Friday 10 July 2020

विकास दुबे एनकाउंटर पर उठ रहे कई सवालों के जवाब मिले हैं, आइए देखते हैं ये कितने विश्वसनीय हैं?

Many questions arising on the Vikas Dubey encounter have been answered, let's see how reliable they are?

विकास दुबे एनकाउंटर पर उठ रहे कई सवालों के जवाब मिले हैं, आइए देखते हैं ये कितने विश्वसनीय हैं?


शुक्रवार 10 जुलाई 2020 को विकास दुबे एनकाउंटर पर दिनभर अनेक सवाल उठते रहे। शाम तक इनमें से कई सवालों के जवाब न्यूज चैनलों और पुलिस द्वारा सुनने को मिले। आइए देखते हैं कि ये जवाब कितने विश्वसनीय हैं-

सवाल 1- विकास दुबे को टाटा सफारी गाड़ी में लाया जा रहा था, लेकिन जिस गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ, वह टाटा सफारी नहीं थी। क्यों?
उत्तर- गाड़ी का बदलना बहुत ही सामान्य बात है। जब भी पुलिस किसी अपराधी को एक जिले या राज्य से दूसरे जिले या राज्य में ले जाती है तो एक बार नहीं बल्कि कई बार गाड़ी की अदला-बदली हो सकती है। ऐसा उस अपराधी की सुरक्षा की दृष्टि से किया जाता है और इसलिए भी ताकि अपराधी किस गाड़ी में है, इसे लेकर गफलत बनी रहे। यह इसलिए जरूरी होता है क्योंकि एक जगह से दूसरी जगह ले जाते समय अक्सर अपराधियों को छुड़ाने की कोशिशें उसके साथियों द्वारा की जाती है। विकास दुबे के मामले में तो उज्जैन से कानपुर के लिए चलते ही उसके वीडियो बनने शुरू हो गए थे और ये वीडियो सोशल मीडिया पर सरकुलेट हो रहे थे। उज्जैन से कानपुर के पूरे रास्ते में ये काम रह-रहकर होता रहा। मीडिया की गाड़ियां भी पुलिस के काफिले के साथ चल रही थीं। इन सबके मद्देनजर उस गाड़ी को बदला गया जिसमें विकास दुबे बैठा था।

सवाल 2- कानपुर जिले में आने पर एनकाउंटर से ठीक पहले मीडिया को जबरन पीछे रोक दिया गया। क्यों?
उत्तर- पुलिस का कहना है कि किसी को नहीं रोका गया। टोल नाके के पास जिस जगह पर मीडिया को रोकने की बात की जा रही है, वहां पर चेकिंग के कारण हमेशा ही जाम सा रहता है। पुलिस के अनुसार वहां पर सुबह चार बजे से ही चेकिंग चल रही थी, जिसकी वजह से वहां जाम लगा हुआ था। पुलिस का कहना है कि मीडिया की गाड़ियों को रोका नहीं गया। हां जाम के कारण मीडिया की गाड़ियों को निकलने में परेशानी जरूर हुई। पुलिस की गाड़ियों को पहले निकाला गया, लेकिन मीडिया की गाड़ियों को रोका नहीं गया।

सवाल 3- इतने लंबे सफर में कोई हादसा नहीं हुआ। कानपुर आकर ही ऐसा क्यों हुआ?
उत्तर- लंबे सफर के बाद ड्राइवर थक गया था। बारिश हो रही थी और गाड़ी की स्पीड तेज थी। तभी अचानक भैंसों का एक झुंड सामने आ गया। उस झुंड से बचने के लिए ड्राइवर ने स्टीयरिंग घुमाया जिससे गाड़ी अनियंत्रित हो गई। वहीं पर मुख्य सड़क के किनारे पर कट भी था जिससे गाड़ी सड़क के नीचे फिसलकर पलट गई।

सवाल 4- जिस विकास ने उज्जैन में खुद समर्पण किया, उसने कानपुर में आकर पुलिसकर्मी की पिस्टल कैसे छीन ली?
उत्तर- जब हादसे में गाड़ी पलटी तो उसमें बैठे चारों पुलिसकर्मी हादसे के शॉक में कुछ देर के लिए निस्तेज हो गए थे। विकास दुबे पुलिसकर्मियों के बीच में बैठा था। पुलिसकर्मी उसे पकड़े हुए थे, इसलिए उसे कम चोट लगी। इसी दौरान उसका शातिर दिमाग चला और उसने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन ली और गाड़ी से निकलकर भागने लगा। दूसरी गाड़ी में आ रही एसटीएफ की दूसरी टीम ने विकास दुबे का पीछा किया।

