानचंद, पूर्व क्रिकेटर लाला अमरनाथ, फिल्म अभिनेता कादर खान? (उत्तर- फिल्म अभिनेता कादर खान)

12- पाकिस्तान के कौन से प्रधानमंत्री का संबंध एएमयू से रहा है? लियाकत अली खान, मोहम्मद अयूब खान, जुल्फीकार अली भुट्टो, चौधरी मोहम्मद अली? (उत्तर- पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान)

13- भारत के किस उपराष्ट्रपति का संबंध एएमयू से रहा है? मोहम्मद हिदायतुल्ला, मोहम्मद हामिद अंसारी, शंकरदयाल शर्मा, कृष्णकांत? (उत्तर- मोहम्म्द हामिद अंसारी)

14- सर सैयद अहमद खान ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर कौन सी पुस्तक लिखी? (उत्तर- असबाब-ए-बगावत-ए-हिंद)

15- शिक्षा के क्षेत्र में काम करने से पहले सैयद अहमद खान ने कौन-कौन से काम किए? (उत्तर- ईस्ट इंडिया कंपनी में लिपिक और विभिन्न स्थानों पर न्यायिक विभागों में उपन्याधीश के रूप में काम किया)

16- एएमयू में 22 दिसंबर को पीएम के भाषण से हमें ये तथ्य भी पता चले-

  •   वर्ष 2014 में हमारे देश में 16 IITs थीं। आज 23 IITs हैं।
  •   वर्ष 2014 में हमारे देश में 9 IIITs थीं। आज 25 IIITs हैं।
  •   वर्ष 2014 में हमारे यहाँ 13 IIMs थे। आज 20 IIMs हैं।
  •   6 साल पहले तक देश में सिर्फ 7 AIIMS थे। आज देश में 22 AIIMS हैं।
  •   पहले मुस्लिम लड़कियों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट 70% से ज्यादा था, लेकिन अब ये अब 30% के आसपास रह गया है।

- लव कुमार सिंह

 

Wednesday 2 December 2020

ऐसा वैवाहिक विज्ञापन आपने इससे पहले नहीं देखा होगा

देखकर, पढ़कर बताएं कि क्या इन साहब को ऐसी लड़की मिलेगी?

अखबारों में हर हफ्ते हजारों वैवाहिक विज्ञापन छपते हैं, जिनके जरिये लोग अपने या अपने प्रियजनों के लिए वधू या वर की तलाश करते हैं। इन विज्ञापनों में हमें कई बार अनेक दिलचस्प विवरण देखने को मिलते हैं। ऐसा ही एक विज्ञापन पिछले दिनों देखने को मिला। वधू की तलाश करने वाला यह विज्ञापन अपने बड़े आकार के कारण तो अपनी तरफ लोगों का ध्यान खींचता ही है, इसके अंदर दिया गया विवरण भी बड़ा रोचक और अजीबोगरीब है। सबसे पहले आप इस विज्ञापन को देखिए और पढ़िए-



बॉक्स में छापा गया यह विज्ञापन किन्हीं डॉ अभिनव कुमार की तरफ से दिया गया है जो ब्राह्मण जाति से आते हैं।

विज्ञापन के अनुसार कुमार साहब बीडीएस यानी बैचलर ऑफ डेंटल साइंस हैं। इनकी लंबाई पांच फीट आठ इंच है। वर्तमान में कहीं काम नहीं कर रहे हैं। जन्म 2 अप्रैल 1989 को हुआ है यानी करीब 31 वर्ष के हैं। जन्म का समय सुबह 9.45 का लिखा है। जन्म स्थान भागलपुर, बिहार है। ब्राह्मण जाति में इनका गोत्र भारद्वाज है।

विज्ञापन के अनुसार कुमार साहब एक बेहद गोरी, सुंदर, बेहद निष्ठावान, बेहद भरोसेमंद, प्यारी, देखभाल करने वाली, बहादुर, शक्तिशाली और धनी वधू चाहते हैं।

इसी के साथ ये चाहते हैं कि लड़की अत्यधिक देशभक्त हो, जिसमें भारत की सैन्य और खेल क्षमताओं को बढ़ाने की प्रबल (गहरी) इच्छा हो। लड़की अतिवादी लेकिन दयालु भी होनी चाहिए। उसे बच्चे के पालन-पोषण में विशेषज्ञ होना चाहिए और वह शानदार कुक भी होनी चाहिए। वह ब्राह्मण हो और कामकाजी भी होनी चाहिए। लड़की को झारखंड या बिहार से होना चाहिए। संपूर्ण कुंडली मिलन और 36 गुणों का मिलन भी अनिवार्य है।

है ना दिलचस्प, अजीबोगरीब और ध्यानखींचू विज्ञापन? क्या इन साहब को ऐसी लड़की मिलेगी, जो इन सभी शर्तों पर खरी उतरेगी? आपकी इस विज्ञापन के बारे में क्या राय है? 

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Monday 26 October 2020

आईपीएल : करीब 100 खिलाड़ी बाहर बैठे हैं, जिनमें से कई अपने देश के स्टार क्रिकेटर हैं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के मध्य पड़ाव पर 13 अक्टूबर को ऐसे करीब 100 खिलाड़ियों की सूची जारी हुई है जिनमें से अधिकांश यूएई में खेले जा रहे आईपीएल के दौरान एक भी मैच नहीं खेल पाए हैं। ये सूची इसलिए जारी हुई है कि यदि कोई टीम इनमें से किसी खिलाड़ी को खरीदना चाहे तो वह मिड सीजन ट्रांसफर विंडो के जरिये उसे खरीद सकती है।

खास बात यह है कि इनमें ऐसे दिग्गज खिलाड़ी भी शामिल हैं जो अपनी राष्ट्रीय टीम का अनिवार्य रूप से हिस्सा होते हैं, लेकिन आईपीएल में उनकी कोई पूछ ही नहीं है और वे बाहर बैठे मक्खियां मारने पर मजबूर हैं। इन्हीं में कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो पहले अपनी आईपीएल टीम के लिए शानदार प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन अब उन्हें टीम में स्थान नहीं मिल रहा है।

इसका एक कारण तो यह है कि हर टीम में काफी अतिरिक्त खिलाड़ी खरीदे जाते हैं तो ऐसे में जाहिर है कि यदि किसी टीम में 20 खिलाड़ी होंगे तो खेलने का मौका तो 11 को ही मिलेगा।

दूसरा कारण यह हो सकता है कि खिलाड़ी का प्रदर्शन ही अच्छा न हो। जैसे कि रॉयल चैलेंजर बंगलुरू में डेल स्टेन और उमेश यादव शुरुआत में खेले लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा जिससे उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। उनकी जगह टीम में आए क्रिस मोरिस और उड़ाना जिस प्रकार की गेंदबाजी कर रहे हैं, उससे नहीं लगता कि अब डेल स्टेन या उमेश यादव को टीम में जगह मिलेगी।

