Saturday 8 May 2021

कोरोना : समय और संख्या से बहुत कुछ बदल रहा है

Corona : Lot of Changes are seeing due to time and number


मास्क से मोहब्बत बनाए रखना....एक बार सुनें

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पिछले साल फरवरी में जब चीन में एक दिन में एक हजार मौतों की खबर आ रही थी तो कंप्यूटर पर उस खबर को पढ़ते हुए ही शरीर में झुरझुरी पैदा हो गई थी। फिर इटली में रोज सैकड़ों मौतों पर रोंगटे खड़े हुए थे। आज सहनशक्ति कहिए या संवेदनहीनता, हालत यह है कि अपने देश में 4000 से ज्यादा मौतों पर अत्यंत दुख तो हो रहा है, लेकिन फिर भी शरीर और दिमाग वैसी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, जैसी चीन या इटली की खबरें पढ़कर हुई थी। सब कुछ भावशून्य सा लग रहा है।

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पिछले साल मोहल्ले-मोहल्ले रस्सियों से बंधी बांसों की बल्लियां बहुत देखीं। इस बार संख्या इतनी ज्यादा है कि घर की दीवार से लगे पड़ोस में एक कोरोना मरीज का इलाज चल रहा है, लेकिन बांस-बल्लियां नदारद हैं। आसपास सन्नाटा है, मगर हड़कंप नहीं है।

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अभी तक कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट के बिना अस्पताल में भर्ती नहीं हो रही थी। अब ज्यादा संख्या के कारण रिपोर्ट में इतनी देर हो रही है कि आज ही नई गाइडलाइन आई है कि अब किसी की अस्पताल में भर्ती के लिए उसके पास कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट होना जरूरी नहीं हैं। हालत खराब लग रही है तो भर्ती करना होगा।

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बहुत दिनों से मन में विचार आ रहा था कि जब अधिकांश लोगों को कोरोना हो रहा है तो अब टेस्टिंग में समय, संसाधन और मैन पावर जाया करने से क्या लाभ? स्थानीय अखबारों में कई डॉक्टर भी सलाह दे रहे हैं कि क्यों नहीं जुकाम, बुखार, खांसी आदि लक्षणों वाले लोगों का इलाज कोरोना मानकर ही तुरंत शुरू कर दिया जाए? टेस्टिंग केवल वायरस की प्रकृति, म्यूटेंट आदि जानने के लिए ही हो या तब जब मरीज की स्थिति को लेकर असमंजस हो। पिछले साल तक इस विचार को लिखने में भी संकोच होता था, लेकिन जैसे-जैसे कोरोना अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है, उससे लगता है कि मोहल्लों की बांस-बल्लियों की तरह यह हमें टेस्टिंग रोक देने पर भी विवश कर सकता है। यानी जब सभी को है तो काहे की टेस्टिंग?

- लव कुमार सिंह

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