Thursday, 3 September 2020

देश के सबसे बड़े शिक्षक और क्लास में 20 मिनट लेट...साथ ही दस मिनट पहले पीरियड खत्म!

Greatest teacher and used to come late in class...Still, used to cast magic on the students




शिक्षक दिवस के मौके पर महान शिक्षाविद् और देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन के बारे में पढ़ते हुए एक रोचक तथ्य की जानकारी मिली।

विकीपीडिया पर बताया गया है कि जब राधाकृष्णन एक शिक्षक थेतब कक्षा में 15-20 मिनट देर से आते थे और पांच-दस मिनट पूर्व ही चले जाते थे। इसके बावजूद वे अपने छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे और उनके पढ़ाने का तरीका छात्रों को बहुत पसंद था। लेट आने और जल्दी पीरियड खत्म करने के बारे में डॉ. राधाकृष्णन का कहना था कि कक्षा में उन्हें जो व्याख्यान देना होता थावह 20 मिनट के पर्याप्त समय में संपन्न हो जाता था। 

बहुत सारे शिक्षक अपने विषय के प्रकांड पंडित होते हैंलेकिन ऐसा देखने में आता है कि जब वे पढ़ाते हैं तो उनकी बातें छात्रों के सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं। वे अपने समझाने के स्तर को छात्रों के स्तर तक नहीं ला पाते हैं। लेकिन डॉ. राधाकृष्णन ऐसे शिक्षकों से उलट थे। उनकी अपने विषय पर गहरी पकड़ थी। वे अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओंआनंददायी अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को मंत्रमुग्ध कर देते थे। वह जिस भी विषय को पढ़ाते थेपहले स्वयं उसका गहन अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वह अपनी शैली से सरलरोचक और प्रिय बना देते थे।

देश के सबसे बड़े शिक्षक के बारे में इस जानकारी के बाद मुझे ध्यान आया अपने उन सहयोगी शिक्षकों का जिन्होंने अलग-अलग समय पर बातचीत के दौरान यह कहा कि एक घंटे का पीरियड बहुत ज्यादा होता है। न केवल शिक्षक के लिए बल्कि छात्रों के लिए भी। एक घंटे के दौरान न केवल छात्र विषय पर अपनी रुचि खो देते हैंबल्कि शिक्षक के लिए भी एक घंटे तक बोलना काफी मुश्किल भरा होता है।उल्लेखनीय है कि देश के कई विश्वविद्यालयों में एक पीरियड एक घंटे का होता है।

इस बारे में मेरा भी यही विचार है कि एक पीरियड के लिए एक घंटे का समय ज्यादा होता है। दरअसल प्रत्येक विषय या किसी विषय का प्रत्येक अध्याय इतना रोचक भी नहीं होता कि उसके बारे में कुछ व्यावहारिक कहानियां सुनाते हुए छात्रों को रोजाना एक घंटे तक बांधे रखा जा सके। कुछ विषय तो बहुत ही शुष्क होते हैं। 

फिर आज का समय भी डॉ. राधाकृष्णन वाला नहीं है। खासकर उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राओं का ध्यान एक जगह केंद्रित करना काफी मुश्किल भरा होता है। आज हालत यह है कि शिक्षक अगर बोर्ड पर लिखने लगता है तो अक्सर छात्र या तो बातचीत में मशगूल हो जाते हैं या फिर उनकी नजरों के केंद्र में अपना मोबाइल होता है। "चुप रहिए", "शांत रहिये", "जिसे नहीं पढ़ना है, वह बाहर चला जाए" जैसे वाक्य आजकल की उच्च शिक्षा की कक्षाओं में अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। 

मुझे याद है कि हमारे कॉलेज के दिनों में एक पीरियड शायद 35 या 40 मिनट का था। अब पता नहीं कैसे यह एक घंटे का कर दिया गया है। मुझे लगता है कि अगर पीरियड 30-35 मिनट का हो तो इससे न केवल पढ़ाने वाले का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है बल्कि पढ़ने वाला भी ज्यादा ध्यान से शिक्षक की बात सुन सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसा करने से एक दिन में ज्यादा विषय भी पढ़ाए जा सकते हैं और छात्रों को अन्य रोचक गतिविधियों में लगाया जा सकता है।

(नोट- यहां कही गई बातें केवल उन सम्मानित शिक्षकों और शिक्षा संस्थानों के लिए हैं जो छात्रों को पढ़ाने में रुचि लेते हैं। जिनकी पढ़ाने में ही रुचि नहीं है, उनके लिए इन बातों का कोई मतलब नहीं है।)

लव कुमार सिंह









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