42-year-old magazine 'Cricket Samrat' closed, everyone is sad but no one is ready to buy
हर खेल प्रेमी और क्रिकेट प्रेमी दुखी है कि 40 साल से ज्यादा पुरानी क्रिकेट की लोकप्रिय पत्रिका ‘क्रिकेट सम्राट’ हमेशा के लिए बंद हो गई। जून 2020 के अंतिम दिनों में यह मनहूस खबर आई जिसने मुझे भी दुखी कर दिया। कमाल की बात यह है कि दुखी होने वाले लोगों की संख्या हजारों में है, लेकिन पिछले कई वर्षों से इस पत्रिका को खरीदने के लिए बहुत ज्यादा लोग तैयार नहीं थे और न हैं।
‘क्रिकेट सम्राट’ के बंद होने पर आ रही हजारों प्रतिक्रियाओं को देखकर इस पत्रिका के मालिक को लग सकता है कि क्यों नहीं एक घोषणा की जाए कि हम इस पत्रिका को दोबारा शुरू करने जा रहे हैं, लेकिन इसी शर्त पर यह काम होगा कि जो भी व्यक्ति ‘क्रिकेट सम्राट’ के बंद होने से दुखी हैं, वे इसके स्थायी ग्राहक बन जाएंगे। यदि ‘क्रिकेट सम्राट’ का मालिक यह घोषणा कर देता है तो क्या आपको लगता है कि हम और आप इसके स्थायी ग्राहक बनने को तैयार हो जाएंगे? शायद नहीं। तो ऐसे में एक पत्रिका की मौत पर व्यक्त किया जा रहा यह शोक क्या झूठा नहीं है? अब दूसरी चीजें हमारी प्राथमिकताएं बन गई हैं।
उल्लेखनीय है
कि 1978 में शुरू की गई ‘क्रिकेट सम्राट’ बहुत जल्द ही क्रिकेट की एक बेहद
लोकप्रिय पत्रिका बन गई थी। इस पत्रिका में क्रिकेट से जुड़ी हर जानकारी उपलब्ध
रहती थी। किसी क्रिकेट श्रृंखला के खत्म होने के बाद उसके हर पहलू और हर आंकड़े का
ब्योरा इस पत्रिका में पढ़ने को मिल जाता था। साथ में क्रिकेट से जुड़े विभिन्न
पक्ष जैसे इंटरव्यू, पाठकों के प्रश्न, खिलाड़ियों के पोस्टर आदि भी होते थे। बीच
के पन्नों पर किसी खिलाड़ी का पोस्टर छापा जाता था। युवा पाठकों में इस पोस्टर को निकालकर
अपने कमरे की दीवारों पर लगाने का बहुत क्रेज था।
‘क्रिकेट सम्राट’ दिल्ली में कर्मपुरा से छपा करती थी। इसके कवर पर यह दावा भी लिखा होता था कि यह दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली क्रिकेट पत्रिका है। इसके संस्थापक संपादक के रूप में आनंद दीवान का नाम छपता था।
उफ! पत्रिकाओं का की लोकप्रियता का वह जबर्दस्त दौर
वास्तव में पत्रिकाओं
की लोकप्रियता का अपने देश में एक जबरदस्त दौर था। पत्रिकाएं भी अपने पाठकों से
गजब का रिश्ता रखती थीं। उदाहरण के लिए ‘क्रिकेट सम्राट’ के बारे में ब्लॉग ‘रश्मिरविजा’ की
लेखिका लिखती हैं-
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“दसवीं उत्तीर्ण कर कॉलेज में
कदम रखा ही था। स्कूल हॉस्टल के जेलनुमा माहौल के बाद, कॉलेज में आसमान कुछ ज्यादा
करीब लगता। मौलिश्री के पेड़ के नीचे बैठ गप्पें मारना, किताबें पढना, कमेंट्री सुनना हम सहेलियों का
प्रिय शगल था। उसी दौरान एक पत्रिका ‘क्रिकेट सम्राट’ के संपादकीय पर नज़र पड़ी। पूरे संपादकीय
में अलग-अलग तरह से सिर्फ यही लिखा था कि ‘लड़कियों को खेल
के बारे में कुछ नहीं मालूम, उन्हें सिर्फ
खिलाड़ियों से मतलब होता है’। मुझे बहुत
गुस्सा आया क्यूंकि मेरी खेल में बहुत
रूचि थी।
....मैंने एक कड़ा विरोध पत्र लिखा और उसमे संपादक की भी खूब
खिल्ली उडाई क्यूंकि हमेशा अंतिम पेज पर किसी खिलाडी के साथ, उनकी खुद की तस्वीर छपी होती थी। सहेलियों
ने जब कहा, ‘ये पत्र तो
नहीं छापेगा’ तो मैंने दो और
पत्र, एक नम्र स्वर
में और एक मजाकिया लहजे में लिखा और ‘रेशु’ और अपने निक नेम ‘रीना’ के नाम से भेज दिया। एड्रेस भी
एक रांची, मुजफ्फरपुर और
समस्तीपुर का दे दिया। हमारी केमिस्ट्री की क्लास चल रही थी और शर्मीला कुछ देर से
आई। उसने ‘में आई कम इन’ जरा जोर से कहा तो हम सब
दरवाजे की तरफ देखने लगे। शर्मीला ने मुझे ‘क्रिकेट सम्राट’ का नया अंक दिखाया और इशारे से
बताया ‘छप गयी है’। अब मैं कैसे
देखूं?..मैं सबसे आगे
बैठी थी और शर्मीला सबसे पीछे और 45 मिनट का पीरियड
बीच में। नीचे-नीचे ही पास होती पत्रिका मुझ तक पहुंची। देखा, एक अलग पेज पर मेरे तीनों पत्र
छपे हैं, और एक कोने में
संपादक की क्षमा याचना भी छपी है। फिर तो डेस्क के नीचे-नीचे ही पूरी क्लास वो पेज
पढ़ती रही और मैडम chemical equations सिखाती रहीं।
...दो महीने बाद छुट्टियों में घर जा रही थी। ट्रेन में सामने
बैठे एक लड़के को ‘क्रिकेट सम्राट’ पढ़ते देखा। जैसे ही उसने पढ़ कर
रखी, मैंने अपने हाथ
की मैगज़ीन उसे थमा, उसकी पत्रिका
ले ली। मिडल पेज पर देखा संपादक ने बाकायदा एक
परिचर्चा आयोजित कर रखी थी- ‘क्या लड़कियों का क्रिकेट से कोई वास्ता है?’ पक्ष और विपक्ष के कई लोगों ने मेरे लिखे
पत्र का उल्लेख किया था।”
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ऐसे दौर के बारे में सोचकर दिल में और मन में मीठा-मीठा सा दर्द होता है। शायद ही ऐसा दौर फिर कभी लौटे। अलविदा 'क्रिकेट सम्राट'।
- लव कुमार सिंह
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शायद इसकी लोकप्रियता को सोशल मीडिया से भी काफी नुकसान है
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