Thursday 7 May 2020

आज के जमाने में, मोदी, राहुल या किसी अन्य नेता की सच्ची तस्वीरों से भी झूठ फैलाया जा सकता है

In today's era, lies can also be spread by true pictures of Modi, Rahul or any other leader

  • राजनेताओं की सच्ची तस्वीरें लेकिन उनकी गलत व्याख्या
  • True photos of politicians but their misinterpretations
  • किसी की मुद्रा के एक क्षण को पकड़कर खींची गई फोटो अक्सर सच नहीं बताती
  • Photographs capturing a moment of one's posture often do not tell the truth


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नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी की तस्वीर


कुछ बरस पहले अखबारों में एक फोटो छपी जिसमें भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने दोनों हाथ जोड़े नजर आ रहे थे। फोटो में मोदी के दोनों हाथ कमर के पीछे दिखाई दे रहे हैं।



दोनों नेताओं का आमना-सामने अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति में 24 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम के दौरान हुआ। फोटो देखकर लगता है जैसे आडवाणी ने तो मोदी को नमस्कार किया, लेकिन मोदी ने ऐसा नहीं किया।

मोदी विरोधियों के लिए यह तस्वीर बहुत मजेदार थी, वहीं मोदी समर्थकों को आश्चर्य में डालने वाली थी। मोदी विरोधियों ने यह तस्वीर लपक ली और तरह-तरह के कैप्शन के साथ वायरल कर दी। उदाहरण के रूप में एक तस्वीर में आडवाणी को कहते दिखाया- "दया करो" तो जवाब में मोदी को कहते दिखाया गया- "तुम फिर आ गए?"

कई वेबसाइट्स पर इसे लेकर तरह-तरह की व्याख्या की गई। एक स्थान पर तो आडवाणी को बेहद चतुर-चालाक बताया गया और कहा गया कि मोदी की छवि को धूल धसरित करने के लिए यह आडवाणी की रणनीति है। इसीलिए वह हर कार्यक्रम में दीन-हीन बनकर मोदी के सामने हाथ जोड़कर खड़े जाते हैं। कहीं पर मोदी के अहंकार की जमकर निंदा की गई।

लेकिन कहीं भी यह पढ़ने को नहीं मिला कि एक खास क्षण को पकड़कर खींची गई तस्वीर भी झूठ बोल सकती है। फेक न्यूज पर हल्ला मचाने वालों ने भी वायरल फोटो पर ही टिप्पणियां कीं और वास्तविकता बताने की जरूरत नहीं समझी।

वास्तविकता यह थी कि जागरण में छपी यह फोटो उस प्रसंग का एक फ्रेम मात्र थी। जाहिर है जब दो लोग नमस्कार करते हैं तो किसी के हाथ पहले उठते हैं, जबकि किसी के बाद में। नमस्कार के बाद भी किसी के हाथ पहले नीचे आ जाते हैं और किसी के बाद में। यहां भी यही हुआ। ऐसा नहीं था कि मोदी ने आडवाणी का अभिवादन नहीं किया। मोदी ने भी अभिवादन किया, लेकिन उसके बाद जैसे ही उनके हाथ नीचे गए, फोटोग्राफर ने फोटो क्लिक कर दिया। आडवाणी के हाथ उस समय भी उठे हुए थे। नीचे दिया गया फोटो दिखा रहा है कि मोदी ने भी आडवाणी को नमस्कार किया।



एक और उदाहरण...


नीचे दी गई इस तस्वीर में भी किसी भी प्रकार का फोटो कैप्शन लगाकर या सुविधाजनक टिप्पणी करके इसे झूठी बनाया जा सकता है।

आडवाणी और मोदी


मंदिर में राहुल गांधी की तस्वीर


नीचे दी गई इस फोटो में भी पूजा के दौरान हाथ उठाने वाले एक फ्रेम को पकड़कर यह झूठा प्रचार किया गया कि राहुल गांधी मंदिर में नमाज पढ़ रहे थे।


claim of rahul gandhi offering namaz in temple is fake



रंजन गोगोई और अमित शाह की तस्वीर


एक और तस्वीर पिछले दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। यह तस्वीर पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और गृहमंत्री अमित शाह की है। यह तस्वीर इस एंगल से खींची गई है कि अमित शाह की पीठ कैमरे की तरफ है, जबकि रंजन गोगोई कैमरे के सामने हैं और नमस्कार करने की मुद्रा में हैं। ध्यान से देखने पर साफ पता चलता है कि यह तस्वीर किसी कार्यक्रम के दौरान खींची गई है और पीछे से भी अमित शाह के हाथ देखने पर पता चलता है कि वे रंजन गोगोई को नमस्कार कर रहे हैं और उनके शरीर का ऊपरी हिस्सा थोड़ा सा आगे की ओर झुका है। दूसरी तरफ रंजन गोगोई का शरीर बिल्कुल सीधा है। इससे साफ पता चलता है कि पहले अमित शाह ने नमस्कार किया होगा और उसके बाद उनके नमस्कार का जवाब रंजन गोगोई दे रहे हैं। आउटलुकइंडियाडॉटकॉम पर इस तस्वीर का सही कैप्शन भी दिया गया है जो इस प्रकार है-

Former Chief Justice of India, Justice Ranjan Gogoi, is greeted by Union Home Minister Amit Shah during the oath-taking ceremony of Justice Sharad Arvind Bobde, as the 47th Chief Justice of India (CJI), at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi.



.....लेकिन  मनमाने कैप्शन या अपनी सुविधा के अनुसार की गई टिप्पणी के  साथ इस तस्वीर से भी कुछ भी कहलवाया जा सकता है। जैसा कि किसी मोदी विरोधी ने नीचे की तस्वीर में किया है।




खास बात यह है कि ऐसी तस्वीरों को केवल ट्रोलिंग में माहिर लोग ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी शेयर करने का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है कि कई बार किसी का समर्थन करने या विरोध करने के लिए लोगों के पास तर्कों का अभाव होता है। ऐसे में जब किसी पक्ष को ऐसा कुछ हाथ लगता है जिसे मनमाफिक तरीके से मोड़ा जा सकता है, तो वे इस काम में बिल्कुल भी देरी नहीं करते हैं।

इस फोटो को भी देखिए---

यह फोटो 11 मई 1998 का है जब भारत ने पोखरन में दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया था। अब यदि तब भी सोशल मीडिया होता और आजकल जैसी खुराफातें लोगों के दिमाग में चल रही होंती तो वे इस फोटो के लिए लिख सकते थे कि अन्य सभी ने तो हर्ष से अपने हाथ खड़े किए लेकिन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने नहीं किए। या फिर ऐसा भी कैप्शन लिखा जा सकता था कि प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और अन्य लोग तो जनता/मीडिया की तरफ हाथ उठाकर अभिवादन कर रहे थे लेकिन डॉ. कलाम कह रहे थे कि अरे-अरे हाथ नीचे करो सब। ....तो आज के माहौल में कुछ नहीं कहा जा सकता है कि कोई किसी फोटो का क्या कैप्शन बना दे।





- लव कुमार सिंह


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