Monday 10 May 2021

दिल्ली में ऑक्सीजन का संकट क्यों हुआ और मुंबई में क्यों नहीं?

Why was there an oxygen crisis in Delhi and not in Mumbai?


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पहली कड़ी....जो सफल है, उसकी बात सुननी चाहिए

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कोरोना के खिलाफ जानदार लड़ाई का श्रेय मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कमिश्नर इकबाल सिंह चहल और उनकी टीम को दिया जा रहा है। हालांकि इस सफलता से पहले वे काफी समय तक पूरे देश के लिए हंसी का पात्र भी बने। लेकिन उन्होंने सीखा और काम किया। इसलिए हमें, नेताओं को, जिलों की कमान संभाल रहे अधिकारियों को और डॉक्टरों को भी जानना चाहिए कि चहल और उनकी टीम ने यह काम कैसे किया और उनका मॉडल क्या है? यह सब चहल ने एक अंग्रेजी दैनिक के साथ बातचीत में कहा है। यहां कुछ कड़ियों में इस बातचीत का सार प्रस्तुत है... (इस कड़ी का विषय है- दिल्ली में ऑक्सीजन की किल्लत क्यों और मुंबई में क्यों नहीं? इससे यह भी पता चलता है कि हर जगह ऑक्सीजन की मारामारी क्यों हो रही है?)



हाई-फ्लो नेजल ऑक्सीजन देना ऑक्सीजनखोरी है

इकबाल सिंह चहल के अनुसार ऑक्सीजन प्रबंधन में पांच चीजों का ध्यान रखना है-
पहला
स्टॉक की उपलब्धता और सुनिश्चित आपूर्ति। जब टैंकर उत्पादन इकाई से निकलता है तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि वह कहां जा रहा है और कौन टैंकर की कस्टडी लेगा। (दिल्ली सरकार के अधिकारी यह व्यवस्था नहीं कर पाए।)
दूसरा
दबाव बढ़ने पर अस्पतालों पर बेड बढ़ाने का दबाव मत बढ़ाइए, क्योंकि अस्पताल में लगे ऑक्सीजन टैंक की एक निश्चित क्षमता होती है और 24 घंटे में टैंकों को भरने की व्यवस्था हो पाती है। यह एक सबसे बड़ा कारण है जिससे इतनी ज्यादा एसओएस कॉल आती हैं। चहल ने दिल्ली के अधिकारियों के साथ बैठक में कहा कि यदि आप मुंबई की तरह बेड बढ़ाना चाहते हैं तो अस्पतालों पर दबाव मत बनाइए। इसके बजाय उच्च ऑक्सीजन क्षमता वाले जंबो कोविड सेंटर बनाइए। उनमें बेड बढ़ाइए। मुंबई में 9000 बेड वाले सात जंबो सेंटर बने हैं और चार जल्दी बनने जा रहे हैं। (दिल्ली में यही हुआ। अस्पतालों पर बेड बढ़ाने का दबाव बढ़ा, लेकिन ऑक्सीजन टैंक तो वहीं था। दिक्कत आई, मरीजों की जान गई और बड़े अस्पतालों ने कोर्ट की शरण ली।)
तीसरा
ऑक्सीजन की लीकेज एक समस्या है। इसलिए आपके पास इमरजेंसी स्टॉक होना चाहिए। मुंबई में ऐसे छह इमरजेंसी प्वाइंट बने हैं, जो अलग-अलग वार्डों में इमरजेंसी मांग को पूरा करते हैं। इन प्वाइंट पर 50 एमटी गैस हर समय रिजर्व रखी जाती है। (दिल्ली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिखी)
चौथा
मुंबई में ऑक्सीजन खपत के वास्ते डॉक्टरों की शीर्ष टीम से डॉक्टरों के लिए प्रोटोकाल बनाया गया और मुंबई के सभी 176 अस्पतालों को दिया गया। इसमें कहा गया कि 94 के बाद सेचुरेशन प्वाइंट मैंटेन नहीं करना चाहिए। यानी 97-98 के सैचुरेशन की जरूरत नहीं है। कहने का अर्थ है कि अस्पतालों को ऑक्सीजन किफायती ढंग से खर्च करनी थी। जब ऑक्सीजन का लेवल 94 आ गया तो उन्हें देखना चाहिए कि कहीं गैस की बरबादी तो नहीं हो रही है।
पांचवां
हाई-फ्लो नेजल ऑक्सीजन देना एक प्रकार से शराबखोरी जैसा काम है। हम इसे ऑक्सीजनखोरी का नाम दे सकते हैं। यदि ऑक्सीजन उपलब्ध है तो यह हर किसी को आंख मूंदकर नहीं देनी चाहिए। यह अंतिम विकल्प के रूप में इस्तेमाल होनी चाहिए। अस्पतालों से कहा गया कि ऑक्सीजन की खपत का दैनिक ऑडिट करिए और इसकी खपत को 5 प्रतिशत तक कम करने का प्रयास करिए। दिल्ली सरकार ने चहल के साथ बातचीत में स्वीकारा किया कि सभी मरीजों को हाई-फ्लो नेजल ऑक्सीजन देना एक तरह से ऑक्सीजन की बर्बादी है। (दिल्ली में शुरू से ही ऑक्सीजन का ऑडिट हो जाता तो ऑक्सीजन की ऐसी मारामारी नहीं होती और अनेक लोगों की जान बच सकती थी।)

जारी......

प्रस्तुति- लव कुमार सिंह

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