Tuesday, 10 March 2020

क्यों और कैसे हुआ भोपाल गैस कांड?

Why and how did the Bhopal gas tragedy happen?




आज यानी 10 मार्च 2020 को नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी पर एक कार्यक्रम देखने को मिला। इस कार्यक्रम को देखने के बाद कई ऐसे तथ्यों की जानकारी मिली जो अभी तक कहीं पढ़ी, सुनी या देखी नहीं थी।

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यह भयंकर औद्योगिक दुर्घटना 3 दिसंबर 1984 को हुई थी। उस समय देश में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। दुर्घटना यूनियन कार्बाइड (Union carbide) नामक बहुराष्ट्रीय कंपनी के भोपाल स्थित कारखाने में हुई थी। यहां मिथाइल आइसो साइनाइट Methyl Iso Cyanite (मिक या एमआईसी MIC) नाम की अत्यंत जहरीली गैस से कीटनाशक बनाया जाता था। इस कीटनाशक को सेविन (Sevin) के नाम से बेचा जाता था। 

यह कारखाना 1979 से काम कर रहा था। 3 दिसंबर 1984 की रात इस कारखाने से मिक गैस का रिसाव हुआ जिससे आधिकारिक तौर पर 3787 लोग मारे गए, लेकिन जानकारों का अनुमान है कि इस दुर्घटना में 15 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान गई और हजारों लोग अपंगता का शिकार हुए।

क्यों और कैसे why and how


नेशनल ज्योग्राफिक चैनल (National Geographic Channel) के खोजपरक कार्यक्रम से हमें पता चलता है कि- 
  • पिछले कुछ सालों से यूनियन कार्बाइड के इस कारखाने में बन रहा कीटनाशक सेविन बाजार में ज्यादा नहीं बिक रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि कंपनी के मुख्यालय से भोपाल के कारखाने को खर्चे में कटौती करने के निर्देश दिए गए थे।
  • खर्चों में कटौती के क्रम में कई कर्मचारियों की छंटनी कर दी गई थी। इसमें वह सुपरवाइजर भी शामिल था जिस पर सुरक्षा इंतजामों की निगरानी की जिम्मेदारी थी।
  • कारखाने में लगाए गए पानी के पाइप का जुड़ाव उन भूमिगत टैंकों से भी था जिनमें खतरनाक मिक गैस भरकर रखी जाती थी। किसी अन्य कार्य के लिए जब इस पानी के पाइप का प्रयोग होता था तो पानी को मिक गैस के टैंकों तक जाने से रोकने के लिए पाइप के अंदर एक लोहे की पट्टी ऑटोमैटिक तरीके से अवरोधक बन जाती थी, लेकिन पिछले काफी समय से यह अवरोधक पट्टी काम नहीं कर रही थी और सुपरवाइजर आदि न होने से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
  • कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे गए सारे मैनुअल अंग्रेजी में थे जबकि कारखाने में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी का बिल्कुल ज्ञान नहीं था।
  • मिक गैस को तीन भूमिगत टैंकों में रखा जाता था लेकिन जिस ई-610 संख्या वाले टैंक से गैस लीक हुई, वह 75 फीसदी तक भरा हुआ था, जबकि नियम यह था कि टैंक को केवल 50 फीसदी तक ही भरा जाएगा।
  • टैंक में भरी गैस का तापमान 4.5 डिग्री होना चाहिए था लेकिन दुर्घटना के समय यह 20 डिग्री था। टैंक को कूल करने के लिए बना फ्रीजिंग प्लांट भी बिजली का बिल कम करने के लिए बंद कर दिया गया था।
  • बड़ी दुर्घटना होने से पहले भी इस कारखाने में कई बार छोटे-छोटे लीकेज की घटनाएं हो चुकी थीं, लेकिन इसके बावजूद अतिरिक्त सतर्कता के लिए कुछ नहीं किया गया था।

दुर्घटना का तात्कालिक कारण Immediate cause of accident


दुर्घटना का तात्कालिक कारण ई-610 संख्या वाले भूमिगत मिक गैस टैंक में पानी का रिसाव होना था। टैंक में गया पानी जब खतरनाक गैस से जाकर मिला तो वहां अत्यधिक गर्मी और दबाव उत्पन्न हो गया और टैंक का अंदरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुंच गया। इस स्थिति ने कंकरीट की मजबूत दीवार में भी दरारें पैदा कर दीं और गैस का रिसाव होने लगा। एक घंटे के अंदर ही करीब 30 मीट्रिक टन गैस बाहर निकल गई।