तीसरा कारण किसी खिलाड़ी का टीम की योजना में फिट नहीं होना बताया जाता है, जो कि सबसे लचर कारण नजर आता है। चेन्नई सुपर किंग्स अपने स्टार स्पिनर इमरान ताहिर को इसीलिए नहीं खिला रही है कि वे उसकी योजना में फिट नहीं बैठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यदि आईपीएल भारत में होता तो इमरान ताहिर जरूर सीएसके की टीम में होते। यूएई में ऐसी क्या बात है? कहा जा रहा है कि वहां पर तेज गेंदबाज सफल हो रहे हैं। लेकिन यह तथ्य सही नहीं है।

आरसीबी में यजुवेंद्र चहल और सनराइजर्स हैदराबाद में राशिद खान मैच विजेता गेंदबाज बने हुए हैं। आरसीबी में वाशिंगटन सुंदर ने अपनी स्पिन गेंदबाजी से टीम में जगह पक्की कर ली है। दिल्ली कैपिटल में चोटिल होने से पहले मिश्रा टीम का हिस्सा थे। अश्विन वहां हैं ही और साथ में अक्षर पटेल जैसे साधारण स्पिन गेंदबाज भी सफल हो रहे हैं। मुंबई इंडियन में राहुल चाहर ने अपनी स्पिन गेंदबाजी के कारण ही टीम में जगह पक्की कर रखी है, वरना वहां एक से बढ़कर एक खिलाड़ी भरे हुए हैं।

सीएसके में यदि पीयूष चावला को कई खिलाकर बाहर किया जा सकता है और फिर से अंतिम 11 में लिया जा सकता है तो ऐसे में इमरान ताहिर को क्यों नहीं खिलाया जा सकता है? ऐसी योजना समझ से परे हैं कि आपकी टीम का प्रदर्शन भी कमजोर हो लेकिन आपकी योजना में कोई कमी नहीं हो।

अगर बाहर बैठे 100 खिलाड़ियों की सूची को देखें तो मुंबई इंडियन में क्रिस लिन जैसे हिटर का खेलना बनता है। चेन्नई सुपर किंग्स में इमरान ताहिर और सेंटनर का खेलना बनता है। सेंटनर न्यूजीलैंड के शीर्ष गेंदबाज हैं और भारतीय खिलाड़ी और प्रशंसक जानते हैं कि सेंटनर के कारण कई बार भारत की टीम अंतराष्ट्रीय स्तर पर पराजित हुई है।

चेन्नई में ही जोश हेजलवुड का भी खेलना बनता है, जो आस्ट्रेलिया के शीर्ष तेज गेंदबाज हैं। सनराइजर्स हैदराबाद में बासिल थम्पी का मौका बनता है जो कि पहले बढ़िया प्रदर्शन कर चुके हैं। दिल्ली कैपिटल्स में कीमो पॉल और लामिछाने, किंग्स इलेवन पंजाब में क्रिस गेल का खेलना बनता है। किंग्स इलेवन वैसे भी सबसे नीचे चल रही है इसलिए गेल को मौका दिया जाना जरूरी है। केकेआर में लॉकी फर्ग्यूसन पूर्व में बढ़िया प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन फिलहाल अंतिम 11 से दूर हैं। राजस्थान रॉयल्स में मयंक मार्कंडेय को मौका दिया जाना चाहिए। आरसीबी में पार्थिव पटेल का भी उपयोग होना चाहिए।

करीब सौ खिलाड़ी बाहर बैठे हैं तो क्या ये खिलाड़ी उपेक्षित महसूस नहीं करते होंगे? शायद 'हां' क्योंकि नए खिलाड़ियों को छोड़ दें तो कई दिग्गज खिलाड़ियों का उनके देश की टीम में बहुत नाम और सम्मान है। शायद 'ना' भी क्योंकि इन खिलाड़ियों को बिना खेले खूब सारा पैसा तो मिल ही रहा है, फिर किस बात की चिंता है।

उपेक्षा से ख्याल आता है गौतम गंभीर का, जिनका आज यानी 14 अक्टूबर को जन्मदिन भी है। केकेआर में गौतम गंभीर का क्या जलवा था। वहां उन्होंने अपनी टीम को खिताब भी दिलवाया था। फिर पता नहीं क्यों वे दिल्ली की टीम में आ गए और दिल्ली की कप्तानी की। फिर एक दिन हमने देखा कि दिल्ली का कप्तान ही बदल गया और गौतम गंभीर को अंतिम 11 में भी जगह नहीं मिली। कुछ दिन गंभीर ने बाहर बैठकर मैच देखा और फिर वे क्रिकेट से ही बाहर हो गए।

ये सब देखकर लगता है कि आईपीएल में पैसा भी बहुत है और यहां खिलाड़ियों को चमकने का मौका भी मिलता है, लेकिन यहां पर पुराने खिलाड़ियों की साख और सम्मान भी दांव पर लगा होता है। स्टार खिलाड़ियों को बाहर निराश भाव से बैठा हुआ देखकर बड़ी तकलीफ होती है। इससे अच्छा तो व्यवस्था यह होनी चाहिए कि हर टीम में केवल 13-14 खिलाड़ी हों और यदि टीम में कोई खिलाड़ी घायल होता है और उसका रिप्लेसमेंट नहीं मिलता है तो टीम को बाहर से कोई भी खिलाड़ी खरीदने की मंजूरी मिलनी चाहिए।

- लव कुमार सिंह

वे बदलाव जो टी-ट्वेंटी/आईपीएल के रोमांच को शिखर पर ले जा सकते हैं?

 भारत और शेष दुनिया के क्रिकेट के प्रशंसक इस समय इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का आनंद ले रहे हैं। लेकिन क्या टी-ट्वेंटी क्रिकेट या आईपीएल के वर्तमान नियम खिलाड़ियों को इस खेल को खेलने और दर्शकों को इस खेल को देखने का पूरा आनंद दे रहे हैं? अगर बिल्कुल हाल-फिलहाल की कुछ प्रतिक्रियाओं पर नजर डालें तो उत्तर ‘ना’ में मिलता है।

ये प्रतिक्रियाएं कुछ इस प्रकार हैं-

  • किंग्स इलेविन पंजाब के कप्तान के.एल. राहुल ने कहा है कि 100 मीटर से बड़ा छक्का लगाने पर खिलाड़ी को अतिरिक्त रन मिलने चाहिए।
  • विराट कोहली कह रहे हैं कि वाइड और नो बॉल के मामले में भी कप्तानों को रिव्यू लेने का विकल्प मिले।
  • स्टार स्पोर्ट्स के कमेंट्री पैनल पर एक दिन चर्चा हो रही थी कि यदि कोई गेंदबाज 2 विकेट ले ले तो उस मैच में कप्तान को यह छूट मिलनी चाहिए कि वह उस गेंदबाज से कुछ अतिरिक्त ओवर फिंकवा सके।
  • हर्षा भोगले कह रहे हैं कि गेंदबाजों को इस खेल में वापस लेकर आइए। तब ये खेल और भी समृद्ध हो जाएगा। उनका कहना है कि इस खेल से गेंदबाजों को कभी भी बाहर मत ले जाइए।

