Shilpa Shetty suffers from a rare disease that causes her to become a mother with surrogacy
- कानों
में पड़े नए शब्द
- New words in ears
पिछले दिनों कानों में कुछ नए शब्द सुनाई दिए या यूं कहिए कि आंखों ने कुछ नए शब्द पढ़े। ये शब्द थे एप्ला, लेइरम फी, पर्सोना नान ग्राटा, गार्स्टिन बैस्टियन रोड, जंग-ए-बद्र और जनरल पूर्णचंद्र थापा। इनके बारे में और जानकारी हासिल की तो इनका ब्योरा कुछ यूं रहा-
एप्ला (APLA)
यह एक बीमारी का नाम है जो फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी को हुई थी। इसकी वजह से शिल्पा शेट्टी को बार-बार गर्भपात का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने फरवरी 2020 में सरोगेसी से एक बेटी को जन्म दिया। बेटी का नाम उन्होंने समिशा रखा है। इससे पहले वे एक पुत्र वियान की मां बन चुकी हैं।
शिल्पा शेट्टी ने पिछले दिनों मदर्स डे (10 मई 2020) के अवसर पर मीडिया को इस बारे में जानकारी दी। इस बीमारी का पूरा नाम एंटीफोसफोलिपिड सिंड्रोम है। यह एक ऑटो इम्यून बीमारी है। इसमें हमारा शरीर ऐसी कोशिकाएं बनाता है जो स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करके उन्हें खत्म कर देती हैं। असामान्य कोशिकाएं शरीर में खून के थक्के जमने की प्रक्रिया पर हमला करती हैं जिससे खून में जल्दी-जल्दी थक्के जमने लगते हैं।
खून के थक्के जमने से रक्त प्रवाह में बाधा आती है और इससे गर्भ, किडनी, फेफड़े, दिमाग, हाथ-पैर आदि अंग प्रभावित होते हैं। ये बीमारी किसी को भी हो सकती है लेकिन महिलाओं को ज्यादा होती है और ऐसा होने पर गर्भपात जैसी समस्याएं सामने आती हैं। गर्भपात नहीं होता तो बच्चा अविकसित या मृत भी पैदा हो सकता है। शिल्पा शेट्टी द्वारा एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू के अनुसार वह कई सालों तक गर्भधारण की कोशिश करती रहीं लेकिन इस बीमारी के कारण उन्हें बार-बार गर्भपात हो जाता था।
दरअसल पुत्र वियान को एक भाई या बहन देने की कोशिश में शिल्पा दूसरा बच्चा चाहती थीं। लेकिन बार-बार गर्भपात से उनकी उम्मीद टूट गई। इसके बाद उन्होंने सरोगेसी (किराए की कोख) का रास्ता अपनाया, जिससे उन्हें बेटी समिशा मिली।
शिल्पा शेट्टी को हुई एप्ला सिंड्रोम नाम की समस्या महिला, पुरुष, बच्चों किसी भी में भी हो सकती है लेकिन यह महिलाओं में ही ज्यादातर देखने को मिलती है। इसका कारण हार्मोनल और आनुवंशिक दोनों हो सकता है। महिलाओं के शरीर में मिलने वाले हार्मोन एस्ट्रोजन के कारण भी उनका खून गाढ़ा हो जाता है, जिससे रक्त का थक्का जमने की समस्या पैदा हो जाती है। हालांकि एप्ला सिंड्रोम नाम की यह बीमारी एक दुर्लभ बीमारी है और दुनिया में एक लाख लोगों में से 40-50 लोगों को ही होती है।
लेइरम फी (Leirum Phi)
'लेइरम फी' को यदि मैं गमछा कहूं तो आप तुरंत समझ जाएंगे। जी हां, यह उसी गमछे की बात हो रही है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों राष्ट्र के नाम संबोधन में पहना था। इसके बाद देखते-देखते यह गमछा पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया। देशभर में इसकी मांग बढ़ी तो कई राज्यों में लोग इसे बनाने लगे। कुछ लोग अपने ढंग से बनाने लगे। उत्तर प्रदेश में तो यह 'मोदी गमछे' के नाम से बिक रहा है। यह देखकर इस गमछे के मूल राज्य मणिपुर ने कमर कसी और उसने इस गमछे के जीई टैग (जियोलॉजिकल आइडेंटिफिकेशन टैग) के लिए आवेदन किया है ताकि इस गमछे की मणिपुरी पहचान कायम रहे।