सारे सुरक्षा इंतजाम फेल All security arrangements fail


गैस रिसाव की स्थिति में कारखाने में तीन स्तरीय सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे लेकिन उस समय किसी उपाय ने काम नहीं किया। 
  • पहला सुरक्षा इंतजाम एक हौज के रूप में था, जो गैस लीकेज के रास्ते में लगा था और यदि खतरनाक गैस का रिसाव हो तो यह गैस इस हौज में जमा होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
  • दूसरा उपाय एक आग वाला मंच था जहां पर रिसने वाली गैस के पहुंचने पर यह मंच उसे जलाकर आगे नहीं बढ़ने देता, लेकिन यह व्यवस्था भी काम नहीं कर रही थी। 
  • तीसरा और अंतिम उपाय उस चिमनी के पास था जहां से गैस अंतिम रूप से कारखाने से बाहर निकलकर शहर में फैली। इंतजाम यह होना था कि यदि जहरीली गैस चिमनी से निकलती है तो उसके चारों तरफ लगे पानी के पाइपों से तेज धार चिमनी के मुंह के ऊपर डाली जानी थी। इससे गैस पानी के साथ घुलकर वहीं जमीन पर गिर जाती। लेकिन जब गैस चिमनी से बाहर निकलनी शुरू हुई और कर्मचारियों ने चारों तरफ से पानी की धार पाइपों के जरिये चिमनी के मुंह पर फेंकी तो चिमनी ऊंची निकली और धार छोटी रह गई। यानी पाइपों के पानी की धार चिमनी के मुंह तक पहुंच ही नहीं रही थी।

भोपाल गैस त्रासदी में कौन लोग ज्यादा मरे Who died more in Bhopal gas tragedy


जहरीली गैस तेजी से कारखाने की चिमनी से निकलकर भोपाल शहर के ऊपर फैल गई। इसका प्रवाह भोपाल में दक्षिण-पूर्वी दिशा में आठ से दस किलोमीटर के क्षेत्र में ज्यादा था। खास बात यह थी कि यह गैस ऊपर न जाकर नीचे, धरती की तरफ बैठती गई, जिससे मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई।

डॉक्टरों के अनुसार वे लोग पहले मरे जिन्होंने इस गैस के डर से भागना शुरू किया। भागने से जहरीली गैस उनके फेफड़ों में जल्दी भर गई, जिससे उनकी जान चली गई।

क्या यज्ञ ने परिवार को बचा लिया Did the Yajna save the family?


उस दौरान छपी खबरों में प्रभावित क्षेत्र में रह रहे एक कुशवाह परिवार का भी जिक्र किया जाता है। इस परिवार के बारे में बताया गया कि इस परिवार के लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ और इसका कारण बताया गया कि यह परिवार प्रतिदिन अग्निहोत्र यानी यज्ञ (हवन) करता था और गैस रिसाव के दिन भी इस परिवार में अग्निहोत्र किया जा रहा था।

कोई जांच नहीं, कोई दोषी नहीं No investigation, no guilty


खास बात यह थी कि भारत सरकार ने इस भयानक दुर्घटना की मुकम्मल जांच तक नहीं कराई। हादसे के चार दिन बाद 7 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष और सीईओ वारेन एंडर्सन (Warren Andersen) अमेरिका से भारत आए तो उन्हें जनता के रोष को शांत करने के उद्देश्य से गिरप्तार कर लिया गया, लेकिन छह घंटे के बाद ही उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद एंडरसन बड़ी आसानी से भारत से निकलकर अमेरिका चले गए। वहां जाकर उन्होंने इस दुर्घटना के पीछे किसी कर्मचारी की साजिश की आशंका जताई।

सरकार ने फैक्ट्री की जांच के लिए एक विशेषज्ञ दल जरूर भेजा। इस दल ने कारखाने में पहुंचकर पाया कि जितनी गैस लीक हुई है, उतनी ही गैस अभी टैंकों में मौजूद है। अब इस बची हुई गैस के भी लीकेज होने की आशंका पैदा हो गई। इस पर फैसला किया गया कि कारखाने को फिर से चालू किया जाए और बची हुई गैस का प्रयोग करके उसे खत्म कर दिया जाए। कारखाना दोबारा चालू होने की खबर से भोपाल शहर लगभग खाली हो गया। अस्पताल से भी मरीज भाग निकले। आखिरकार कारखाना दोबारा चालू किया गया और बची हुई गैस को सफलतापूर्वक खत्म कर दिया गया।

भारत सरकार ने इसके बाद कारखाने को बंद करके उसमें किसी के भी प्रवेश पर रोक लगा दी। इतनी बड़ी त्रासदी हुई लेकिन न कोई इसका दोषी पाया गया और न ही किसी को सजा मिली। 

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल के कार्यक्रम में जो तथ्य बताए गए हैं वे अमेरिका से आए एक स्वतंत्र जांचकर्ता की रिपोर्ट पर आधारित हैं जो इस विशेषज्ञ जांचकर्ता ने खुफिया तरीके से तैयार की थी। यह विशेषज्ञ जांचकर्ता एक टूरिस्ट के रूप में भारत आए थे। उन्हें फैक्ट्री में घुसने की अनुमति भी नहीं मिली थी। इसके बाद उन्होंने गुप्त रूप से फैक्ट्री के हर हिस्से के ढेरों फोटो प्राप्त किए, फैक्ट्री के कर्मचारियों से बात की, अधिकारियों से बात की और काफी रिसर्च के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि फैक्ट्री में निर्माण के समय तो सुरक्षा के इंतजाम थे लेकिन समय के साथ, लापरवाही और देखरेख के अभाव में वे सब बेकार हो चुके थे। इसी का नतीजा था कि भोपाल के निवासियों को ऐसी भयानक त्रासदी झेलने को मजबूर होना पड़ा। इसके लिए फैक्ट्री प्रबंधन पूरी तरह जिम्मेदार था।

- लव कुमार सिंह


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