इसका अर्थ है कि खेल को रोमांच के शिखर पर ले जाने के लिए वर्तमान नियमों में अभी भी कहीं न कहीं कुछ कमी है। इस खेल के बल्लेबाजों के पक्ष में झुके होने के आरोप तो पहले से ही लगते रहे हैं, लेकिन और भी कई बातें ऐसी हैं जिन पर विचार करके इस खेल को और भी रोचक और मजेदार बनाया जा सकता है। तो चलिए यहां हाजिर हैं कुछ सुझाव जो यह बताते हैं कि टी-ट्वेंटी या आईपीएल में ऐसे क्या बदलाव हो सकते हैं जिससे इस खेल में रोमांच अपने चरम पर पहुंच जाए।

 

बदलाव 1

 

नियमों में एक बदलाव यह होना चाहिए फील्डिंग कर रही टीम का हर खिलाड़ी (विकेटकीपर को छोड़कर) 1 ओवर जरूर फेंकेगा। लेकिन कप्तान को यह छूट भी मिलेगी कि वह बाकी बचे 10 ओवर अपने किन्हीं भी पसंदीदा गेंदबाजों से पूरा करा सकेगा।

इस नियम से खेल का रोमांच बहुत बढ़ जाएगा क्योंकि यह नियम खेल की संपूर्णता को दर्शाएगा और दर्शकों को खेल के तीनों क्षेत्रों (बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग) में खिलाड़ियों के कौशल को देखने का मौका मिलेगा। दर्शकों को विराट कोहली, रोहित शर्मा, एबी डिविलियर्स, डेविड वार्नर जैसे खिलाड़ियों को गेंदबाजी करते देखकर बहुत मजा आएगा।

इस नियम से बल्लेबाजी कर रही टीम को यह फायदा होगा कि वह उन 5 ओवरों में काफी रन बनाने की कोशिश करेगी जिन्हें अनियमित गेंदबाज फेंकेंगे। दूसरी तरफ गेंदबाजी टीम को यह फायदा होगा कि वह बाकी के 10 ओवर उन गेंदबाजों से करवा सकते हैं जो उनके सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज हैं। हालांकि नियम के लागू होने के कुछ समय बाद कथित अनियमित गेंदबाज भी पहले जैसे नहीं रह जाएंगे क्योंकि फिर वे भी गेंदबाजी में कुछ अच्छा करने के लिए पर्याप्त अभ्यास करेंगे।

 

बदलाव 2

एक नियम यह बने कि बाउंड्री के पार एक तय दूरी तक गेंद का टप्पा लगने पर 6 रन होंगे, जो अभी भी मिलते हैं, लेकिन उस दूरी के बाद जैसे-जैसे छक्के का टप्पा दूर होता जाएगा, रन बढ़ते (7, 8,9 और 10) जाएंगे। उदाहरण के लिए मान लिया कि 80 मीटर की बाउंड्री है। अब गेंद का टप्पा 80 से 85 मीटर के बीच लगा तो 6 रन, लेकिन 85 से 90 मीटर के बीच टप्पा होने पर 7 रन, 90 से 95 मीटर पर 8 रन, 95 से 100 मीटर पर 9 रन और 100 मीटर के पार टप्पा जाने पर 10 रन दिए जाएंगे। बाउड्री 80 मीटर से छोटी है तो उसी के अनुसार नियम बन सकता है।

 

यह नियम खेल के रोमांच को उच्च स्तर पर ले जाने में सफल होगा। ऐसा होने से अच्छी टाइमिंग और ताकत का प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को इसका पुरस्कार भी मिलेगा। यह नियम वन-डे और टेस्ट क्रिकेट में भी होना चाहिए।

बदलाव 3

एक नियम यह होना चाहिए कि बल्लेबाजी करने वाली टीम को प्रत्येक 5 ओवर के अंदर 1 चौका या छक्का लगाना होगा। यदि टीम ऐसा करने में विफल रहती है तो उसके स्कोर से 5 रन घटा दिए जाएंगे। लेकिन यदि टीम 5 ओवर में 5 चौके लगा देती है तो इन पांच चौकों के लिए मिले 20 रन के अलावा टीम को 5 रन और भी मिलेंगे।

इस नियम से खेल में काफी तेजी आएगी और रोमांच भी बढ़ जाएगा। यह नियम वन-डे और टेस्ट क्रिकेट में भी होना चाहिए।

बदलाव 4

एक नियम यह हो कि यदि बल्ले से गेंद का संपर्क होता है और ऐसे 5 संपर्कों के बाद बल्लेबाज एक रन भी नहीं बना पाता है तो उस बल्लेबाज के स्कोर में से हर बार ऐसे 5 निष्क्रिय संपर्कों के बाद 1 रन कम कर दिया जाएगा। इसी के साथ-साथ टीम के योग में से भी 1 रन घटा दिया जाएगा।

हो सकता है कि तब तक बल्लेबाज ने कोई रन ही न बनाया हो। ऐसी स्थिति में केवल टीम के स्कोर से 1 रन कम होगा और बल्लेबाज के स्कोर से रन तब घटेगा जब वह कोई रन बना लेगा। यदि बल्लेबाज गेंद-बल्ले के 5 बार संपर्क के बावजूद शून्य पर आउट होता है तो केवल टीम के स्कोर से 1 रन कम होगा।

 

यह नियम वैसे तो टेस्ट और वन-डे क्रिकेट के लिए बहुत उपयोगी होगा, लेकिन यदि टी-ट्वेंटी में भी लागू हो तो इससे खेल का रोमांच बढ़ेगा।

बदलाव 5

इसी के साथ यह नियम हो कि यदि कोई बल्लेबाज ऊपर बदलाव 4 में बताए गए गेंद-बल्ले के ऐसे निष्क्रिय संपर्कों के जरिये अपने और टीम के 10 रन कम करता है तो वह आउट माना जाएगा। इस प्रकार से आउट हुआ खिलाड़ी तभी दोबारा बल्लेबाजी कर सकेगा, जबकि शेष बचे बल्लेबाज किसी एक ओवर में कम से कम 20 रन बनाएंगे।

निश्चित ही कोई बल्लेबाज इस प्रकार आउट नहीं होना चाहेगा। ऐसे में अब के मुकाबले तेज खेल देखने को मिलेगा। गेंदबाजी करने वाली टीम को बल्लेबाज को आउट करने का एक नया तरीका मिलेगा। इस प्रकार आउट हुए बल्लेबाज को पुनः जीवित करने के लिए बाकी खिलाड़ी एक ओवर में 20 रन बनाने का प्रयास करेंगे तो रोमांच चरम पर होगा।

