Tuesday 21 September 2021

शिक्षक को पढ़ा सकता है छात्र...शिक्षक को बदल सकता है छात्र!

शिक्षक को पढ़ा सकता है छात्र...शिक्षक को बदल सकता है छात्र !


Student can teach the Teacher...Student can change Teacher!



हाल ही में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र कुमार तनेजा जी से मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस संक्षिप्त मुलाकात के दौरान एक मोती हाथ लगा, जो मैं अपनी जेब में रख लाया। इधर-उधर की छोड़ सीधे मोती पर ही आता हूं।

शिक्षकों और छात्रों के बारे में बात करते हुए प्रोफेसर नरेंद्र कुमार तनेजा जी ने कहा कि शिक्षक से ज्यादा छात्र अपने शिक्षक को पढ़ाते हैं। किसी भी शिक्षण संस्थान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस संस्थान के छात्र कैसे हैं। इसीलिये हमें शिक्षण कौशल बढ़ाने के साथ-साथ इस बात पर भी जोर देना चाहिये कि शिक्षण संस्थान की तरफ काबिल छात्र आकर्षित हो सकें।

उनकी इस बात ने हमें चौंकाया, लेकिन अगले ही क्षण बात समझ में आ गई। अपनी बात को थोड़ा विस्तार देते हुए कुलपति जी ने कहा कि अगर छात्र मेहनती, सीखने के इच्छुक होते हैं तो इससे शिक्षक पर अपने वर्तमान ज्ञान में वृद्धि करने का दबाव पड़ता है। अगर छात्र उत्सुक हैं तो शिक्षक को शिक्षण के लिये तैयारी करनी पड़ती है, अपडेट रहना पड़ता है। यानी छात्रों के दबाव में शिक्षक और ज्यादा पढ़ता है, और ज्यादा सीखता है। उसका यह पढ़ना, सीखना उसे तो आगे बढ़ाता ही है, बदले में छात्रों को भी ज्यादा समृद्ध करता है।

इसके लिए कुलपति जी ने अपने एक विद्वान शिक्षक मित्र के साथ ही स्वयं अपना भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि एम.ए. करने के बाद जब उन्होंने पढ़ाना शुरू किया तो ऐसे मेधावी और नियमित छात्र मिले, जिनके कारण शिक्षक के रूप में वे स्वयं के ज्ञान का विस्तार करते गए और नए आयाम छूते गए।

कुलपति जी की यह बात इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आज और पिछले काफी समय से उच्च शिक्षण संस्थाओं की कक्षाओं में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति बहुत कम हो गई है। यानी किसी कक्षा में यदि 50 छात्रों ने प्रवेश लिया हुआ है तो उपस्थिति दस के आसपास ही रहती है। कहीं-कहीं तो इससे भी कम। 

छात्र पढ़ने को उत्सुक नहीं हैं तो शिक्षकों पर पढ़ने और पढ़ाने का दबाव कम हुआ है। यदि शिक्षक को यह अहसास रहेगा कि उसकी कक्षा में कल केवल तीन या चार छात्र ही रहेंगे और उनकी भी मंशा यह होगी कि गुरु जी हाजिरी लेकर जल्द ही छुटकारा दे दें तो वह निश्चित ही अपने लेक्चर की तैयारी में गंभीर नहीं होगा। दूसरी तरफ यदि कक्षा में दो-तीन दर्जन छात्र शिक्षक का इंतजार कर रहे होंगे तो वह निश्चित ही उन्हें अपना ज्ञान बांटने और छात्रों के संभावित प्रश्नों के उत्तर के लिये ज्यादा ज्ञान प्राप्त करने के लिए मजबूर होगा।

कुलपति जी की इसी बात को थोड़ा और विस्तार दूं तो शिक्षण संस्थान और शिक्षक पर इस बात का भी असर पड़ता है कि उस संस्थान में किस पृष्ठभूमि के छात्र पढ़ रहे हैं। छात्र की पृष्ठभूमि के निर्माता यानी छात्र के अभिभावक भी शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों पर गहरा असर डालते हैं, अगर वे डालना चाहें तो।

सोशल मीडिया पर एक पोस्ट काफी वायरल है, जिसमें यह सुझाव दिया जाता है कि यदि सरकार जिलाधिकारी, एसएसपी समेत जिले के सभी सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों को यह आदेश दे दे कि वे अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में कराएं तो स्कूली शिक्षा की तस्वीर ही बदल जायेगी। कैसे बदल जाएगी? क्योंकि इन सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों का जोर इस बात पर जरूर रहेगा कि जिस स्कूल में उनके बच्चे बढ़ रहे हैं, वहां उन्हें अच्छे शिक्षण समेत सभी प्रकार की सुविधाएं मिलें।

How can we improve our education?

...तो शिक्षा को सुधारने की कड़ी कहां से शुरु होती है? इस कड़ी की शुरुआत अभिभावक से होती है। अभिभावकों को क्या करना है? उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि उनका सुपुत्र या सुपुत्री नियमित रूप से स्कूल, कॉलेज जा रहा/रही है। निजी स्कूलों में तो अभिभावकों को एक निश्चित समय पर (पीटीएम के दौरान) स्कूल में बुलाया जाता है। सरकारी स्कूल, कॉलेजों में अभिभावकों को नहीं बुलाया जाता। ऐसे में अभिभावकों को स्वयं ही अपने बच्चे के शिक्षण संस्थान का एक पखवाड़े में एक चक्कर जरूर लगा लेना चाहिये। इस दौरान अपने लाडले/लाडली की गतिविधियां तो पता करनी ही हैं, शिक्षकों और संस्थान से जो शिकायतें हैं, उन्हें भी विनम्रता से उगल देना है।

छात्रों को क्या करना है? उन्हें नियमित रूप से कक्षाओं में जाना है। कक्षा में शिक्षक नहीं आता तो शिक्षक के कक्ष में जाकर बहुत ही आदर और विनम्रता के साथ उन्हें उनके पीरियड की याद दिलानी है। शिक्षक कहीं अति वयस्त हैं तो उस संस्थान में मौजूद सुविधाओं (अखबार, पत्रिकाएं, पुस्तकें, कंप्यूटर, खेलकूद आदि) का लाभ उठाना है। शिक्षण से संबंधित अपनी हर जिज्ञासा या समस्या को शिक्षक को बताना है और उनसे उसका हल निकालने में मदद का अनुरोध करना है।

ये दो कड़ियां अपना काम शुरू करें...शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों को बदलना ही पड़ेगा। स्वयं में सुधार लाना ही पड़ेगा। यह तय है। 

अभिभावक, छात्र को बदलें

छात्र, शिक्षक को बदल देगा और 

शिक्षक, शिक्षा को बदल देगा। 

आज के वक्त का यही तकाजा है। यही फार्मूला है।

- लव कुमार सिंह


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