Wednesday, 10 June 2020

क्या भारत में 'लोकप्रिय' नेता का जेल जाना दंड नहीं बल्कि इनाम होता है?

Is 'popular' leaders going to jail in India is not a punishment but a reward?


  • जेल ने लालू यादव को वो दे दिया जो वे जेल से बाहर रहकर हासिल नहीं कर पाए
  • The prison gave Lalu yadav what he could not achieve by staying out of jail

                        
                           

कारण
  • अपने देश की जनता बड़ी भावुक और भुलक्कड़ है
  • यह भ्रष्टाचारियों के लिए भी जार-जार रो सकती है
  • और रोते-रोते बाहुबलियों को पटक सकती है


70 के दशक के उत्तरार्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में गृहमंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह की जिद थी कि चाहे कुछ हो जाए, एक बार तो इंदिरा गांधी को तिहाड़ जेल की हवा खिलाकर ही रहूंगा। अच्छी जिद थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ जिद थी। जिद पूरी भी हुई।

लेकिन हुआ क्या? जिद जनता को पता चल गई। इंदिरा गांधी को कस्टडी में देख ‘जनता’ भावुक हो गई। केवल दो साल की छोटी सी अवधि में जनता इमरजेंसी-फिमरजेंसी सब भूल गई। जिनकी जबरदस्ती नसबंदी हुई थी, वे भी भूल गए। ‘नसबंदी के तीन दलाल, संजय-विद्या-बंसीलाल’ जैसे नारे हवा हो गए। इंदिरा गांधी ने मौका लपका और ‘न झुकूंगी, न डरूंगी’ वाले अंदाज में वे देशभर में निकल पड़ीं। 77 में उनसे सत्ता छिनी थी। 80 में वापस मिल गई।

लालटेन चुनाव निशान वाले लालू प्रसाद यादव बिहार को अंधेरे में ले जाने के लिए जाने जाते थे। ‘जंगलराज’ जैसे शब्द उस दौर में चलन में थे। चारा घोटाले में लालू यादव जेल गए। बस फिर क्या था, ‘जनता’ फफक उठी। उसने जेल के दौर में भी लालू को वह दे दिया जो वह जेल से बाहर रहकर भी हासिल नहीं कर पाए थे। भावुक जनता ने उनके शासनकाल की हर गलत बात भुला दी। नरेंद्र मोदी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू को पस्त नहीं कर पाए। लालू ‘किंगमेकर’ बने और दोनों बेटा बने उप-मुख्यमंत्री व मंत्री। बाद में जरूर उन्होंने अपनी ही गलती से सत्ता गंवा दी लेकिन इसके बावजूद लालू की पार्टी बिहार में जम चुकी है। अब तो वह अक्सर बिहार में कांग्रेस को भी भाव देने को तैयार नहीं होती है।

बताते चलें कि इस समय लालू यादव 74 वर्ष के हो चुके हैं और रांची की बिरसा मुंडा जेल में हैं। 11 जून 2021 को उनके समर्थक उनका 74वां जन्मदिन मना रहे हैं। पिछले वर्ष यानी 2020 में इस दौरान जहां राष्ट्रीय जनता दल ने लालू को महानायक दर्शाने वाले पोस्टर बिहार में लगाए तो जनता दल यूनाइटेड ने ऐसी 73 संपत्तियों के पोस्टर लगवा डाले जिनके बारे में दावा किया गया कि ये लालू यादव के कुनबे ने राजनीतिक धौंस से हथियाई हैं। 

लालू यादव करोड़ों रुपये के घोटालों में आरोपित हैं। देवघर कोषागार अवैध निकासी मामले में उन्हें साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गई थी, जबकि भागलपुर कोषागार चारा मामले में पांच साल, चाईबासा कोषागार चारा घोटाले में 5 साल और दुमका कोषागार मामले में उन्हें 14 वर्ष जेल की सजा मिल चुकी है। कई अन्य चारा घोटालों के मामलों की सुनवाई अभी भी अदालतों में चल रही है। भागलपुर मामले में वे जमानत भी पा चुके हैं। साथ ही लालू यादव रेलवे के खिलाफ टेंडर केस, आय से अधिक संपत्ति मामले, कर चोरी और बेनामी संपत्ति जैसे मामलों में भी जांच चल रही है।