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अंत में विराट कोहली की उस मांग में दम है कि वाइड या कमर से ऊपर टप्पे वाली नो बॉल के मामले में भी रिव्यू लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। इन दोनों मामलों में मैदानी अंपायरों से काफी गड़बड़ियां हो रही हैं।

एक और विवादास्पद चीज ‘अंपायर कॉल’ है। एलबीडब्लू के मामले में यदि रिव्यू लेने पर गेंद बिना बल्ले को छुए विकेट पर लगती दिख रही हो तो बल्लेबाज को आउट दिया जाना चाहिए, फिर चाहे गेंद का टप्पा कहीं पर भी पड़ा हो और ‘अंपायर कॉल’ कुछ भी हो।

- लव कुमार सिंह

 

 

आईपीएल के मौसम में टीवी हुआ खराब तो एक नई दुनिया से रूबरू हुआ जनाब

पिछले दिनों अपना टेलीविजन सेट खराब हो गया। आईपीएल में चौके-छक्कों की बरसात वाले मौसम में जैसे अकाल सा पड़ गया। दिन में टीवी सेट को बाजार में ठीक कराने ले गया तो मिस्त्री ने कहा कि यह सेट आज नहीं बल्कि कल ठीक होगा। उसकी बात सुनकर दिल बैठ गया। अब शाम को क्रिकेट मैच कैसे देखा जाएगा? शाम होते-होते मन और भी उदास हो गया। बेटा बोला, ‘पापा हॉट स्टार का सब्सक्रिप्शन ले लो।’ लेकिन अपनी जेब इन दिनों कुछ तंग चल रही थी। फिर एक दिन बाद तो टीवी आ ही जाना था, लिहाजा हॉट स्टार का प्लान रद्द हो गया। मैं उदास बैठा ही था कि बेटे ने मोबाइल फोन में कोई यू-ट्यूब चैनल चला दिया जिस पर रेडियो की तरह क्रिकेट की कमेंट्री आ रही थी। सुनकर मेरा दिल उछल पड़ा। बस फिर क्या था, अपनी पूरी शाम और रात यू-ट्यूब चैनल पर क्रिकेट की कमेंट्री सुनते ही अच्छी बीत गई।

मैंने देखा कि यू-ट्यूब पर एक नहीं बल्कि अनेक बंदे चैनल खोलकर और टीवी के सामने बैठकर आईपीएल के मैचों की रनिंग कमेंट्री कर रहे थे। किसी चैनल पर स्क्रीन पर केवल स्कोर बोर्ड था और बैकग्राउंड से कमेंट्री की आवाज आ रही थी। किसी चैनल पर स्कोर बोर्ड और कमेंट्री करने वालों का बोलते हुए चेहरा भी था। किसी चैनल पर एक ही बंदा धाराप्रवाह लगा हुआ था तो किसी चैनल पर दो तो किसी पर तीन-तीन लोग मिलकर कमेंट्री के साथ हंसी-मजाक भी कर रहे थे। किसी चैनल पर कमेंट्री के साथ मैदान की गतिविधियों को एनिमेशन के जरिये दिखाया जा रहा था।

हालांकि सभी बंदों का कमेंट्री का स्तर बहुत अच्छा नहीं था। कोई बंदा लगातार बोले ही जा रहा था और पॉज ही नहीं ले रहा था, जिससे कानों को राहत नहीं मिल रही थी। कोई कमेंटेटर यह कम बता रहा था कि मैदान पर क्या हो रहा है बल्कि उसकी रुचि इस बात में ज्यादा थी कि सुनने वाले उसके वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लाइक करें। कहीं एक से ज्यादा कमेंटेटर थे तो वे आपस में ही हंसी-मजाक में लगे हुए थे। इस सबके बावजूद मैच की ताजा जानकारी सुनने को मिल रही थी और यह अपने लिए काफी था।

मैं सोच रहा था कि टीवी पर लाइव प्रसारण के जमाने में इन्हें कौन सुनता होगा, लेकिन आश्चर्य की बात थी कि हजारों लोग उन्हें सुन रहे थे और उनमें मैं भी शामिल था। सभी कमेंट्री चैनलों पर जबरदस्त लाइक और प्रतिक्रियाएं भी आ रही थीं। कमेंट्री करने वाले बीच-बीच में अपने सुनने वालों की प्रतिक्रियाएं भी ले रहे थे। एक चैनल कह रहा था कि आज के मैच में उसका 10 हजार लाइक का लक्ष्य है तो दूसरा चैनल सुनने वालों से आग्रह कर रहा था कि उसके लाइक को 3 हजार के पार पहुंचा दो।

इन कमेंट्री चैनल पर आने वाली प्रतिक्रियाएं सुनीं और फिर विचार किया तो पाया कि दफ्तरों में रात में काम करने वाले, बसों-ट्रेनों में चलने वाले, सुरक्षा बलों में दूरदराज के क्षेत्रों में तैनात जवान समेत हजारों-लाखों लोग इस रनिंग कमेंट्रीज को विभिन्न चैनलों पर सुन रहे थे। अर्थात टीवी पर लाइव मैच के जमाने में भी रेडियो जैसी कमेंट्री न केवल जारी है बल्कि उसके ग्राहक भी काफी संख्या में हैं। यह देखकर अच्छा लगा कि इससे कई लोग यू-ट्यूब चैनल पर अपनी रोजी-रोटी भी कमा रहे हैं।

अगले दिन टीवी ठीक करने की दुकान पर गया तो उसने फिर से एक दिन का समय मांग लिया। इस प्रकार उस दिन की शाम और रात भी मैच नहीं देख पाया और कमेंट्री सुनकर ही काम चलाना पड़ा। खैर, तीसरे दिन टीवी ठीक होकर आ गया और हम फिर से शाम होते ही उसके सामने जमने लगे, लेकिन दो दिन घर में टीवी न होने से जो अनुभव हुआ वह भी कमाल का था। इस दौरान पता चला कि रनिंग कमेंट्री जिंदा है। टीवी का सजीव प्रसारण उसे खा नहीं पाया है। किसी ने सही कहा है कि ये दुनिया बहुत बड़ी है। सबको सबका हिस्सा देती है।

आगे से यदि आपका टीवी भी खराब हो जाए तो फिकर नॉट। कुछ दिन किसी चैनल पर कमेंट्री सुनिए। जायका बदल जाएगा। और अगर आप क्रिकेट के थोड़े जानकार भी हैं और अपनी बात कहने की क्षमता रखते हैं तो तो शर्तियां कहता हूं कि आपका भी मन कर जाएगा कि क्यों न एक यू-ट्यूब चैनल खोलकर क्रिकेट की कमेंट्री शुरू कर दी जाए। मेरा मन भी कुछ ऐसा ही सोच रहा है। मैच का मैच देखो और कमेंट्री की कमेंट्री करो।

