The country's most expensive Hindi newspaper opened a new edition in the period of layoffs and closure
अखबार 'प्रजातंत्र' के एक मुख्य पृष्ठ की झलकी।
आज के समय में जब हिंदी-अंग्रेजी के सभी छोटे-बड़े अखबारों में छंटनी की बेला है, अनेक संस्थानों में समय पर वेतन न मिलने या वेतन में कटौती की शिकायतें हैं, कई अखबारों के कई संस्करण बंद हो गए हैं और अनेक पुरानी पत्रिकाओं के एक के बाद एक बंद होने की खबरें आ रही हैं, किसी अखबार के नया संस्करण लांच होने की खबर पर विश्वास नहीं हो रहा है। लेकिन यह सच है और हिंदी अखबार 'प्रजातंत्र' का भोपाल संस्करण पिछले दिनों गणेश चतुर्थी पर शुरू हो गया। यह अखबार अक्टूबर 2018 में इंदौर से शुरू हुआ था और इसके बाद इसने अपना दूसरा संस्करण उज्जैन से शुरू किया था।
खास बात यह है कि यह अखबार आपको बाजार में नहीं मिलेगा। यानी यह रोडवेज बस अड्डे, रेलवे स्टेशन या बाजार में किसी स्टाल पर आपको नहीं मिलेगा। इसकी मार्केटिंग का अलग ही फंडा है। यह अखबार केवल उन्हीं लोगों को उपलब्ध होता है जो इसके पहले से ग्राहक बनते हैं। इस अखबार के बारे में मैंने 2018 में एक पोस्ट लिखी थी। पहले आप उसे पढ़ें तो आपको इस अखबार के बारे में काफी जानकारी मिलेगी। नीचे यह पोस्ट दी गई है-
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पत्रकारिता के क्षेत्र में अक्टूबर 2018 में एक बड़ी घटना की शुरुआत हुई है, हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इस घटना का अंजाम क्या होगा। बड़ी घटना यह है कि इंदौर से पत्रकार हेमंत शर्मा ने उस दौर में एक साथ दो अखबार शुरू किए हैं, जिसे अखबारों के लिए संकट का दौर कहा जा रहा है। उस पर तुर्रा यह कि ये अखबार आम पाठक को पढ़ने को नहीं मिलेंगे। इन्हें वही लोग पढ़ सकेंगे जो पहले से वार्षिक शुल्क जमा कर देंगे। हिंदी अखबार के साथ अंग्रेजी का अखबार मुफ्त दिया जाएगा।
यह एक अलग मामला इसलिए भी है कि हिंदी में 'प्रजातंत्र' और अंग्रेजी में 'फर्स्ट प्रिंट' के नाम से 2 अक्टूबर से शुरू किए गए ये अखबार सामान्य तरीके से नहीं निकले हैं। इनके लिए पहले बेहिसाब खर्चा करके भव्य दफ्तर तैयार किया गया है जिसे देखने वाले हिंदी-अंग्रेजी, किसी भी मीडिया हाउस का सबसे उम्दा दफ्तर करार दे रहे हैं।
इस दफ्तर में पत्रकारों के लिए कंप्यूटर नाम की वस्तु नहीं दिखाई देती, बल्कि सभी पत्रकारों को काम करने के लिए लैपटॉप दिए गए हैं। खबरों या स्टोरी के लिए इंदौर-मुंबई से अपने क्षेत्र के बड़े नाम जुटाए गए हैं।
कितने दाम, कितने ग्राहक, कितने पेज?
जब कोई अखबार खुलता है तो दूसरे अखबार तो उसके बारे में कुछ बताते नहीं हैं। उसके बारे में सोशल मीडिया पर ही जानने को मिल पाता है। अपने मुंहफट अंदाज के लिए प्रसिद्ध 'भड़ास' वाले यशवंत भी इन अखबारों के लांचिंग समारोह में न्योते गए थे। यशवंत दूसरों की पत्रकारिता की ऐसी-तैसी करते रहते हैं, लेकिन इंदौर जाकर वह हेमंत शर्मा के दफ्तर में इतना खो गए कि लांचिंग समारोह पर लंबा-चौड़ा लिखने के बावजूद यह नहीं पूछ पाए कि अखबार का वार्षिक ग्राहक शुल्क क्या है और आप कितने ग्राहकों से शुरुआत कर रहे हैं? अखबार में कितने पेज हैं? आपका बिजनेस प्लान क्या है? आदि-आदि।
‘ब्लैक एण्ड व्हाइट नाम’ की कंपनी बनाकर इन अखबारों को शुरू करने वाले कंपनी के एमडी हेमंत शर्मा का कहना है कि वे पाठकों के सामने खबरों का ढेर नहीं परोसेंगे। वे चुनिंदा खबरें पढ़वाएंगे, लेकिन कायदे से पढ़वाएंगे। अखबार की कॉपी भी वह लाख-दो लाख नहीं चाहते। फिलहाल उनका लक्ष्य दस हजार-पंद्रह हजार का ही है। हेमंत शर्मा चाहते हैं कि ये जो दस-पंद्रह हजार पाठक होंगे, वे इस बात पर फक्र करें कि वे ये अखबार पढ़ रहे हैं।
क्या अखबार को स्टेटस के साथ जोड़ेंगे?
