Even when there was no corona, the bodies have been buried in the same way on the Ganges Ghat
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आप आज के मीडिया को कितना भी कोसिए, लेकिन मुझे आज के मीडिया की केवल और केवल एक बात बहुत अच्छी लगती है और वो यह कि झूठ कोई सा भी पक्ष बोले, दावा कोई सा भी खेमा करे, षड्यंत्र किसी की भी तरफ से हो, असली बात बहुत जल्द दुनिया के सामने आ जाती है। बेशक मीडिया खेमों में बंटा है, लेकिन इसका एक फायदा यह हुआ है कि झूठ ज्यादा देर तक टिक नहीं पाता। मीडिया का एक वर्ग कुछ दावा करता है तो दूसरा उस दावे की पड़ताल में जुट जाता है और यदि बात झूठी होती है तो तुरंत उसे तथ्यों के साथ परोस देता है। जब मीडिया कथित रूप से तटस्थ था, तब ऐसा अमूमन देखने को नहीं मिलता था।
हां, यह जरूर है कि इसके लिए आपको पाठक, दर्शक के रूप में थोड़ी मेहनत जरूर करनी होती है। आपको दोनों तरह के चैनल देखने होते हैं और दोनों तरह की वेबसाइट्स पर नजर पर नजर डालनी होती हैं। साथ ही अखबारों पर भी नजर बनाना जरूरी होता है।
अब देखिए ना, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में गंगा के किनारे शवों को दफनाने के बड़े-बड़े फोटो छापे गए। इस संबंध में क्या-क्या नहीं कहा गया, कैसी-कैसी गालियां दी गईं। लेकिन अब पता चल रहा है कि प्रयागराज में तो गंगा के किनारे के कुछ समाजों में शवों को इसी तरह दफनाने की बहुत परंपरा है। दैनिक जागरण में तो 2018 की एक तस्वीर भी आ गई है जो लगभग वैसी ही है, जैसी कोरोना के इस वर्तमान काल में दिखाई जा रही है। यानी जब कोरोना नहीं था, तब भी एक विशेष क्षेत्र में गंगा के किनारे का यही हाल था।
नीचे दैनिक जागरण की खबर का प्रयागराज से प्रकाशित एक खबर का चित्र है, जो सारी स्थिति को स्पष्ट कर रहा है।
प्रस्तुति- लव कुमार सिंह
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