- लव कुमार सिंह  

ऑनलाइन क्लास : कुछ अनूठे अनुभव और कुछ फायदे-नुकसान

 इन दिनों ऑनलाइन कक्षाओं के बड़े चर्चे हैं। इन ऑनलाइन कक्षाओं के भी कई वर्ग हैं। एक वर्ग वह है जिसमें छात्र-छात्राएं भारी फीस भरते हैं और कक्षा में या कंप्यूटर पर ऑनलाइन खूब ध्यान लगाकर पढ़ाई करते हैं, जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते छात्र या बाइजूस जैसी ऑनलाइन कक्षाओं में पढ़ते छात्र। दूसरा वर्ग उन ऑनलाइन कक्षाओं का है जिन्हें हम सरकारी वर्ग भी कह सकते हैं। इनमें छात्र-छात्राएं मामूली सी फीस भरकर किसी कोर्स में प्रवेश लेते हैं और फिर कभी-कभी कक्षाओं में टहलने चले जाते हैं। यहां ऐसे ही वर्ग वाली ऑनलाइन कक्षाओं की झांकी प्रस्तुत की जा रही है।

गेस्ट लेक्चरर के रूप में इन दिनों मैं जो ऑनलाइन कक्षाएं ले रहा हूं वे स्नातक (ग्रेजुएशन) और परास्नातक (पोस्ट ग्रेजुएशन) छात्रों की कक्षाएं हैं। विषय पत्रकारिता है। करीब 3 महीने पढ़ाते हुए हो गए हैं, लेकिन अधिकांश छात्र हैं कि इन वर्चुअल कक्षाओं में आने को तैयार ही नहीं हैं। स्नातक वर्ग में छात्रों की संख्या 6-7 रहती है या कभी-कभी 10 हो जाती है, जबकि परास्नातक में शुरुआत में ही मात्र 3 छात्र थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद यह संख्या 1 रह गई।

ऐसा नहीं है कि ये इन कक्षाओं के छात्र-छात्राएं ऑनलाइन नहीं जुड़े हैं। वे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा आदि पर खूब सक्रिय हैं, लेकिन जैसे वास्तविक कक्षाओं में नहीं आते थे, वैसे ही वर्चुअल कक्षा से जुड़ने से भी परहेज करते हैं। हां, जब परीक्षा का समय नजदीक आता है तो ये सभी छात्र ‘सर-सर’ करते हुए नोट्स के लिए पीछे पड़ जाते हैं।

 

ऑनलाइन कक्षा शुरू होने से पहले संस्थान की ओर से थोड़ा तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया था, लेकिन जब वास्तविक रूप से ऑनलाइन कक्षा लेने का समय आया तो काफी चीजें बदल गईं या बदलनी पड़ीं।

 

एक तो यह हुआ कि जैसे ही छात्र-छात्राएं दिए गए लिंक के अनुसार मुझसे जुड़े तो कानों में इतना ज्यादा शोरगुल सुनाई दिया कि कुछ भी सुनना असंभव हो गया। पता चला कि सभी छात्र-छात्राओं के माइक ओपन थे जिसकी वजह से यह शोर पैदा हो रहा था। सबके माइक बंद कराए गए। सिर्फ मेरा माइक ऑन रहा।

 

इसके बाद कक्षा शुरू होते ही मैंने देखा कि सभी छात्र-छात्राओं ने अपने कैमरे भी बंद कर दिए हैं। उनकी केवल स्टेटस इमेज ही वहां दिखाई दे रही थी। एक-दो दिन तो मैंने जोर देकर कहा कि भई अपना कैमरा ऑन करो और अपने चेहरे तो दिखाओ, लेकिन फिर यह सोचकर मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया क्योंकि मैंने महसूस किया कि लड़कियां इस तरह से क्लोज अप में लगातार अपने चेहरे को देखकर असहज महसूस कर रही थीं।

 

फिर मैं भी यह नहीं देखना चाहता था कि कौन छात्र किस मुद्रा में कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बैठा है, क्योंकि जब एकाध बार देखा तो पाया कि कोई बिस्तर पर पसरा हुआ था तो किसी के घर का पूरा नजारा दिखाई दे रहा था।

 

नतीजतन, अब होता यह है कि कक्षा शुरू होती है, छात्र-छात्राएं जुड़ते हैं। उनके माइक और कैमरे बंद रहते हैं। केवल मेरा माइक और कैमरा खुला रहता है। लेक्चर शुरू होता है। मैं विषय पर बोलता रहता हूं। उन्हें नोट्स लिखाता हूं। वे लिख रहे हैं या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए मैं बीच-बीच में उनसे पूछता भी रहता हूं। हालांकि जो भी कक्षा में मौजूद रहते हैं, वे लिखते हैं क्योंकि कई बार नेटवर्क में गड़बड़ी से जब मेरी आवाज चली जाती है तो वे अपना माइक ओपन करके बताते हैं कि उनका यह पैराग्राफ या वाक्य छूट गया है।

हालांकि कई शिक्षकों ने बताया और स्वयं छात्रों से भी पता चला कि कई छात्र ऑनलाइन जुड़ने के बाद कैमरा और माइक ऑफ कर देते हैं और फिर अपने किसी अन्य काम में जुटे रहते हैं और हाजिरी लगाने के समय फिर हाजिर हो जाते हैं।

 

जर्मनी में मास्टर डिग्री के लिए पढ़ रही मेरी पुत्री ने बताया कि वहां भी स्थिति इससे कोई बहुत अलग नहीं है। पुत्री के अनुसार अगर दोपहर का समय होता है और ऑनलाइन लेक्चर चल रहा होता है तो बिल्कुल नजदीक ही बिस्तर होने के कारण कई बार ऐसा मन करता है कि फोन का माइक और कैमरा तो बंद है ही तो क्यों नहीं कुछ देर बिस्तर पर लेटकर ही लेक्चर सुना जाए।

 

कुल मिलाकर ऑनलाइन कक्षा (उस वर्ग की जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया ) एक प्रकार का एकालाप है, जिसमें अगर मैं अपना कैमरा भी बंद कर दूं तो इस प्रकार का एहसास होता है जैसे मैं कमरे में अकेला स्वयं से बात कर रहा हूं। अपना कैमरा ऑन रखने से मन में यह बात रहती है कि छात्र-छात्राएं मुझे देख रहे हैं, इसलिए मन और तन सचेत रहता है।

 

मैंने यह भी महसूस किया है कि ऑनलाइन क्लास में शिक्षक को वास्तविक कक्षा के मुकाबले ज्यादा बोलना पड़ता है। इसकी एक वजह तो यह है कि ज्यादातर समय केवल शिक्षक ही बोल रहा होता है। दूसरे, शिक्षक को एक ही वाक्य कई-कई बार और धीरे-धीरे बोलना पड़ता है ताकि छात्र उसे ठीक से समझ सकें और नोट भी कर सकें। इस लिहाज से ऑनलाइन क्लास के बाद ऊर्जा कुछ ज्यादा खर्च हुई महसूस होती है।

