इन दिनों ऑनलाइन कक्षाओं के बड़े चर्चे हैं। इन ऑनलाइन कक्षाओं के भी कई वर्ग हैं। एक वर्ग वह है जिसमें छात्र-छात्राएं भारी फीस भरते हैं और कक्षा में या कंप्यूटर पर ऑनलाइन खूब ध्यान लगाकर पढ़ाई करते हैं, जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते छात्र या बाइजूस जैसी ऑनलाइन कक्षाओं में पढ़ते छात्र। दूसरा वर्ग उन ऑनलाइन कक्षाओं का है जिन्हें हम सरकारी वर्ग भी कह सकते हैं। इनमें छात्र-छात्राएं मामूली सी फीस भरकर किसी कोर्स में प्रवेश लेते हैं और फिर कभी-कभी कक्षाओं में टहलने चले जाते हैं। यहां ऐसे ही वर्ग वाली ऑनलाइन कक्षाओं की झांकी प्रस्तुत की जा रही है।
गेस्ट लेक्चरर के रूप में इन दिनों मैं जो ऑनलाइन कक्षाएं ले रहा हूं वे स्नातक (ग्रेजुएशन) और परास्नातक (पोस्ट ग्रेजुएशन) छात्रों की कक्षाएं हैं। विषय पत्रकारिता है। करीब 3 महीने पढ़ाते हुए हो गए हैं, लेकिन अधिकांश छात्र हैं कि इन वर्चुअल कक्षाओं में आने को तैयार ही नहीं हैं। स्नातक वर्ग में छात्रों की संख्या 6-7 रहती है या कभी-कभी 10 हो जाती है, जबकि परास्नातक में शुरुआत में ही मात्र 3 छात्र थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद यह संख्या 1 रह गई।
ऐसा नहीं है कि ये इन कक्षाओं के छात्र-छात्राएं ऑनलाइन नहीं जुड़े हैं। वे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा आदि पर खूब सक्रिय हैं, लेकिन जैसे वास्तविक कक्षाओं में नहीं आते थे, वैसे ही वर्चुअल कक्षा से जुड़ने से भी परहेज करते हैं। हां, जब परीक्षा का समय नजदीक आता है तो ये सभी छात्र ‘सर-सर’ करते हुए नोट्स के लिए पीछे पड़ जाते हैं।
ऑनलाइन कक्षा शुरू होने से पहले संस्थान की ओर से थोड़ा तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया था, लेकिन जब वास्तविक रूप से ऑनलाइन कक्षा लेने का समय आया तो काफी चीजें बदल गईं या बदलनी पड़ीं।
एक तो यह हुआ कि जैसे ही छात्र-छात्राएं दिए गए लिंक के अनुसार मुझसे जुड़े तो कानों में इतना ज्यादा शोरगुल सुनाई दिया कि कुछ भी सुनना असंभव हो गया। पता चला कि सभी छात्र-छात्राओं के माइक ओपन थे जिसकी वजह से यह शोर पैदा हो रहा था। सबके माइक बंद कराए गए। सिर्फ मेरा माइक ऑन रहा।
इसके बाद कक्षा शुरू होते ही मैंने देखा कि सभी छात्र-छात्राओं ने अपने कैमरे भी बंद कर दिए हैं। उनकी केवल स्टेटस इमेज ही वहां दिखाई दे रही थी। एक-दो दिन तो मैंने जोर देकर कहा कि भई अपना कैमरा ऑन करो और अपने चेहरे तो दिखाओ, लेकिन फिर यह सोचकर मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया क्योंकि मैंने महसूस किया कि लड़कियां इस तरह से क्लोज अप में लगातार अपने चेहरे को देखकर असहज महसूस कर रही थीं।
फिर मैं भी यह नहीं देखना चाहता था कि कौन छात्र किस मुद्रा में कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बैठा है, क्योंकि जब एकाध बार देखा तो पाया कि कोई बिस्तर पर पसरा हुआ था तो किसी के घर का पूरा नजारा दिखाई दे रहा था।