बहरहाल, कुछ दूसरे नेताओं की बात करते हैं। 2018 में उत्तर प्रदेश में सीबीआई का नाम सुनकर अखिलेश यादव की बांछें खिल गई थीं। खिलती भी क्यों नहीं। 2017 के विधानसभा चुनाव की हार के बाद कुछ बूस्ट ही नहीं मिल रहा था। जब सीबीआई से नाम जुड़ गया तो खुशी लाजिमी थी। अखिलेश यादव अच्छे व्यक्तित्व के मालिक हैं। देखकर लगता है कि यह आदमी कैसे कुछ गलत कर सकता है। सोचिए ऐसे अखिलेश यादव को अगर भ्रष्टाचार के आरोप में कस्टडी में लिया जाता तो ‘जनता’ तो जैसे जार-जार ही रोने लगेगी।

रॉबर्ट वाड्रा की वैसी स्थिति नहीं है। ऊपर जिन नेताओं का जिक्र किया गया, उनके पीछे समर्थकों का एक बड़ा समूह था और है। इसलिए यदि रॉबर्ट वाड्रा को कोई सजा मिलती तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ठहरिये....अब फर्क पड़ेगा। कुछ विद्वान कह रहे हैं कि प्रियंका वाड्रा कांग्रेस के लिए तो संजीवनी का काम करेंगी ही, लेकिन उनका मुख्य मकसद वाड्रा को बचाना ही है। वह राजनीति में आई ही इसलिए हैं। कांग्रेस के लिए राजनीति में आना होता तो बहुत पहले आ जातीं।

वाड्रा कुछ बोलेंगे तो उलटा पड़ जाएगा, लेकिन जब प्रियंका गांधी बोलेंगी कि ‘न मैं झुकूंगी, न मैं डरूंगी, चाहे मेरे परिवार पर कितना ही अत्याचार क्यों न हो’ तो ‘जनता’ की भावनाओं का ज्वार उमड़ने की पूरी-पूरी संभावना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूरत की एक जनसमूह के बीच अपने दांतों को पीसकर कहा कि उन्हें जेल जाना होगा। वे कुछ भी कर लें, एक बार तो उन्हें जेल जाना ही होगा। लूटा हुआ लौटाना होगा। सही बात है।

लेकिन नरेंद्र मोदी को मेरी सलाह है कि कुछ मामलों में जेल भेजने की जिद न करिए। अगर जिद करिए भी तो उसे जबान पर मत लाइए। अपने देश की जनता बड़ी भावुक और भुलक्कड़ है। ये आपकी ही भक्त नहीं है, कई औरों की भी है। यह भ्रष्टाचारियों के लिए भी जार-जार रो सकती है और रोते-रोते बाहुबलियों को भी पटक सकती है। भारत में ट्रक और बाइक की भिड़ंत में गलती बाइक वाले की होने पर भी पिटाई ट्रक वाले की ही होती है। इंदिरा गांधी और लालू यादव का इतिहास देख लीजिए, इसके बाद कुछ तय करिए।

तो क्या गलत काम करने वालों को जेल नहीं भेजा जाना चाहिए?


जरूर भेजा जाना चाहिए। लेकिन यह काम अदालत को करने दीजिए। बीच में कोई टिप्पणी मत करिए। अगर किसी ने गलत काम किया है तो उसे जेल जाना ही चाहिए, लेकिन कुछ मामले अलग होते हैं। ऐसे मामलों में यदि आरोपी को सहानुभूति का लाभ लेने से रोकना है तो विनीत बन जाइए। विनम्र हो जाइए। दांत पीसने के बजाय हाथ जोड़ लीजिए। संबित पात्रा को कहिए कि सामने वाले को आरोपों के पत्थर मारने हैं तो शहद में लपेटकर मारें। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की जिद करिए, लेकिन ऐसे विशेष मामलों में इस जिद को जबान पर मत लाइए।

एक बार फिर याद दिलाता हूं, अपने देश की जनता बड़ी भावुक और भुलक्कड़ है।


लव कुमार सिंह

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