Saturday, 6 June 2020

क्या 'वुल्फ वॉरियर' रणनीति के कारण ही चीन बार-बार भारत में घुसने की कोशिश कर रहा है?

'Wolf Warriors' film decided China's foreign diplomacy!


 

भारत-चीन सीमा विवाद हल होने का नाम ही नहीं ले रहा है। गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद चीन की तरफ से एक बार फिर 29-30 अगस्त को पैंगोंग त्से झील के दक्षिणी तट की ओर से घुसपैठ का प्रयास किया गया। हालांकि भारतीय सेना ने बड़ी मुस्तैदी से उनकी घेराबंदी की और टैंकों के साथ आए 500 से ज्यादा चीनी सैनिकों को पीठ दिखाकर भागना पड़ा। चीन के साथ विवाद के बीच एक शब्द बार-बार सुनने को मिलता रहा है और यह शब्द है- ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’। ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ को चीन की विदेश नीति का दूसरा नाम कहा जाता है। यह कूटनीति चीन की ही सबसे लोकप्रिय फिल्म ‘वुल्फ वॉरियर्स’ पर आधारित बताई जाती है। इस कूटनीति का मूलमंत्र है- कोई एक हजार मील दूर बैठकर भी यदि चीन का अपमान करता है तो उसे इसका नतीजा भुगतना होगा। इस कूटनीति के मद्देनजर सवाल उठता है कि क्या कोई बड़ा झटका लगे बिना चीन लद्दाख क्षेत्र से नहीं हटेगा?

‘वुल्फ वॉरियर्स’ फिल्म 2015 में आई थी। चीन में इस फिल्म ने 765 मिलियन डॉलर यानी करीब 5 हजार 94 करोड़ रुपये का व्यवसाय किया था। 2017 में इस फिल्म का सीक्वल ‘वुल्फ वॉरियर्स-2’ के नाम से बना था। यह चीनी देशभक्ति पर आधारित फिल्म है जिसे वु जिंग ने निर्देशित किया था और मुख्य भूमिका भी उन्होंने ही निभाई थी। फिल्म में चीन के स्पेशल फोर्स के पूर्व सैनिक जांबाज ली फेंक के किरदार में वु जिंग, अफ्रीका में एक चीनी अभियान के तहत अमेरिका और यूरोप के गुटों को मात देकर चीन का गौरव बढ़ाते हैं। हजारों मील दूर चीन का डंका बजाने वाली यह फिल्म चीन के लोगों को अत्यधिक पसंद आई थी। वैसे तो चीनी लोग पहले से ही ऐसी भावनाएं रखते थे, लेकिन इस फिल्म के बाद उनका उत्साह आसमान छूने लगा। उन्होंने फिल्म के इस संदेश को हाथोंहाथ लिया कि अगर कोई चीन की तरफ आंख उठाकर देखेगा तो फिर चाहे वह कितनी भी दूर क्यों न हो, उसका नुकसान होना तय है। वास्तव में इस फिल्म के बाद चीनी की विदेश नीति ज्यादा ढीठ और आक्रामक हो गई। इसीलिए चीन की विदेश नीति को 'वुल्व वारियर्स डिप्लोमेसी' कहा जाने लगा।

जाहिर है जब किसी देश के लोगों और शासकों में इस तरह की आक्रामक भावनाएं होंगी तो उसका खामियाजा दूर बैठे लोगों से पहले उसके पास में स्थित लोगों को उठाना पड़ेगा। चीन ने जब आक्रामक ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ अपनाई तो हमारे सामने डोकलाम का विवाद सामने आया। चीनी सेना 2017 में डोकलाम में चढ़ आई थी। वो तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने भी कड़ा रुख अपनाया जिसके फलस्वरूप चीन को अपने कदम वापस खींचने पड़े, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि उस समय भारत में चीन के राजदूत लू चाओहुई ने धमकीभरे अंदाज में यहां तक कह दिया था कि इस विवाद (डोकलाम विवाद) को सुलझाने का एक तरीका युद्ध भी है। हालांकि भारत इस धमकी से नहीं डरा और डोकलाम से चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा।

                             

बताया जाता है कि ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ के तहत चीन ने विदेशों में ऐसे राजनयिकों की नियुक्ति की है जो विभिन्न मसलों पर आक्रामक रुख अपनाने में सक्षम हों। राजदूतों से सीधे-सीधे कहा गया है कि वे चीन के हितों के लिए आक्रामक होने से न हिचकें और यदि इसके लिए उन्हें राजनीतिक मर्यादा का अतिक्रमण करना पड़े तो वह भी करें।

कोरोना मामले में भी चीन ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ के तहत ही व्यवहार कर रहा है। कोरोना वायरस के फैलने को लेकर चीन पर तमाम आरोप हैं, लेकिन इन आरोपों को लेकर कोई सफाई देने या नरम पड़ने के बजाय चीन आक्रामक हो गया है। हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा भी कि इस मामले में चीन का जानबूझकर अपमान किया जा रहा है और चीन इसका कड़ा प्रतिकार करेगा। 

इससे चीन के इरादे स्पष्ट हो जाते हैं, लेकिन इतना तो वह भी जानता है कि अब भारत 1962 वाला भारत नहीं है। इसलिए भारत के साथ चीन कभी-कभी मीठी-मीठी बातें भी करता है। इसका कारण भारत का न दबने वाला रुख तो है ही, आर्थिक भी है, क्योंकि चीनी माल के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है। भारत भी यह बात जानता है, इसलिए भारत भी चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा है। यानी चीन यदि आक्रामक होता है तो भारत भी आक्रामक रुख ही अपनाता है और यदि चीन बातचीत की पेशकश करता है तो भारत भी इससे परहेज नहीं करता। 

अब यह भविष्य ही बताएगा कि चीन, भारत के साथ क्या आगे भी ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ पर ही अमल करेगा या कोई और तरीका अपनाएगा क्योंकि पहले डोकलाम में तो उसकी यह कूटनीति पूरी तरह विफल रही थी। लद्दाख में भी अभी तक चीन को मनोवांछित सफलता नहीं मिली है। भारतीय सेना अत्यंत मुस्तैद दिखाई देती है और चीन की किसी भी चाल की काट के लिए तैयार दिखती है।


- लव कुमार सिंह

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"Have the Chinese" Aksai Chin

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