Say 'Harshkhor Firing', not 'Harsh Firing'
खुशी मिली इतनी, बस
दारू और मिल जाए
ताकि पलक बंद कर
लूं, जब पिस्टल से गोली जाए
पड़ जाए रंग में
भंग, हमसे नहीं मतलब
गोली चलाएंगे, भेजा उड़ाएंगे, फिर चाहे जेल हो जाए...
आजकल शादियों के
मौकों पर कुछ लोग ऐसी ही भावना के साथ शामिल होते हैं और सारी खुशियों को मातम में
बदल डालते हैं। कुछ लोगों ने शराब को खुशी का पर्याय बना लिया है। वो नहीं मिली तो
समझो जश्न ही नहीं मना।
शादियों में हो रही
हर्ष फायरिंग और उससे हो रही मौतों के मद्देनजर अब मीडिया को इसे ‘हर्ष फायरिंग’
के बजाय ‘हर्षखोर फायरिंग’ नाम देना चाहिए। हो सकता है कि बुरा नाम सुनकर ही लोगों
को कुछ अक्ल आ जाए।
इसे ‘हर्ष फायरिंग’ नहीं ‘हर्षखोरी फायरिंग’ कहिए
क्योंकि गोली चलेगी तो
हर्ष को मिटना ही है
फिर चाहे इंसान के
तन में धंसे या परिंदे के
किसी न किसी के घर
तो मातम मनना ही है।
पुलिस-प्रशासन की तरफ से सख्ती के तमाम दावों के बावजूद शादियों में हर्षखोर फायरिंग की घटनाएं बढ़ती जा
रही हैं। 2020 में अकेले मेरठ जिले में छह महीने में छह घटनाएं हुईं, जिनमें
या तो लोग मारे गए हैं या बुरी तरह घायल हुए हैं। खुशी की जगह मातम ने ले ली वो
अलग। जीवनभर के लिए दाग बन जाती हैं ऐसी घटनाएं क्योंकि शादी का मौका इतना बड़ा मौका
होता है जो किसी को जिंदगीभर नहीं भूलता। और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 2021 में अभी बीते शादियों के सीजन में हर्षखोर फायरिंग की कई घटनाएं हो चुकी हैं।
और देखिए साहब, किसी
को बुरा लगे तो लगे, लेकिन आप तय कीजिए कि अपने घर में खुशी के किसी आयोजन में
शराब का इंतजाम नहीं करेंगे। कोई स्टेटस की बात नहीं है साहब। अच्छा बताइए जब आपके किसी आयोजन में इस प्रकार की कोई वारदात हो जाती है जिसमें कोई मर जाता है या बुरी
तरह घायल हो जाता है तो क्या आपका स्टेटस बढ़ता है? नहीं ना? तो खुशी मनाइए, दारू
पिलाकर अपनी खुशियों को पलीता मत लगाइए। ना ही किसी आयोजन में पिस्टल, बंदूक को
अंटी या कंधे पर लेकर जाइए। ये सब झूठी शान है साहब। आजकल इसमें कुछ नहीं धरा।
भगवान के लिए ये सब छोड़ दीजिए।
छह महीने में अकेले मेरठ जिले का हाल
- लव कुमार सिंह
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