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- 'न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर' #NeuroendocrineTumour
- ल्यूकेमिया #Leukemia
- प्लग एंड प्ले #PlugAndPlay
- रेमडेसिवियर #Remdesivir
- प्लेसीबो #Placebo
- टायफाइड मैरी #TyphoidMary
'न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर' #NeuroendocrineTumour
फिल्म अभिनेता इरफान खान की मृत्यु का कारण बना 'न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर' एक दुर्लभ किस्म का ट्यूमर होता है जो शरीर के कई अंगों में विकसित हो सकता है। हालांकि ये सबसे ज़्यादा आँतों में होता है। इरफान खान के शरीर में भी यह आंत में ही था। इसके अतिरिक्त यह फेफड़ों व अन्य अंगों में भी देखा गया है। इसका सबसे शुरुआती असर उन ब्लड सेल्स पर होता है जो ख़ून में हार्मोन छोड़ती हैं। इस ट्यूमर के आनुवंशिक समेत कई कारण हो सकते हैं।
ल्यूकेमिया #Leukemia
फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर की मृत्यु का कारण बना यह एक प्रकार का कैंसर रोग है। यह एक तरह ब्लड कैंसर होता है। डॉक्टरों के अनुसार ब्लड कैंसर खून बनाने वाले ऊतकों का कैंसर होता है, जिसमें बोन मैरो भी शामिल है। ल्यूकेमिया नाम के ब्लड कैंसर को क्रॉनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) भी कहा जाता है। हमारे शरीर में मौजूद सफेद रक्त कोशिकाएं विभिन्न रोगों से लड़ने का काम करती हैं लेकिन ल्यूकेमिया की स्थिति में इनकी संख्या असामान्य रूप से बढ़ने लगती है। इनका आकार भी बदलने लगता है। धीरे-धीरे ये रोगी की इम्युनिटी को घटा देती हैं। यह रोग ज्यादातर बढ़ती उम्र में होता है। तेजी से वजन का घटना, हर समय थकान महसूस होना, बार-बार संक्रमण का फैलना या बीमारी होना, सिरदर्द महसूस करना, हड्डियों में दर्द महसूस होना और रात में अधिक पसीना निकलना इस रोग के शुरुआती लक्षण बताए गए हैं।
प्लग एंड प्ले #PlugAndPlay
कोरोना संकट के बीच निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार जिस मॉडल को अपनाने की योजना बना रही है उसे ‘प्लग एंड प्ले’ का नाम दिया जा रहा है। दैनिक जागरण के अनुसार सामान्य अवस्था में किसी उद्यमी को फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन लेनी पड़ती है। सरकारी मंजूरी पाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी परड़ती है। फिर वहां बिजली, पानी, सड़क और अन्य आधारभूत सुविधाएं विकसित करनी पड़ती हैं। फिर वहां उत्पादन शुरू हो पाता है। इन सभी कामों में अमूमन दो वर्ष और कभी-कभी इससे भी ज्यादा का समय लगता है। प्लग और प्ले व्यवस्था में उद्योग लगाने की त्वरित मंजूरी के अतिरिक्त सभी आधारभूत सुविधाएं उद्यमी को तैयार मिलती हैं। निवेशक को वहां आकर सीधे उत्पादन शुरू करना होता है।
रेमडेसिवियर #Remdesivir
यह एक दवा का नाम है। यह एंटीवायरल
दवा है जिसे इबोला वायरस के इलाज के लिए विकसित किया गया था। अब अमेरिका ने इसे
कोविड-19 के उपचार के लिए संभावित रामबाण दवा माना है। क्लीनिकल ट्रायल में इस दवा
