Did the Muslims of that period know about Jinnah's 'strange hobbies'?
जिन्ना के सहायक रहे मोहम्मद करीम छागला की आत्मकथा ‘रोजेज इन दिसंबर’ के अनुसार एक बार जिन्ना आरक्षित मुस्लिम सीट से चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव अभियान के दौरान जिन्ना के लिए घर से खाना आया। उसी समय दो मुस्लिम कार्यकर्ता भी वहां आ गए। छागला ने कुछ खाना उन थके कार्यकर्ताओं को भी देना चाहा, लेकिन जिन्ना ने इशारे से छागला को रोक दिया।
कार्यकर्ताओं के जाने के बाद जिन्ना ने छागला को बताया कि उनके खाने में सूअर का मांस भी है, इसलिए उन्होंने खाने को कार्यकर्याताओं को देने से मना किया। यदि छागला खाना दे देते तो मुस्लिम कार्यकर्ताओं का धर्म नष्ट हो जाता और यदि कार्यकर्ताओं को इस बात का पता चल जाता तो बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाता।
इसी किताब के अनुसार एक बार चुनाव के दौरान जिन्ना की पत्नी रती (जो उनसे 24 साल छोटी थीं और पारसी समुदाय से ताल्लुक रखती थीं। दोनों ने प्रेम विवाह किया था।) उनके लिए भोजन का टिफिन कार में लेकर आई थीं। जब पत्नी ने जिन्ना को बताया कि वे लंच में जिन्ना का मनपसंद हैम सैंडविच (सूअर के मांस वाला सैंडविच) लाई हैं तो वे हक्के-बक्के रह गए।
उन्होंने पत्नी से कहा कि क्या वे उन्हें चुनाव में हरवाना चाहती हैं। वह मुस्लिम आरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अगर उनके मतदाताओं को पता चल गया कि वह लंच में हैम सैंडविच खा रहे हैं तो गजब हो जाएगा। इस पर जिन्ना की पत्नी तुरंत टिफिन वापस ले गईं।
उन्होंने पत्नी से कहा कि क्या वे उन्हें चुनाव में हरवाना चाहती हैं। वह मुस्लिम आरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अगर उनके मतदाताओं को पता चल गया कि वह लंच में हैम सैंडविच खा रहे हैं तो गजब हो जाएगा। इस पर जिन्ना की पत्नी तुरंत टिफिन वापस ले गईं।
इन तथ्यों से पता चलता है कि भले ही जिन्ना के करीबी लोगों को पता हो, लेकिन सामान्य मुसलमानों को इस बारे में पता नहीं था। जिन्ना ये शौक छिपाकर ही पूरे करते थे। एक बहुत बड़ी मुस्लिम आबादी के लिए उनके ये शौक गुप्त ही थे। बाकी जिन्हें पता था, उन्होंने शायद एक अलग देश के बड़े लक्ष्य के सामने इन बातों को बहुत मामूली समझा होगा।
इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि आज तो लगभग सभी को पता है कि जिन्ना के क्या शौक थे और वे पक्के मुसलमान नहीं थे। यह जानने के बावजूद पूरे पाकिस्तान में और कुछ हद तक भारत में भी, मुसलमानों में जिन्ना के लिए नापसंदगी या घृणा का कोई भाव देखने को नहीं मिलता है।
इतना ही नहीं देश के कद्दावर मुस्लिम नेता होने के बावजूद, इस छवि के उलट जिन्ना रोजाना दाढ़ी बनाते थे। वे कभी किसी शुक्रवार नियमानुसार मस्जिद नहीं जाते थे। उन्हें उर्दू का भी ज्ञान नहीं था। पाकिस्तान की मांग से पहले तो वे स्वयं को मुसलमान कहे जाने से भी भड़क जाते थे। स्वयं उनके अनुसार दाढ़ी वाले मुल्लाओं से उन्हें बदबू महसूस होती थी।
इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि आज तो लगभग सभी को पता है कि जिन्ना के क्या शौक थे और वे पक्के मुसलमान नहीं थे। यह जानने के बावजूद पूरे पाकिस्तान में और कुछ हद तक भारत में भी, मुसलमानों में जिन्ना के लिए नापसंदगी या घृणा का कोई भाव देखने को नहीं मिलता है।
इतना ही नहीं देश के कद्दावर मुस्लिम नेता होने के बावजूद, इस छवि के उलट जिन्ना रोजाना दाढ़ी बनाते थे। वे कभी किसी शुक्रवार नियमानुसार मस्जिद नहीं जाते थे। उन्हें उर्दू का भी ज्ञान नहीं था। पाकिस्तान की मांग से पहले तो वे स्वयं को मुसलमान कहे जाने से भी भड़क जाते थे। स्वयं उनके अनुसार दाढ़ी वाले मुल्लाओं से उन्हें बदबू महसूस होती थी।
इन सबके बावजूद वह मुसलमानों के प्रमुख नेता बनने में सफल रहे और पाकिस्तान की स्थापना करने में भी। वह एक बहुत ही मशहूर वकील थे। रोजाना दुनियाभर के अखबार पढ़ते थे और जरूरी सूचनाओं की कटिंग काटकर फाइल में लगाते थे।
उनके दुनिया को तीन रूप देखने को मिले। एक पाकिस्तान की मांग से पहले पक्के भारतीय वाला रूप, दूसरा पाकिस्तान की मांग के बाद कट्टर मुस्लिम नेता का रूप और तीसरा पाकिस्तान की स्थापना के कुछ समय बाद पाकिस्तान की स्थापना को अपनी बड़ी चूक स्वीकारने वाला रूप
उल्लेखनीय है कि जिन्ना के दादा हिंदू ही थे, लेकिन उन्होंने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
उल्लेखनीय है कि जिन्ना के दादा हिंदू ही थे, लेकिन उन्होंने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
- लव कुमार सिंह
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