Thursday, 28 May 2020

जब किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को होना पड़ा आलोचनाओं का शिकार

When Chaudhary Charan Singh, the Messiah of the farmers, had to suffer the criticism



पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) की पुण्यतिथि के अवसर पर हर तरफ उनकी प्रशंसाओं की भरमार है। ऐसा इसलिए है कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व था ही ऐसा। उनकी आलोचना बहुत कम सुनने को मिलती है। लेकिन कुछ प्रसंग ऐसे हैं जब चौधरी साहब को भी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा।

राज्य कर्मचारियों ने मिठाई बांटी


जब चौधरी चरण सिंह 70 के दशक के आसपास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो प्रदेश में राज्य कर्मचारियों का बड़ा आंदोलन हुआ। इसे स्वतंत्रता के बाद कर्मचारियों का पहला सबसे बड़ा आंदोलन कहा गया। आंदोलन के दौरान चौधरी चरण सिंह की कुछ टिप्पणियों और हड़ताल के प्रति उनके सख्त रुख के कारण कर्मचारी उनसे बहुत खफा हो गए थे। कर्मचारियों के कुछ हिस्से (क्लर्क आदि) को नाकारा कहे जाने और आंदोलन के प्रति सख्त रवैये के कारण कर्मचारियों की नाराजगी का आलम यह था कि जब चौधरी चरण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा तो राज्य कर्मचारियों के बीच मिठाइयां बांटी गईं।

क्रिकेट को निठल्लों का खेल कहा


चौधरी चरण सिंह क्रिकेट की रनिंग कमेंट्री को भी बेहद नापसंद करते थे। वे क्रिकेट की कमेंट्री को दफ्तरों में कामचोरी का बहुत बड़ा कारण मानते थे। वे क्रिकेट को निठल्लों का खेल बताते थे। इससे वे क्रिकेट के प्रशंसकों की आलोचना का पात्र बन गए थे। चौधरी चरण सिंह टेस्ट मैच के दौरान पांच दिन तक लगातार कमेंट्री के प्रसारण पर रोक भी लगाने वाले थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि वे बहुत ही थोड़े समय तक प्रधानमंत्री रह पाए।

जिन इंदिरा गांधी को तंग किया उन्हीं से समर्थन ले बैठे


1977 में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में गृहमंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह बार-बार इंदिरा गांधी को परेशान करते रहे। वे इंदिरा गांधी को जेल भिजवाने की जिद पर अड़े रहे और वे इसमें सफल भी रहे। लेकिन फिर उन्हीं इंदिरा गांधी की सहायता से प्रधानमंत्री बन गए। अपनी महत्वाकांक्षा में उन्होंने जरा भी नहीं सोचा कि जब मैंने इंदिरा गांधी को इतना तंग किया है तो वह मेरी सरकार को क्यों कर चलने देंगी।

अंत में वही हुआ जिसका डर था। इंदिरा गांधी ने अगस्त 1979 में केवल एक महीना 3 दिन बाद चौधरी चरण सिंह सरकार से कांग्रेस का समर्थन वापस ले लिया। लोकसभा भंग हो गई और जब चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बन गईं। इस प्रकार चौधरी चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री बने जो लाल किले पर तो बोले, लेकिन उन्हें संसद में बोलने का मौका नहीं मिला। साथ ही उन पर जनता परिवार को तोड़ने का ठीकरा भी फूटा।

प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि वे आपातकाल के दौरान हुई घटनाओं को लेकर चल रहे मुकदमो के मामले में इंदिरा गांधी द्वारा ब्लैकमेल नहीं होना चाहते थे। लेकिन लोगों ने आरोप लगाया कि क्या चौधरी साहब को इतना भी इल्म नहीं था कि जब इंदिरा गांधी समर्थन दे रही हैं तो उसकी कीमत भी जरूर ही वसूलेंगी।

हुआ यह कि जनता पार्टी को तोड़कर चौधरी चरण सिंह ने जनता (एस-सेक्युलर) बनाई और कांग्रेस व सीपीआई के समर्थन से 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बन गए। राष्ट्रपति के निर्देशानुसार उन्हें 20 अगस्त को लोकसभा में बहुमत साबित करना था, लेकिन 19 अगस्त को ही इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। चौधरी चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।

जनता पार्टी की सरकार के दौरान इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर मुकदमे दर्ज हुए थे। यह बात सबको पता थी कि समर्थन के बदले इंदिरा गांधी उन मुकदमों को वापस करना चाहेंगी। चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री जरूर बन गए थे, लेकिन उनके उसूल मुकदमे वापसी के लिए राजी नहीं हो सकते थे। लिहाजा उन्होंने इंदिरा गांधी की बात नहीं मानी और सरकार गिर गई।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही था जो उस समय लोगों ने चौधरी चरण सिंह से किया और उसका उनके पास कोई जवाब नहीं था। सवाल था- क्या चरण सिंह इतने भोले थे कि वे इंदिरा गांधी की मंशा नहीं समझ सकते थे? उस समय ज्यादातर लोगों ने इस कदम को चौधरी साहब की अति महत्वाकांक्षा ही करार दिया।

इस प्रकरण में यह भी कहा जाता है कि राजनारायण ने चौधरी चरण सिंह को पोंगापंथी और ज्योतिष विद्या के मायाजाल में फंसा लिया था।

जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने का अवसर नहीं दिया


कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि चौधरी चरण सिंह को उनकी खूबियों के साथ-साथ इस बात के लिए भी जाना जाएगा कि उन्होंने बाबू जगजीवन राम के समर्थन में पर्याप्त सांसदों की संख्या होने की जानकारी के बावजूद लोकसभा भंग करने की सिफारिश तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से कर दी थी। उनके इस कदम से 32 वर्ष तक कैबिनेट मंत्री रहने वाला एक प्रसिद्ध दलित नेता प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गया।

बहरहाल, आरोप जो भी हों, लेकिन चौधरी चरण सिंह ने मंत्री, मुख्यमंत्री, उप प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में किसानों के लिए जो कुछ किया और राजनीति में अपने जो उसूल बनाए, उसी के लिए उन्हें ज्यादातर याद किया जाता है और इसीलिए किसानों का मसीहा भी कहा जाता है।

- लव कुमार सिंह


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