Wednesday, 27 May 2020

दिल से कहो, प्रेम की क्लास में सही वक्त पर आए

Tell your heart, come at the right time in love class



अरे, ये क्या हो गया? बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आया और तेजतरार्र माना जाने वाला छात्र अर्पण दूसरी श्रेणी ही हासिल कर सका। सब मान रहे थे कि हाईस्कूल की तरह इंटर में भी अर्पण सफलता के झंडे गाड़ेगा, पर ऐसा नहीं हुआ। मम्मी-पापा ने उससे काफी जानने की कोशिश की कि ऐसा कैसे हुआ पर वे विफल रहे। अब अर्पण उन्हें कैसे बताता कि पिछले एक साल से उसे सबसे प्रिय लग रही चीज ही उसकी राह की सबसे बड़ी बाधा बन गई थी। वह कैसे बताता कि परीक्षा की तैयारी के दौरान किताबों में उसे सवालों और जवाबों की जगह अपनी क्लास की ही एक लड़की का खूबसूरत चेहरा दिखाई देता था। ये एक ऐसा आकर्शण था जिसने उसके सारे पाठ भुला दिए थे।

जी हां, अर्पण के सामने एक ऐसी बाधा आ खड़ी हुई थी जो किशोरावस्था में तमाम किशोर-किशोरियों का रास्ता रोकने के लिए हर समय तैयार रहती है। इस बाधा की दीवारें जहां बहुत ऊंची हैं, वहीं कमजोर भी हैं। ये बाधा कब सामने आकर खड़ी हो जाए, पता ही नहीं चलता। बाली उमर का आकर्षण या अंग्रेजी में टीन क्रश कही जाने वाली ये बाधा बहुत प्यारी लगती है, लेकिन ये भी सच है कि जो इस बाधा को क्रश यानी कुचल देता है, सफलता उसके कदम चूमती है और जो खुद कुचला जाता है, उसे उठकर खड़े होने में तमाम मुश्किलें पेश आती हैं।

क्या गर्लफ्रेंड, ब्वायफ्रेंड अनिवार्य है ?    

   
पुराने समय के मुकाबले आज के किशोर के सामने टीन क्रश की समस्या ज्यादा है। तब केवल एक अदद लड़का या लड़की या फिर फिल्में ही उनका ध्यान भटकाती थीं। आज इन सबके अलावा टेलीविजन और इंटरनेट भी मौजूद हैं। देह का ज्यादा खुलापन भी नई उम्र को आकर्शित करता है। इसके अलावा बिन मांगी सलाह की तरह हमारी फिल्में और टेलीविजन हर कहानी में चीख-चीखकर कह रहे हैं कि एक लड़का या लड़की का ब्वायफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होनी अनिवार्य है। जिनकी गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड नहीं हैं, उन्हें कहानी में हंसी का पात्र बताया जाता है। फिल्मों और टीवी में गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड होने के मायने भी ज्यादातर देह से जुड़े होते हैं। वास्तविक जीवन में गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड होने की कोई अनिवार्यता नहीं है, लेकिन जब प्रभावशाली माध्यमों के जरिये कोई बात या संदेश बार-बार दिया जाता है तो कुछ प्रभाव तो निश्चय ही देखने-सुनने वाले पर अवश्य ही पड़ता है। फिर किशोर आयु तो होती ही ऐसी है कि हर बात जिज्ञासा और आकर्शण पैदा करती है।

पढ़ाई को पीछे छोड़ रहा प्रेम


ऐसा नहीं है कि फिल्मों या टेलीविजन से पहले किशोर आयु में प्रेम नहीं होता था। ये होता था, मगर आज इसकी रफ्तार बहुत बढ़ गई है। जो वाकये सार्वजनिक नहीं होते या पता नहीं चलते उन्हें छोड़ भी दें तो भी प्रकाश में आने वाली घटनाएं इतनी ज्यादा हैं कि लगता है जैसे किशोर-किशोरियां पढ़ाई-लिखाई छोड़ प्यार ही करने में लगे हैं। हर इलाके के हर पुलिस थाने में इन दिनों पुलिस अपराधियों का कम लड़का-लड़कियों का ज्यादा पीछा कर रही है, क्योंकि लड़कियां घर से भाग रही हैं और परिजन उनके अपहरण का मुकदमा दर्ज करा रहे हैं। बेशक इनमें बहुत से मामले वयस्क प्रेम के भी होते हैं, पर इनमें भी प्रेम की शुरुआत तो किशोरवय में ही होती है।

