Saturday 15 February 2020

मनोज मुंतशिर ने अवार्ड फंक्शनों को गुडबाय कहा- जौहरी अंधा हो तो हीरे को स्वयं को दोष नहीं देना चाहिए

Manoj Muntashir said goodbye to award functions - if jeweler is blind then diamond should not blame itself





अपने पसंदीदा गीतकारों में से एक मनोज मुंतशिर का प्रसिद्ध गाना ‘तेरी मिट्टी..’ (फिल्म केसरी) फिल्मफेयर पुरस्कार 2020 में ‘अपना टाइम आएगा’ (फिल्म गली बॉय) गाने से पिछड़ गया। इससे मनोज के दिल को बहुत ज्यादा ठेस लगी है और उन्होंने मरते दम तक अवार्ड समारोहों से दूरी बनाने का फैसला लिया है। मनोज मुंतशिर ने अपने ट्विटर हैंडल से लिखा है-



मनोज मुंतशिर बेहद भावुक इंसान हैं। हमने ‘इंडियन आइडल’ के एक एपीसोड में उन्हें ‘मां’ के ऊपर शो के प्रतिभागियों द्वारा गाए गए गीतों पर रोते देखा था। लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में इतनी ज्यादा भावुकता ठीक नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री एक बाजार है और इसमें होने वाले अवार्ड फंक्शन भी इसी बाजार का हिस्सा हैं। फिल्मफेयर अवार्ड भी इसी बाजार का हिस्सा है। मनोज को जानना चाहिए कि बाजार में फैसला कैसे होता है। 

सभी फिल्मी अवार्ड फंक्शन में हम देखते हैं कि जिन अभिनेता या अभिनेत्रियों को पुरस्कार मिलता है, उनका स्टेज परफॉर्मेंस जरूर होता है। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि जिस अभिनेता या अभिनेत्री का स्टेज परफॉर्मेंस होता है उसे कोई न कोई पुरस्कार जरूर मिलता है। वह समारोह से खाली हाथ नहीं जाता है। तो अवार्ड फंक्शन बाजार, फिल्मी दुनिया और कलाकारों के बीच एक गठबंधन से नजर आते हैं। इस गठबंधन में मनोज मुंतशिर को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि यहां फैसला हमेशा मेरिट पर ही होगा।

फिल्मी दुनिया में यह पहली बार नहीं हुआ है। अनेक बार अच्छे गीत, अच्छी फिल्में, अच्छा अभिनय अपने से कमकर काम से पिछड़ता देखा गया है। यह सिलसिला बहुत पुराना है।

मेरा मानना है कि मनोज मुंतशिर को ‘तेरी मिट्टी’ या अपने अन्य अच्छे गानों को फिल्मफेयर अवार्ड जैसे फंक्शन के पैमाने पर तोलना ही नहीं चाहिए। उन्हें सोचना चाहिए कि उनके स्तर में कोई कमी नहीं थी, बल्कि कमी उस मंच में ही थी जहां उनके गाने पर कोई फैसला लिया गया। 

हमने देखा है कि कवि और शायर श्रोताओं के हिसाब से अपनी शायरी का स्तर रखते हैं। सड़कछाप श्रोताओं के सामने वे अपनी गंभीर रचनाएं नहीं सुनाते। गंभीर श्रोताओं के सामने वे कुछ हल्का सुनाने से बचते हैं। मान लीजिए कि किसी मेले के भीड़ भरे आम से मुशायरे में  मुनव्वर राणा या राहत इंदौरी के किसी उम्दा शेर पर वाह-वाह नहीं हुई तो इसमें राहत इंदौरी की गलती नहीं है। वैसे गलती दर्शकों की भी नहीं है, क्योंकि दर्शक उस शेर को समझने के काबिल ही नहीं थे। निश्चित ही शायर या कवि को दुख होगा लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है।

हां अवार्ड फंक्शन के बहिष्कार का फैसला मनोज मुंतशिर का अपना फैसला है। हमें इस फैसले का सम्मान करना चाहिए। वे यदि सोच-विचार के बाद अपना फैसला बदलते हैं तो उसमें भी कुछ गलत नहीं होगा। बस मनोज ये न कहें कि वे ‘तेरी मिट्टी’ से अच्छा नहीं लिख सकते। ऐसा मान लेने से तो गीतकार खत्म हो जाएगा। हमारी शुभकामनाएं हैं कि मनोज पूरे जोश से लिखें और इससे भी अच्छा लिखें।

- लव कुमार सिंह

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