Wednesday 3 June 2020

विश्व दवा बाजार में गंदा खेल चालू आहे...अब तो लैंसेट जैसी पत्रिकाओं का भी भरोसा नहीं रहा

The dirty game is on in the world medicine market... Now even a magazine like Lancet has no trust



विश्व मेडिकल समुदाय में यह क्या हो रहा है? पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने दो विश्वविख्यात मेडिकल पत्रिकाओं में छपे अध्ययन के आधार पर उस हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के ट्रायल पर रोक लगा दी थी, जिसका भारत सबसे बड़ा उत्पादक देश है और जिस दवा की मांग पिछले दिनों पूरी दुनिया भारत से कर रही थी।

यह सब इसके बावजूद हुआ कि भारत और तुर्की जैसे देशों में इस दवा के अच्छे परिणाम सामने आ रहे थे। अब पता चला है कि दोनों विश्वविख्यात मेडिकल पत्रिकाओं ने एक छोटी और अनजान सी अमेरिकी कंपनी सर्जिसफियर के आधे-अधूरे डाटा के आधार पर यह अध्ययन छाप दिया था। गार्जियन अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार यह पता लगने पर अब डब्लूएचओ ने 3 जून 2020 को घोषणा की है कि वह कोरोना वायरस पर प्रभाव के संबंध में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का ट्रायल जारी रखेगा।

जिन दो नामी मेडिसिन पत्रिकाओं ने अमेरिकी कंपनी सर्जिसफियर के डाटा के आधार पर अध्ययन प्रकाशित किया था उनके नाम ‘लैंसेट’ और ‘द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’। मामले का खुलासा होने पर इन दोनों पत्रिकाओं ने अपने द्वारा प्रकाशित अध्ययन के बारे में expression of concern जारी किया है।

इन दोनों पत्रिकाओं में छपे अध्ययनों में कहा गया था कि कोरोना से संक्रमित लोगों पर प्रयोग करने के मामले में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन एक घातक दवा है और इससे मरीजों की मृत्यु होने की दर ज्यादा है। इन अध्ययनों में सह लेखक के रूप में सर्जिसफियर के चीफ एक्जीक्यूटिव सपन देसाई का नाम भी गया था।

उल्लेखनीय है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के ट्रायल पर डब्लूएचओ की रोक के बाद अनेक देशों ने भी ऐसा ही रुख अपनाया था, लेकिन भारत ने कहा था कि इस दवा को लेकर हमारा अनुभव अलग है, इसलिए हम इसका इस्तेमाल जारी रखेंगे। अब जब डब्लूएचओ ने फिर से ट्रायल शुरू करने की बात कही है तो अन्य देशों ने भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर सकारात्मक रुख अपनाने की घोषणा की है।

गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार अनजान सी सर्जिसफीयर कंपनी में मुठ्ठीभर कर्मचारी काम करते हैं। ये कर्मचारी एक विज्ञान कथा लेखक की तरह लगते हैं और ये अभी तक अपने डाटा या कार्यप्रणाली को पर्याप्त रूप से समझाने में विफल रहे हैं। हालांकि इनका दावा है कि इस अध्ययन से संबंधित डाटा को दुनियाभर के एक हजार से ज्यादा अस्पतालों से वैधानिक रूप से प्राप्त किया गया था।

गार्जियन अखबार ने अपने अध्ययन में पाया कि सर्जिसफीयर कंपनी के कर्मचारियों के पास पर्याप्त डाटा और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि की काफी कमी है। कंपनी में एक कर्मचारी जिसे विज्ञान संपादक कहा जा रहा है वह एक विज्ञान कथा लेखक और फंतासी कलाकार ज्यादा प्रतीत होता है। एक अन्य कर्मचारी जिसे मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव कहा गया है वह एडल्ट मॉडल और इवेंट होस्ट करता है। कंपनी के लिंक्डइन पेज पर 100 से भी कम फॉलोअर हैं। पिछले हफ्ते कंपनी में केवल छह कर्मचारी दर्ज थे।

एक तरफ जहां सर्जिसफीयर यह दावा करती है कि उसके पास विश्व में सबसे बड़ा और सबसे तीव्र हॉस्पिटल डाटाबेस है, लेकिन इसकी ऑनलाइन उपस्थिति न के बराबर है। इसके ट्विटर हैंडल पर 170 से भी कम फॉलोअर हैं। अक्टूबर 2017 से मार्च 2020 तक उस पर कोई पोस्ट नहीं है। कंपनी के सीईओ सपन देसाई का इतिहास काफी संदिग्ध है। 2008 में देसाई ने एक वेबसाइट के लिए क्राउडफंडिग कैंपेन चलाया था, लेकिन जिस उत्पाद के लिए यह कैंपेन चलाया गया, वह कभी बाजार में नहीं आया।

इससे कुल मिलाकर यह सिद्ध होता है कि विश्व के दवा बाजार में गलाकाट प्रतिस्पर्धा चल रही है। वहां भयंकर भ्रष्टाचार व्याप्त है और एक-दूसरे की दवाओं को नीचे गिराने का खेल चल रहा है। जब डब्लूएचओ ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का ट्रायल रोका था तो यह आरोप लगा था कि यह सब इबोला वायरस के लिए बनी दवा रेमेडिसिवियर को आगे करने के लिए किया गया है।

- लव कुमार सिंह

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