सही समय और उम्र देखना जरूरी


पुराने लोग कह गए हैं कि प्रेम अंधा होता है। यह न उम्र देखता है और न वक्त। लेकिन इसी के साथ यह भी सच है कि सही वक्त और सही उम्र में किया गया प्रेम व्यक्ति को नई ऊर्जा देता है, उसे आगे बढ़ाता है और उसका विकास करता है। उधर, बेवक्त और कम आयु में किया गया प्रेम ज्यादातर हमारे सामने बाधाएं ही खड़ी करता है। अब देखिए ना, खूबसूरत स्वाति एमबीबीएस में चयन होने तक प्यार-व्यार के लफड़े में नहीं पड़ी। एक-दो लड़कों ने उसकी तरफ कदम बढ़ाने की कोशिश भी की मगर स्वाति ने पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित रखा। एमबीबीएस करने के बाद एमडी के अंतिम वर्श में उसने खुद को अनुमति दी कि वह किसी के प्रति आकर्शित हो सके। ये वो वक्त और उम्र थी जब न तो स्वाति के परिजनों ने कोई शिकवा, शिकायत की और न ही पढ़ाई में कोई बाधा ही आई। प्रेम का पात्र भी काबिल मिला। पीसीएस में चयनित विमल ने तो शादी के बाद ही किसी लड़की में रुचि दिखाई और वो लड़की उसकी पत्नी थी। शादी के बाद उसने पत्नी को खूब प्रेम किया। आज उनकी जोड़ी को देखकर लगता है कि प्रेम तो शादी के बाद ही करना चाहिए।

प्रेम को रोज खूंटी पर टांग सको तो प्रेम कर लो


ऐसा नहीं है कि प्रेम के साथ पढ़ाई संभव नहीं है। कई युवा दोनों को साधने में सफल रहते हैं। वे प्रेम में खुद को तबाह करने के बजाय निखार लेते हैं। पर ऐसा अपवाद के रूप में ही होता है। वास्तव में शरीर में भारी बदलावों वाली किशोर अवस्था में ऐसा करना बहुत मुश्किल होता है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा में आज की पढ़ाई आपसे पूरा वक्त मांगती है। चूंकि प्रेम दो पक्षों में होता है, लिहाजा यह जरूरी है कि प्रेम को अगर कैरियर या पढ़ाई में बाधा बनने से बचाना है तो दोनों पक्ष संयम और धैर्य से काम लें। अमूमन ऐसा हो नहीं पाता है। प्रेम में पड़ने के बाद उसे संभालना एक पक्ष के बस की बात नहीं होती। प्रेम को बाधा बनने से रोकना है तो प्रेम रूपी वस्त्र को पहनकर भी पढ़ाई के वक्त उसे खूंटी पर टांगना होता है। ठीक उसी तरह जैसे शाम को हमने खूब रुचि से बैडमिंटन खेला और फिर रैकेट को खूंटी पर टांगकर उतनी ही रुचि से पढ़ाई भी करने लगते हैं। प्रेम के मामले में हर कोई ऐसा नहीं कर पाता। आप कर सकते हो तो प्रेम कर लो, अपने को किसी के आकर्शण में बाधं लो। किसी बाजीगर की तरह जिंदगी की रस्सी पर प्रेम और पढ़ाई को साध सकते हो तो प्रेम कर लो। वरना जिंदगी में कोई मुकाम पाने के बाद ही इस बारे में सोचो।

खुद से कुछ वादे करके प्रेम करो


मान लिया कि तुम एक लड़का हो। तुम जिंदगी में कुछ हासिल करने से पहले हाईस्कूल या इंटर में ही किसी लड़की से प्रेम करने लगे। ठीक है, लेकिन आगे बढ़ने से पहले तुम खुद से क्या ये वादे कर सकते हो? एक, पढ़ाई के वक्त लड़की का चेहरा तुम्हारी आंखों के सामने नहीं घूमेगा। दो, तुम रोज लड़की से मिलने की कोशिश नहीं करोगे और लड़की के घर के चक्कर नहीं लगाओगे। तीन, तुम्हारे प्रेम का किसी को पता नहीं चलेगा। चार, तुम और लड़की एक-दूसरे का कीमती वक्त बर्बाद नहीं करोगे। यदि तुम चार में से एक भी वादा पूरा नहीं कर पाए तो ये प्रेम तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा। तुम कुछ भी नहीं बन पाओगे। इनमें से एक भी वादा टूटा तो तुम्हारी पढ़ाई चौपट होनी निश्चित है। कुल मिलाकर बात वहीं पर आ जाती है कि प्यार अगर आगे बढ़ने में बाधा बन रहा है तो समझ लो कि ये प्यार का सही वक्त नही हैं। तुम्हें थोड़ा इंतजार करना चाहिए। तुम अपने दिल और शरीर के प्रिंसिपल हो। तुम्हें उन्हें कहना चाहिए कि प्रेम की कक्षा में सही वक्त पर ही आएं।

- लव कुमार सिंह

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