Why India is moving towards becoming an alcoholic country?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताजा रिपोर्ट ने मुझे अपने शहर के अभी तक ‘मामूली’ से लग रहे उन वाकयों पर गंभीरता से सोचने को मजबूर कर दिया है, जो देश की सेहत से भी संबंध रखते हैं। आप भी इन पर एक नजर डालिए-
वाकया 1-
रोज सुबह जिस कॉमर्शियल कॉम्पलेक्स में प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में लगे युवाओं को पढ़ाने जाता हूं, उस कॉम्पलेक्स की सीढ़ियों के कोने में बीत गई रात को दफ्तरों, दुकानों में हुई पार्टियों के बाद शराब की इतनी बोतलें लुढ़की रहती हैं कि सफाईकर्मी का कूड़े का पूरा बक्सा उनसे भर जाता है।
वाकया 2-
घर के पास स्थित विश्वविद्यालय के हरे-भरे प्रांगण में ज्यादातर सुबह टहलने चला जाता हूं। वहां कुश्ती और एथलेटिक्स के मैदान के पास घास में या फिर छात्रावासों के आसपास अक्सर शराब की छोटी-छोटी बोतलें लुढ़की दिखाई दे जाती हैं।
वाकया 3-
सुबह की सैर के दौरान इधर-उधर बैठकर सुस्ताते समय आसपास बैठे युवाओं के समूहों की बातें सुनने का अपराध भी कर लेता हूं। किसी ने नया वाहन ले लिया है तो सुनाई देता है- “चलो पार्टी करते हैं।” किसी ने नया मोबाइल लिया है तो “चलो पार्टी करते हैं।” किसी ने कुछ भी नहीं लिया या किया है तो “चलो यार पार्टी करते हैं, बहुत दिन से एक साथ नहीं बैठे हैं।” अंत में गालियों के साथ यह भी सुन लेता हूं कि “नहीं यार, नॉनवेज और शराब नहीं हुई तो फिर कैसी पार्टी?”
वाकया 4-
शादियों में जाता हूं तो कई जगह सुरापान का अलग इंतजाम पाता हूं और लोग बड़े संतुष्टि के अंदाज में कहते हैं कि “भई सिंह साहब ने (या शर्मा जी) ने खाने-पीने का इंतजाम बहुत बढ़िया किया है। प्यासों के लिए अलग से पंडाल लगवाया है।”
यह भी बताना चाहूंगा कि हाल के वर्षों में अपने तीन रिश्तेदारों को शराब के चंगुल में फंसने के बाद बेमौत मरते देख चुका हूं और कुछ अन्य रिश्तेदार इसी दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं।
ये वाकये भारत में छोटे शहरों में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश के मेरठ और उसके आसपास के हैं। मेरठ कोई पब संस्कृति वाला शहर नहीं है। जब मेरठ और उसके जैसे अन्य छोटे शहरों में यह हाल है तो शराब के सेवन के मामले में देश के बड़े शहरों और पूरे देश का क्या हाल होगा, इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है।
लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के बाद तो अनुमान लगाने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि हाल ही में आई इस संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शराब की खपत बहुत बढ़ गई है। वर्ष 2005 से 2016 के बीच देश में प्रति व्यक्ति शराब की खपत दोगुनी हो गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2005 में भारत में जहां प्रति व्यक्ति अल्कोहल की खपत 2.4 लीटर थी, वहीं 2016 में यह बढ़कर 5.7 लीटर तक पहुंच गई। मेरे विचार से यह आंकड़ा और भी ज्यादा होगा क्योंकि इसमें वह देशी अवैध शराब तो शामिल है ही नहीं जिसकी बिक्री ग्रामीण इलाकों में धड़ल्ले से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह आंकड़ा बहुत ही चिंतानजक है, क्योंकि भारत में हर साल 2.60 लाख लोग शराब की वजह से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
हम क्यों शराबी देश बनने की ओर अग्रसर हैं?
भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है और विडंबना है कि ये युवा ही देश को शराबी देश बनाने की ओर अग्रसर कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार युवाओं में शराब पीने के खतरों के प्रति जागरूकता का बेहद अभाव है।
इसी के साथ बंगलुरू, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहरों में आईटी क्रांति तथा बेहतर वेतन की वजह से युवाओं के एक बड़े वर्ग के पास काफी पैसा मौजूद रहता है। ये युवा सप्ताह के अंत में अपना काफी सारा पैसा पबों या बार में उड़ा रहे हैं। यह बात सही भी लगती है क्योंकि जब मेरठ जैसे छोटे माने जाने वाले शहरों में यह हाल है तो पब संस्कृति वाले बड़े शहरों में शराब के सेवन का अंदाजा सहज ही लग जाता है।
शराब पीना धीरे-धीरे स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। देश के ज्यादातर हिस्सों में शराब आसानी से उपलब्ध भी हो रही है। देश में शराब बनाने की कंपनियां की संख्या भी बढ़ रही है। गली-मोहल्लों में शराब की दुकानें खुल रही हैं। उधर पढ़ाई, नौकरी या छुट्टी मनाने लाखों लोग हर साल विदेश जा रहे हैं। इससे उनकी शराब के ब्रांडों को लेकर तो जानकारी बढ़ ही रही है, लेकिन साथ ही उनमें विदेशियों की नकल करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।
इस सबका नतीजा यह हुआ है कि भारत दुनिया में शराब का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में कुल आबादी के लगभग 30 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं। इनमें से से चार से 13 प्रतिशत लोग रोजाना शराब का सेवन करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में 5.7 लीटर प्रति व्यक्ति खपत में से 4.2 लीटर शराब पुरुषों ने और 1.5 लीटर महिलाओं ने पी।
क्या किया जाए?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेडरोस आधानोम का कहना है कि वर्ष 2010 से 2025 के बीच शराब की वैश्विक खपत में 10 फीसदी की कटौती का लक्ष्य हासिल करने के लिए अब इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। उनके अनुसार अल्कोहल पर ज्यादा टैक्स लगाया जाना चाहिए और इसके विज्ञापन पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए।
कुछ विशेषज्ञ शराबबंदी कानून को कड़ाई से लागू करने की बात कहते हैं।
नियमों का पालन भी सही तरीके से हो तो काफी बदलाव आ सकता है। जैसे कि अनेक राज्यों में 18 से 21 साल से कम उम्र के युवकों को शराब नहीं बेचने का नियम है, लेकिन स्थानीय पुलिस-प्रशासन की तरह से इस नियम का पालन नहीं कराया जाता है। नाबालिगों को शराब नहीं बेचने का कानून सख्ती से लागू करना होगा।
आखिर में सबसे महत्वपूर्ण बात और वो यह कि आज शराब के खतरों के प्रति देशव्यापी जनजागरूता अभियान चलाए जाने की सख्त जरूरत है। यह नहीं किया गया तो परिणाम भयंकर होंगे। कहते रहिए भारत युवाओं का देश है। शराबी युवाओं से भारत को कोई फायदा नहीं होने वाला।
- लव कुमार सिंह
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