नतीजतन, अब होता यह है कि कक्षा शुरू होती है, छात्र-छात्राएं जुड़ते हैं। उनके माइक और कैमरे बंद रहते हैं। केवल मेरा माइक और कैमरा खुला रहता है। लेक्चर शुरू होता है। मैं विषय पर बोलता रहता हूं। उन्हें नोट्स लिखाता हूं। वे लिख रहे हैं या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए मैं बीच-बीच में उनसे पूछता भी रहता हूं। हालांकि जो भी कक्षा में मौजूद रहते हैं, वे लिखते हैं क्योंकि कई बार नेटवर्क में गड़बड़ी से जब मेरी आवाज चली जाती है तो वे अपना माइक ओपन करके बताते हैं कि उनका यह पैराग्राफ या वाक्य छूट गया है।
हालांकि कई शिक्षकों ने बताया और स्वयं छात्रों से भी पता चला कि कई छात्र ऑनलाइन जुड़ने के बाद कैमरा और माइक ऑफ कर देते हैं और फिर अपने किसी अन्य काम में जुटे रहते हैं और हाजिरी लगाने के समय फिर हाजिर हो जाते हैं।
जर्मनी में मास्टर डिग्री के लिए पढ़ रही मेरी पुत्री ने बताया कि वहां भी स्थिति इससे कोई बहुत अलग नहीं है। पुत्री के अनुसार अगर दोपहर का समय होता है और ऑनलाइन लेक्चर चल रहा होता है तो बिल्कुल नजदीक ही बिस्तर होने के कारण कई बार ऐसा मन करता है कि फोन का माइक और कैमरा तो बंद है ही तो क्यों नहीं कुछ देर बिस्तर पर लेटकर ही लेक्चर सुना जाए।
कुल मिलाकर ऑनलाइन कक्षा (उस वर्ग की जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया ) एक प्रकार का एकालाप है, जिसमें अगर मैं अपना कैमरा भी बंद कर दूं तो इस प्रकार का एहसास होता है जैसे मैं कमरे में अकेला स्वयं से बात कर रहा हूं। अपना कैमरा ऑन रखने से मन में यह बात रहती है कि छात्र-छात्राएं मुझे देख रहे हैं, इसलिए मन और तन सचेत रहता है।
मैंने यह भी महसूस किया है कि ऑनलाइन क्लास में शिक्षक को वास्तविक कक्षा के मुकाबले ज्यादा बोलना पड़ता है। इसकी एक वजह तो यह है कि ज्यादातर समय केवल शिक्षक ही बोल रहा होता है। दूसरे, शिक्षक को एक ही वाक्य कई-कई बार और धीरे-धीरे बोलना पड़ता है ताकि छात्र उसे ठीक से समझ सकें और नोट भी कर सकें। इस लिहाज से ऑनलाइन क्लास के बाद ऊर्जा कुछ ज्यादा खर्च हुई महसूस होती है।
हां, एक फायदा जरूर है। प्रत्यक्ष यानी क्लासरूम वाली पढ़ाई के दौरान कक्षा में शांति बनाए रखने के लिए शिक्षक को बहुत प्रयास करना पड़ता है। शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिख रहा होता है तो उसकी पीठ पीछे छात्र-छात्राओं में खुसर-पुसर शुरू हो जाती है। वहां पर छात्र-छात्राएं एक-दूसरे से बात किए बिना रह ही नहीं पाते। ऑनलाइन कक्षा में शिक्षक को इसकी टेंशन नहीं होती। वह बड़े मजे से अपनी बात कहता है और पाता है कि उसकी बात के दौरान कहीं किसी प्रकार का व्यवधान नहीं है।
ऑनलाइन कक्षाओं से छात्र-छात्राओं का मोबाइल या कंप्यूटर पर बीतने वाला समय काफी बढ़ गया है। पहले वे पढ़ाई करने के लिए मोबाइल/कप्यूटर पर जाते हैं और इसके बाद अपने मनोरंजन के लिए वहां पर रहते हैं। ध्यान रहे कि वे इस दूसरे काम के लिए पहले से ही मोबाइल/कंप्यूटर पर काफी समय बिताते थे। अगर यह चीज लंबी चलती है तो इससे बच्चों और युवाओं के सामने स्वास्थ्य संबंधी कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
कुल मिलाकर ऑनलाइन कक्षाएं, प्रत्यक्ष कक्षाओं का विकल्प नहीं हैं, लेकिन फिलहाल किया भी क्या जा सकता है? दुष्ट कोरोना ने इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी तो नहीं छोड़ा है।
- लव कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment