- टोक्यो ओलंपिक में खिलाड़ियों के लिए की गई है डेढ़ लाख कंडोम की व्यवस्था
- कुछ विशेषज्ञ कहते हैं सेक्स से खेल पर कोई असर नहीं, जबकि कुछ की राय इससे उलट
हर बार जब भी ओलंपिक, एशियाड या कॉमनवेल्थ गेम्स होते हैं तो इस प्रकार की खबरें आती हैं। खिलाड़ियों को मुफ्त में कंडोम बांटने की शुरुआत 1988 के सियोल ओलंपिक से हुई थी। उस साल पहली बार खिलाड़ियों को 8500 कंडोम बांटे गए थे। उद्देश्य बताया गया- एड्स जैसी बीमारियों की रोकथाम। उसके बाद से हर ओलंपिक में ऐसा किया जाने लगा और 2016 में कंडोम की संख्या 4 लाख 50 हजार तक पहुंच गई।
लेकिन इस बार के टोक्यो ओलंपिक (23 जुलाई- 8 अगस्त 2021) कोरोना काल में हो रहे हैं। इंसानों के बीच दो गज की दूरी पर जोर दिया जा रहा है। आयोजकों ने कोरोना के खतरे को देखते हुए शारीरिक दूरी के कड़े नियम बनाए हैं। लेकिन इसी के साथ-साथ करीब 11 हजार खिलाड़ियों के लिए 1 लाख 50 हजार मुफ्त कंडोम की व्यवस्था भी की गई है। अब जापान में चुटकुले चल रहे हैं कि जिनमें पर्याप्त शारीरिक दूरी के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर व्यंग्य बाण छोड़े जा रहे हैं।
ओलंपिक में कंडोम क्यों?
Why condoms in Olympic?
लेकिन इसके बाद तुरंत मन में यह सवाल आता है कि आयोजकों को एसटीडी या अवांछित प्रेगनेंसी का खतरा क्यों होता है? खिलाड़ी ओलंपिक या एशियन गेम्स में खेलने जाते हैं या सेक्स करने? हमारे यहां तो खिलाड़ियों से कहा जाता है कि खेल पर ध्यान दो, ध्यान को भटकने मत दो... तो क्या जब ओलंपिक या कॉमनवेल्त गेम्स में इस कदर सेक्स शामिल रहता है तो खिलाड़ी रिकॉर्ड कैसे बनाते हैं? कैसे पदक जीतते हैं? कैसे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते हैं?
खेल के दौरान सेक्स नुकसानदायक या लाभकारी?
sex during sports is harmful or beneficial?
हालांकि अन्य बहुत से विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं और उनका मानना है कि खेलों के दौरान सेक्स खिलाड़ियों के प्रदर्शन और एक जगह ध्यान लगाने की प्रक्रिया को बाधित करता है। इससे खिलाड़ी का ध्यान भटकता है।
ध्यान भटकने का मामला इस पर भी निर्भर करता है कि खिलाड़ी किस देश का है। यदि खिलाड़ी नार्वे, स्वीडन जैसे देशों का है जहां फ्री सेक्स जैसी अवधारणाएं काम करती हैं तो संभवतः उसका ध्यान ज्यादा नहीं भटकेगा, लेकिन यदि खिलाड़ी भारत जैसे देश का हो तो इस प्रकार की चीजें प्रदर्शन को जरूर प्रभावित करती हैं। भारत में तो हॉकी और क्रिकेट में कई पुरुष खिलाड़ियों की कहानियों प्रचलित हैं कि ऐसी ही चीजों ने उनके खेल करियर को बर्बाद कर दिया।
यह भी बताया गया है कि चूंकि ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे मंचों पर खिलाड़ी शारीरिक स्वास्थ्य और दमखम की दृष्टि से अपने उच्च स्तर पर होते हैं, इसलिए उनका लिबिडो (सेक्स की इच्छा) स्तर बढ़ा हुआ होता है। इस दौरान उन्हें खेलगांव में दस से पंद्रह दिन बाहरी दुनिया से कटकर गुजारने होते हैं। इस दौरान उनकी मुलाकात दुनियाभर के एथलीटों से होती हैं और इनमें से अनेक मुलाकातों का अंत शारीरिक संबंध के रूप में सामने आता है।
यह भी तय होता है कि सभी खिलाड़ी पदक नहीं जीतेंगे। हजारों खिलाड़ी ओलंपिक जैसे आयोजनों के लिए क्वालीफाई तो करते हैं, लेकिन यह उन्हें और उनके देश को भी पता होता है कि उनके लिए ओलंपिक में भाग लेना ही एक उपलब्धि है। ऐसे खिलाड़ियों पर पदक जीतने का ज्यादा दबाव भी नहीं होता है। ऐसे खिलाड़ी मौजमस्ती पर पूरा ध्यान लगाते हैं। बहुत से खिलाड़ियों की स्पर्धा पहले खत्म हो जाती है तो उसके बाद वे इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं।
यह भी तय होता है कि सभी खिलाड़ी पदक नहीं जीतेंगे। हजारों खिलाड़ी ओलंपिक जैसे आयोजनों के लिए क्वालीफाई तो करते हैं, लेकिन यह उन्हें और उनके देश को भी पता होता है कि उनके लिए ओलंपिक में भाग लेना ही एक उपलब्धि है। ऐसे खिलाड़ियों पर पदक जीतने का ज्यादा दबाव भी नहीं होता है। ऐसे खिलाड़ी मौजमस्ती पर पूरा ध्यान लगाते हैं। बहुत से खिलाड़ियों की स्पर्धा पहले खत्म हो जाती है तो उसके बाद वे इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं।
टिंडर डेटिंग एप
Tinder dating app
खिलाड़ी, केवल दूसरे खिलाड़ियों से ही मित्रता नहीं करते बल्कि उन स्वयंसेवकों, स्वयंसेविकाओं से भी संबंध बना लेते हैं जिन्हें उनकी मदद के लिए तैनात किया जाता है। ऐसे वालंटियर की संख्या हजारों में होती है। कुछ खिलाड़ी तो इन वालंटियर के साथ जबरदस्ती करते भी पाए गए हैं।
2012 में एक ओलंपिक तैराक ने खेल चैनल ईएसपीएन को जानकारी दी कि 70 से 75 प्रतिशत ओलंपियन, ओलंपिक के दौरान सेक्स करते हैं। इस तैराक ने यह भी स्वीकार किया कि पिछले ओलंपिक में उनकी एक गर्लफ्रेंड बन गई थी और वह उनकी बहुत बड़ी गलती थी। लेकिन इस बार (लंदन ओलंपिक) वह बहुत सतर्कता के साथ इससे (गर्लफ्रेंड) दूर हैं।
तैराक की यह बात इसलिए अविश्वसनीय नहीं लगती कि जब दिल्ली में 1982 में एशियाड हुए थे तो मैं नौंवी कक्षा में पढ़ता था। मुझे अब भी याद है कि तब मैंने देश के अखबारों में इस प्रकार की कई खबरें पढ़ीं थीं कि एशियाड खत्म होने के बाद दिल्ली स्थित खेलगांव में कंडोम के ढेर लगे हुए थे, जबकि उस समय तक तो आयोजकों की तरफ से मुफ्त कंडोम बांटने की व्यवस्था भी नहीं शुरू हुई थी।
कुल मिलाकर, ओलंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स में निश्चित ही 'खेल' केंद्रबिंदु में रहता है, लेकिन नेपथ्य में 'काम' भी कम नहीं होता है।
- लव कुमार सिंह
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