दरअसल यह मणिपुर का पारंपरिक गमछा है। ये वहां शादी के अवसर पर उपहार में दिया जाता है। मणिपुर में 'फी' का अर्थ कपड़ा होता है और 'लेइरम' इस वस्त्र के टाइप का नाम है। वैसे असम भी इस गमछे को अपना बताता है और वह भी जीआई टैग के लिए दावा करने की बात कह रहा है। इसलिए जीआई टैग के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा हो सकती है।
इस गमछे के बारे में नरेंद्र मोदी ने अक्षय कुमार के इंटरव्यू में खुलासा किया था कि यह गमछा उनके लिए बहुउपयोगी है। यह उन्हें दर्द से भी राहत दिलाता है। मोदी ने बताया कि जब लंबी यात्राओं और लंबे समय तक कार्य करने बाद उनके शरीर या पैरों में दर्द होता है तो इस गमछे को पैरों में बांध लेते हैं। इसके बाद वे बांस के डंडे से इसे घुमाते हैं। इससे जकड़न होती है और पैरों की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं। इससे पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि जीआई टैग (जियोलॉजिकल आइडेंटिफिकेशन टैग) यानी ‘भौगोलिक संकेत टैग’ अंतराष्ट्रीय स्तर पर की गई ऐसी व्यवस्था जिससे यह पता चलता है कि किसी उत्पाद की उत्पत्ति किसी खास इलाके में ही हुई है और उस उत्पाद पर उस इलाके का ही अधिकार है। इससे पूरी दुनिया में उस उत्पाद की नकल नहीं की जा सकती है। जीआई टैग मिलने से वह उत्पाद इस क्षेत्र का विश्व स्तरीय ब्रांड बन जाता है। भारत में जीआई टैग प्रदान करने का काम चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा किया जाता है।
पर्सोना नॉन ग्राटा (Persona Non Grata)
इस वाक्यांश का अर्थ होता है अवांछित। यह तब पढ़ने को मिला जब 31 मई को भारत ने नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के दो अफसरों को जासूसी के आरोप में पर्सोना नॉन ग्राटा घोषित कर दिया और उन्हें भारत से निकल जाने का आदेश दिया।
गार्स्टिन बैस्टियन रोड (Garstin Bastion Road)
दिल्ली में एक रोड के लिए यदि मैं गार्स्टिन बैस्टियन रोड कहूं तो आप नहीं समझ पाएंगे, लेकिन जीबी रोड कहूं तो आप तुरंत समझ जाओगे। दिल्ली में यह अजमेरी गेट से लाहौरी गेट तक करीब एक किलोमीटर से अधिक की दूरी में फैली रोड है जिसे जीबी रोड या गार्स्टिन बैस्टियन रोड कहते हैं। यह दिल्ली का रेड लाइट एरिया है जहां 4 हजार से ज्यादा सेक्स वर्कर्स रहती हैं। कोरोना संकट के इस दौर में जब मीडिया ने इस रोड का हाल लिखा तो पता चला कि जीबी का मतलब गार्स्टिन बैस्टियन है। बताया जाता है कि पहले दिल्ली में पांच वेश्यालय थे। गार्स्टिन बैस्टियन नाम के ब्रिटिश कमिश्नर ने इन सभी को एक रेड लाइट एरिया में समाहित कर दिया। इसीलिए इस रोड का नाम उनके नाम पर रखा गया।
जंग-ए-बदर (Jung-e-Badr)
जब पुलवामा में 28 मई को 50 किलो विस्फोटक पकड़ा गया तो पुलिस के
खुलासे में बताया गया कि आतंकवादियों की जंग-ए-बदर के दिन यह हमला करने की योजना
थी। जंग-ए-बदर 17वें रोजे के दिन लड़ी गई इस्लाम की पहली जंग कही जाती है। इस जंग
में पैगंबर भी लड़े थे इसलिए 17वें रोजे को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह जंग
सऊदी अरब में मदीना शहर से 200 किमी. दूर स्थित बदर नामक क्षेत्र में 624 ईसवीं
में लड़ी गई थी।
जनरल पूर्णचंद्र थापा (General Purnachandra Thapa)
ये नेपाल की सेना के मुखिया हैं। इनका नाम पहली बार तब पढ़ने को मिला जब
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नक्शा विवाद में थापा से भारत के विरोध
में बयान देने के लिए कहा, लेकिन थापा ने इनकार कर दिया। थापा ने स्पष्ट किया कि वे भारत के भी
ऑनरेरी जनरल हैं, इसलिए वे भारत के जनरल नरवने के खिलाफ
कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। उल्लेखनीय है कि नेपाल के जनरल भारत के और भारत के जनरल
नेपाल के ऑनरेरी जनरल होते हैं।
- लव कुमार सिंह
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