मुझे ऐसा लगता है कि हेमंत शर्मा का दिमाग यहां काम कर रहा है कि अखबार में अगर अलग और रोचक कंटेंट दिया जाए और साथ ही उपभोक्ता में यह एहसास भर दिया जाए कि वह इस भव्य दुकान से कुछ ऐसी चीज ले रहा है जो सामान्य व्यक्ति के पास नहीं है तो अखबार के लिए मुंहमांगे दाम देने वाले काफी पाठक मिल जाएंगे। इनमें अखबार को पढ़ने वाले पाठक तो होंगे ही, साथ ही ऐसे भी होंगे जो इसे केवल अपना स्टेटस दिखाने के लिए लेंगे।
आज समाज में ऐसी मानसिकता खूब देखने को मिल रही है। बाजार में ज्यादातर ग्राहक आज उसी दुकान में घुसता है जो बड़ी भी है और भव्य भी है। आजकल लोगों में खरीददारी को लेकर या खाने-पीने को लेकर माल की चर्चा कम होती है और इसकी चर्चा ज्यादा होती है कि कहां से खरीदा या कहां खाया-पीया। माल उन्नीस-बीस चल जाएगा, लेकिन माल की जगह बढ़िया होनी चाहिए। उस जगह का नाम लेने पर व्यक्ति का स्टेटस कुछ ऊंचा नजर आना चाहिए।
हेमंत शर्मा यदि आज के दौर की इस मानसिकता को भुनाने में कामयाब हो गए तो निश्चित रूप से उनका अखबार चल जाएगा। अगर वह मकान, कार, फर्नीचर आदि के बीच अखबार को भी स्टेटस की चीज बनाने में कामयाब हो गए तो अखबार निश्चित रूप से चल जाएगा। आखिर हमने समाज में ऐसे लोग भी देखें हैं जो यह बताने का अवसर ढूंढते हैं कि वे तो अंग्रेजी का अखबार पढ़ते हैं या उनके यहां तो अंग्रेजी का अखबार आता है, फिर भले ही वह उस अखबार को ठीक से पढ़ते भी न हों।
जहां तक पत्रकारिता की बात है तो तमाम आदर्श वाक्यों और वक्तव्यों के बावजूद यह लग रहा है कि इस अखबार में मसालेदार, उच्च जीवनशैली से जुड़ी खबरों पर ज्यादा जोर रहेगा। जो अखबार किसान, मजदूरों और आम आदमी के बीच नहीं जाएगा तो वह उन पर स्टोरी क्यों कर करेगा।
फिर भी, आज जब हम हिंदी के प्रमुख अखबारों दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला आदि के दामों को लेकर पहले पेज पर ‘केवल 2 रुपये में’ जैसी जंग देखते हैं तो इंदौर में किए जा रहे इस प्रयोग पर हैरान होना स्वाभाविक है। इस प्रयोग के परिणामों को देखना बेहद दिलचस्प होगा।
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....तो क्या हेमंत शर्मा का फार्मूला कामयाब हो गया है? लगता तो ऐसा ही, वरना इस संकट भरे कोरोना काल में क्या कोई लस्त-पस्त अखबार अपना नया संस्करण शुरू कर पाता। यहां बताते चलें कि समाचार4मीडिया की खबर के अनुसार भास्कर समूह से आए धर्मेंद्र पैगवार 'प्रजातंत्र' के भोपाल संस्करण के संपादक बनाए गए हैं। अभी तक वह इस अखबार के लिए ब्यूरो चीफ की भूूमिका निभा रहे थे।
चलिये, जब अखबार का नया संस्करण खुला है तो कुछ पत्रकार साथियों को नौकरी भी जरूर ही मिली होगी। फिलहाल इसके लिए ही खुश हो जाइए।
- लव कुमार सिंह
नमस्कार सर,
ReplyDeleteआपको बुक पब्लिश की जानकारी चाहिए थी, मैं आपको पूरी जानकारी दे सकता हूँ, पर आपसे ज्यादा संपर्क न होने के कारण मैं अपना नम्बर दे रहा हूँ, जब मौका मिले फोन जरूर करना । आपको ज्यादा रॉयल्टी मिलेगी । मैं खुद एक राइटर हूँ।
नंबर 7270924493 सचिन शुक्ला
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