If a government loses in the Corona crisis, the public will not win.
#Corona #COVID #DelhiCoronaScare
दोस्तो, एक अंतर है। गौर करिये।
जब चुनाव में कोई सरकार हारती है तो जनता जीतती है।
जब किसी आंदोलन से कोई सरकार हारती है तो जनता जीतती है।
लेकिन कोरोना संकट ऐसा है जिसमें यदि कोई सरकार हारेगी तो जनता जीतेगी नहीं।
इस संकट में या तो दोनों ही जीतेंगे या फिर दोनों ही हारेंगे। और इस बार कोई एक सरकार हमारे सामने नहीं है। यह सरकार नरेेंद्र मोदी की तो है ही, लेकिन यह सरकार अमरिंदर सिंह की भी है और योगी की भी है।
यह सरकार केजरीवाल की भी है और नवीन पटनायक की भी है। यह ममता बनर्जी की भी है और चंद्रशेखर राव की भी है।
यह नीतीश कुमार, जगनमोहन रेड्डी, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और पिनराई विजयन की भी है।
इसलिए चुनाव में या आंदोलन में जो मन करे करना, लेकिन फिलहाल सरकारों को जिताने के सिवाय हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। सरकारें जीतेंगी, तभी जनता की जीत होगी। और सरकारें जनता के सहयोग से ही जीत सकेंगी।
जब आप अब साथ नहीं दे रहे तो जनवरी-फरवरी में कैसे देते?How do you support in January-February when you are not supporting now?
कोरोना के खिलाफ भारत की जंग के समानांतर एक बहस निरंतर चल रही है कि जनवरी-फरवरी में सरकार क्या कर रही थी। एक खेमा कोरोना संकट को हल करने में कोई योगदान देने के बजाय निरंतर इस बहस को चला रहा है। हालांकि इस खेमे की आवाज ऊंची इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश विशेषज्ञों ने और संस्थानों ने सरकार के प्रयासों की आलोचना नहीं की है, बल्कि सरकार को बेहद सक्रिय बताया है।
तो इसका फैसला कैसे होगा कि जनवरी-फरवरी में सरकार क्या कर रही थी? इसका फैसला अभी नहीं होगा। यह तब होगा जब कोरोना काल बीत जाएगा। सरकार ने चाहे जितना अच्छा किया हो या जितना बुरा किया हो, इसका फैसला इस बात से होगा कि भारत अंततः कोरोना से कैसे लड़ा और कोरोना से भारत ने कितनी जानें गंवाईं। चीन जितनी, इटली जितनी, इनसे भी ज्यादा या फिर इनसे बहुत कम।
सरकार से तो सवाल होंगे ही, होते रहेंगे, लेकिन युद्ध के बीच फैसला चाहने वाले लोगों को स्वयं भी तो अपने अंदर झांकना चाहिए कि फरवरी में वे क्या कर रहे थे। फरवरी के अंत और मार्च के शुरू तक तो वे इस संकट को सीएए के खिलाफ आंदोलन से ध्यान हटाने की कोशिश बता रहे थे। फरवरी में तो उनका यह नैरेटिव चल रहा था कि कोरोना से खतरनाक तो फलां-फलां बीमारियां हैं। कोरोना से क्या डरना। ममता बनर्जी के बयान देखिए। अन्य नेताओं के बयान देखिए। आरफा खानम तो कल 29 मार्च तक कह रही हैं कि एक आंदोलन (सीएए के खिलाफ) को प्राकृतिक आपदा से दबा दिया गया। कई बुद्धिजीवी अभी भी लॉकडाउन का विरोध कर रहे हैं। साथ में यह बात फैलाने से भी नहीं चूक रहे कि यह (लॉकडाउन) लंबा चलेगा। स्वयं राहुल गांधी लॉकडाउन को गलत बता रहे हैं। एक बहुत बड़ी आबादी तो 24 मार्च तक गंभीर नहीं थी और अब भी नहीं है। ..तो भाई जब आप अब साथ नहीं दे रहे तो जनवरी-फरवरी में कैसे साथ देते?
ये देश केवल नरेंद्र मोदी और उनके पिताजी का नहीं है। यह हम सबका है। यह लड़ाई हम सबको मिलकर लड़नी है।
- लव कुमार सिंह
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