सवाल 5- पुलिस को विकास दुबे के पैर में गोली मारनी थी ताकि वह भाग न सके। उसकी छाती में गोली क्यों मारी गई?
उत्तर- विकास दुबे को पुलिस ने सरेंडर करने के लिए कहा, लेकिन उसने भागते हुए पुलिसकर्मियों पर गोली चलाई। इससे कुछ पुलिसकर्मी घायल भी हुए। इसके बावजूद उसे फिर से सरेंडर करने की चेतावनी दी गई। इसका जवाब भी उसने गोली से ही दिया। इस पर पुलिस को भी गोली चलानी पड़ी। पुलिस का कहना है कि उस क्षण यह तय करने का समय बिल्कुल नहीं था कि गोली कहां पर चलाई जाए। जब दो बार चेतावनी के बावजूद विकास गोली चलाता रहा तो पुलिसकर्मियों ने भी फायर झोंक दिए।

सवाल 6- क्या यह अच्छा नहीं होता कि विकास दुबे को अदालत के सामने प्रस्तुत किया जाता और कानून द्वारा उसे सजा दिलवाई जाती? यदि ऐसे ही एनकाउंटर किए जाएंगे तो फिर न्यायालयों की क्या जरूरत रह जाएगी?
उत्तर- क्या विकास दुबे को इससे पहले अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया था? अवश्य किया गया था, लेकिन उसका क्या हश्र हुआ, ये हम सब जानते हैं। जिस विकास दुबे ने मंत्री की हत्या थाने जैसी जगह में कर दी हो और दर्जनों पुलिसकर्मी उस हत्याकांड के गवाह रहे हो, उस विकास दुबे को अदालत से सजा नहीं दिलवाई जा सकी। जिस विकास दुबे पर गंभीर अपराध वाले 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे, उस विकास दुबे को अदालत से सजा नहीं मिल सकी। जिस विकास दुबे को आजीवन कारावास की सजा मिली भी, उस विकास दुबे का जेल में रहना अदालतें और न्यायाधीश सुनिश्चित नहीं कर सके। वह अपने घर में आराम से रह रहा था। बताइए ऐसे जघन्य अपराधी विकास दुबे को अदालत के सामने प्रस्तुत करने से क्या मिल जाता? अदालत के सामने वे अभियुक्त प्रस्तुत किए जाते हैं जिनके बारे में संशय होता है कि उन्होंने अपराध किया है या नहीं। जिस अपराधी के बारे सारी बातें क्रिस्टल क्लीयर हो, उसे अदालत में पेश करना, अदालत और पुलिस दोनों का समय बर्बाद करना है। इसलिए न्यायालयों की जरूरत रहेगी और हमेशा रहेगी, लेकिन उन मामलों में जिनमें अपराध के बारे में कोई संशय हो। विकास दुबे जैसे अपराधियों के मरने से कानून का राज स्थापित होता है, न कि उनके जेल के सीखचों के बाहर रहने से। कानून का राज तभी स्थापित होगा जब कानून का पालन कराने वाली पुलिस का इकबाल बुलंद रहेगा। हां, यह जिम्मेदारी आला अधिकारियों और शासन-प्रशासन की हो जाती है कि वे अपनी कड़ी निगरानी द्वारा यह सुनिश्चित करें कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति इस प्रकार से पुलिस की गोली का शिकार कभी भी न हो। एसएसपी, डीआईजी, आईजी, एडीजी, डीजी जैसे अधिकारियों को  इसी बात की तनख्वाह मिलती है कि वे सख्त निगरानी रखें और कानून का पालन सुनिश्चित कराएं।

(पहले पांच सवालों के जवाब पुलिस द्वारा या विभिन्न चैनलों पर एंकरों द्वारा पुलिस से बातचीत के आधार पर दिए गए हैं। अंतिम छठे सवाल का जवाब स्वयं मेरा यानी इन पंक्तियों के लेखक का है। अब आप फैसला कर लीजिए कि ये  जवाब कितने विश्वसनीय हैं।) 

- लव कुमार सिंह


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