Sunday 19 July 2020

ओटीटी प्लेटफार्म और वेब सीरीज : क्या 90 के दशक की तरह इनकी मनमानी का घड़ा भी फूटेगा?

OTT Platform and Web Series : Will their arbitrary pitcher break like the 90s?


जिन लोगों को 1990 का दशक याद है, वे जानते हैं कि कैसे देश में अचानक विदेशी सैटेलाइट के जरिये टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की लहर आई थी। तब काफी लोग हैरान हुए तो काफी रोमांचित भी हुए। इस दौरान विदेशी सैटेलाइट के जरिये प्रसारित हो रहे कार्यक्रमों को नियंत्रित करने में भारत सरकार सक्षम नहीं थी, क्योंकि तब उन्हें नियंत्रित करने का कोई कानून ही अस्तित्व में नहीं था। यहां तक कि केबल संचालकों के लिए लाइसेंस की भी पुख्ता व्यवस्था नहीं थी।

उस समय देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह केबल टीबी नेटवर्क सामने आ रहे थे। उचित लाइसेंस प्रणाली के अभाव में वे सभी मनमाने तरीके से प्रसारण कर रहे थे। ऐसे नेटवर्क विदेशी सैटेलाइटों से सिग्नल लेकर तमाम अच्छे-बुरे प्रकार के कार्यक्रम दिखा रहे थे। वे कॉपीराइट कानून का उल्लंघन कर रहे थे। वे अनसेंसर्ड फिल्में दिखा रहे थे। उस दौरान रूस, फ्रांस और कई अन्य देशों के वयस्क चैनल देश के ड्राइंगरूमों में धड़ल्ले से देखे जा रहे थे। उन चैनलों पर लोग पहली बार टीवी पर नग्न दृश्य देखते थे और अगले दिन उनके बारे में चर्चा करते थे।

आखिर केबल टीवी की उस मनमानी का घड़ा फूटा। 90 के दशक में राजस्थान के हाईकोर्ट में शिव केबल टीवी सिस्टम बनाम राजस्थान सरकार का केस आया। इस मामले में डीएम ने बिना लाइसेंस चल रहे केबल टीवी को बंद करा दिया था। इस पर केबल टीवी संचालक ने कोर्ट का दरवाजा खटटाया और यह तर्क रखा कि उसके व्यापार और कारोबार करने की स्वतंतत्रा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि उसका सिस्टम “वायरलेस टेलीग्राफ ऑपरेटस” के तहत आता है, जिसके लिए “इंडियन वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट” के तहत लाइसेंस लेना जरूरी है। राजस्थान हाईकोर्ट के इस मामले के बाद यह जरूरत महसूस की गई कि देश में केबल टेलीविजन नेटवर्कों को नियमित करने के लिए कोई कानून होना चाहिए। इसी के बाद 1995 में देश में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियम) अधिनियम आया और केबल टीवी ऑपरेटरों की मनमानी पर रोक लगी।

आज ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हो रहे कंटेंट को लेकर लगभग ऐसी ही स्थिति नजर आ रही है जैसी 1990 के दशक में थी। आज नेटफ्लिक्स, मैक्स प्लेयर, जी-5, अमेजन प्राइम आदि ओटीटी प्लेटफार्म पर लगातार अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट आ रहा है, लेकिन उसे रोकने के लिए सरकार के पास कोई कानून नहीं है।

मैक्स प्लेयर और अन्य कई ओटीटी प्लेटफार्मों पर आरोप है कि उन पर लगातार सेक्स और अश्लीलता से भरी वेबसीरीज आ रही हैं। मैक्स प्लेयर पर प्रसारित चरित्रहीन, ट्विस्टिड, राइट ऑर रॉन्ग, नेकेड, हेलो, जूली, हेलो मिनी, माया आदि के नाम लिए जा सकते हैं। अन्य ओटीटी प्लेटफार्म भी इस दौड़ में पीछे नहीं है।

ध्यान से देखें तो ओटीटी प्लेटफार्म पर ज्यादातर कंटेंट दो ही तरह का है। एक- सेक्सुअल और दूसरा- विवादास्पद। अनेक लोग ट्विटर पर इन प्लेटफार्मों को देश का अंदरूनी शत्रु बता रहे हैं। बहुत से लोगों का आरोप है कि इस मंच को हिंदू विरोधी मंच के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। नेटफ्लिक्स पर ‘पाताललोक’ फिल्म का देश में काफी विरोध हुआ। सेक्रेड गेम्स, कृष्णा एंड हिज लीला, कोड एम आदि को लेकर भी बहुत विवाद हुआ। अपनी वेब सीरीज ‘ट्रिपल एक्स’ पर जब विवाद ज्यादा बढ़ा तो इसकी निर्माता एकता कपूर को सफाई देनी पड़ी और सेना और सैनिकों से माफी मांगनी पड़ी।

तमाम लोग आरोप लगा रहे हैं कि ओटीटी पर प्रसारित हो रही कई वेबसीरीज हिंदू धर्म और देश का अपमान कर रही हैं। इसी बीच, जब ओटीटी प्लेटफार्म ‘डान’ पर ईरान की 2015 में बनी विवादास्पद फिल्म मोहम्मद- द मैसेंजर ऑफ गॉड रिलीज होने की बात पता चली तो मुस्लिम समाज के लोग भी ट्विटर पर इसका विरोध करने लगे। विरोध बढ़ा तो महाराष्ट्र सरकार फिल्म की रिलीज को रुकवाने के लिए सक्रिय हुई। इस पर हिंदू समाज के लोग और भड़क गए। उनका कहना है कि जब उन्होंने ‘हिंदू विरोधी’ फिल्म पर प्रतिबंध की मांग की तो सरकार ने कुछ नहीं किया, लेकिन मोहम्मद- द मैसेंजर ऑफ गॉड के मामले में वह अत्यंत सक्रिय हो जाती है।

कुल मिलाकर यह तो स्पष्ट लगता है कि किसी गाइडलाइन या नियंत्रण के अभाव में ओटीटी प्लेटफार्म पर अश्लील, मनमाना और विवादास्पद कंटेंट आ रहा है। आज सरकार को जल्द से जल्द सक्रिय होने और ओटीटी फ्लेटफार्म के लिए कोई गाइड लाइन, कोई नियमावली या कोई कानून बनाने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि जब तक सरकार जागे तब तक बहुत देर हो जाए। वैसे भी जब फिल्मों के लिए सेंसरबोर्ड है और टेलीविजन के कंटेंट पर भी सूचना प्रसारण मंत्रालय का नियंत्रण है तो फिर ओटीटी प्लेटफार्मों को ही इस दायरे से क्यों बाहर रहना चाहिए? आखिर उन्हें मनमानी करने की छूट क्यों दी जानी चाहिए?

-लव कुमार सिंह


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