के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। बताया गया है कि कोई भी वायरस जब इंसानी
शरीर में जाता है तो वह स्वयं को मज़बूत करने के लिए अपनी प्रतियां तैयार करता है।
खुद की कॉपी बनाने के लिए वायरस को एक एंजाइम की आवश्यकता पड़ती है। ट्रायल में
पता चला है कि रेमडेसिवियर इसी एंजाइम पर हमला करके वायरस के रास्ते में बाधा
उत्पन्न कर देती है। कॉपी न बनाने के कारण वायरस कमजोर हो जाता है। इस प्रकार यह
दवा वायरस को ब्लॉक कर देती है।
प्लेसीबो #Placebo
दवाओं के संसार में प्लेसीबो उस
दवा को कहा जाता है जो कोई दवा नहीं होती है। जी हां, इसमें कोई मेडिकल गुण नहीं
होते हैं और इसमें बस पानी या शक्कर की गोली जैसी चीजें शामिल होती हैं। इसका
इस्तेमाल दूसरी दवाओं का प्रभाव जानने के लिए परीक्षण के तौर पर किया जाता है।
टायफाइड मैरी #TyphoidMary
अमेरिका में मैरी मैलन नाम की महिला इतिहास की पहली ऐसी मरीज थीं
जिसमें बीमारी का कोई लक्षण नहीं था। यह 19वीं सदी की शुरुआत (1907 के आसपास) की
बात जब अमेरिका में टायफाइड (आंत्र ज्वर) यानी मियादी बुखार फैला था। बीबीसी की
रिपोर्ट के अनुसार लोगों के घरों में खाना बनाने का काम कनरे वाली मैरी के शरीर में इस रोग का कोई लक्षण नहीं था, लेकिन उसने अनेक लोगों में इस बीमारी को फैला दिया। ऐसे में मैरी को दुनिया की पहली
एसिम्प्टोमैटिक कैरियर कहा गया। यानी ऐसी मरीज जिसमें कोई लक्षण नहीं था और वह
दूसरों में इस बीमारी को फैला सकती थी। बाद में मैरी को तीन साल तक क्वारंटीन में
भेजा गया। बाद में वह क्वारंटीन सेंटर से निकाली गई तो कुछ दिन बाद वहां एक नई
बीमारी फैल गई। यह 1915 की बात है। इसका कारण भी मैरी को माना गया। इस बार उसे 23
साल के लिए क्वारंटीन में भेजा गया। 1938 में 69 वर्ष की उम्र में मैरी की मौत हो
गई। मैरी घरों में काम करती थी और जिन घरों में उसने काम किया, वहां इस बीमारी का
संक्रमण फैल गया था। इस पर मीडिया में उसे टायफाइड मैरी कहा जाने लगा।
फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर की मृत्यु का कारण बना यह एक प्रकार का कैंसर रोग है। यह एक तरह ब्लड कैंसर होता है। डॉक्टरों के अनुसार ब्लड कैंसर खून बनाने वाले ऊतकों का कैंसर होता है, जिसमें बोन मैरो भी शामिल है। ल्यूकेमिया नाम के ब्लड कैंसर को क्रॉनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) भी कहा जाता है। हमारे शरीर में मौजूद सफेद रक्त कोशिकाएं विभिन्न रोगों से लड़ने का काम करती हैं लेकिन ल्यूकेमिया की स्थिति में इनकी संख्या असामान्य रूप से बढ़ने लगती है। इनका आकार भी बदलने लगता है। धीरे-धीरे ये रोगी की इम्युनिटी को घटा देती हैं। यह रोग ज्यादातर बढ़ती उम्र में होता है। तेजी से वजन का घटना, हर समय थकान महसूस होना, बार-बार संक्रमण का फैलना या बीमारी होना, सिरदर्द महसूस करना, हड्डियों में दर्द महसूस होना और रात में अधिक पसीना निकलना इस रोग के शुरुआती लक्षण बताए गए हैं।
प्लग एंड प्ले #PlugAndPlay