हां, एक फायदा जरूर है। प्रत्यक्ष यानी क्लासरूम वाली पढ़ाई के दौरान कक्षा में शांति बनाए रखने के लिए शिक्षक को बहुत प्रयास करना पड़ता है। शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिख रहा होता है तो उसकी पीठ पीछे छात्र-छात्राओं में खुसर-पुसर शुरू हो जाती है। वहां पर छात्र-छात्राएं एक-दूसरे से बात किए बिना रह ही नहीं पाते। ऑनलाइन कक्षा में शिक्षक को इसकी टेंशन नहीं होती। वह बड़े मजे से अपनी बात कहता है और पाता है कि उसकी बात के दौरान कहीं किसी प्रकार का व्यवधान नहीं है।

ऑनलाइन कक्षाओं से छात्र-छात्राओं का मोबाइल या कंप्यूटर पर बीतने वाला समय काफी बढ़ गया है। पहले वे पढ़ाई करने के लिए मोबाइल/कप्यूटर पर जाते हैं और इसके बाद अपने मनोरंजन के लिए वहां पर रहते हैं। ध्यान रहे कि वे इस दूसरे काम के लिए पहले से ही मोबाइल/कंप्यूटर पर काफी समय बिताते थे। अगर यह चीज लंबी चलती है तो इससे बच्चों और युवाओं के सामने स्वास्थ्य संबंधी कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

कुल मिलाकर ऑनलाइन कक्षाएं, प्रत्यक्ष कक्षाओं का विकल्प नहीं हैं, लेकिन फिलहाल किया भी क्या जा सकता है? दुष्ट कोरोना ने इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी तो नहीं छोड़ा है।

- लव कुमार सिंह

Tuesday 8 September 2020

क्या आप जानते हैं कि साक्षर किसे माना जाता है? क्या आप जानते हैं कि अमेरिका साक्षरता की दौड़ में काफी पीछे है?

किसी देश की साक्षरता दर यह स्पष्ट करती है कि वह देश कितनी प्रगति कर रहा है, क्योंकि विकास के लिए, जीवन में आगे बढ़ने के लिए, विविध क्षेत्र की समस्याओं, बुराइयों आदि को दूर करने के लिए मनुष्य का शिक्षित होना जरूरी है। आइए देखते हैं कि दुनियाभर में साक्षरता की क्या स्थिति है।

साक्षर कौन माना जाता है?

भारत सरकार द्वारा तय परिभाषा के अनुसार जो भी 7 वर्ष या इससे अधिक आयु का व्यक्ति किसी भी भाषा को समझकर लिख या पढ़ सकता है, उसे साक्षर माना जाता है।

 

सबसे कम साक्षरता वाले देश

दुनिया के 25 सबसे कम साक्षरता वाले देशों में भारत के पांच पड़ोसी देश भी शामिल हैं। ये हैं अफगानिस्तान, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश। इनमें से अफगानिस्तान तो दुनिया के सबसे कम साक्षरता वाले देशों में दूसरे स्थान पर है।

यूनेस्को इंस्टीट्यूट फार स्टेटिक्स के 2015 के आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान में केवल 28.1 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं और विश्व के सबसे कम साक्षर देशों में इसका स्थान दूसरा है। पहले स्थान पर दक्षिण सूडान है जहां पर केवल 27 प्रतिशत आबादी ही साक्षर है। तीसरे, चौथे और पांचवे स्थान पर क्रमशः बर्किन फासो (28.7), नाइजर (28.7) और माली (33.4) का नाम आता है।

सबसे कम साक्षर देशों की सूची में हमारा पड़ोसी भूटान 15वें नंबर पर है, जहां पर 52.8 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। इसके ठीक बाद 16वें नंबर पर पाकिस्तान हैं जहां की साक्षरता दर 54.9 प्रतिशत है। नेपाल का स्थान इस सूची में 21वां है जहां 57.4 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। नेपाल के ठीक बाद बांग्लादेश का स्थान है जहां पर 57.7 प्रतिशत आबादी साक्षर है।

उच्च साक्षरता वाले देश

अगर उच्च साक्षरता की बात करें तो दुनिया के 26 देशों की साक्षरता दर 100 प्रतिशत है। शत-प्रतिशत साक्षरता वाले इन देशों में एंडोरा, फिनलैंड, होली-सी, लिचटेंस्टीन, लक्जमबर्ग, नार्वे, उत्तर कोरिया, लात्विया, एस्टोनिया, लिथुआनिया, अजरबैजान, पोलैंड, क्यूबा, ताजिकिस्तान, जॉर्जिया, आर्मेनिया, उक्रेन, कजाकिस्तान, स्लोवेनिया, बारबाडोस, रशियन फेडरेशन, तुर्कमेनिस्तान, बेलारूस, स्लोवेकिया, पलाऊ, उज्बेकिस्तान शामिल हैं।

करीब 30 देशों की साक्षरता दर 99 प्रतिशत है। इनमें टोंगा, किर्गीस्तान, माल्डोवा, क्रोएशिया, इटली, हंगरी, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, जापाना, मोनाको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, तुवालू, ब्रिटेन, समोआ, एंडीगुआ एंड बारबूडा, त्रिनिडाड एंड टोबैगो, माइक्रोनेशिया, साइप्रस और रोमानिया शामिल हैं।

98 प्रतिशत की साक्षरता वाले देशों में मोंटेनेग्रो, मालदीव्स, बुल्गारिया, मार्शल आइलैंड, बोस्निया एंड हर्जेगोविना, मंगोलिया, उरुग्वे, आस्ट्रिया, अर्जेंटीना, सर्बिया, दक्षिण कोरिया, ग्रेनेडा, इस्राइल, स्पेन शामिल हैं।

कोस्टारिका, सैंट कीट्स एंड नेविस, अल्बानिया और चिली की साक्षरता दर 97 प्रतिशत है। थाइलैंड, कतर, ब्रूनेई, सैंट विंसेंट, सैन मारिनो, सिंगापुर, कुवैत और बहामास में साक्षरता दर 96 प्रतिशत है।

खास बात यह है कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश माने जाने वाले अमेरिका की साक्षरता दर 86 प्रतिशत है और यह इस मामले में दुनिया के अनेक देशों से काफी पीछे है। साक्षरता दर की 197 देशों की सूची में अमेरिका का नंबर 125वां है।

अगर दुनिया की बात करें तो दुनिया की कुल आबादी का 86.3 प्रतिशत साक्षर है।

भारत के दो पड़ोसी देश श्रीलंका और म्यांमार साक्षरता के मामले में बहुत आगे हैं और इनकी साक्षरता दर 92 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

भारत की बात

जहां तक स्वयं भारत की बात है तो भारत की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है। भारत में केरल सबसे साक्षर (93.91 प्रतिशत) राज्य है जबकि बिहार 63.82 प्रतिशत की साक्षरता दर के साथ सबसे नीचे है।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 73 प्रतिशत थी। इसमें पुरुष साक्षरता दर का प्रतिशत 80.9 और महिला साक्षरता दर का प्रतिशत 64.6 है। 2001 के मुकाबले देश की साक्षरता दर में 8.16 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

 

जनगणना 2011 के अनुसार सबसे ज्यादा साक्षरता वाले राज्य

  • केरल-            94 प्रतिशत
  • लक्षद्वीप-      91.8 प्रतिशत
  • मिजोरम-       91.3 प्रतिशत
  • गोवा-             88.7 प्रतिशत
  • त्रिपुरा-            87.2 प्रतिशत

सबसे कम साक्षरता वाले राज्य

  • बिहार-          61.8 प्रतिशत
  • अरुणाचल-    65.4 प्रतिशत
  • राजस्थान-    66.1 प्रतिशत
  • झारखंड-       66.4 प्रतशत
  • आंध्र प्रदेश-    67.0 प्रतिशत

- लव कुमार सिंह

 

 

 

 

 

Sunday 6 September 2020

नक्सलियों की अदालत 'कंगारू कोर्ट' क्यों कहलाती है?

