What should be done for a self-reliant India?
- Through a poem I tried to tell what should be done
- एक कविता के जरिये मैंने यह कहने की कोशिश की है कि क्या किया जाना चाहिए
ओ गांव के प्यारे, ओ शहर के मारे
लौटा है तू घर अपने, अब लौट के ना जा रे
बन जा तू आत्मनिर्भर, यहीं धूनी रमा ले अब
जी-तोड़ मशक्कत से, यहीं महल बना ले रे
ओ गांव के प्यारे, अब लौट के ना जा रे।
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पाल मछली, मधुमक्खी, चाहे दूध का धंधा कर
थोड़ी है अगर धरती, तो सब्जी उगा ले रे
मुर्गी का पालन भी, खूब पैसे दे सकता है
या फिर घर में अपने, कुटीर उद्योग लगा ले रे
ओ गांव के प्यारे, अब लौट के ना जा रे।
पैसे की चिंता ना कर, एक समूह बना अपना
किसी रुचिकर काम की, बना अच्छी योजना रे
फिर लोन का कर दावा, देंगे बैंक, ये वादा है
वादा तू भी एक करेगा, अब दंगा-दारू-धोखा ना रे
ओ गांव के प्यारे, अब लौट के ना जा रे।
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हाकिम से है ये विनती, अब तू भी आंखें खोल
उद्यम नया लगे जो, बिहार-यूपी में भिजवा रे
कामगारों का रेला, सर्वाधिक वहीं तो लौटा है
जो काम न दे पाए अब, फिर कहोगे किस आस रे
ओ गांव के प्यारे, अब लौट के ना जा रे।
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अपनों के पास रहकर, ये कमाल कर सकता है
हुनर सीखकर आया है, बस काम चाहिए रे
आत्मनिर्भर भारत की, कसौटी अब एक ही है
बहार, गांवों में आए, भार शहरों का कम हो रे
ओ गांव के प्यारे, अब लौट के ना जा रे।
- लव कुमार सिंह
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