कोरोना संकट के बीच निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भारत सरकार जिस मॉडल को अपनाने की योजना बना रही है उसे ‘प्लग एंड प्ले’ का नाम दिया जा रहा है। दैनिक जागरण के अनुसार सामान्य अवस्था में किसी उद्यमी को फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन लेनी पड़ती है। सरकारी मंजूरी पाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी परड़ती है। फिर वहां बिजली, पानी, सड़क और अन्य आधारभूत सुविधाएं विकसित करनी पड़ती हैं। फिर वहां उत्पादन शुरू हो पाता है। इन सभी कामों में अमूमन दो वर्ष और कभी-कभी इससे भी ज्यादा का समय लगता है। प्लग और प्ले व्यवस्था में उद्योग लगाने की त्वरित मंजूरी के अतिरिक्त सभी आधारभूत सुविधाएं उद्यमी को तैयार मिलती हैं। निवेशक को वहां आकर सीधे उत्पादन शुरू करना होता है।
रेमडेसिवियर #Remdesivir
यह एक दवा का नाम है। यह एंटीवायरल
दवा है जिसे इबोला वायरस के इलाज के लिए विकसित किया गया था। अब अमेरिका ने इसे
कोविड-19 के उपचार के लिए संभावित रामबाण दवा माना है। क्लीनिकल ट्रायल में इस दवा
के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। बताया गया है कि कोई भी वायरस जब इंसानी
शरीर में जाता है तो वह स्वयं को मज़बूत करने के लिए अपनी प्रतियां तैयार करता है।
खुद की कॉपी बनाने के लिए वायरस को एक एंजाइम की आवश्यकता पड़ती है। ट्रायल में
पता चला है कि रेमडेसिवियर इसी एंजाइम पर हमला करके वायरस के रास्ते में बाधा
उत्पन्न कर देती है। कॉपी न बनाने के कारण वायरस कमजोर हो जाता है। इस प्रकार यह
दवा वायरस को ब्लॉक कर देती है।
प्लेसीबो #Placebo
दवाओं के संसार में प्लेसीबो उस
दवा को कहा जाता है जो कोई दवा नहीं होती है। जी हां, इसमें कोई मेडिकल गुण नहीं
होते हैं और इसमें बस पानी या शक्कर की गोली जैसी चीजें शामिल होती हैं। इसका
इस्तेमाल दूसरी दवाओं का प्रभाव जानने के लिए परीक्षण के तौर पर किया जाता है।
टायफाइड मैरी #TyphoidMary
अमेरिका में मैरी मैलन नाम की महिला इतिहास की पहली ऐसी मरीज थीं
जिसमें बीमारी का कोई लक्षण नहीं था। यह 19वीं सदी की शुरुआत (1907 के आसपास) की
बात जब अमेरिका में टायफाइड (आंत्र ज्वर) यानी मियादी बुखार फैला था। बीबीसी की
रिपोर्ट के अनुसार लोगों के घरों में खाना बनाने का काम कनरे वाली मैरी के शरीर में इस रोग का कोई लक्षण नहीं था, लेकिन उसने अनेक लोगों में इस बीमारी को फैला दिया। ऐसे में मैरी को दुनिया की पहली
एसिम्प्टोमैटिक कैरियर कहा गया। यानी ऐसी मरीज जिसमें कोई लक्षण नहीं था और वह
दूसरों में इस बीमारी को फैला सकती थी। बाद में मैरी को तीन साल तक क्वारंटीन में
भेजा गया। बाद में वह क्वारंटीन सेंटर से निकाली गई तो कुछ दिन बाद वहां एक नई
बीमारी फैल गई। यह 1915 की बात है। इसका कारण भी मैरी को माना गया। इस बार उसे 23
साल के लिए क्वारंटीन में भेजा गया। 1938 में 69 वर्ष की उम्र में मैरी की मौत हो
गई। मैरी घरों में काम करती थी और जिन घरों में उसने काम किया, वहां इस बीमारी का
संक्रमण फैल गया था। इस पर मीडिया में उसे टायफाइड मैरी कहा जाने लगा।
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