छ्त्तीसगढ़ के बीजापुर जिले से 5 सितंबर 2020 को एक दुखद खबर आई। बीजापुर जिले के बैलाडिला की तराई में बसे गांव पुसनार में नक्सलियों ने 4 सितंबर की सुबह कंगारू कोर्ट या जनअदालत लगाकर गांव के सरपंच के दामाद समेत चार लोगों की हत्या कर दी। क्षेत्र में चल रहे सड़क निर्माण कार्य में इन चारों लोगों के सहयोग करने से नकस्ली नाराज थे। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान नक्सली कंगारू कोर्ट के जरिये सैकड़ों लोगों की हत्या कर चुके हैं। सवाल यह है कि नक्सलियों द्वारा लगाई जाने वाली ऐसी अदालतें ‘कंगारू कोर्ट’ क्यों कहलाती हैं?

दरअसल ‘कंगारू कोर्ट’ उस अदालत को कहते हैं जो किसी क्षेत्र में लागू होने वाले कानून और न्याय के मान्य नियमों की उपेक्षा करके लगाई जाती है। ‘कंगारू कोर्ट’ में किसी प्रकार के नियमों का पालन नहीं किया जाता है और पहले से निर्धारित फैसला ही थोपा जाता है। यह शब्द तब ज्यादा चलन में आया जब 1889 में कैलीफोर्निया में सोने की खुदाई के दौरान वहां हजारों आस्ट्रेलियाई लोगों का जमावड़ा हो गया। ऐसे में वहां हुए विवादों को हल करने के लिए जो कार्रवाइयां चलीं उन्हें ‘कंगारू कोर्ट’ कहा गया।

अब ‘कंगारू कोर्ट’ का अर्थ ऐसी अदालत से लगाया जाता है जिसमें प्रतिवादी यानी अभियुक्त का समर्थन कर रहे साक्ष्यों को जानबूझकर ध्यान में नहीं रखा जाता है यानी कंगारू की तरह साक्ष्य, सच्चाई या हकीकत के ऊपर छलांग लगा दी जाती है। ‘कंगारू कोर्ट’ से यह आशय भी है कि किसी मामले में बिना सोचे-विचारे एक छलांग मारने की तरह तुरंत फैसले पर आ जाना। ‘कंगारू कोर्ट’ का अर्थ कंगारू के पेट में लगी थैली से भी लगाया जाता है जिसका अर्थ है कि अदालत किसी की जेब में है। यह वाक्यांश इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में काफी प्रचलित है।

1940 के दशक में नाजी जर्मनी में, 1930 के दशक में स्टालिन के सोवियत संघ में, 1979 में पोल पोट के कंबोडिया में और 1989 में रोमानिया की सेना ने अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए ‘कंगारू कोर्ट’ का प्रयोग किया।

खेलों में भी प्रयोग

‘कंगारू कोर्ट’ वाक्यांश का प्रयोग खेलों में भी होता है। अमेरिका में बेसबाल में खिलाड़ी यदि कोई गलती करता है, खेल या प्रैक्टिस के लिए देरी से आता है, खेल की सही ड्रेस नहीं पहनता है तो उस पर जुर्माना आदि लगाने वालों को ‘कंगारू कोर्ट’ कहा जाता है।

Friday 4 September 2020

छंटनी और बंदी की बेला में हिंदी के सबसे महंगे अखबार ने नया संस्करण खोल डाला

The country's most expensive Hindi newspaper opened a new edition in the period of layoffs and closure


अखबार 'प्रजातंत्र' के एक मुख्य पृष्ठ की झलकी।

आज के समय में जब हिंदी-अंग्रेजी के सभी छोटे-बड़े अखबारों में छंटनी की बेला है, अनेक संस्थानों में समय पर वेतन न मिलने या वेतन में कटौती की शिकायतें हैं, कई अखबारों के कई संस्करण बंद हो गए हैं और अनेक पुरानी पत्रिकाओं के एक के बाद एक बंद होने की खबरें आ रही हैं, किसी अखबार के नया संस्करण लांच होने की खबर पर विश्वास नहीं हो रहा है। लेकिन यह सच है और हिंदी अखबार 'प्रजातंत्र' का भोपाल संस्करण पिछले दिनों गणेश चतुर्थी पर शुरू हो गया। यह अखबार अक्टूबर 2018 में इंदौर से शुरू हुआ था और इसके बाद इसने अपना दूसरा संस्करण उज्जैन से शुरू किया था।

खास बात यह है कि यह अखबार आपको बाजार में नहीं मिलेगा। यानी यह रोडवेज बस अड्डे, रेलवे स्टेशन या बाजार में किसी स्टाल पर आपको नहीं मिलेगा। इसकी मार्केटिंग का अलग ही फंडा है। यह अखबार केवल उन्हीं लोगों को उपलब्ध होता है जो इसके पहले से ग्राहक बनते हैं। इस अखबार के बारे में मैंने 2018 में एक पोस्ट लिखी थी। पहले आप उसे पढ़ें तो आपको इस अखबार के बारे में काफी जानकारी मिलेगी। नीचे यह पोस्ट दी गई है-

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पत्रकारिता के क्षेत्र में अक्टूबर 2018 में एक बड़ी घटना की शुरुआत हुई हैहालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इस घटना का अंजाम क्या होगा। बड़ी घटना यह है कि इंदौर से पत्रकार हेमंत शर्मा ने उस दौर में एक साथ दो अखबार शुरू किए हैंजिसे अखबारों के लिए संकट का दौर कहा जा रहा है। उस पर तुर्रा यह कि ये अखबार आम पाठक को पढ़ने को नहीं मिलेंगे। इन्हें वही लोग पढ़ सकेंगे जो पहले से वार्षिक शुल्क जमा कर देंगे। हिंदी अखबार के साथ अंग्रेजी का अखबार मुफ्त दिया जाएगा।

यह एक अलग मामला इसलिए भी है कि हिंदी में 'प्रजातंत्रऔर अंग्रेजी में 'फर्स्ट प्रिंटके नाम से अक्टूबर से शुरू किए गए ये अखबार सामान्य तरीके से नहीं निकले हैं। इनके लिए पहले बेहिसाब खर्चा करके भव्य दफ्तर तैयार किया गया है जिसे देखने वाले हिंदी-अंग्रेजी, किसी भी मीडिया हाउस का सबसे उम्दा दफ्तर करार दे रहे हैं।

इस दफ्तर में पत्रकारों के लिए कंप्यूटर नाम की वस्तु नहीं दिखाई देतीबल्कि सभी पत्रकारों को काम करने के लिए लैपटॉप दिए गए हैं। खबरों या स्टोरी के लिए इंदौर-मुंबई से अपने क्षेत्र के बड़े नाम जुटाए गए हैं।

कितने दाम, कितने ग्राहक, कितने पेज?


