छ्त्तीसगढ़ के बीजापुर जिले से 5 सितंबर 2020 को एक दुखद खबर आई। बीजापुर जिले के बैलाडिला की तराई में बसे गांव पुसनार में नक्सलियों ने 4 सितंबर की सुबह कंगारू कोर्ट या जनअदालत लगाकर गांव के सरपंच के दामाद समेत चार लोगों की हत्या कर दी। क्षेत्र में चल रहे सड़क निर्माण कार्य में इन चारों लोगों के सहयोग करने से नकस्ली नाराज थे। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान नक्सली कंगारू कोर्ट के जरिये सैकड़ों लोगों की हत्या कर चुके हैं। सवाल यह है कि नक्सलियों द्वारा लगाई जाने वाली ऐसी अदालतें ‘कंगारू कोर्ट’ क्यों कहलाती हैं?
दरअसल ‘कंगारू कोर्ट’ उस अदालत को कहते हैं जो
किसी क्षेत्र में लागू होने वाले कानून और न्याय के मान्य नियमों की उपेक्षा करके
लगाई जाती है। ‘कंगारू कोर्ट’ में किसी प्रकार के नियमों का पालन नहीं किया जाता
है और पहले से निर्धारित फैसला ही थोपा जाता है। यह शब्द तब ज्यादा चलन में आया जब
1889 में कैलीफोर्निया में सोने की खुदाई के दौरान वहां हजारों आस्ट्रेलियाई लोगों
का जमावड़ा हो गया। ऐसे में वहां हुए विवादों को हल करने के लिए जो कार्रवाइयां
चलीं उन्हें ‘कंगारू
कोर्ट’ कहा गया।
अब ‘कंगारू कोर्ट’ का अर्थ ऐसी अदालत
से लगाया जाता है जिसमें प्रतिवादी यानी अभियुक्त का समर्थन कर रहे साक्ष्यों को
जानबूझकर ध्यान में नहीं रखा जाता है यानी कंगारू की तरह साक्ष्य, सच्चाई या हकीकत
के ऊपर छलांग लगा दी जाती है। ‘कंगारू कोर्ट’ से यह आशय भी है कि किसी मामले में
बिना सोचे-विचारे एक छलांग मारने की तरह तुरंत फैसले पर आ जाना। ‘कंगारू कोर्ट’ का
अर्थ कंगारू के पेट में लगी थैली से भी लगाया जाता है जिसका अर्थ है कि अदालत किसी
की जेब में है। यह वाक्यांश इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में
काफी प्रचलित है।
1940 के दशक में नाजी जर्मनी में, 1930
के दशक में स्टालिन के सोवियत संघ में, 1979 में पोल पोट के कंबोडिया में और 1989
में रोमानिया की सेना ने अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए ‘कंगारू कोर्ट’ का
प्रयोग किया।
खेलों में भी प्रयोग
‘कंगारू कोर्ट’ वाक्यांश का प्रयोग
खेलों में भी होता है। अमेरिका में बेसबाल में खिलाड़ी यदि कोई गलती करता है, खेल
या प्रैक्टिस के लिए देरी से आता है, खेल की सही ड्रेस नहीं पहनता है तो उस पर
जुर्माना आदि लगाने वालों को ‘कंगारू कोर्ट’ कहा जाता है।
No comments:
Post a Comment