Saturday 11 September 2021

गणेश चतुर्थी मनाने का यह तरीका सर्वोत्तम लगा

Best way to celebrate Ganesh Chaturthi



परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के परामाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने एक अखबार में छपे एक लेख में लिखा है कि-

शास्त्रों में यज्ञ, पूजा और उत्सवों के लिए श्री गणेश की मूर्ति मात्र एक अंगूठे के बराबर बनाने का विधान है। जब यह परंपरा प्रारंभ हुई तब पूजा, हवन और यज्ञ में गोबर और मिट्टी के श्री गणेश बनाए जाते थे। पूजन के बाद उस प्रतिमा को तालाबों, जलाशयों, सरोवरों में विसर्जित कर दिया जाता था। गोबर और मिट्टी जल में घुल जाती है और गोबर के गुणकारी तत्व पानी में मिल जाते हैं। इससे धरती उपजाऊ बनती है और पर्यावरण की रक्षा भी होती है। इससे गाय का संरक्षण और संवधर्न भी संभव है। यानी यदि शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी मनाई जाए तो हमारी परंपरा भी बचेगी और पर्यावरण भी।

स्वामी जी लिखते हैं कि अब समय आ गया है कि हम पौराणिक तौर-तरीके अपनाएं। गोबर, मिट्टी या आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से श्री गणेश बनाएं। उनका पूजन करें और समय आने पर धरती में गड्ढा करके उन्हें विसर्जित करें। यह भी कर सकते हैं कि गणेश जी की प्रतिमा बनाते वक्त उनके पेट में अपनी पसंद के फल, तुलसी या औषधीय पौधों के बीज रखें। 14 दिन बाद उसे अपने घर पर ही किसी गमले, बगीचे या किसी उद्यान में विसर्जित करें। इससे प्रतिमा के पेट में डाले गये बीज का रोपण और संरक्षण ठीक से किया जा सकेगा। बीज से निकला पौधा श्री गणेश के आशीर्वाद और कृपा दृष्टि का प्रतीक होगा।

पर्यावरण बचाने के लिये जरूरी है कि- 

प्लास्टिक, प्लास्टर ऑफ पेरिस, थर्मोकोल या अन्य सिंथेटिक उत्पादों से बनी श्री गणेश की प्रतिमाओं का प्रयोग ना करें।

प्रतिमाओं को जल राशियों, नदियों, नालों में विसर्जित ना करें। इससे प्रदूषण बढ़ता है और पूजित प्रतिमाओं की दुर्गति भी देखने को मिलती है। इससे श्री गणेश का अनादर होता है और देखने वालों में उनके प्रति श्रद्धा कम होती है।

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- लव कुमार सिंह


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