Wednesday, 20 May 2020

'आत्मनिर्भर भारत' के लिए एक कविता

What should be done for a self-reliant India?

  • Through a poem I tried to tell what should be done
  • एक कविता के जरिये मैंने यह कहने की कोशिश की है कि क्या किया जाना चाहिए



ओ गांव के प्यारेओ शहर के मारे
लौटा है तू घर अपनेअब लौट के ना जा रे
बन जा तू आत्मनिर्भरयहीं धूनी रमा ले अब
जी-तोड़ मशक्कत सेयहीं महल बना ले रे
ओ गांव के प्यारेअब लौट के ना जा रे।

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पाल मछली, मधुमक्खीचाहे दूध का धंधा कर
थोड़ी है अगर धरतीतो सब्जी उगा ले रे
मुर्गी का पालन भीखूब पैसे दे सकता है
या फिर घर में अपनेकुटीर उद्योग लगा ले रे
ओ गांव के प्यारेअब लौट के ना जा रे।

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पैसे की चिंता ना करएक समूह बना अपना
किसी रुचिकर काम कीबना अच्छी योजना रे
फिर लोन का कर दावादेंगे बैंक, ये वादा है
वादा तू भी एक करेगा, अब दंगा-दारू-धोखा ना रे
ओ गांव के प्यारेअब लौट के ना जा रे।

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हाकिम से है ये विनतीअब तू भी आंखें खोल
उद्यम नया लगे जोबिहार-यूपी में भिजवा रे
कामगारों का रेला, सर्वाधिक वहीं तो लौटा है
जो काम न दे पाए अबफिर कहोगे किस आस रे
ओ गांव के प्यारेअब लौट के ना जा रे।

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अपनों के पास रहकरये कमाल कर सकता है
हुनर सीखकर आया हैबस काम चाहिए रे
आत्मनिर्भर भारत कीकसौटी अब एक ही है
बहार, गांवों में आएभार शहरों का कम हो रे
ओ गांव के प्यारेअब लौट के ना जा रे।

- लव कुमार सिंह


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