जब कोई अखबार खुलता है तो दूसरे अखबार तो उसके बारे में कुछ बताते नहीं हैं। उसके बारे में सोशल मीडिया पर ही जानने को मिल पाता है। अपने मुंहफट अंदाज के लिए प्रसिद्ध 'भड़ासवाले यशवंत भी इन अखबारों के लांचिंग समारोह में न्योते गए थे। यशवंत दूसरों की पत्रकारिता की ऐसी-तैसी करते रहते हैंलेकिन इंदौर जाकर वह हेमंत शर्मा के दफ्तर में इतना खो गए कि लांचिंग समारोह पर लंबा-चौड़ा लिखने के बावजूद यह नहीं पूछ पाए कि अखबार का वार्षिक ग्राहक शुल्क क्या है और आप कितने ग्राहकों से शुरुआत कर रहे हैंअखबार में कितने पेज हैंआपका बिजनेस प्लान क्या हैआदि-आदि।

‘ब्लैक एण्ड व्हाइट नाम’ की कंपनी बनाकर इन अखबारों को शुरू करने वाले कंपनी के एमडी हेमंत शर्मा का कहना है कि वे पाठकों के सामने खबरों का ढेर नहीं परोसेंगे। वे चुनिंदा खबरें पढ़वाएंगेलेकिन कायदे से पढ़वाएंगे। अखबार की कॉपी भी वह लाख-दो लाख नहीं चाहते। फिलहाल उनका लक्ष्य दस हजार-पंद्रह हजार का ही है। हेमंत शर्मा चाहते हैं कि ये जो दस-पंद्रह हजार पाठक होंगेवे इस बात पर फक्र करें कि वे ये अखबार पढ़ रहे हैं। 

क्या अखबार को स्टेटस के साथ जोड़ेंगे?


मुझे ऐसा लगता है कि हेमंत शर्मा का दिमाग यहां काम कर रहा है कि अखबार में अगर अलग और रोचक कंटेंट दिया जाए और साथ ही उपभोक्ता में यह एहसास भर दिया जाए कि वह इस भव्य दुकान से कुछ ऐसी चीज ले रहा है जो सामान्य व्यक्ति के पास नहीं है तो अखबार के लिए मुंहमांगे दाम देने वाले काफी पाठक मिल जाएंगे। इनमें अखबार को पढ़ने वाले पाठक तो होंगे हीसाथ ही ऐसे भी होंगे जो इसे केवल अपना स्टेटस दिखाने के लिए लेंगे।

हेमंत शर्मा

आज समाज में ऐसी मानसिकता खूब देखने को मिल रही है। बाजार में ज्यादातर ग्राहक आज उसी दुकान में घुसता है जो बड़ी भी है और भव्य भी है। आजकल लोगों में खरीददारी को लेकर या खाने-पीने को लेकर माल की चर्चा कम होती है और इसकी चर्चा ज्यादा होती है कि कहां से खरीदा या कहां खाया-पीया। माल उन्नीस-बीस चल जाएगालेकिन माल की जगह बढ़िया होनी चाहिए। उस जगह का नाम लेने पर व्यक्ति का स्टेटस कुछ ऊंचा नजर आना चाहिए। 

हेमंत शर्मा यदि आज के दौर की इस मानसिकता को भुनाने में कामयाब हो गए तो निश्चित रूप से उनका अखबार चल जाएगा। अगर वह मकानकारफर्नीचर आदि के बीच अखबार को भी स्टेटस की चीज बनाने में कामयाब हो गए तो अखबार निश्चित रूप से चल जाएगा। आखिर हमने समाज में ऐसे लोग भी देखें हैं जो यह बताने का अवसर ढूंढते हैं कि वे तो अंग्रेजी का अखबार पढ़ते हैं या उनके यहां तो अंग्रेजी का अखबार आता हैफिर भले ही वह उस अखबार को ठीक से पढ़ते भी न हों।

जहां तक पत्रकारिता की बात है तो तमाम आदर्श वाक्यों और वक्तव्यों के बावजूद यह लग रहा है कि इस अखबार में मसालेदार, उच्च जीवनशैली से जुड़ी खबरों पर ज्यादा जोर रहेगा। जो अखबार किसान, मजदूरों और आम आदमी के बीच नहीं जाएगा तो वह उन पर स्टोरी क्यों कर करेगा।

फिर भी, आज जब हम हिंदी के प्रमुख अखबारों दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला आदि के दामों को लेकर पहले पेज पर ‘केवल 2 रुपये में’ जैसी जंग देखते हैं तो इंदौर में किए जा रहे इस प्रयोग पर हैरान होना स्वाभाविक है। इस प्रयोग के परिणामों को देखना बेहद दिलचस्प होगा।

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इस पोस्ट के कुछ दिन बाद पता चला है कि इन दोनों अखबारों की कीमत 10 रुपये है और अग्रिम लिया जाने वाला वार्षिक शुल्क 3600 रुपये है। हिंदी का अखबार ब्रॉड शीट पर 12 पेज का है जबकि अंग्रेजी अखबार टेबलॉयड आकार में 16 पेज का है। कह नहीं सकता कि अखबार का अभी भी दाम यही है या यह बढ़ा-घटा है। मध्य प्रदेश के पत्रकार ही इस बारे में सही जानकारी दे सकते हैं।

....तो क्या हेमंत शर्मा का फार्मूला कामयाब हो गया है? लगता तो ऐसा ही, वरना इस संकट भरे कोरोना काल में क्या कोई लस्त-पस्त अखबार अपना नया संस्करण शुरू कर पाता। यहां बताते चलें कि समाचार4मीडिया की खबर के अनुसार भास्कर समूह से आए धर्मेंद्र पैगवार 'प्रजातंत्र' के भोपाल संस्करण के संपादक बनाए गए हैं। अभी तक वह इस अखबार के लिए ब्यूरो चीफ की भूूमिका निभा रहे थे।

चलिये, जब अखबार का नया संस्करण खुला है तो कुछ पत्रकार साथियों को नौकरी भी जरूर ही मिली होगी। फिलहाल इसके लिए ही खुश हो जाइए।

- लव कुमार सिंह

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