Monday 6 September 2021

ओबीसी 52 फीसदी मानकर 27 फीसदी आरक्षण मिला था...यदि ओबीसी इससे कम निकले तो क्या आरक्षण घटेगा?

ओबीसी 52 फीसदी मानकर 27 फीसदी आरक्षण मिला था...यदि ओबीसी इससे कम निकले तो क्या आरक्षण घटेगा?


Caste Census



इन दिनों देश में जाति की जनगणना का मुद्दा गरम है। पिछले दिनों बिहार के सभी राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री से मिलकर जातिगत जनगणना की मांग की। माना जा रहा है कि जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने पिछड़ी जातियों को अपने साथ बांधा है, उससे अन्य राजनीतिक दलों में खलबली मची है और जातिगत जनगणना की मांग इसी की काट के मद्देनजर की जा रही है।

भाजपा ने यह किया कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दे दिया, राज्यों को ओबीसी की पहचान का अधिकार दे दिया। मेडिकल-नीट के केंद्रीय कोटे में ओबीसी आरक्षण दे दिया और केंद्रीय मंत्रिपरिषद में ओबीसी की संख्या काफी बढ़ा दी। जानकार कह रहे हैं कि पिछड़ी जातियों की राजनीतिक करने वाले दलों द्वारा जातिगत जनगणना की मांग इसलिये हो रही है ताकि पता चल सके कि पिछड़ी जातियों की जनसंख्या क्या है और फिर उसी अनुपात में उनके लिये आरक्षण बढ़ाने की मांग की जा सके।

लेकिन जातिगत जनगणना की मांग करने वाले राजनेता क्या इस बात से अंजान हैं कि मंडल आयोग ने ओबीसी के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण की जो व्यवस्था की थी, वो यह मानकर की थी कि देश में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी है। जी हां, 52 फीसदी। यह अनुमान 1931 की जनगणना के आधार पर लगाया गया था। यानी अनुमानित 52 फीसदी आबादी पर 27 फीसदी आरक्षण मिला तो यदि जातिगत जनगणना में ओबीसी देश की जनसंख्या के आधे (50 प्रतिशत) भी निकले तो क्या कोई बता सकता है कि आरक्षण की सीमा किस तर्क से बढ़ाई जा सकती है।

इसके उलट ऐसी नौबत भी आ सकती है कि ओबीसी के आरक्षण को कम करने का तर्क दिया जाने लगे। ऐसा इसलिये क्योंकि 2007 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन यानी एनएसएसओ ने एक सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में देश में ओबीसी की आबादी 41 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था। इस हिसाब से तो यदि 52 प्रतिशत ओबीसी आबादी के अनुमान पर 27 फीसदी आरक्षण मिला तो 41 फीसदी आबादी के आधार पर आरक्षण बढ़ने के बजाय कम ही होना चाहिये। क्या इसके लिये पिछड़़ों की राजनीति करने वाले नेता और पिछले वर्गों के लोग तैयार होंगे।

यहां बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी की थी। साथ ही संविधान का हवाला देते हुये यह भी कहा कि आरक्षण प्रशासन की दक्षता के संगत ही होना चाहिये।

कुल मिलाकर यदि जातिगत जनगणना होती है तो उसके परिणाम आने के बाद देश में हंगामा होना तय है। जातियों के बीच अभी भी काफी वैमनस्य बना हुआ है। ऊंची जातियों के युवा प्रश्न पूछते हैं कि आखिर आरक्षण कब तक जारी रहेगा? उधर, आरक्षण के वांछित परिणाम भी नहीं मिल रहे हैं। 70 सालों में इससे केवल कुछ ही जातियों का भला हो पाया है। पिछड़ी जातियों में भी एक तरह से सवर्ण वर्ग पैदा हो गया है।

फिर, अभी तक तो हम यह सुनते आए थे कि भई संरक्षण उसका होना चाहिये जो अल्प संख्या में है। लेकिन जातियों के मामले में इसके उलट बात की जाती है कि सुविधा उसे ज्यादा मिले जिसकी संख्या ज्यादा है। ...तो क्या जिन जातियों की संख्या कम होगी, उनको पूछने वाला कोई नहीं होगा?

...तो नेता चाहे जो कहें, जातिगत जनगणना को एक जिन्न ही समझिये जो फिलहाल बोतल में बंद है। मेरे विचार से इसे बोतल में बंद ही रहना चाहिये। बोतल से बाहर निकलते ही यह बवाल खड़ा करेगा। सामाजिक समरसता को यह बड़ा नुकसान पहुंचायेगा।

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- लव कुमार सिंह

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