Tuesday 25 February 2020

दंगा नियंत्रण का सबसे प्रभावी उपाय

How to control the riot?

The most effective measures of riot control



(फरवरी 2020 में यह पोस्ट तब लिखी गई थी जब दिल्ली में दंगे हुए थे।)

दंगा नियंत्रण का एक टिप्स हमसे भी ले लीजिए सर।
तुम कौन?
मैं मेरठ का निवासी।
“तो इससे क्या? सभी कहीं न कहीं के निवासी हैं?
फर्क है। दंगों की बात पूछनी है तो मेरठ वालों से पूछिए। अनुभव ने हमें ज्ञानी बना दिया है।
कहो...

बस इतनी सी बात कहनी है सर कि ज्यादातर मामलों में पुलिस आधा दंगा ही रोक सकती है, बाकी आधा काम समाज के प्रतिष्ठित, प्रभावशाली और सम्मानित लोग करते हैं। जहां भी दंगा हो रहा हो, आप वहां के विधायक, पूर्व विधायक, पार्षद, मौलाना, काजी आदि को बुलाइए। जो आपने शांति समितियां बना रखी हैं, उनके कर्ता-धर्ताओं को बुलाइए और भीड़ को समझाने के दौरान उन्हें अपने साथ रखिए। उन्हें घर में मत बैठने दीजिए। उनके साथ 'साथ जिएंगे, साथ मरेंगे' जैसा भाव रखिए। आप सोच भी नहीं सकते, दंगा या कोई भी बवाल रोकने में आपको बहुत मदद मिलेगी। नेता और समाज का प्रभावशाली व्यक्ति इस तरह की भूमिका मिलने पर लोगों को शांत करने में अपनी जान लगा देगा। क्या कहा आपने दिल्ली में शांति समितियां ही नहीं बनाई हैं? ऐसी लापरवाही मत करिए सर। इन्हें जरूर बनाइए।

अमूमन जिन जनप्रतिनिधियों, समाज के प्रभावशाली लोगों के मन में खोट नहीं होगा तो वे मौके पर जरूर आएंगे। कई तो बुलाने के लिए आपका अहसान मानेंगे, क्योंकि इससे उनकी छवि चमकती है। अगले दिन अखबारों में छपता है कि फलाने ने लोगों को शांत किया तब जाकर बवाल थमा। कई बार तो बवाल भी इसीलिए होता है कि आप नेताजी को पूछते नहीं हैं। 

जो नहीं आते उनसे साफ कह दीजिए कि आगे से थाने, दफ्तर में उनकी आवभगत बंद। उनकी सिफारिश पर ध्यान दिया जाना बंद। और उनके नहीं आने से आपको यह भी पता चल जाएगा कि स्थिति कितनी गंभीर है। इससे आपको कर्फ्यू, देखते ही गोली मारने का आदेश जैसे फैसले लेने में आसानी होगी। मैं तो कहता हूं कि आपको कपिल मिश्रा को भी बुलाना चाहिए था। आप उनसे कहते कि आइए और अपने लोगों को समझाइए, अब आप घर में नहीं बैठ सकते। इसी तरह यदि आप आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन को उसके घर में न बैठने देते तो कई लोग मरने से बचाए जा सकते थे।

मेरठ में पिछले दिसंबर में सीएए के खिलाफ बवाल हुआ तो मेरठ के अधिकारी बवाल पर नियंत्रण पाने के साथ ही समाज के प्रभावशाली लोगों के फोन मिला रहे थे। ज्यादातर के फोन बंद मिले। बवाल नहीं रुका। यह तभी रुका जब इन खलीफाओं के फोन ऑन हुए और ये शांति स्थापना के लिए सक्रिय हुए। इसीलिए दिल्ली में पुलिस किसी के भी अंडर हो, आम आदमी पार्टी व भाजपा के विधायकों, सांसदों, पूर्व विधायकों, पार्षद, मौलाना, मौलवियों आदि को पुलिस के साथ होना चाहिए था या पुलिस को इन्हें अपने साथ लेना चाहिए था। लेकिन सैकड़ों वीडियो फुटेज में दंगाई तो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन जनप्रतिनिधि गायब हैं। इसी के साथ 24 फरवरी को गृहमंत्री अमित शाह को भी अहमदाबाद के बजाय पूरे समय दिल्ली में ही होना चाहिए था।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि दंगाग्रस्त क्षेत्र के किसी सांसद, विधायक, पार्षद और नामदार व्यक्ति को घर में न रहने दें, दंगा रोकने में बहुत मदद मिलेगी।

- लव कुमार सिंह

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